(9)
आज मौसम ऐसा था कि यात्री होटलों से बाहर निकल सकें । सुमन नागरकर की तबियत संभल तो गई थी मगर डाक्टर ने उसे आराम करने का परामर्श दिया था, इसलिये वह कमरे से बाहर नहीं निकलना था । नर्स अब भी उसकी देख भाल कर रही थी ।
कासिम उसका नाश्ता कमरे में भिजवा कर ख़ुद डाइनिंग हाल में आ बैठा था । निलनी कारमाउन्ट अभी तक उससे संध्या ही को मिलती रही थी मगर आज उसने नाश्ता के बाद मिलने का वादा किया था । कासिम बड़ी बेचैनी से उसकी प्रतीक्षा करने लगा ।
कासिम को उसकी यह बात बहुत पसंद थी कि वह किसी बात पर बहस नहीं करती थी और उसकी बातों में इस प्रकार को दिलचस्पी लेती थी जैसे वह किसी दूसरी दुनिया की बातें कर रहा हो ।
कुछ देर बाद निलनी आ गई उसने एक योजना रखी कि कासिम को उछल पड़ने की इच्छा को दबाना पड़ा, उचल पड़ना उसके वश की बात थी भी नहीं । निलनी ने कहा था कि उसे अपनी स्वामिन की देख भाल तो करनी नहीं पड़ती....फिर क्यों न वह कहीं घुमने फिरने चलें....आखिर उसके यहाँ आने का ध्येय तो प्राचीन निर्माण ही देखना था ज़
“हाँ हाँ ।” कासिम खुश होकर बोला “मेरे पास भी कुछ प्राचीन है ।”
“प्राचीन...तुम्हारे पास....क्या मतलब ?” निलनी उसे विचित्र निगाहों से देखने लगी ।
“मेरा बाप...उसका डंडा और दकैया नूसी बातें ।”
“दकैया नूसी क्या ?”
“मुझे दकैया नूसी की अंग्रेजी नाहीं मालूम ।” कासिम ने लज्जा कर कहा ।
“क्या तुम अपने बाप से नफ़रत करते हो ?”
“बहुत जियादा....अगर मैं उसका बाप होता तो अब तक आफ क्र चुका होता ।”
“आफ क्या ?”
“जो समझ में न आये उसे गोल पर जाया करो ।”
“गोल क्या ?”
“राउण्ड ।” कासिम ने ऊँगली नचा कर शून्य में चक्र बनाते हुये कहा ।
“कभी काभी कुछ तो समझ में नहीं आता ।”
“अंग्रेजी मेरी कौमीजवान नाही है ।”
“खैर छोडो....बाहर चलने की क्या रही ?” निलनी ने पूछा ।
“मैंने कहाँ देखा है कि लोग टट्टूओं पर्य घोड़ों पर बैठ कर वह सब देखते जाते जाते है....टट्टू पर मैं इसलिये नाहीं बैठ सकता कि कि ख़ुद टट्टू बैठ जायेगा या मैं खड़ा रह जाऊँगा और टट्टू मेरी टांगों के नीचे से निकल जायेगा ।”
“हम घोड़े ले लेंगे ।” निलनी हँसती हुई बोली ।
“किराये पर कोई जीप कियुं नाही ले ली जाये ?”
“जीप हर जगह नहीं जा सकेगी ।”
“जहाँ नाहीं जा सकेगी वहाँ नाही जायेगें ।”
“बहुत काहिल आदमी मालूम होते हो ।” निलनी हँसकर बोली औए कासिम को ताव आ गया । उसने कहा ।
“मैं पैदल चल सकता हूँ, मगर घोड़े पर नाही बैठूंगा ।”
“मगर क्यों ?”
