रीगम बाला - 6 Ibne Safi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रीगम बाला - 6

(6)

यह गुब्बारा भी पहेले ही के समान ज़ोरदार धमाके के साथ फटा और हेलीकाप्टर चक्कर पूरा किये बिना पश्चिम की ओर उडाता चला गया –उसकी आवाज़ अब भी सुनाई दी रही थी –लेकिन ख़ुद नज़रों से ग़ायब हो चुका था।

विनोद उन्ही चट्टानों की ओट लेता हुआ फिर पहली वाली दराड़ में दाखिल हुआ और हेलीकाप्टर की आवाज़ निकट आती हुई महसूस हुई और फिर वह उसके सर पर से गुजर गया –मगर उड़ान ऊँची थी –अगर नीची भी होती तब भी कोई अंतर नहीं पड़ता क्योंकि काफ़ी ऊंचाई पर दराड़ के दोनों ओर वाली चट्टानें एक दुसरे से इतनी निकट हो गई थी सूरज की रोशनी भी अंदर नहीं पहुंच सकती थी –फिर विनोद कैसे देखा जा सकता था।

दराड़ के सिरे पर पहुंच कर विनोद रुक गया। हेलीकाप्टर की आवाज़ से प्रकट हो रहा था कि वह अब नीची उड़ान कर रहा है –फिर एकदम उसकी आवाज़ बहुत तेज हो कर एक दम बंद हो गई –वह वहीँ पास ही उतारा गया था ।विनोद ने रायफल वहीँ छोड़ दी और फिर उस सिरे की ओर चल पड़ा जिधर से दाखिल हुआ था। आवाज़ के आधार पर अनुमान था कि वह उसी ओर उतारा गया होगा

लैंड करने वाली हेलीकाप्टर से तीन आदमी उतारे थे । उनमें पाइलट भी सम्मिलित था। पाइलट विदेशी था। शेष दोनों स्थानीय आदमी उसके पीछे इस प्रकार हाथ बांधे खड़े थे जैसे पुश्तैनी नौकर हो। अचानक विदेशी गुर्राया।

“गुब्बार्रा अपने आप नहीं फटा था –कोई दूसरा कारण था।”

“कुछ भी हो –हमें अति शीघ्र पता लगाना होगा वर्ना--” एक स्थानीय आदमी बोला।

“वर्ना क्या ?” विदेशी गुर्राया ।

“उस जगह के मजदूर पहले ही भाग गये थे और अब इधर के भी भाग खड़े हुए होंगे।”

“हां –तुम ठीक कहते हो --” विदेशी ने कहा “तुम यहीं ठहेरो –और जिन खां –तुम मेरे साथ आओ ।”

फिर एक आदमी हेलीकाप्टर के पास ही खड़ा रहा और दूसरा विदेशी के साथ एक ओर चल पड़ा।

दोनों ढलान में उतर रहे थे और अंधेरा फैलता जा रहा था। चलते चलते एक जगह विदेशी रुक गया और बोला।

“तुम ठीक कह रहे थे जिन खां—मगर मजदूर गये कहाँ?”

“आस पास की गुफाओं में जा छिपे होगे।”

“कहाँ है वह गुफायें –मुझे वहाँ ले चलो –मैं किसी बात से भी अनभिज्ञ नहीं रहना चाहता ।”

“आपने कभी इसकी इच्छा प्रकट नहीं की थी मिस्टर लेकरास ।” जिन खां ने कहा।

“ठीक है –चलो अब दिखाओ?”

जिन खां सीधा रास्ता छोड़ कर बाँई ओर मुड़ गया। यह भी ढलान ही थी। इस प्रकार अचानक मुड़ कर संतुलन बनाए रखना उन्ही के वश का काम था जो इसके आदी हो –लेकरास लडखडा उठा—जिन खां ने उसे लपक कर संभाल लिया।

फिर चार छोटी छोटी गुफाओं से उन्हों ने अट्ठाईस आदमी बरामद किये और उन्हें एक जगह एकत्रित करके जिन खां ने उन्व्ही आवाज़ में कहना आरंभ किया।

“तुम लोग दरो नहीं –इस प्रकार के धमाके तुम्हें किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचा सकते ..तेल तलाश करने वालो ने कोई परिक्षण किये थे।अब हम कोशिश करेंगे कि उन्हें किसी ऐसे स्थान पर इस प्रकार के परिक्षण न करने दें जहां हमारा काम हो रहा हो।”

“हमें कुछ बताया भी तो नहीं जाता..” एक आदमी ने कहा।

“तुम चिंता न करो –ऐसी कोई बात अब नहीं हो सकती--” जिन खां ने कहा फी विदेशी की ओर मुड़ कर बोला ;मोसियो लेकरास, इस समय तो मैंने इन्हें समझा बुझा कर काम करने पर तैयार कर लिया है –लेकिन अगर दुबारा इस तरह की कोई घटना हुई तो फिर यह नहीं कर सकेंगे—छोड़ छाड़ कर भाग ही जायेंगे।”

“मैं देझुंगा.. मैं देखूंगा ..” लेकरास ने चिंता जनक स्वर में कहा।

“आखिर इस संबंध में हम किसे तलाश कर रहे थे।” जिन खां ने पूछा।

“हमारा कोई भी शत्रु हो सकता है।”

“किस लिये –क्या किसी दुसरे को भी हमारे अतिरिक्त यह मालूम है कि वास्तव में हम यहाँ क्या कर रहे हैं ।”

“हां –एक खतरनाक आदमी है।”

“कौन है वह?”

