रीगम बाला - 18 Ibne Safi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रीगम बाला - 18

(18)

“मैं नहीं जानता ..उसकी अंग्रेजी मेरी समझ में नहीं आती ।”

“अमे जियाओ ..” कासिम हाथ नाचा कर बोला “उल्लू मत बनाओ।मैं सब समझता हूं ।”

“चुप चाप समझते रहो बकवास की जरुरत नहीं है ..”

कासिम बैठ कर उसे घूरने लगा।

कुछ देर बाद सीमा वापस आई । कुछ क्षण मौन खाड़ी रही फिर बोली।

“वह गहरी नींद सो रही है, इतनी गहरी नींद कि कपड़ा पहनाते समय भी नहीं जागी ।”

“और अब मुझे भी नींद लग रही है ..सुबह के चार बज रहे है ..” हमीद ने कहा।

“जाओ ...सो जाओ ...” रीमा ने प्यार भरे स्वर में कहा।

कासिम ने उसे आश्चर्य से देखा, फिर ठंडी सांस ले कर मुंह चलाने लगा।

“और तुम ...व रीमा ने कासिम से कहा “तुम भी सोना चाहो तो जा सकते हो ।”

“और ...और ..तुम ?” कासिम ने पूछा।

“मेरी चिंता न करो ...मुझे तो जागना ही है”

“क्यूं ..तुम्हें काहे जागना है ?”

“तुम सब की रक्षा करूंगी ..”

“नाही नाही ..तुम भी जा कर सो जाओ ..हिफाजत करने के लिये मैं काफ़ी मोटा हूं..भूतों के अलावा किसी से भी नाही डरता .”कासिम ने अकड़ कर कहा, फिर ढीला होता हुआ बोला “मम.मगर...तुम लोग छुते कासे ..तुम दोनों को तो वह साले पकड़ ले गये थे?”

“तुम्हारा दोस्त बहुत बहादुर है” रीमा मुस्कुरा कर बोली।

कासिम ने बहुत ही बुरा सा मुंह बना कर हमीद की ओर देखा और हमीद को हंसी आ गई।

“हँस लो साले हँस लो” वह दांत पीस कर बोला “कभी अल्लाह भी मुझे हंसने का मौक़ा देगा।”

हमीद उठ कर कमरे में गया और लेट गया, फिर पंद्रह मिनिट के अंदर ही अंदर गहरी नींद सो गया।उसने इस बात की तनिक भी चिंता नहीं की कि रीमा जागती रहेगी।

फिर अगर झिंझोड़ झिंझोड़ कर न जगाया गया होता तो पता नहीं कब तक खर्राटे लेता रहता ..जगाने वाला कासिम था और दिन के दस बज रहे थे।

मगर कमरा तो वह नहीं था जिसमें वह पहली रात सोया था ..उसने आंखें खोल कर फिर बंद कर लीं ।

“अमे – ए – होश करो ।” कासिम ने फिर उसका कंधा झंझोड़ा “यह मकान वह नाहीं है जिसमे रात को हम एलपीजी सोये थे ।”

“अगर नहीं है तब भी चुप रहो – मैं बहुत थक गया हूँ । ख़ुद से चल फिर नहीं सकता । यह तो उन लोगों का एहसास है कि ख़ुद ही हमें उठाये उठाये फिर रहे है ।”

“अमें ए – बहुत न इतराओ बेटा.....तुम्हारी वाली कट्टो भी गायब है ।” कासिम ने जले कटे लेह्जे में कहा ।

“सब को जहन्नुम में झोंको – क्या वक्त हुआ है ?”

“दस ।”

“नाश्ते की क्या रही !”

