रीगम बाला - 10 Ibne Safi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रीगम बाला - 10

(10)

कासिम कभी आश्चर्य से हमीद को देखता था और कभी बौखला कर निलनी की ओर देखने लगता था। अचानक हमीद झुक कर उसके कान में धीरे से बोला।

‘मेरे साथ इससे भ ज्यादा पासिं लड़की है...तुम बिलकुल परवाह न करो। हम दोनों बहुत भूखे हैं, कुछ खाने को हो तो दो।”

“कहाँ है लड़की?” कासिम ने पूछा।

“उधर गुफा में --” हमीद बाईं ओर हाथ उठा कर बोला।

“देखे बिना यखीन नाही कर सकता समझे !”

“ठहरो ...मैं उसे यहीं लाता हूं ।”

“जाओ ...ज़रूर ...लाओ।”

हमीद गुफा की ओर लपका

“यह कौन था ..क्या कह रहा था ?” निलनी ने पूछा ।

“भूखा था ..खाना मांग रहा था।”

“फिर तुमने क्या कहा ?”

“अपनी उसको लेने गया है ।”

“उसको से क्या मतलब ?”

“तुम से किया मतलब ?” कासिम झल्ला गया।

“मैं निलनी हूं ।” “वह भी होगी कोई ..मैं नाम नाही जानता।”

“ओहो ...तो उसके साथ कोई औरत है ।””पता नाही किया ही ...देखे बिना यखीन नाही कर सकता!”

“क्या तुम दोनों एक दुसरे को जानते हो?”

“यह मेरी बदनसीबी है --” कासिम ने झल्ला कर कहा।

“तुम इतने बोर क्यों हो रहे हो ?”

“उन दोनों के लिये खाना कहाँ से लाऊंगा ।”

“इतनी बातें न करो ..मैं अपना लंच बक्स उन्हें दे दूँगी।”

कासिम ठंडी सांस ले कर अपनी भाषा में बडबडाया ।

“यह तो होना ही था...तुम उस साले के लिये पागल हो जाओगी, हमीद .पमिड .तमिद साला।”

“क्या बडबडा रहे हो ?”

“अपनी ऐसी की तैसी ।”

“अंग्रेजी में कहो ।”

इस पर कासिम ने झल्ला कर उर्दू ही में अंग्रेजी को एक गन्दी सी गारनी दे डाली।

“पता नहीं तुम क्या कह रहे हो ?”

कासिम कुछ नहीं बोला । ऊपर ही देखने लगा जिधर हमीद गया था।

थोड़ी ही देर बाद हमीद एक लड़की के साथ आता हुआ दिखाई दिया ।

“ओहो ...कितनी सुंदर कडकी है .” निलनी ने कहा ।

“हां ..है तो --” कासिम ने भर्राई हुई आवाज में कहा।

“मैं ज़रूर इनकी सहायता करूंगी।”

“नाही तुम कुश मत करना सब कुश मुझे करने देना, वह तुम्हारी आवाज भी न सुने तो अच्छा है ।”

“तुम कहना क्या चाहते हो ?”

“अगर तुम्हारी आवाज उस लड़की की आवाज़ से जियादा सुरीली हुई तो मैं किया करूँगा !”

“पता नहीं क्या बक रहे हो –अच्छा अब चुप हो जाओ, वह निकट आ गये हैं।”

हमीद जीप की निकट पहुंच कर रुक गया और अपनी साथ वाली लड़की की ओर संकेत कर के कासिम से बोला।

“यह रीमा है ।”

“बड़ी खख ..खुशी हुई --” कासिम बोला।

रीमा सर झुकाये खदी थी और निलनी उसे आश्चर्य से देखती रही फिर उसने कासिम से पूछा।

:क्या इसके साथ किसी प्रकार का बुरा व्यवहार किया गया है?”

“मैं क्या जणू ?” कासिम ने कहा।

“जी नहीं –इसकी शक्ल ही ऐसी है --” हमीद ने कहा।

इस पर रीमा ने किसी से नजरें नहीं मिलाएँ –निलनी ने एक लंच बक्स उठा कर हमीद की ओर बाधा दिया।

“बहुत बहुत शुक्रिया ऐ नेक दिल !”