“क्या करोगे पूछ कर –मैं नहीं चाहता कि तुम उसका नाम सुन कर घबडा जाओ।”

“मोसियो लेकरास –तुम जिन खां को क्या समजते हो।”

‘फिर भी नहीं चाहता की तुममें आंतक फैले।”

“बस मोसियो --” जिन खान ने आवेश में कहा “अब कुछ न कहना।”

“अच्छा चलो ...” लेकरास दूसरी ओर मुड़ता हुआ बोला।जिन खां उसके पीछे था और टार्च से रास्ता दिखाता जा रहा था।

“क्या तुम्हें मालूम है कि आज हमारा एक हेली काप्टर ग़ायब हो गया?” केकरास ने चलते चलते पूछा ।

‘नहीं ..मैं नहीं जानता ..मगर यह हुआ कैसे?”

“शत्रुओं में एक हमारे हाथ आ गया था –मगर वह फरार हो गया –हेली काप्टर भी ले गया।”

‘अब मैं उसके बारे में कुछ नहीं पूछूँगा मोसियो लेकरास ..”जिन खां ने मुंह बना कर कहा।

“वह कर्नल विनोद का असिस्टेंट था।”

“कौन !” जिन चलते चलते रुक गया “कर्नल विनोद ।”

“हो सकता है कि तुमने उसका नाम न सूना हो ।”

“केवल एक ही कर्नल विनोद पूरे देश में शैतान के समान प्रसिद्द है ।” जिन भर्राई हुई आवाज़ में बोला।

“और मैं उसी कर्नल विनोद की बात कर रहा था ।” लेकरास ने चुभते हुए स्वर में कहा।

“मैं जानता हूं –उसके बारे में सब कुछ जानता हूं –मगर उसे कैसे मालूम हुआ –हम तो सरकार की आज्ञा से खोदाई कर रहे हैं।” जिन ने पूछा।

“सरकार की आज्ञा से हम पुरातत्व के लिये खोदाई कर रहे हैं, लेकिन क्या हमारी खोदाई का ध्येय भी यही है।”

“हम जिस ध्येय के लिये खोदाई कर रहे है उसका पता किसी दुसरे को कैसे चला ।”

“कहानी बहुत लम्बी है . मैं संक्षिप्त में बता रहा हूं –ध्यान से सुनो –फ्रांस से एक लड़की आयी थी । उसके पास चमड़े पर एक प्राचीन लिखावट थी—वह इबारत उसी खजाने से संबंध रखती थी जिसे हम तलाश कर रहे हैं –बर्खा में दो भिक्षुओ ने उस लिखावट को पढ़ा और लड़की सहित रीगम बाला की ओर चल पड़े। मार्ग में किसी प्रकार कर्नल विनोद के हाथ लगे –उस तहरीर के लिये हममें और कर्नल विनोद में संघर्ष आरंभ हो गया –कैप्टन हमीद उस लड़की को ले भागा।वह तहरीर मानिक लाल कोठारी के मोटेल में जाल कर राख हो गई –दोनों भिक्षु भी जाल मरे।”

“ओह –तो यह कहानी थी मानिक लाल के मोटेल की --” जिन खां ने कहा।“हां फिर हमीद उस लड़की सहित मेरे हाथ लगा मगर फिर निकल भागा और हेलीकाप्टर भी ले गया ।”

“तो वह कहीं भी पकडे जा सकते हैं ...आखिर हेलीकाप्टर कहाँ छिपाएंगे ।”

“देखे –क्या होता है –लड़की भी उसी के साथ है—हां तो मैं यह कह रहा था कि गुब्बारों वाली हरकत विनोद के अतिरिक्त किसी की नहीं हो सकती –इसीलिये मैं तुम्हारे साथी को हेलीकाप्टर के पास छोड़ आया था।”

“अगर वह हरकत कर्नल विनोद की थी तो आपको पहले ही बता देना चाहिये था।” जिन व्याकुलता के साथ बोला।

“क्या सचमुच तुम डर रहे हो जिन खां?”

“सुनो मोसियो लेकरास ...” जिन गुर्राया “मैं एक पढ़ा लिखा आदमी हूं –अगर तुमने डरने वाली यही बात मेरे कबीले के किसी दुसरे आदमी के बारे में कही होती तो वह तुम्हें ज़िंदा न छोड़ता।”

“ओ हो --तुम नाराज हो गये मेरे दोस्त!”

