जब ख्वाब बना हकीकत Rama Sharma Manavi द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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जब ख्वाब बना हकीकत

सुभास एक 16 वर्षीय युवक था,जिंदगी की कठिनाइयों ने उसे इसी उम्र में अत्यंत समझदार एवं जिम्मेदार बना दिया था।जब वह सात वर्ष का था तभी कश्ती पलट जाने से दरिया में डूबने से उनकी मौत हो गई थी, जबकि वे अच्छे तैराक थे,अपने हमउम्र लोगों से हमेशा आगे रहते थे तैरने में,लेकिन उस दिन न जाने क्यों वे तैरकर बाहर नहीं आ सके,पता ही नहीं चल सका।पास ही दूसरी कश्ती वालों ने जब उन्हें गिरते देखा तो आकर निकाला, लेकिन वे अपनी सांसे खो चुके थे।सुभास से तीन साल छोटी दो जुड़वां बहनें रुचि औऱ शुचि थीं।इस आकस्मिक सदमें से मां तो अपने होशोहवास ही खो बैठी थी, कई महीने लग गए थे मां को सम्भलने में।सुभास अपनी बहनों को सम्हालने का प्रयास करता लेकिन वह भी तो छोटा बच्चा था।

तीन-चार महीने कभी मौसी,कभी बुआ,कभी चाची आकर उनकी देखभाल करती रहीं लेकिन कोई कबतक रहता,सबकी अपनी जिम्मेदारियां थीं।धीरे- धीरे माँ सम्हलने लगीं थीं, वक़्त सबसे बड़ा मरहम होता है, बड़े से बड़े घाव को भर देता है।एक मां वैसे भी अपने बच्चों की खातिर अपनी तकलीफ़ अपने सीने में जज्ब कर लेती है।

पिता के पास एक हाउसबोट था।पहले सीजन में अच्छी कमाई हो जाया करती थी लेकिन जबसे घाटी में आतंकवाद ने पैर पसारा था,पर्यटन ने दम तोड़ दिया था।लोगों का सबसे बड़ा रोजगार पर्यटकों पर ही आधारित था।सभी धर्म के लोग मिल-जुलकर रहते थे, किंतु आतंकवाद के खँजर ने रिश्तों को भी तार- तार कर दिया था।हर दिल में शक ने जहर भर दिया था।हर समय दहशत का साया सर पर मंडराया करता था।पिता की असमय मृत्यु ने उनके हालात और खराब कर दिए थे।

सदमें से उबरने के बाद मां ने सिलाई का कार्य प्रारंभ कर दिया थामौसी,बुआ कपड़े वगैरह दे जाते थे, चाचा कुछ पैसों से मदद कर देते थे।जैसे-तैसे गुजर-बसर हो रही थी।अक्सर कर्फ्यू लग जाता, कभी किसी जगह आतंकवादियों के छिपे होने की खबर पर सेना-पुलिस तलाशी अभियान चलाते।कभी उन्हें घर छोड़कर जाने की धमकियां मिलती,लेकिन वे कहाँ जाते,जान दांव पर लगाकर रहना उनकी मजबूरी थी।खैर, सेना के प्रयास से अब हालात में काफी सुधार आ गया था लेकिन हाउसबोट की मरम्मत के लिए भी पैसे चाहिए थे।फिर ढेरों होटल खुल जाने के कारण लोग उधर कम समय के लिए ही आते थे।

12 वर्ष का होते ही सुभास भी एक ढाबे पर काम करने लगा था, साथ ही शाम के स्कूल में पढ़ाई भी करता था।बहनें भी बड़ी हो रही थीं, वे भी मां के साथ कशीदाकारी सीखने लगी थीं।15 साल का होने पर सुभास किसी व्यापार के बारे में सोचने लगा था,लेकिन उसके लिए भी पैसा चाहिए था।इधर मां को बातों को भूलने की बीमारी होने लगी थी,अक्सर चीजों को रखकर भूल जातीं, बातें करते-करते बातें भूल जाती, पुरानी बातों को दोहरतीं।बच्चे परेशान होने लगे थे,अभी ऐसी उम्र भी अधिक नहीं थी।सरकारी अस्पताल में दिखाया तो चिकित्सक ने बताया कि उम्र बढ़ने के साथ यह धीरे- धीरे बढ़ेगा ही।