“बस बस जियादा बातें नाही बनाओ” कासिम बिच ही में बोल पड़ा “जाकर जहर मार करो।”

हमीद जीप की पिछली सिट की ओर बाधा ही था कि कासिम ने ललकारा।

“नाही नाही ..खबर्दार, बस दूर दूर की साहब सलामत रखना चाहता हूं ।”

हमीद रुक कर रीमा की ओर मुडा और मुस्कुरा कर बोला।

“रीमा स्वीट यह मेरा वही प्यारा दोस्त है जिसके बारें में मैंने तुमसे कहा था।”

“अच्छा --” रीमा ने अब सर उठा कर कासिम की ओर देखा जिसका चेहरा भावनाओं के संघर्ष के कारण बहुत अधिक परिहास जनक हो गया था। वह मुस्कुरा उठी।

“आओ ..पिछली सीट पर आ जाओ” हमीद ने रीमा का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा।

कसिम चौकड़ी भूल चुका था। रीमा की मुस्कराहट ही ऐसी थी। वह कुछ नहीं बोला और रीमा को लिये हुए पिछली सीट पर बैठ गया ।

“क्या तुम लोगों की गाड़ी खराब हो गई है ?” निलनी ने उसने पूछा ।

“पिछली रात कोई हमारे घोड़े चुरा ले गया ।” हमीद ने उत्तर दिया ।

“घोड़ों पर किया करने आये थे ?” कासिम ने क्रोध भरे स्वर में पूछा ।

“हम बौध्ध यादगारें तलाश कर रहे है । मेरी साथी बौध्ध मत पर अथार्टी है ।”

“ओहो ।” निलनी ने दिलचस्पी प्रकट की और चंचल नजरों से रीमा को देखती रही ।

हमीद ने लंच बक्स खोला और रीमा को भी खाने का संकेत करते हुये एक सैंडविच उठा लिया । उधर कासिम उर्दू में बडबडा रहा था ।

“साले भूतों की तरह चिपट गये है – लानत है ऐसी जिन्दगी पर....कहां चला जाऊं – कहां मर जाऊं ।”

“लड़की ज़ोरदार है प्यारे ।” हमीद ने भी उर्दू ही मैं कहा ।

“ख़बरदार !” कासिम गुर्रा कर पलटा । “एक लफ्ज भी जबान से नाही निकले....ज़ोरदार भी है तो तेरे बाप का किया ?”

“तुम्हें किस बात पर क्रोध आ गया ।” निलनी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा “मेरा विचार है कि अब तुम भी लंच बक्स खोल लो !”

“इस आदमी से बच कर रहना ।” कासिम ने उसकी ओर झुक कर धीरे से कहा “बहुत खतरनाक… बहुत ही कमीना ।”

“होगा मुझे क्या ।” निलनी ने कहा ।

“अबे क्यों शामत आई है ।” हमीद ने उर्दू में कहा ।

“अबे तबे से बात मत करना – समझे !”

“क्या उर्दू समझती है ?”

“समझती होती तो मैं तुम्हारा गया न घूंट डालता ।”

“चपाती बेगम ।”

“नाहीं चलेगी बेटा – मैं उसे सब कुश बता चुका हूँ – समझे !”

“ख़ुद ही क्यों बता दिया – कुछ मेरे लिये भी छोड़ा होता ।”

“कर्नल साहब से मेरी मुलाखात हो चुकी है । मैं जानता था कि कहीं न कहीं तूमसे भी ज़रूर मुलाखात होगी, बस इसीलिये बता दिया...देखना है तुम्हारी कासे चलती है ।”

“वह कहाँ है ?” हमीद ने पूछा ।

“होंगे कहीं – किया मैं किसी के बाप का नौकर हूँ कि हर बात बताता फिरूं ।”

अचानक निलनी बोल पड़ी ।

“जब तुम दोनों अंग्रेजी में बात कर सकते हो तो फिर किसी दुसरे को उलझन में डालने से क्या लाभ !”

