(15)
“यह सब किया हो रहा है हमीद भाई...।” कासिम कपकपाती हुई आवाज में बोला ।
“अरे जहन्नुम में झोंको सबको – चलो अब तुम्हारी वाली को तलाश करें – सुमन भूत बन गई है और मेरी वाली तो पहले ही से चुड़ैल थी ।”
“मैं कासी को नहीं तलाश करता – औरत है लानत पर ।”
“औरत है लानत पर....।” हमीद ने आश्चर्य से दुहराया “अबे यह क्या है ।”
“ठेंगे से – मुझे इस वख्त गलत सही का होश नाहीं है....अगे यह बाप गे- फिर जिन्दा हो गई ।”
“अगर यहीं बात है तो चलो – इन सबसे पीछा छुड़ायें ।”
“किया मतलब ?”
“यहां से निकल कर किसी दुसरे होटल चलें ।”
“हाँ – पर ठीख है ।” कासिम हर्षित होंकर बोला “तुम्हारी वाली भी मुझे जहर लगने लगी है – कितने जोर से डांटा था साली ने ।”
इमारत से बाहर निकलने से पहले हमीद ने निलनी कारपाउन्ड को पूरी तरह तलाके किया मगर वह इमारत में नहीं मिली – फिर बाहर निकला तो वह गाड़ी भी ग़ायब थी जिस पर यहाँ आया था फिर बाहरी बरामदे से नीचे उतरा तो बाईं ओर से आवाज आई ।
“ठहरिये.....?”
हमीद रुक गया.......फिर उसे इन्स्पेक्टर नामवर दिखाई पड़ा ।
“आप कहाँ जा रहे है श्रीमान ?” उसने पूछा ।
“दूध लेने ।” हमीद ने लापरवाही से उत्तर दिया ।
“मैं नहीं समझा श्रीमान ?”
“मिल्क – एम – आई – एल – के – मिल्क ।”
“लेकिन.....अर्थात......।”
“फिर किस भाषा में समझाऊ ?”
“दूध का प्रबंध कर दिया जायेगा.....आप अंदर ठहरिये ।”
“मैं खुद ही जाना चाहता हूँ ।” हमीद बोला ।
“यह कर्नल साहब की स्कीम के अनुसार न होगा ।”
हमीद ने कुछ कहे सुने बिना एक जंचा तुला हाथ उसकी कनपटी पर जमा दिया । वह चकरा कर गिरा और फिर न उठ सका ।
हमीद ने कासिम का हाथ पकड़ा और तेजी से आगे बढ़ा ।
अचानक कासिम ने ठोकर खाई और हमीद को भी अपने साथ लेता हुआ ढेर हो गया ।
“अबे कमबख्त ।” हमीद बड बड़ाया ।
“किया करूँ.....साली जिन्दगी अजीरन हो गई है....अल्लाह मियाँ ने इतना बड़ा डील डौल दिया था तो लौंडियों के चक्कर में न डाला होता ।”
“खामोश रहो – कुफ्र मत बको – बेहूदे कहीं के ।” हमीद ने कहा “अल्लाह मियाँ ने नहीं...बल्कि तुम्हारे बाप ने लौंडियों के चक्कर ने डाला है – आओ चलो ।”
कासिम भी किसी न किसी प्रकार उठ बैठा और हाँफते हुये पूछा ।
“लेकिन हम जायेंगे कहा ?”