“भूख के बारे दम निकाला जा रहा है ।”

“शायद इस बार कंजूसो से पाला पड़ा है ।”

“मैं कहता हूँ – होश में आओ – आँखें खोलो – यह साला तहखाना मालूम होता है ।”

“अगर कब्र भी हो तो मुझे परवाह नहीं हो सकती ।”

“देखो दोस्त – डराने वाली बातें नाहीं करो ।”

हमीद ने आँखें खोली – चारों और देखा, फिर कासिम की ओर गर्दन मोड़ी ।

“अबे – राह.....कहीं हम भी तो मर मर कर जिन्दा नाहीं हो रहे है ?” कासिम ने अत्यंत भय पूर्ण स्वर में कहा ।

“फ़िक्र न करो – मालूम हो जायेगा ।”

यहाँ इस दोनों के अतिरिक्त और कोई नहीं था ।

“अमे..काहे न फिकिर करूँ......नाश्ता – खाना – अरे बाप रे – भूख लग रही है....।” कासिम ने कहा और पेट पर हाथ फेरने लगा ।

हमीद ने कुछ नहीं कहा । चुपचाप बिस्तर से उठा और ऐसी हरकतें आरंभ कर दीं जैसे व्यायाम कर रहा हो ।

“यह किया कर रहे हो ?” कासिम ने पूछा ।

“देख नहीं रहे हो – कसरत कर रहा हूँ ।”

“अमे और भूख चमक उटेगी ?” कासिम ने कहा ।

“तुम अपनी जबान बंद कर रखो ।”

“काहे ?”

“बस मैं कह रहा हूँ ।”

“अमे काहे बोर कर रहे हो !”

“बोर तो यह साले मुझे कर रहे है ।”

“यह कासे ?”

“आखिर तुम्हें अलग क्यों नहीं बाँधा ?”

“देखो देखो ऐसी बातेब न करो हमीद भाई....।” कासिम गिड़गिडा उठा “हम लोगों में कोई झगड़ा तो हुआ नाहीं....वालेकुल नाहीं हुआ – फिर ऐसी बात कियुं कह रहे हो ।”

अचानक कुछ आहट सुनाई पड़ी और दोनों चौंक पडे – फिर सीढ़ियों की ओर देखने लगे, क्योंकि आवाज उसी ओर से आ रही थी ।

फिर उन्हें रीमा दिखाई दी जो सीढ़ियों तै करती हुई नीचे आ रही थी ।

“तुम दोनों जाग पड़े ?” उसने निकट पहुँच कर पूछा ।

“पहले यह बताओ कि अब हम कहाँ है ?” हमीद ने बुरा सा मुँह बना कर प्रश्न किया ।

“थोड़ी देर को पलक झपकी थी – फिर पता नहीं क्या हुआ ।” रीमा ने कहा ।

“अब तक तुम कहाँ थे ?”

“ऊपर के कमरें में – तहखाने का दरवाज़ा खुला था....इधर आ निकली ।”

“मगर यह है कौन सी जगह ?”

“यह वही इमारत है जहाँ से हम हेकी काप्टर लेकर भाग निकले थे ।”

“तब तो ठीक है....तुम इस इमारत के बारे में सब कुछ जानती हो – मगर क्या इस बार वह लोग हमें भूखा ही मारेंगे ।”

“नहीं तो....।” रीमा हँस पड़ी ।

“मैंने तुमसे कहा था ना कि जब मेरे पेट खली रहता है तो सुंदर से सुंदर औरतों की भी हँसी मुझे जहर लगती है ।” हमीद भन्ना कर बोला ।

“गुस्से में और प्यारे लगने लगते हो...।” रीमा फिर हँस पड़ी ।

हमीद कुछ नहीं बोला । मुँह घुमा कर दूसरी ओर देखने लगा ।

रीमा बढ़ी । उसके चेहरे के सामने पहुँच कर दोनों हाथों से उसकी ठुड्डी पकड़ कर चेहरा ऊपर उठाया । कुछ क्षण तक उसकी आँखों में देखती रही बोली ।

“सुनो – मेज पर बहुत अधिक नाश्ता का समान देख कर ही मैंने अनुमान लगाया था कि तुम लोग कहीं आस ही पास हो ।”

“शुक्र है अल्लाह मियाँ....।” कासिम बीच में नारा लगा बैठा ।

“वह लड़की कहाँ है.....सुमन.....?” रीमा ने हमीद से पूछा ।

“आप बस मेज पर नाश्ता के सामान की बातें करें....किया किया है ?” कासिम मुँह चला कर बोला ।

रीमा भल्ला कर कासिम की ओर मुड़ी । कुछ क्षण तक उसे घूरती रही, फिर तेज आवाज में बोली ।

“मैं पूछ रही हूँ कि वह लड़की सुमन कहाँ है ?”

