(17)
“तुम सब लोग गोलियों के निशाने पर हो ..अपने हथियार जमीन पर डाल दो ..चारों ओर से घेरे जा चुके हो .”
कबायली के कराठ से गुर्राहट निकलने लगी ।
आवाज फिर आयी।
“तुम सब की पोज़ीशन मेरी नज़रों में है ..जो अपने स्थान से हिला ..मारा गया ।”
“तुम कौन हो और क्या चाहते हो ?” कबायली गुर्राया ।
“सड़क की ओर मुंह करके खड़े हो जाओ ..” आवाज आई।
“यह नहीं हो सकता ..जो चाहे करो”
“नहीं ..नहीं ..” उस कबायली के दोनों साथियों की आवाज़ें सुनाई दी।”
“अरे चुप रहो ...नामर्दों ..” कबायली दहाड़ा ।
फिर हमीद ने तारों की छाँव में देखा कि वह कबायली पहले तो दुहरा हुआ ..फिर गठरी सी बन कर ऊपर उठाता चला गया। चीख रहा था ..दहाड़ रहा था और बड़ी बड़ी कसमें खाता हुआ नज़रों से ओझल हो गया।
“यह क्या हो रहा है ..किसकी आवाज है ?” रीमा ने अधीरता के साथ पूछा।
“पता नहीं” हमीद ने उत्तर दिया । हालांकि उसने विनोद की आवाज़ साफ़ पहचान ली थी ।
फिर उसने कबायली के दोनों साथियों को उसी प्रकार ऊपर उठाते हुए देखा।
हमीद कुछ कहने ही वाला था कि आवाज़ फिर आई ।
“कैप्टन हमीद – तुम जहां जाना चाहो जा सकते हो ?”
हमीद समझ गया कि विनोद उसे अपने साथ नहीं रखना चाहता वर्ना इस प्रकार का आदेश क्यों देता, मगर प्रश्न तो यह था कि वह जायें कहाँ ! ठंड के कारण दांत बाद रहे थे – मगर उसे रीमा पर आश्चर्य था कि आखिर वह इस प्रकार के कष्ट कैसे सहन कर रही है ।
“अब तुम क्या सोच रहे हो ?”
“दिमाग पर बर्फ जम रही है – सोचूंगा क्या ?” हमीद बोला ।
“आखिर वह कौन था....आवाज किसकी थी ?”
“मैं नहीं जानता....लेकिन इसका विश्वास हो गया है कि मेरा चीफ मेरी ओर से गाफिल नहीं है – मेरे बारे में उसे सब कुछ मालूम होता रहता है – प्रकट है कि यह उसी का कोई आदमी रहा होगा ।”
“उसका कोई आदमी था तो तुम्हें उसे जानना चाहिये ।” रीमा ने कहा ।
“आवश्यक नहीं है ।”
“क्या मतलब ?”
