हैलो! तुम कहाँ हो,समर?
"हैलो! जान क्या हुआ?तुम्हारी आवाज में इतनी उदासी! आँटी से कुछ बात हुई क्या??",समर नें फोन पर शिवानी से पूछा।
नहीं यार,बस मूड थोड़ा ऑफ है।
हाँ तो हम बनायेंगे न अपनी जान का मूड। तुम बस अभी चर्च गेट पर मिलो मुझसे।
नहीं समर! आज नहीं।
अरे आज नहीं तो अभी नहीं और अभी नहीं तो डियर कभी नहीं। ओके मीट मी देयर एट शार्प फ़ाइव!
ब्लैक कलर का टॉप और व्हाइट कलर की स्लिमफिट जीन्स पहनकर शिवानी बेमन से तैयार हुई। सुबह से उसका मूड ठीक न होने के कारण वो नहायी भी नहीं थी तो सबसे पहले तो उसनें शॉवर किया और फिर अपने गीले बालों का जूड़ा बनाकर वो चल दी। आज उसनें जाते समय संगीता जी से भी कुछ नहीं कहा बल्कि संगीता जी को तो शिवानी के घर से जाने का पता तब चला जब स्कूटी स्टार्ट होने की आवाज सुनकर वो खिड़की से नीचे झाँकने के लिए आयीं।
शिवानी तेज स्पीड में गाड़ी चलाते हुए जा रही थी कि तभी उसकी नज़र सड़क के एक ओर फलों की दुकान पर खड़े अथर्व पर गई और फिर उसनें तेजी से ब्रेक लगाते हुए अपनी स्कूटी रोककर एक ओर खड़ी कर दी।शिवानी भागती हुई सी अथर्व के पास पहुंची और फिर उसनें अथर्व से कल उसकी और शगुन के बीच हुई बात के सिलसिले में पूछा जिसपर पहले तो अथर्व नें उसे टालने की पूरी कोशिश की पर जब वो किसी भी तरह से मानने को तैयार नहीं हुई तो फिर अथर्व नें शिवानी से शगुन के बारे में बस इतना ही कह दिया कि यू नो शी इज वैरी पजेसिव गर्ल!! अथर्व का बस इतना ही कहना हुआ था कि शिवानी नें उसे ऐसी झाड़ पिलाई कि जैसे उसनें सुबह का सारा गुस्सा अथर्व पर ही निकाल दिया हो और इससे पहले कि अथर्व उसे कुछ जवाब में कह पाता,शिवानी गुस्से में लाल - पीली होकर वहाँ से निकल गई।
चर्च गेट पर जब शिवानी पहुंची तो उसे समर कहीं भी नज़र नहीं आया और फिर जब उसनें समर को कॉल करना चाहा तो समर का फोन स्विच ऑफ बता रहा था। अब तो ये गुस्से में पहले से ही जलती हुई शिवानी के लिए आग में घी जैसा काम कर गया। शिवानी बार बार समर को फोन मिलाएं जा रही थी पर फोन हर बार स्विच ऑफ ही बता रहा था और फिर शिवानी बहुत ज्यादा गुस्से से भरकर जैसे ही वहाँ से जाने को हुई तभी समर वहाँ पर आ गया और उसनें फोन स्विच ऑफ होने व लेट होने की वजह अपने एक बिजनेस क्लाइंट को बताया। कुछ ही देर में वो दोनों होटल के रूम में चेकइन कर चुके थे।
शिवानी के गाल और आँखें अभी भी गुस्से से लाल हो रखे थे। समर चुपचाप सोफे पर बैठी हुई शिवानी के बिल्कुल करीब जाकर बैठ गया और फिर उसनें अपने हाथों से शिवानी के गीले बालों का जूड़ा खोल दिया। शिवानी के बाल अभी भी गीले थे। समर अब उसके गीले बालों में अपनी उंगलियां फंसा - फंसाकर खेलने लगा। शिवानी नें उसे ऐसा करने से एक दो बार मना भी किया पर वो नहीं माना। कुछ ही देर में समर शिवानी के बालों से कभी अपने चेहरे को ढकता तो कभी वो उन्हें अपने होठों से चूमता। समर के इरादे भाँपकर शिवानी नें उसे आज मूड नहीं है कहकर टालना चाहा पर समर बोला कि उसका मूड बनाने ही तो वो उसे यहाँ लाया है। इसके बाद शिवानी के न कहने पर भी उसनें शिवानी के टॉप और अपनी शर्ट के बटन्स खोल दिए और फिर वो शिवानी को अपने आगोश में लेकर बेड पर लेट गया।
अपनी प्यास बुझाते ही समर को अचानक ही अपना बिजनेस क्लाइंट याद आ गया और फिर वो दोनों अपनी - अपनी राहों पर चल दिये।
शिवानी नें इससे पहले भी कई बार समर के साथ अपनी सीमा लाँघी थी पर आज न जाने क्यों वो इस एहसास से चाहकर भी बाहर नहीं निकल पा रही थी कि जो भी हुआ क्या वो सही था? पूरे रास्ते वो बस यही सोचती रही कि आखिर समर उससे मिलने क्यों आया था? क्या सिर्फ अपनी शारीरक ज़रूरत को पूरा करने? क्या उसनें आज एक बार भी उससे उसके गुस्से या खराब मूड की वजह जानने की कोशिश की?? या फिर उसके खराब मूड का सहारा लेकर बस अपना उल्लू सीधा किया??? इसी ऊहापोह की स्थिति में ही वो अपने घर पहुंच गई और फिर घर पर पहुंचते ही संगीता जी ने उसे गले से लगा लिया जो कि उसके इस तरह से अचानक घर से बिना बताए चले जाने से बहुत चिंतित थीं। अब माँ - बेटी दोनों की ही आँखें छलछला आयी थीं!!
क्रमशः...
आपकी लेखिका...🌷निशा शर्मा🌷