“होगी कही...मुझसे किया मतलब मैं उसकी नौकरी छोड़ चुका हूँ ।” कासिम ने कहा “वह मेज कहाँ है...मुझे यहाँ तक ले चलो...बहुत भूख लग रही है ।”

“इस आदमी से कहो कि चुप रहे....।” रीमा ने हमीद से कहा ।

कासिम शायद समझ गया । उसने ख़ुद ही मुँह दूसरी ओर फेर लिया । कुछ बडबडा भी रहा था, मगर आवाज नहीं निकल रही थी ।

“वह लड़की ?” रीमा ने फिर हमीद से पूछा ।

“पता नहीं – जब हमें होश आया तो वहाँ हम हो दोनों थे ।” हमीद बोला ।

“हूँ – अच्छा – ऊपर चलो ।”

वह सीढ़ियाँ तै करके उस कमरे में दाखिल हुये जहाँ एक बड़ी सी मेज पर नाश्ते का सामान चुना हुआ था ।

“इससे कहो कि खाये ।” रीमा ने हमीद से कहा ।

हमीद ने मुड़ कर कासिम से कहना चाहा, मगर मुँह से आवाज़ निकलने के बदले होठों पर मुस्कुराहट नाच उठी क्योंकि कासिम नाश्ते पर टूट पड़ा था ।

फिर वह दोनों भी नाश्ता करने लगे । बीच बीच में इधर उधर की बातें भी हो रही थी ।

नाश्ता करने के बाद हमीद ने रीमा से कहा ।

“समझ में नहीं आता कि उन लोगों की स्कीम क्या है – कभी आजाद छोड़ देते हैं और कभी जकड़ लेटे हैं आखिर चाहते क्या है ।”

“सब तुम्हारे चीफ को फांसने के उपाय हैं ..कभी तो ऐसी स्थिति में पीछा करेगा और पकड़ा जाएगा।”

हमीद खिलखिला कर हँस पड़ा और हँसता ही चला गया, क्रम टूटा –रीमा के टोकने पर।”

“इस हँसी का कारण ?” रीमा ने पूछा।

“उन लोगों के बचपना पर हँसी आ गई थी ...” हमीद ने कहा।

“क्या मतलब ?”

“ऐसे खेल हम लोग अनेकों बार खेल चुके हैं ..इस प्रकार उस पर हाथ नहीं डाला जा सकता ।”

“तो फिर उठो ..यहाँ से निकल चलने का उपाय करें” रीमा ने कहा।

“तुम ही करो कोई उपाय ...” हमीद ने लापरवाही से कहा “मैं इस समय पाईप पीने के मुड़ में हूं ।”

अचानक दो आदमी कमरे में दाखिल हुए। दोनों के हाथों में दश्मलव चार पाँच के भारी भरकम रिवाल्वर थे ।

“हमारे साथ चलो” एक ने कहा।

“फौरन ?” हमीद ने हँसी उड़ाने वाले भाव में कहा।

“हां ...अभी...?”

“मगर मैं पाइप पीना चाहता हूं।”

“उठो ..” वह पैर पटक कर बोला।

“बात न बढाओ कैप्टन ..” हमीद से रीमा ने धीरे से कहा “इन पर यहीं प्रकट करो कि तुम एक चूहे से भी गये गुजरे हो ।”

“तुम कहती हो तो चूहा बना जाता हूं ..” हमीद ने कहा”उठो भाई,पहाड़ खां ..अब खाया पीया निकलेगा।”

“ठेंगे से ...” कासिम भन्ना कर बोला “मैं मर्दों से नाही डरता ।”

फिर वह सब बाही निकले । सशस्त्र आदमी उनके पीछे चल रहे थे, यह भी कबायली ही थे।

फिर एक बड़े कमरे में पाँव रखते ही हमीद बौखला गया और कासिम चीख पडा।

“अरे बाप रे...!”