“वह मेरा चीफ है – मैं हर वक्त उसके साथ रहता हूँ – लेकिन आज तक न जान सका कि वास्तव में वह है क्या – आदमी है – शैतान है – जादूगर है या कुछ और – फिर उससे संबंध रखने वाली दूसरी बातों को कैसे जान सकता हूँ ।”
अचानक रीमा हंस पड़ी । हंसने का भाव खिल्ली उड़ाने वाला था ।
“क्यों – तुम इस प्रकार क्यों हंस रही हो ?” हमीद ने पूछा ।
“मैं यह सोच कर हँस पड़ी थी कि आखिर तुम कब मुझे विश्वास के योग्य समझोगे ।”
“क्या मतलब ?” हमीद चौंका ।
“कर्नल विनोद की आवाज हमें दिन में कई बार सुनाई जाती थी ।” रीमा ने कहा और फिर हँसने लगी ।
“ओहो ।” हमीद ने कहा ।
“यूं कि हमारा चीफ मेक अप का विशेषज्ञ है.....इसलिये उसकी आवाज के टेप हमारे पास है ।”
“शायद तुम्हें यह नहीं मालूम कि मेरा चीफ आवाज बदलने का भी विशेषज्ञ है ।”
“मगर इस समय तो उसकी आवाज़ बदली हुई नहीं थी ।”
“आवश्यकता न समझी होगी ।” हमीद ने लापरवाही से कहा ।
“जो भी हो....मैं तो केवल यह चाहती हूँ कि तुम्हारा चीफ विमल के खतरे से अवगत हो जाये ।”
“कैसा ख़तरा ?” हमीद चौंका ।
“शायद मैं तुम्हें बता चुकी हूँ – लेकिन फिर से सुन लो ।” रीमा ने कहा “तुम्हारा चीफ उसी की स्मरण शक्ति के सहारे हमारे स्थानीय केंद्र तक पहुँचने की कोशिश करेगा....लेकिन विमल उसे किसी अंधे कुंये में गिरा देगा – समझने की कोशिश करो – यह भी बता चुकी हूँ कि हम लोग मेडिकल सायन्स को बहुत आगे ले जा चुके है ।”
“मगर मैं कर ही क्या सकता हूँ....जानता ही नहीं कि वह कहाँ मिल सकता है...दुसरे उस तक सूचना भेजने के लिये मेरे पास कोई साधन भी नहीं है ।”
“तुम जानो......मुझे क्या....मगर अब हम जायें कहाँ ?”
“मेरा विचार तो यह है कि रात यहीं व्यतीत की जाये ।”
“तुम मुझे पागल कर दोगे ।” वह भल्ला कर बोली ।
“मेरे पास किसी को पागल कर देने वाला इंजेक्शन नहीं ।” हमीद भी झल्ला गया ।
“मैं सोचती हूँ कि अब जिन्दा रह कर क्या करूंगी – संस्था में मेरे लिये कोई स्थान नहीं रहा और तुम मुझे धोखे बाज समझते हो ।”
अपनी बात समाप्त कर के वह उठी और तेजी से दराड़ से निकली चली गई । हमीद ने उसके पीछे झपटा था....लेकिन रीमा की चल बहुत तेज थी – बिलकुल ऐसा ही लगता था जैसे वह किसी ऊँची चट्टान से छलाँग लगा देने का इरादा रखती हो ।
हमीद आवाज़ें देता हुआ उसके पीछे दौड़ रहा था ।
काफ़ी दूर तक वह उसके पीछे दौड़ता रहा था और फिर ठीक उस समय जबकि वह एक जगह से नीचे छलांग लगाने जा रही थी.....उसने उसे जा लिया ।
“छोड़ दो – मुझे छोड़ दो ।” वह हाँफती हुई चीखने लगी “तुम सब हिंसक हो....नीच हो, किसी की वफ़ादारी, प्रेम और सहयोग का सम्मान नहीं कर सकते ।”
“मैंने क्या किया है....ख़ुद ही प्रश्न करती हो और ख़ुद ही उत्तर दे देती हो, भ्रम में पड़ी रहती हो । मैं तो तुम्हारा बहुत सम्मान करता हूँ ।”
“सम्मान....केवल सम्मान ।”
“अच्छा....अब बैठ जाओ – तुम्हारी सांस फूल रही है ।”
वह निढाल हो कर बैठ गई । बुरी प्रकार हांफ रही थी ।
अचानक उन पर टार्च का प्रकाश पड़ा और किसी ने गरज कर कहा ।
“सावधान ! अपने स्थान से हिलना नहीं – वर्ना गोली मार दूँगा ।”
“कोई और विपत्ति ।” हमीद ने बडबडा कर अपने दोनों हाथ ऊपर उठा दिये ।
भारी क़दमों की आवाज निकट आती जा रही थी ।
“यहाँ क्या हो रहा है ?” आने वाले ने गरज कर पूछा और टार्च का प्रकाश फिर उनके चेहरे पर पड़ा ।
हमीद ने ध्यान पूर्वक उस आदमी को देखा । वह पुलिस की वर्दी में था ।
“जवाब दो ।” आने वाला फिर गरजा ।
“बैठे हुये है भाई ।” हमीद कराह कर बोला ।
“यहाँ....इतनी रात को ।”
“प्राचीन इमारतों को देखने निकले थे.....घोड़े भाग गये ।”
“तुम्हें मेरे साथ पुलिस स्टेशन चलना होगा ।”
“क्यों ?”