“मुझे शरम लगती है...ही ही ही ही, भला घोडा क्या सोचेगा दिल में ।”
“घोडा सोचेगा ?” निलनी ने कहा ।
“हाँ हाँ बिलकुल सोचेगा ।”
“बेकार बातें न करो, घोड़े सोचते नहीं है ।”
“बात असल में यह है कि पिछले साल एक पहाड़ी स्टेशन पर मुझे शर्मिंदा होना पड़ा था ।”
“पता नहीं क्या कह रहे हो ।”
“ठीख कह रहा हूँ....वहाँ मैंने एक घोडा लेना चाहा था । घोड़े के मालिक ने कहा...मैं अपना घोडा किसी हाथी को किराये पर नाहीं दे सकता ।”
“तो फिर अच्छा यही है कि तुम यहीं बैठे मसखरान करते रहो और मैं हँसती रहूँ ।” निलनी ने कहा उसकी हँसी का गलत मतलब निकलते हुये कासिम ने सोचा कि अंग्रेजी में तो वह अच्छी खासी बात कर लेता है...फिर उर्दू में कियुं ड्यूट हो जाता है....ढंग की कोई बात मुंह से निकलती ही नाहीं ।
“ठेंगे पर है उर्दू सुर्दू ।” वह उर्दू में बडबडाया ।
“क्या कह रहे हो ?”
“कुश नाही कुश नाही ।” वह जल्दी से बोला और मूर्खो के समान हँसने लगा ।
“तुम्हें घोड़े पर बैठना पड़ेगा....जीप का इन्तजार नहीं हो सकता समझे ।” निलनी ने कहा “मैं यह निश्चय करके घर से चली थी कि आज आउटिंग होगी ?”
“जैसी आपकी मर्जी ।” कासिम मुर्दा सी आवाज में बोला ।
“तुम डरो नहीं....सुधाये हुये अच्छी नस्ल के घोड़े होते है । मैं तुम्हारे लिये कोई वेलर तलाश करूंगी ।”
“बेलर किया ?” कासिम ने पूछा ।
“आस्ट्रेलयी नस्ल का घोडा । बहुत शक्तिशाली औए मोटा ताजा होता है । तुम्हारा बोज सरलता पूर्वक संभाल सकता है ।”
कासिम कुछ नहीं बोला । उसने होटल ही से लंच बक्स तैयार कराये औए दोनों निकल पड़े ।
“तुम को मेरे साथ चलते हुये शरम तो नाही लगेगी ?” अचानक कासिम ने दुखी स्वर में पूछा ।
“नहीं, मैं साढ़े चार फीट की तो हूँ नहीं ।” निलनी हँसकर बोली ।
“काश मेरा पीछा उससे छूट जाता ।” कासिम का गला भर आया था ।
“तुम सचमुच सर पोक हो...तलाक क्यों नहीं दे देते ।”
“कहाँ जायेगी....लंगड़ी लूली है ।”
“उसको खर्च देते रहना ।”
“मेरा बाप इस पर तैयार नाही होता ।”
“तुम अपने बाप से इतना डरते क्यों हो ?”
“उनसे नहीं बल्कि उनकी करोड़ों की जायद से डरता हूँ ।”
“क्या मतलब ?”
“अब मुझे सब कुश बताना पड़ेगा---” कासिम ने कहा और हकला हकला कर अपनी कहानी सुनाने लगा! जब मौन हुआ तो निलनी हंसने लगी।
“तुम हंस क्यों रही हो ..क्या यह सब बेवकूफी की बातें है ?”