आजकल मां अक्सर कहा करती थी कि हमारे पास आधा किलो सोना था, जिसे तुम्हारे पिता ने कहीं छिपा कर रखा था,मुझे दिखाया था लेकिन उस जगह पर है नहीं।अचानक मृत्यु से जगह बता भी नहीं पाए।सुभास सोचता कि शायद बीमारी के कारण ही मां को यह भ्रम हो रहा है।अब वह अत्यंत चिंतित रहने लगा था।एक मन में आता कि कुछ लोन ले ले और हाउसबोट बेचकर कुछ पैसों की व्यवस्था कर ले।वह कालीन बुनाई की मशीन लगाना चाहता था।

एक रात वह उधेड़बुन में लगा हुआ था, फिर थककर सो गया।रात में सपने में पिताजी को देखा जो कह रहे थे कि नीचे तलघर में जो आलमारी है, उसमें एक तस्वीर रखी है दादाजी की,उसके पीछे की दीवार को तोड़ो, उसमें एक डिब्बे में सोना रखा हुआ है, उसे निकालकर उससे अपना व्यापार शुरू करो,उसमें तीन चेन भी हैं जो तुम तीनों के लिए मेरा आशीर्वाद है, उसे हमेशा अपने पास रखना।सुभास की आँख खुल गई, उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मैंने यह सपना पहले भी देखा है लेकिन कब याद नहीं आ रहा था।उसने सोचा कि शायद मैं बेहद चिंतित हूँ इसलिए ऐसा ख्वाब आया।

सुबह उसने जब माँ से अपने सपने का ज़िक्र किया तो माँ ने चौंककर कहा कि अरे मैं तो भूल ही गई थी कि हमारे घर में एक तलघर भी है।साथ ही बताया कि पिताजी की मृत्यु के बाद तुम अक्सर यह सपना देखते थे लेकिन हम इसे तुम्हारा बचपना समझकर ध्यान ही नहीं देते थे।बच्चे भी आश्चर्यचकित थे अपने घर में एक तलघर की बात जानकर।यह तो उन्हें विश्वास नहीं था कि वहाँ सोना मिलेगा किंतु तलघर को देखने की अत्यधिक उत्सुकता थी।यह घर दादाजी का बनवाया हुआ था।घर में सबसे पीछे वाला कमरा स्टोररूम की तरह इस्तेमाल होता था,उस कमरे में पहुंचकर एक बड़े बक्से को माँ और सुभास ने मिलकर हटाया उसके नीचे फ़र्श पर एक छोटा सा लोहे का दरवाजा था,अरसे से बन्द रहने के कारण उसपर जंग लग गया था, उसे सुभास ने बड़े परिश्रम से खोला वहाँ नीचे एक कमरा था,नीचे जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई थीं, लालटेन एवं टॉर्च लेकर सभी नीचे उतरे,वहाँ बेतरह सीलन की गंध थी।वहाँ सच में एक अलमारी थी,उसके लकड़ी के दरवाजे लगभग सड़ चुके थे, वहाँ बीच के खाने में वाकई एक तसवीर थी जो बिल्कुल खराब हो चुकी थी।जब इतनी बातें सच हो गईं थीं उसके स्वप्न की,तो सभी का विचार था कि दीवार को तोड़कर भी देख लिया जाय।सुभास ने दिवार पर हथौड़ी की चोट की,एक वार से ही वहाँ जगह बन गई, वहाँ वाकई एक पत्थर का डिब्बा था,सभी ने धड़कते हृदय से उसे निकाला, उसे लेकर वे घर के ऊपरी हिस्से में आ गए,उसे खोलने पर उसमें एक कपड़े की पोटली में सच में 100-100 ग्राम के पांच ईंटे थी,साथ ही तीन सोने की चेनें लॉकेट के साथ थीं।

सुभास ने एक बार में एक ईंट बेंचकर तथा घर पर कुछ लोन लेकर कालीन बुनाई की मशीन लगाई एवं कशीदाकारी के लिए तीन मशीनें लेकर 2-3 लोगों पर काम पर रखकर अपना व्यापार प्रारंभ किया।कुछ साल के अंदर धीरे- धीरे दो ईंटे औऱ बेचकर पिता की निशानी हाउसबोट की भी मरम्मत कराई तथा घर भी अच्छा बनवा लिया।परिश्रमी तो वह था ही,देखते ही देखते उसका व्यापार फलने -फूलने लगा। बहनों को शिक्षित कर समय से उनका अच्छे घरों में विवाह कर दिया।माँ का भी अच्छी तरह इलाज करवाया।अब माँ की पसंद से विवाह कर वे सभी सुख पूर्वक जीवन-यापन करने लगे।

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