अगले दिन सुबह जब शिवानी ऑफिस पहुंची तो वहाँ का माहौल उसे बहुत ही अजीब सा लगा। हर तरफ़ बस एडिटर इन चीफ़ सत्यप्रकाश चौधरी के खराब मूड की ही बात हो रही थी और हो भी क्यों न आखिर आज ये पाँचवा शख्स था उनके चैनल से जिसनें स्विच किया था और वो उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी चैनल मीडिया फ्रेश में चला गया था। इससे बड़ा सरप्राइज़ शिवानी के लिए अब ये होने वाला था कि वो पाँचवा व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि अथर्व था जिसनें कि उस चैनल की हेड परिमिता बोस की मुंहबोली भांजी जो कि उस मीडिया हाउस के सीइओ की बेटी भी है के कारण ही ये सब किया है। सारी सच्चाई जान लेने के बाद शिवानी को सबसे पहला ख्याल शगुन का आया और उसनें अपनी एक जूनियर कलीग रचना से जब उसके बारे में पूछा तो उसे इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली खबर पता चली और वो ये थी कि शगुन भी अब वहाँ से इस्तीफा देने का प्लान कर रही है तभी शिवानी की नज़र कोने में अपनी सीट पर बैठी हुई शगुन पर पड़ी और वो उसके पास तुरंत पहुंच गई।शगुन वहां बैठकर कुछ टाइप कर रही थी।
"व्हाट इज दिस? आर यू मैड शगुन?? अब क्या उस एक बेवफ़ा इंसान के लिए तुम अपनी सारी दुनिया ही मिटा दोगी? अपना नाम,पहचान,सबकुछ!!",शगुन के रैज़िग्नेशन लेटर पर नज़र पड़ते ही शिवानी ने कहा।
शिवानी के इस प्रश्न का कोई भी उत्तर न देकर शगुन चुपचाप अपना रैज़िग्नेशन टाइप करती रही जिसपर शिवानी नें एक बार फिर उसकी तरफ़ देखकर कहा कि क्या वो उसकी बात सुन रही है??? इस बार शगुन का स्वर काफी ऊँचा था।
हाँ....हाँ मैं सुन रही हूँ शिवु और फिर सुनने के अलावा मैं कर भी क्या सकती हूँ। न जाने कितने दिनों से मैं उस अथर्व की सुन रही थी और अब.....कहते - कहते शगुन बिलख पड़ी।
शिवानी नें उसका सिर अपनी गोद में रख लिया और वो उसे शांत होने के लिए कहने लगी लेकिन शांत होने की बजाय शगुन एक बार फिर से बोलने लगी....
"तुझे पता है शिवू अभी कुछ देर पहले तू जिस एक इंसान के लिए मुझे मेरी सारी दुनिया की दुहाई दे रही थी न दरअसल वो एक इंसान ही तो मेरी सारी दुनिया था पागल और तू जिस नाम व पहचान की बात करती है न मेरे लिए उस नाम के मायने उस एक नाम के आगे कुछ नहीं,कुछ भी नहीं!!" कहते हुए शगुन नें अपना लेटर टाइप और फॉर्वर्ड कर दिया।
इसके आगे उन दोनों के बीच कुछ भी और बात हो पाती उससे पहले ही शिवानी को काम के सिलसिले में वहाँ से जाना पड़ा।
शगुन और अथर्व को ऑफिस छोड़े हुए अब काफी समय बीत गया था मगर शिवानी चाहकर भी उन दोनों में से खासकर कि शगुन को भूल ही नहीं पा रही थी। शिवानी को बहुत कोशिशों के बाद भी इस बात पर यकीन नहीं हो पा रहा था कि अथर्व आखिर ऐसा कैसे कर सकता था शगुन के साथ और आखिर उसे पहचानने में शगुन के साथ - साथ उसनें भी इतनी बड़ी गलती कैसे कर दी???
शिवानी नें तो अथर्व से मिलकर बात करने की भी कोशिश की मगर तब उसे पता चला कि अथर्व अपनी पुरानी बिल्डिंग भी छोड़कर नई बिल्डिंग में शिफ्ट हो चुका था। इस बीच शिवानी नें समर से भी शायद कोई एक या दो बार ही मुलाकात की। वो अब बस उससे फोन पर ही बात किया करती थी। वैसै तो शिवानी के ऑफिस में भी इस समय काम बहुत ज्यादा बढ़ गया था और सख्ती भी मगर जब वो खाली भी होती थी तब भी वो समर को काम का बहाना करके अक्सर टालने लग गई थी क्योंकि इन दिनों कहीं न कहीं अथर्व और शगुन के बीच हुई घटना के बाद उसका मन समर को लेकर भी बहुत ही आशंकित सा रहने लगा था कि जैसे वो अथर्व को इतने करीब से जानने के बावजूद भी उसकी लालची और स्वार्थी नीयत को नहीं परख पायी तो कहीं वो समर के मामले में भी तो कहीं अपनी यही गलती तो नहीं दोहरा रही न!! क्योंकि वो अब जब भी अपने और समर के बीच गुज़रे हुए वक्त के बारे में सोचती तो उसे बस समर की शारीरिक भूंख और उसका शादी की बात करने पर कभी उसे प्रमोशन के नाम पर तो कभी परिवार के नाम पर टालना ही बस याद आता। इसके साथ ही बिजनेस के सिलसिले में समर का हफ़्तों - हफ़्तों गायब रहना और फिर फोन पर भी उसका उपलब्ध न होना। कभी भी अपने माता - पिता से उसे मिलवाने की बात न करना शिवानी के माथे पर आजकल आ चुकी चिंता और शक की मिलीजुली लकीरों को और भी गहरा करता जा रहा था।
क्रमशः...
आपकी लेखिका...🌷निशा शर्मा🌷