अन्जानी सी दोस्त... Saroj Verma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अन्जानी सी दोस्त...

कल शाम को अपनी पत्नी के संग बाज़ार से लौट ही रहा था कि अचानक ही सोसायटी के गेट पर कार पार्किंग के समय वो मिल गई,उसने हाथ हिलाकर हैलो बोला तो मैंने भी मुस्कुराते हुए हाथ हिला दिया फिर वो बाहर निकल गई और मैं पार्किंग में आ गया,ये सब मेरी पत्नी ने भी देखा और मुझसे पूछा....
कौन थी वो?
मैंने कहा, दोस्त।।
उसने पूछा,नाम क्या है उसका?
मैंने कहा,मुझे नहीं मालूम।।
ऐसा कैसे हो सकता है कि नाम नहीं मालूम और उसे अपनी दोस्त कहते हो? पत्नी बोली।।
सच में सुहासिनी ! मुझे उसका नाम नहीं पता,मैंने कहा।।
तुम झूठ बोलते हो,सच सच बताओ,पत्नी बोली।।
यार! तुम इस उम्र में मुझ पर शक़ कर रही हो,बेटा ब्याह चुका है और बेटी भी ब्याहने वाली है,मैं बोला।।
तो साफ-साफ क्यों नहीं बता देते कौन थी वो? पत्नी ने पूछा।।
क्या सारी बहस यहीं कार में करोगी? घर पर चलकर भी तो ये सब बातें हो सकतीं हैं,मैं बोला।।
तो फिर पूरे परिवार के सामने ये बातें होंगी ,पत्नी बोली।।
मैंने कहा ठीक है, मैंने कुछ ग़लत थोड़े ही किया है,
और फिर हम दोनों ने कार से सामान निकाला और अपने फ्लैट पर आ पहुंँचे,हम पहुंँचे तो हमारी बहु स्मृति हमारे लिए पानी लेकर आ गई और फिर सबके लिए चाय बनाने किचन में चली गई,तब तक सुधांशु हमारा बेटा भी अपने कमरें से बाहर आ गया,सुहानी हमारी बेटी पहले से ही किचन में शाम के लिए कुछ स्नैक्स बना रही थी,आज संडे था इसलिए सब घर पर ही थे ,नहीं तो सब आँफिस जाते हैं एक यही दिन तो होता है जब सब साथ बैठकर सुबह का नाश्ता,दोपहर का खाना,शाम की चाय और डिनर करते हैं।।
चाय बनकर आ चुकी थी और बहुत दिनों बाद हमारी बेटी सुहानी ने किचन में कुछ बनाया था,मैं और मेरी पत्नी तब तक हाथ मुँह धुलकर आ चुके थें,सब इकट्ठे होकर चाय और स्नैक्स का आनंद ले रहे थे तभी हमारा बेटा सुधांशु बोला....
माँ! आप का मूड इतना उखड़ा-उखड़ा क्यों लग रहा है? पापा ने कुछ कहा है क्या?
अब क्या बोलूँ? इस बुढ़ापे में मुझे ये दिन देखने पड़ रहे हैं,मेरी पत्नी सुहासिनी बोली।।
ऐसा क्या हो गया मम्मी जी? बहु स्मृति ने पूछा।।
इनकी गर्लफ्रैंड है,मुझे आज पता चला,सुहासिनी बोली।।
ये सुनकर तीनों बच्चे हँस पड़े और तब हँसते हुए हमारी बेटी सुहानी बोली....
पापा! बहुत गलत बात है,आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था....
अरे,कोई पहले मेरी बात तो सुन लो,मुझे भी तो अपनी सफाई देने का मौका दो,मैं कब से इसे समझा रहा हूँ,लेकिन ये सुनती ही नहीं,मैं बोला।।
तब हमारी बहु स्मृति बोली....
मम्मी जी! जरा पापा जी की भी बात सुन लीजिए,जैसा आप सोच रहीं हों शायद वैसा ना हो....
ठीक है तो आप ही बोल लीजिए,सुहासिनी बोली.....
और फिर मैंने सबसे कहा.....
मैं उसका नाम नहीं जानता,वो इसी सोसायटी में रहती हैं लेकिन मुझे फ्लैट नंबर नहीं पता,मुझे इतना पता है कि वो शादीशुदा है और उसके पति और बेटे के साथ मै उसे अक्सर आते जाते हुए देखता हूँ और रही दोस्ती की बात तो एक दिन मैं सोसायटी के भीतर वाले रास्तें पर कुछ सामान लेकर आ रहा था,सामान जरा भारी था और ऊपर से मेरा बूढ़ा शरीर,मैं सम्भल ना सका और जमीन पर गिर पड़ा,तब उस दिन वो भी वहीं से गुजर रही थी,मुझे जमीन पर गिरे हुए देखा तो उसने पहले मुझे सहारा देकर खड़ा किया फिर मेरा बिखरा सामान समेटा और बोली....
आप यही ठहरें मैं वाचमैंन को बुलाकर लाती हूँ वो आपको आपके घर तक पहुँचा देगा।।
और फिर वो वाँचमैन को लेकर आई और वाँचमैन ने मुझे घर तक पहुँचा दिया,उस दिन हमलोगों के बीच कोई परिचय भी नहीं हुआ लेकिन उस दिन उसने मेरी दोस्त बनकर मदद की तबसे वो कहीं भी मिल जाती है तो हाथ हिलाकर हैलो बोल देती है और मैं भी उसे हाथ हिलाकर हैलो बोल देता हूँ और आज भी हमने वही किया लेकिन सुहासिनी गलत समझ बैठी।।
ओह....तो ये थी आपकी अन्जानी सी दोस्त की कहानी,सुधांशु बोला।।
तब सुहासिनी ने मुझसे माँफी माँगी और बोली.....
मैं कभी भी आप पर शक़ नहीं करूँगीं....
और फिर सब हँस पड़े.....

समाप्त....
सरोज वर्मा.....