विनोद सामने कुर्सी पर जकड़ा नजर आया। उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं। नेत्रों में ऐसी जड़ता थी जो मौत को निश्चित समझ कर बेबसी के रूप में पूरे अस्तित्व पर छा जाती है ।

उसकी कुर्सी के पास ही एक लगडा सा विदेशी खडा था जिसके चेहरे पर चमड़े की जैकेट थी और हाथों में चमड़े के दस्ताने थे।

अचानक उसने विनोद को सम्बोधित किया।

“अब तुम्हें मुंह खोलना ही पडेगा कर्नल विनोद । देखो ...तुम्हारा असिस्टेंट भी आ गया है जिसे तुम भाई के समान प्यार करते हो ।”

विनोद पर उसकी बात का कोई प्रभाव नहीं पडा। पहले ही के समान शैथिल्य छाया रहा ।

“अगर तुमने नातुना का पता नहीं बताया तो तुम्हारा असिस्टेंट तुम्हारी आंखों के सामने ख़त्म कर डिया जाएगा ।” विदेशी फिर दहाड़ा ।

विनोद की दशा अब भी नहीं बदली ।

“यह कौन है ?” हमीद ने धीरे से रीमा से पूछा ।

“लेकरास ...” रीमा ने उत्तर दिया।

“त त तुम तो कह रही थी कि वह औरत है ...” हमीद ने कहा और रीमा खिल खिला कर हँस पड़ी । हँसती रही, फिर बोली ।

“मुर्ख आदमी के भोले असिस्टेंट ...तीसरी नागिन मैं ख़ुद हूं, जीरो लैंड की तीसरी बड़ी औरत ...”

हमीद उसे विचित्र निगाहों से देखने लगा ।

“लेकरास ?” रीमा ने आवाज दी ।

“येस मादाम ...” लेकरास कुछ झुक कर बोला ।

“कैप्टन हमीद तुम्हें औरत समझता है ।”

“मैं क्या कह सकता हूं मादाम ...”

“विमल की बुलवाओ ?” रीमा ने कहा।

“बहुत अच्छा ...” लेकरास ने कह कर एक आदमी को संकेत किया और वह चला गया।

रीमा इतनी देर में हमीद और कासिम के पास से हट कर कमरे के बीच में आ खाड़ी हुई थी।

“तो क्या सचमुच तुम औरत नहीं हो ?´हमीद ने लेकरास से पूछा ।

“शट अप ...” लेकरास गरजा।

“नहीं लेकरास ...इससे इस प्रकार का व्यवहार न करो ..यह मेरा शिकार है” रीमा ने कहा।

“बहुत बहुत शुक्रिया मादाम ...” हमीद ने जहरीले स्वर में कहा।

“तुम मुझे रीमा ही कह सकते हो कैप्टन ...व रीमा ने मुस्कुरा कर कहा।

“एक बार फिर शुक्रिया मादाम ..”

“अबे अब किया होगा ..कर्नल साहब तो बंधे पड़े हैं ...व कासीं धीरे से बडबडाया “तुम साले हमेशा औरतों के चक्कर में मारे जाते हो ..कल तक साली भीगी बिल्ली बनी हुई थी और अब मदाम हो गई है ..”

इतने में हमीद ने विमल को कमरे में दाखिल होते हुए देखा। रीमा गर्दन मोड़ कर उसी की ओर देखने लगी।

फिर जैसे ही विमल की नजर रीमा पर पड़ी . जहां था वहीँ रुक गया। पलकें झपकाये बिना उसे घूरता रहा फिर घुटनों के बल इस प्रकार बैठ गया जैसे किसी देवी की पूजा कर रहा हो ।

“विमल !” अचानक रीमा की अवा गूंजी “तुम अभी मुझे नहीं पा सकते ..उधर देखो वह आदमी जो कुर्सी से जकड़ा हुआ है ..क्या तुम उसे पहचानते हो ?”

विमल ने मुड़ कर विनोद की ओर देखा..फिर हमीद ने उसकी आंखों में गहरी घृणा देखी । फिर वह उठ गया और घृणा के स्वर में बोला।स”हां ..मैं इसे जानता हूं ...यह कर्नल विनोद है ।”