“हंसने की बात ही है .इतने रुपयों वाले होकर एक औरत की नौकरी करते हो।”
“तुम्हें जरुरत हो तो तुम नौकर रख लो । मैं सुमन नगरकर की नौकरी छोड़ दूंगा।”
“मैं इतनी दौलतमंद नहीं हूं किकिसीको नौकर रख़ सकूं ।मैं ख़ुद ही यहाँ स्कालर शिप पर आई हूं ।”
“वह वेलर घोड़े कहाँ मिलेंगे। अब मुझसे पैदल नाही चला जाता।”
“बस थोड़ी सी दूर और ।”
फिर वह उस स्थान पर पहुंचे जहां घोड़े किराए पर मिलते थे, कासिम ने अपने लिये एक घोडा चुना और जिन से लटके हुए थैले में लंच बाक्स डाल दिया । फिर उस्जी लगाम थाम कर पैदल चलने लगा। निलनी जो अपने घोड़े पर बैठ चुकी थी –बोली।
“यह क्या ...तुम भी बैठ जाओ।”
“कोई ऊँची जगह मिले तब ना ।”
“अरे, रकाब में पैर डाल कर चढ़ जाओ ।”
“रकबा का तसमा टूट जायेगा। कई बार ऐसा हो चुका है ।”
“तुम तो सचमुच मुसीबत ही हो ।” निलनी हंस पड़ी।
“नहीं बदनसीब हूं।” कसीं चलते चलते रुक गया।
“ओह, अरे बाबा .मैंने तो वैसे ही कह डिया था।”
“अच्छा तो फिर देखो” कासिम ने रकाब में पैर डाल कर चढ़ने की कोशिश की और धडाम से दूसरी ओर उलट गया। सचमुच तस्मा टूट गया था।
सर में चोट आई थी, मगर वह चुपचाप सहन कर गया और इतनी देर तक अंग्रेजी में चलने वाली खोपड़ी में जो तेजी आ गयी थी उसने एक शरारत को जन्म दियाज़ उसने दांत मींच लिये और आंखें बंद कर लीं। निलनी पहले तो हंसी थी मगर जब देखा कि कासिम वैसे ही अहिथिल पडा हुआ है तो बौखला कर घोड़े से नीचे उतर गई।निकट आकर पहले तो आवाज़ें दी मगर जब कासिम नहीं बोला तो बैठ कर उसे झंझोड़ने लगी।
कासिम की मानसिक धारा बहक चुकी थी ! वह दम साधे पडा रहा। कभी कभी गहरी साँसें ले लेता।
जब निलनी उसे होश में लाने के सारे जतन करके हार चुकी तो बडबडाने लगी।
“अब क्या करूँ..आसपास कोई दिखाई भी नहीं देता कि उससे सहायता मांगूज़”
वह फिर उसे होश में लाने का उपाय करने लगी कि अचानक उसे पदचाप सुनाई पड़ी और फिर किसी को कहते सुना।
“क्या बात है ?”
निलनी ने मुड़ कर देखाज्ज़ सामने मैथूज़ खडा था।
“ओह मिस्टर मैथूज़ ! यह घोड़े से गिर कर बेहोश हो चुका है ।”निलनी ने कहा और फिर मैथूज़ को उसके गिरने का विवरण बताने लगी।
दोनों की बातों से कासिम जैसे मुर्ख ने भी यह अनुमान लगा लिया कि दोनों एक दुसरे की लिये अपरिचित नहीं है । बल्कि काफ़ी जान पहचान है । फिर उस्न्र मैथूज़ की आवाज़ सुनी।
“कोई बात नहीं है । तुम घोड़े छोड़ दो । थोड़ी देर बाद एक जीप यहाँ पहुंच जाएगी।”
“लेकिम इन दोनों घोड़ों को इनके मालिक तक पहुंचाना मेरे वश से बाहर है” निलनी बोली।
“अच्छी बात है,तुम यहाँ ठहरो, मैं ख़ुद लिये जा रहा हूं।”
“तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया बेटा।” कासिम ने दिल ही दिल में कहा। “जीप भिजवा दोगे तो और शुक्रिया अदा करूँगा।”
फिर अचानक उसके विवेक पर जमी हुई बर्फ पिघलने लगी,सोचने लगा, एक मर्द इस लड़की को मेरे साथ भेज रहा है—घोड़े पर नाही बैठ सकता तो जीप का इंतज़ाम किया जा रहा है—कोई बात है,कोई चक्कर ज़रूर है।
फिर उसे अपनी वर्तमान स्थिति याद आई।वह लोग याद आए जिन्होंने प्रोफ़ेसर नागरकर को मार डाला था। और प्रोफ़ेसर नागर की लड़की सुमन नागरकर अपने बाप के खून का बदला लेने के लिये कर्नल विनोद से मिल बैठी थी।