हमीद कुछ कहने ही वाला था कि अचानक उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी ने ठंडा पानी उसके चेहरे पर फेंक दिया हो – फिर चेहरे की वह ठंडक पूरे शरीर में फैलती चली गई....स्नायु शिथिल पड़ गये और फिर होश नहीं कि क्या हुआ ।
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निलनी कारमाउन्ट बाहर निकली थी तो उसे भी वह गाड़ी नजर नहीं आई थी जिस पर वह यहाँ तक आई थी – मगर वह इतनी भयभीत थी कि पैदल ही चल पड़ी थी और दिल ही दिल में मैथूज को भी बुरा भला कहती जा रही थी – सोच रही थी कि आखिर वह उन लोगों के साथ क्यों ठहरे । लेफरास ने उसे खरीद तो नहीं लिया था ।
सड़क सुनसान पड़ी थी । ठंडक की तेजी से टांगें सुन होकर रह गई थी । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे ! बोर्डिंग हाउस यहां से निकट नहीं था । पछता रही थी कि अकारण उसने लेफरास की बात मान ली थी ।
अचानक पीछे से किसी गाड़ी के हेड लैम्पस का प्रकाश दूर तक सड़क पर फैलता चला गया । वह जल्दी से सड़क छोड़ कर किनारे हो गई मगर रुकी नहीं – चलती ही रही ।
कुछ ही देर बाद दाहिनी और ब्रेक चडचडाये । एक गाड़ी रुकी और किसी औग्त ने उसे सम्बोधित करके कहा ।
“अगर कहीं दूर जाना हो तो इस ओर आ जाओ ।”
निलनी गाड़ी की ओर बढ़ गई । गाड़ी कोई औरत ही ड्राइव कर रही थी ! उसने बाईं ओर का दरवाज़ा खोल कर निलनी से कहा ।
“बैठ जाओ ।”
“धन्यवाद ।” निलनी बैठती हुई बोली “में देर से किसी टैक्सी की प्रतीक्षा कर रही थी ।”
“कहां जाना है ?” औरत ने पूछा । वह थी तो स्थानीय – मगर अभ्यास का प्रदर्शन करती हुई अंग्रेजी बोल रही थी ।
निलनी ने बोर्डिंग हाउस का पता बता दिया ।
“ओह – वह तो मेरे मार्ग ही में है ।” औरत बोली ।
निलनी ने संतोष की सांस ली ।
मगर जब गाड़ी दूसरी सड़क पे मोड़ी गई तो उसने चौंक कर कहा ।
“इधर कहां ?”
“चुप चाप बैठी रहो ।” पिछली सीट के किसी मर्द की गुर्राहट सुनाई दी ।
“कक...क्या.....मतलब ?” निलनी हकला उठी ।
“मैंने कहा कि चुपचाप बैठी रहो....वर्ना गोली मार कर किसी खड में फेंक दूँगा....।”
निलनी की धिग्धी बध गई – सर चकराने लगा । इस प्रकार का स्वर सुनने का पहला संयोग था ।
एक शांति प्रिय नथा शिष्ट कडकी थी । उसका दिल डूबने लगा। पता नहीं लेकरास ने क्या समझ कर उससे इस प्रकार का काम लेना चाहा था।
गाड़ी की स्पीड बडी तेज थी वह उडी चली जा रही थी । कुछ देर बाद निलनी ने महसूस किया कि जैसे वह किसी नये स्थान पर पहुंच गई हो –चारों ओर गहरा अन्धेरा फैला हुआ था। गाड़ी के हेड लाईट्स के प्रकाश के अतिरिक्त और कोई रोशनी कहीं नहीं दिखाई दे रही थी ।
अन्त में यात्रा समाप्त हो गई और उससे नीचे उतरने को कहा गया। उसका शरीर कांप रहा था, मगर यह कम्पन ठंड से अधिक भय के कारण था। नीचे उतारी तो कंप उठाने के लिये सहारे की जरुरत महसूस कर रही थी।
औरत ने ठीक उसी समय उसकी भुजा पकड़ ली। मर्द उनके पीछे चल रहा था।
थोड़ी दूर तक पैदल चलने के बाद वह एक छोटे से काटेज में दाखिल हुए। कमरा गर्म था। अग्नि कुंड में कोयले दाहक रहे थे और चारों ओर पेट्रोमैक्स की तेज रोशनी फैली हुई थी ..इसी से निलनी ने अनुमान लगा लिया कि वह कोई वीरान स्थान है .नगर से दूर ..जहां बिजली की रोशनी का प्रबंध असंभव था।
निलनी को एक आराम कुर्सी पर बैठा दिया गया और उसके पैरों पर एक मोटा सा कम्बल डाल दिया गया।
मर्द कमरे से चला गया, केवल औरत रह गई।
निलनी बिलकुल बदहवास थी । उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।वह रह रह कर उस औरत को देखे जा रही थी। जब जरा होश ठिकाने पर आया तो उसने औरत से पूछा।
“मैं यहाँ क्यों लाई गई हूं ?”