“कोई खास बात नहीं – बस रस्मी बातें थी ।” हमीद ने कहा ।

“मगर कासिम साहब तो गुस्से में मालूम होते है ।”

“इस नस्ल का वैसे भी गुर्राता रहता है ।”

“अबे ए – देखो, जबान संभल के....तुम होगे सेल कुत्ते – गुर्राने वाले...।” कासिम दहाड़ा ।

“तो फिर मैं सब कुछ इसे बता दूँ ?” हमीद ने कहा ।

“ज़रूर बताओ ।”

लेकिन हमीद पेट भरने में लगा रहा और रीमा तो इस प्रकार मौन थी जैसे यह आवाजें उसके लिये कोई अर्थ न रखती हो । चेहरे पर कुछ विचित्र से भाव अंकित थे ।

लंच बक्स खाली हो चुका था । हमीद ने उसे उठा कर बाहर फेंक दिया, फिर कासिम से पूछा ।

“कुछ काफ़ी वाफी भी है ?”

“किया तुम मेरे मेहमान हो....जहन्नुम जाओ मेरी तरफ़ से – काफ़ी पीयेंगे साले....जान जला है ।”

फिर हमीद ने यही सवाल निलनी से किया और वह हंस पड़ी । कुछ देर तक हँसते रहने के बाद बोली ।

“मेरे दोस्त को खाने के अतिरिक्त और किसी बात की परवाह नहीं होती । पीने को कुछ मिले या न मिले ।”

“प्राचीन यादगारों में से है ।” हमीद ने कहा ।

“तुम ख़ुद हो पाराचिन साले फटीचर ।” कासिम दहाड़ा ।

“फटीचर क्या ?” निलनी ने पूछा ।

“मैं फटीचर की अंग्रेजी नहीं जानता ।” कासिम ने कहा और हमीद हँस पड़ा । निलनी भी हँस रही थी ।

“मैं इनसे कहती हूँ कि....।” निलनी ने हँसीपर अधिकार प्राप्त करते हुये हमीद से कहा “इनके मुख से वह शब्द निकले ही क्यों....जिनकी अंग्रेजी यह नहीं जानते !”

“हज्जाम है....।” हमीद बोला ।

“हज्जाम क्या ?” निलनी ने पूछा ।

और प्रथम इसके कि हमीद कुछ कहता...कासिम गाड़ी से नीचे उतर कर उसे भी खींच कर नीचे उतारने के लिये झपटा ।

रीमा चौंक कर उसे घूरने लगी...और फिर जैसे ही दोनों की नजरें मिली...कासिम के बढ़े हुये हाथ रुक गये ।

“तुम कैसे आदमी हो ।” रीमा भर्राई हुई आवाज में बोली “दुखियों से हम दर्दी प्रकट करने के बजाय लड़ने मरने पर तैयार हो ।”

“यह...यह...भी तो...।” कासिम हकला कर रह गया ।

“तुम्हें चाहिये कि हम लोगों को शहर तक पहुँचा दो । हमेशा एहसानमन्द रहेंगे ।” रीमा ने कहा ।

“आप मम...मेरी बात भी तो सुनिये ।” कासिम खिसियाने भाव में बोला “यह पुराने दोस्तों में है – कभी कभी दोनों में जंग भी हो जाती है ।”

“लेकिन इस समय तो हम हमदर्दी ही चाहते है ।” रीमा ने कहा ।

“जी हाँ जी हाँ ।” कासिम बौखला कर बोला और अपनी जगह जा बैठा ।

“अगर हम जल्द ही शहर न पहुंचे तो मेरी हालत खराब भी हो सकती है । सीने में दर्द हो रहा है ।” रीमा ने निलनी से कहा ।

“तुम चिंता न करो....हम आज की तफरीह कल पर उठा रखेंगे ।” निलनी ने कहा, फिर कासिम की ओर मुड़ कर उससे वापसी के लिये कहा ।

“अल्लाह मियाँ की मर्ज़ी....।” कासिम ने उर्दू में ठंडी सांस ली और इन्जिन स्टार्ट कर दिया । जीप आगे बढ़ी । हमीद बिलकुल मौन हो गया था ।

“लेकिन हमारे पास तो कुछ भी नहीं है ।” रीमा ने हमीद के कान में धीरे से कहा “हम जायेंगे कहाँ ?”