विनोद ही की स्कीम के अनुसार दोनों इस होटल में ठहरे थे ज़ कहीं यह वही मामिला न हो,वही लोग न हों।
इससे पहले भी कासिम ने कई बार ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था। हमीद की मित्रता के आधार पर कितनी ही बार अनोखे संसारों की सैर करनी पड़ी थी।
“तो फिर यह लड़की उसे कहाँ ले जाना चाहती हाई, ठेंगे से, देखा जाएगा। लड़की ही तो है,कोई शेर बब्बर तो नाही है।”
सुसने सोचा और उसी प्रकार आंखें बंद किये पडा रहा।
फिर उसने उस आदमी और दोनों घोड़ों के वापस जाने कि आवाज़ें सुनी और निलनी फिर उसे झंझोड़ झंझोड़ कर आवाज़ें देने लगी।
इस बार कासिम ने आंखें खोल दी, क्योंकि उसे वह दोनों लंच बाक्स यद् आ गये थे जो घोड़े की जिन से लटकते थैले में रखे गये थे और अब घोड़े वापस जा रहे थे। कहीं घोड़ों के साथ वह भी न जा रहे हो। इतनी दूर पैदल चलने के कारण उसे कुछ भूख लग आयी थी ।
“क्या बात है, तुम कैसे हो ?” निलनी ने झुक कर अधीरता के साथ पूछा।
‘घोड़ा कहाँ है –मेरा घोडा--” कासिम उठाने की कोशिश करता हुआ बोला।
“घोड़े गये –अब जीप जायेगी--” निलनी ने कहा।
“और दोनों लंच बक्स ?”
“मिझे क्या मालूम कि तुमने कहाँ रखे थे ।”
“मेरे घोड़े के थैले में थे ।”
निलनी हंस पड़ी,हसती रही कासिम झल्ला कर बोला ।
“मेरा मज़ाक क्यों उड़ा रही हो ।”
“घोड़े तो गये,अब तुम क्या खाओगे ?”
“मुझे खाने पीने के मामिले में मजाख वालेकुल पसंद नाही और जैसा मजाख चाहे करो ।”
“मज़ाक नहीं मैं तो तुम्हारी बेहोशी के कारण इतनी परेशान हो गई थी कि....।”
“बस बस--” कासिम हाथ उठा कर बोला “मैं अगर मर भी जाऊं तो किसी को परेशानी नहीं हो सकती बस अब जियादा बेकूफ बनाने की कोशिश मत करो ।”
“तुम सचमुच बदनसीब हो,मेरी मुहब्बत पर तुम्हें यकीन नहीं है ।”
“महुबत साली पेट नहीं भरती--”कासिम चीन चिना कर बोला ।
‘साली क्या ?”
“होगा कुश –ठेंगे से--”
“अपनी भाषा के शब्द कम प्रयोग किया करो मेरी समझ में नहीं आते।”
“मैं भूखा मर जाउंगा तुम ठेंगा समझती रहना ।”
“ठेंगा क्या ?”
कासिम ने अंगूठा दिखा दिया और वह आश्चर्य से पलकें झपकाने लगी।
इतने में एक जीप आ पहुँची, जिसे कोई स्थानीय आदमी ड्राइव कर रहा था। जीप खाड़ी कर के वह नीचे उतरा । कुंजी निलनी को थमाई और पैदल वापस जाने लगा।
“तुम्हें ड्राइविंग तो आती ही होगी--” निलनी ने कहा और आगे बढ़ कर जीप की अगली सीटों पर नजर डालती हुई बोली”खुश हो जाओ –दोनों लंच बक्स मौजूद है।”
“हां हां मं ड्राइव कर सकता हूं --” कासिम खुश हो कर उठाता हुआ बोला।
थोड़ी देर बाद वह निलनी के बताये हुए ऊँचे नीचे मार्गों पर जीप लिये जा रहा था।
आधे घंटे बाद वह एक बिलकुल सुनसान स्थान पर पहुंचे—कासिम ने उसके आदेश पर गाड़ी रोकी और लंच बक्स की ओर हाथ बढाया ही था कि उसके कण के निकट एक जाना पहचाना अट्टहास गूंज कर रह गया। कासिम के पैरों टेल जमीन नहीं थी ! इसलिये कैप्टन हमीद की शक्ल देख कर जीप हवा में तैरती हुई महसूस होने लगी।
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