“मालूम हो जायेगा...” औरत ने लापरवाही में कहा “क्या पिओगी?”
“कुछ भी नहीं –मुझे मालूम होना चाहिए कि मैं यहाँ क्यों लाई गई हूं।”
“शराब या काफ़ी !” औरत ने फिर पूछा।
“बहकी हो क्या...” निलनी झल्ला उठी “मैंने कहा था कि मैं कुछ नहीं पीउंगी ...मेरे प्रश्न का उत्तर दो।”
“मैं यहां क्यों लाई गई हूं ...यह बड़ी ज्यादती है ..बहुत बड़ा कानूनी जुर्म है ।”
ठीक उसी समय एक आदमी कमरे में दाखिल हुआ, मगर यह वह नहीं था जो गाड़ी पर यहाँ तक आया था, यह कोई दूसरा आदमी था।
निलनी ने आनेवाले की ओर देखा औए बौखला गई ..दुबारा नजर मिलाने का साहस न कर सकी। पता नहीं उसकी आँखों में क्या था?
आने वाला मौन खडा उसे देखता रहा, फिर औरत से बोला।
“इन्हें कुछ पीने को दो--”
“यह कुछ पीने के इन्कार कर चुकी हैं ---” औरत ने कहा।
“क्यों ?” मर्द ने निलनी से पूछा।“हां ...मैं पहले यह मालूम करना चाहती हूं कि आखिर इस हरकत का क्या मतलब है .मैं यहाँ क्यों लाई गई हूं ...” निलनी ए सर झुकाए हुये कहा।
“कारण बता दिया जायेगा..मगर क्या समझ भी सकोगी” मर्द ने कोमल स्वर में कहा।
“क्या मतलब ?”
तुम कोई अच्छा काम तो करती नहीं हो कि बताते ही समझ जाओ ।”
“मैं क्या करती रही हूं ?”
“कुछ लोगों के गैर कानूनी काम में हाथ बटाती रही हो ।”
“गैर कानूनी कार्य ?” निलनी ने दुहराया।
“हां इसे अपराध का जुर्म समझ लो ।”
“जुर्म ...अपराध ?” निलनी चौंकती हुई बोली ।
“और नहीं तो क्या,तुम जो कुछ करती रही हो उसे मनोरंजन समझती हो ।” मर्द ने कहा। “यहां की पुलिस तुमको हिरासत में ले सकती है अच्छी लड़की ।”
“प प ..पुलिस . ।” निलनी हकला उठी।
“हां ..पुलिस !”
“ओह ..मगर मैंने तो आज तक किसी को कोई हानि नहीं पहुँचाई ।”
“तब क्या करती रही हो ।”
“कुछ लोगों की सहायता करती रही हूं .वह रक परेशानी में पड़ गये थे..मैंने कुछ देर पहले उनकी सहायता की है ।”
“किसके संकेत पर ...कौन तुमसे काम ले रहा है।”
निलनी कुछ नहीं बोली । सोचने लगी कि कदाचित वह आरागान के आदमियों के हाथ लग गई है ...इस लिये उसे सावधान रहना चाहिए, यह हो सकता है कि यही आदमी कैप्टन हमीद का चीफ हो ..क्या नाम था ...कर्नल विनोद !