“वहीँ चल कर पूछना ।”
“चलो.....मगर उस से पहले हमें घर जाना होगा ।”
“क्यों ?”
“हम अपने कागजात ले लें वर्ना तुम्हारे आफिसर को संतुष्ट कैसे कर सकेंगे ।”
“कहाँ से आये हो ?”
“रंगून से !”
“चलो.....मगर यह ख्याल रखना कि मैं सशस्त्र हूँ ।”
“चलो भाई.....।” हमीद ने रीमा से कहा ।
रीमा उठी और दोनों चलने लगे । पुलिस वाला उनके पीछे चल रहा था और टार्च के प्रकाश मर उन्हें माग दिखा रहा था ।
फिर जब वह सड़क पर आये तो हमीद सोचने लगा किकहीं यह उसी ओर न ले जाये जहां एक बेकार वान खाड़ी मिलेगी। उसे पहले ध्यान ही नहीं आया था वर्ना घोड़ों के भाग जाने वाली बात न कह कर वह टायर के ब्रस्ट होने ही की बात करता ।
मगर ऐसा हुआ नहीं । पुलिस वाला किसी दूसरी ओर ले आया यहाँ पुलिस की एक पेट्रोल कार नजर आई ।
कार के निकट पहुंचे तो एक बार फिर उनके चेहरों पर टार्च का प्रकाश पडा। यह कर के अंदर से डाली गई थी।
“ओ हो” किसीकी आवाज आई “यह तो कैप्टन हमीद है ।”
फिर अगली सीट का दरवाजा खुला और एक आदमी नीचे उतरा ।
“आप यहाँ कहाँ श्रीमान ?” उसने पूछा।
“तुम कौन हो ?” हमीद ने पूछा।
“क्राइम ब्रांच का एक सब इन्स्पेक्टर ...!”
“अच्छा, तो सुनो ...” हमीद ने कहा “ मुझे एडलफ़ी तक ले चलो, फी वहाँ से मैं तुम्हें उस स्थान पर ले जाऊँगा ...जहां ठहरा हूं ।”
“अच्छी बात है, बैठिये ..” उसने उनके लिये पिछली सीट का दरवाजा खोलते हुए कहा ।
हमीद रीमा के साथ बैठ गया। वह उस सब इन्स्पेक्टर को पहचानता नहीं था फिर भी उसने उससे यह नहीं पूछा कि आखिर उसे कैसे पहचाना था कि वह कैप्टन हमीद है ।
एडलफ़ी के निकट पहुंच कर उसने ड्राइवर को मार्ग बताना आरंभ किया और अन्त में उसी इमारत तक आया जहां से वह कबायली उन्हें ले गया था।
पुलिस वाले उन्हें उतार कर पल भर के लिये भी वहाँ नहीं ठहरे थे बरामदे में पहुंच कर हमीद ने काल वेल का बटन दबाया ।
“काउन है ..”दरवाजे की निकट ही से कासिम की आवाज आई । ऐसा लगा था जैसे वह पहले ही से वहाँ खडा रहा हो।
“दरवाजा खोलो ..” हमीद ने कहा।
“काउन है ?” कासिम ने फिर पूछा।
“अबे लम्धाग ..आवाज भी नहीं पहचानता ..मैं हमीद हूं ।”
बोल्ट गिरने की आवाज आई ..फिर दरवाजा खुला और कासिम पलकें झपकाता हुआ नजर आया।
“वापस आ गये ..” कासिम ने कहा।
“हर जगह से वापस आ जाना मेरी किस्मत में लिखा हुआ है .” हमीद ने कहा और उसे एक ओर हटाता हुआ आगे बढ़ने ही जा रहा था कि कासिम ने बौखलाए हुये स्वर में कहा।
“अमे ठहरो ..सुनो ..आगे नाही जाना ।”
“क्यों ?”