“देखा जायेगा ।” हमीद बोला ।

“मुझे उलझन हो रही है । इतनी बेबसी से कभी पाला नहीं पड़ा था ।” रीमा बोली ।

“बेबसी का नाम न लो मेरे सामने ।” हमीद ने पाइप में तमाखू भरते हुये कहा “इस शब्द से मुझे घृणा है ।”

अचानक कासिम ने एक गन्दी सी गाली के साथ ब्रेक लगाये । जीप रुक गई ! हमीद ने चौंक कर देखा ।

एक आदमी जीप के सामने दोनों हाथ उठाये खड़ा था ।

“कैप्टन हमीद प्लीज़ ।” उस आदमी ने ऊँची आवाज में कहा ।

“क्या बात है.....तुम कौन हो ?” हमीद जीप से उतर कर उसकी और बढ़ता हुआ बोला ।

“मेरे साथ आइये...आपके लिये एक संदेश है ।” उस आदमी ने कहा और मुड़ गया । हमीद उसके पीछे था ।

फिर कासिम ने दोनों को एक चट्टान के पीछे गयाब होते देखा ।

“इस लोगों से इसीलिये मुझे उलझन होती है ।” उनसे निलनी से कहा ।

“किन लोगों से ?” निलनी ने पूछा ।

“यही साले.....सरकारी जासूस है....क़दम क़दम पर चार सौ बीस, पता नहीं साला यह काउन उल्लू का पठ्ठा था ।”

“उल्लू का पठ्ठा क्या ?”

कासिम दोनों हाथों से सर पीट कर बोला ।

“कितनी बार कहूं कि मैं उल्लू का पठ्ठा की अंग्रेजी नाहीं जानता ।”

“तो मत बोला करो ।” निलनी कह कर हँस पड़ी ।

“मुझे डर लग रहा है ।” रीमा ने कम्पित आवाज में कहा और निलनी चौंक कर उसकी ओर देखने लगी ! कासिम ने भी मुड़ कर उसकी ओर देखा ! उसके चेहरे पर कुछ ऐसी बेबसी नजर आई कि कासिम ख़ुद भी परेशान हो गया, फिर उसने तसल्ली देने के लिये कहने लगा ।

“तूम फिकर नाहीं करो....यह आदमी कर्नल विनोद का आसिस्टेंट है । मार पीट में किसी से पीछे नाहीं रहेगा...मैं जानता हूँ ।”

“कर्नल विनोद कौन है ?” निलनी ने धीरे से पूछा ।

“बहुत खतरनाक आदमी है – हजरों का अकेला मुकाबिला कर सकता हाई – मुझ जैसे देवकी की भी कलाई इस तरह मोड़ सकता है जैसे बच्चे की ।”

“मैंने तो आज तक कोई ऐसा आदमी नहीं देखा । बस कहानियों में ऐसे पात्रों के बारें में पढ़ती रही हूँ । मुझे तो यकीन नहीं हो रहा है ।”

“तो किया मैं तुम से झूठ बोल रहा हूँ....यखीन करो – दुनिया के बहुत बड़े मुजरिम उसके नाम से कांपते है ।”

“हमीद कहाँ रह गया....इतनी देर क्यों हुई, मैं भी जा रही हूँ ।” रीमा व्याकुलता के साथ बोली ।

“आ जायेगा...आ जायेगा – वह तुम्हें छोड़ कर कहीं नाही जा सकता...उसका बाप कहे तब भी ।” कासिम उसे तसल्ली देने लगा ।

“और अगर तुम्हारा बाप कहे कि मुझे छोड़ दो तो ?” निलनी ने मुस्कुरा कर कहा ।

“कह कर तो देखे ! मैं किसी कुयें में छलाँग लगा दूँगा ।”

“तब तो मैं अकेली रह जाऊँगी ।”

“हाँ – यह तो है ।” कासिम चिंता भरे स्वर में बोला “अच्छा तो फिर तुम्हारे साथ कहीं ग़ायब हो जाऊँगा ।”

“आखिर तुम अपने बाप से इतना डरते क्यों हो ?”

“इसलिये कि उसे अंग्रेजी नहीं आती । जो कुश कहना होता है उर्दू में कहता है – और उर्दू की कुश गालियाँ....अरे बाप रे....अगर पत्थर पर भी रख दी जायें तो वह टुकड़े टुकड़े हो जाये ।”