“तुम क्या सोचने लगी !” आदमी ने उसे टोका ।
“कुछ नहीं ..यह बातें मेरी समझ में नहीं आ रही हैं ।”
“तुम उन लोगों के लिये कब से काम कर रही हो।”
“मैं किसीके लिये कोई काम नहीं कर रही हूं ..मैं तो .. ।”
“बेल्जियम से स्कालरशिप पर आई हो .. ।” मर्द ने उसकी बात काट कर कहा “पुरातत्व पर रिसर्च कर रही हो और इसके अतिरिक्त वह काम जिसे केवल तुम जानती हो,वह लोग जानते है, जो तुमसे काम ले रहे है।”
“मैं ..मैं ?” निलनी कारमाउन्ट ।” मर्द की आवाज कुछ तेज हो गयी “कल ही तुम्हारी वापसी भी हो सकती है और अपनी सरकार को मुंह दिखाने के योग्य न रहोगी ... ।”
निलनी कुछ नहीं बोली । उस आदमी से आंख मिलाने का साहस तो पहेले ही समाप्त हो गया था अब जबान भी अधिकार में नहीं रही ।
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बेहोशी दूर होते ही हमीद पर झल्लाहट का दौरा पड़ गया क्योंकि सर रीमा की रान पर रखा हुआ था।
और यह कोई खुला हुआ स्थान भी नहीं था ..बल्कि उसी इमारत का ही एक भीतरी स्थान था।
“मुझे यहाँ कौन लाया है ।” उसने झटके के साथ उठाते हुए पूछा।
“कैसी बातें कर रही हो ..तुम्हें क्या हो गया है ? ।” रीमा ने दुखी स्वर में कहा ।
कासिम अब भी बेहोश था और उससे थोड़ी ही ही दूरी पर था। सुमन उसके निकट बैठी उसे चिंता जनक द्रष्टि से देखे जा रही थी।
“वह कहाँ है ।” हमीद ने रीमा से पूछा।
“कौन ? ।” रीमा ने पूछा ।
“जो आदमी हमारे कमरे के बात रूम से बरामद हुआ था और जिसने उस आदमी पर हमला किया था?”
“कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे हो .. वह हमारे साथ कब आया था।”
“ठहरो ..” हमीद कहता हुआ दरवाजे की ओर झपटा ।
बरामदे में पहुंच कर उस स्थान पर रुका जहां उसने इन्स्पेक्टर नामवर सिंह को थप्पड़ मारा था । मगर वहाँ कोई नहीं दिखाई दिया, वह फिर अंदर आ गया ।
“क्या मैं तुम्हें अंदर ही मिला था ?” उसने रीमा से पूछा ।
“हां ! यहीं ...इसी जगह ..आखिर बताओ ना, क्या बात है ?”
“कुछ नहीं ... ।” हमीद ने कहा और कासिम को होश में लाने का उपाय करने लगा। उसे अपने आप पर हँसी भी आ रही थी ! इस थोड़ी सी अवधि में कितनी बार बेहोश हो चुका है..जैसे उनके हाथों में बस खिलौना बन कर रह गया है, वह कासिम का कंधा झंझोड़ कर चीखने लगा।
“उठो ...कमबख्त ...उठो ! आखिर तुम इस तरह क्यों मेरी तक़दीर में लिख दिये गये हो ।”
“दिल का बुरा नहीं है कैप्टन ।” सुमन ने कहा ।
“जी...क्या कहा आप ने ?” हमीद भन्ना कर पलटा ।
“मैं कहा कि बेवकूफ तो ज़रूर है मगर दिल का बुरा नहीं है ।”
“तो क्या दिल में शहद लगा कर चाटूं या गुलदान में सजाऊँ ?”
“मैं आप दोनों की बेहोशी का कारण जानना चाहती हूँ ।”
“मैंने तो आप से आपकी मौत का कारण नहीं पूछा था ।”
“बस बहुत हो चुका ।” सुमन पैर पटक कर बोली “मैं इस प्रकार का मज़ाक पसंद नहीं करती ।”
“क्या तुम इसे किसी बात पट क्रोध दिलाने की चेष्टा कर रहे हो ?” रीमा ने हमीद के कंधे पर हाथ रखकर कोमल स्वर में पूछा “मुझे बताओ कि क्या बात है – यह नहीं जानती कि इस पर क्या बीत रही है – यह हमारे वैज्ञानिको के चमत्कार है ।”