“मैं तुमको अंदर नाही जाने दूंगा ..”
“काहे ?” हमीद ने उसके स्वर की नकल की।
“मैंने उसे बंद कर दिया है ..”
“किसको ?”
“उसी भूतनी सुमन को .”
“तुम इतने डरपोक क्यों हो गये हो कासिम ...” हमीद ने कहा।
“मेरी बात समझने की कोशिश करो ...” कासिम ने आगे झुक कर धीरे से कहा “ सिरिफ भूतनी ही होती तो कोई बात नाही थी ..मगर अब वह पागल भी हो गई है”
“क्या मतलब ?” हमीद ने आंखें निकालीं ।
“अपने कपडे चिद फाड़ डाले हैं ..”
“तो क्या ?”
“हां ..हां ..उसके जिस्म पर कपडे नाहीं है ।”
“क्या बात है ...”रीमा आगे बढ़ कर बोली “ मुझे भी तो बताओ ?”
हमीद ने कासिम से मिली हुई सूचना दुहरा दी ।
“ओह ..” रीमा ने लम्बी सांस खींच कर कहा “अगर उस पर पागल पन का दौरा पडा है तो समझ लो कि उस इंजेक्शन का प्रभाव समाप्त हो रहा है।”
“क्या मतलब ?” हमीद ने आश्चर्य से पूछा ।
“जब दिल की धड़कन बंद हो जाने के बाद पागल पन का दौरा पड़े तो ..उसके बाद गहरी नींद आती है ।”
“उसके बाद ?”
“पहले इससे पूछो कि इसने कितनी देर से उसकी आवाज़ नहीं सुनी ।"
हमीद के पूछने पर कासिम ने बताया की आधा घंटा पहले तक वह अंदर चीखती रही थी, उसके बाद से उसने उसकी आवाज़ नहीं सुनी।
“अच्छा, तुम दोनों यहाँ ठहरो मैं अंदर जाकर देखती हूं .”रीमा ने कहा ।
“अमे, रोको उसे नाही तो नोच खसोट डालेगी ..” कासिम ने हमीद से कहा।
“तुम चुप रहो ..” हमीद ने कहा ।
“मुझे किया ...” कासिम ने कन्धे हिलाए और मुंह बना कर दूसरी ओर देखने लगा।
फिर रीमा दरवाज़ा खोल कर अंदर चली गई।
“तुम बहुत बदनसीब आदमी हो कासिम ...” हमीद ने कहा।
“ठेंगे से ..” झल्लाहट भरे स्वर में उत्तर मिला।
“लेकिन मेरी तक़दीर में क्यों हो ?” हमीद अपनी जांघ पर हाथ मार कर चीखा।
“किया मतलब ?”
“क्या जरुरी है कि जिन्दगी के हर मोड़ पर तुम शैतानों की तरह खड़े मिलो ?”
“तुम साले ख़ुद शैतान ..” कासिम चीखा “इस बार तुम साले मेरे ठेंगे के मोड़ पर खड़े हुए हो . किया मैं तुमको तुम्हारे घर से बुला लाया हूं ।”
“जी नहीं जनाब, आप तो एक पागल औरत का सेक्रेटरा बन कर यहाँ तशरीफ़ लाये थे और अब जहन्नुम में तशरीफ़ ले जाइए --”
“मैं कहता हूं कि खामोश राहो नाही तो तोड़ मरोड़ क्र रख दूंगा ।”
“अच्छा जनाब आली ..पागल ही के सेक्रेटरा ठहरे ..”
“मैं कहता हूं चुप हो जाओ ...” कासिम खडा हो कर दहाड़ा फिर अचानक मानसिक धारा बदल गई। चेहरे पर कोमलता छा गई और वह सब कुछ भूल कर धीरे से बोला “अमे यार ..वह इंजेक्शन के बारे में किया कह रही थी ?”