“हम अपने बचन का सम्मान करना जानते है मोसियो –इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं –सिलसिले में उन्हें केसेदबदख़ ज पार्टी लीडर मान चुके हैं—और खजाने के सिलसिले में तुम जो भी करने को कहोगे, वह हम करते रहेंगे—बस --?”

“मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि तुम एकदम से नाराज क्यों हो गये?”

“कर्नल विनोद के कारण?” जिन ने कहा।

“क्यों ?”

“अगर उसको खजाने की सुन गुण मिल्म्गाई है तो वह उसे हमारे हाथ कभी न लगने देग।”

“मैंने गलत तो नहीं कहा था --” लेकरास हंस पड़ा ।

“नहीं ---” जिन पैर पटक कर बोला “बल्कि इसलिये कि तुम उससे खुल्लम खुल्ला टकराव से हमें रोकोगे। तुम चाहोगे कि सारा कम खामोशी से होता रहे –मगर यह सुन लो –अगर हमारे कबीले को यह मालूम हो गया कि सामना कर्नल विनोद से है तो फिर कबीले का एक भी आदमी इस प्रकार चूहों के समान काम करना पसंद नहीं करेगा ..जिस तरह तुम काम ले रहे हो।”

“आखिर क्यों ?”

“मेरे कबीले की इज्ज़त का सवाल है ।”

“यही तो पूछ रहा हूं जिन खां --” लेकरास ने कोमल स्वर में कहा।

“एक बार इसी कर्नल विनोद ने हमारे कबीले के कुछ आदमियों को एक मामिले में गिरफ़्तार कर लिया था। उनमें कबीले का सरदार भी था ..बस तभी से हमारे कबीले का बच्चा बच्चा कर्नल विनोद के खून का प्यासा हो गया है ..फिर तुम्ही बताओ कि।”

“बस बस ..मैं समझ गया –व लेकरास ने बात काट कर कहा “अब इस बात को यहीं समाप्त कर दो ...आज ठंड बहुत बढ़ गई है। आसमान का रंग बता रहा है कि शायद बर्फ भी गिरे ।”

दोनों फिर चल पड़े। दोनों ने ओवरकोट के कालर खड़े कर रखे थे।

हेली काप्टर के सामने उनका साथी खडा नजर आया।

“जिन खां ...कल सुबह हम देखेंगे कि क्या कर सकते हैं” लेकरास ने कहा और काक पेट में जा बैठा जिन खां और उसका साथी पिछली सीट पर बैठे और जिन अपने साथी को वह बातें बताने लगा जो उसके और लेकरास के मध्य हुई थी ।उसके चुप होते ही साथी ने खांसते हुए कहा।

“यह अच्छा नहीं हुआ।”

फिर जिन खां चोंक पड़ा, क्योंकि लेकरास ने अभी तक हेली काप्टर का इन्जिन चालू नहीं किया था। उसने लेकरास को आवाज़ दी ..मगर उत्तर नहीं मिला –फिर उठ कर देखा। वह काक पेट में नहीं था।

“इसका भी जवाब नहीं है--” वह बडबडाता हुआ बैठ गया, फिर बोला “अपने साये से भी भड़कता है—विनोद के नाम से सिट्टी गम हो गई है।”

फिर उसने अट्टहास भी किया। मगर उसका साथी मौन ही रहा, इतने में बाहर से लेकरास की आवाज़ आई।

“दोनों नीचे उतर आओ ।”

“चलो असलम खां ...नीचे उतरो –व जिन ठंडी साँस खींच कर बोला “सर्दी भी आज ही टूट पड़ेगी।”

दोनों नीचे उतर आये।

“क्या बात है मोसियो लेकरास ?” जिन खां ने पूछा।

“मेरे साथ आओ --” वह धीरे से बोला और दोनों चुपचाप उसके पीछे चल दिए । एक जगह रुक कर लेकरास ने कहा “वह ऊपर देखो ।”

सामने वाली चट्टान के उपरी भाग पर मंद सा प्रकाश नजर आ रहा था। लेकरास बाई ओर मुडा और चट्टान पर चढ़ने लगा—फिर ऊपर पाहुन्छ कर तीनों ने रिवाल्वर निकाल लिए और बड़ी सावधानी से प्रकाश की ओर बढ़ाने लगे।

अन्त में वह एक पतली सी दराड़ के निकट जा पहुंचे और तब उस प्रकाश का भेद खुला। एक बड़ी सी जलती हुई टार्च पत्थर से टिकी खाड़ी थी पचह्त्तर अंश का कोण बना रही थी। टार्च के पास ही कुछ और वस्तुएं भी मिलीं, जिसमें सुरक्षित की हुई खाद्य पदार्थ का एक डब्बा भी था।“मैं इस दराड़ में जाकर देखता हूं--” जिन खां ने कहा और उसने अपनी टार्च जला ली, फिर दरद नेब दाखिल हो गया।

“तुम उस रास्ते की निगरानी करो जिससे हम यहां तक आये हैं।” लेकरास ने जिन के साथी असलम खां से कहा और वह चला गया। लेकरास वहीँ खडा रहा।

कुछ देर बाद जिन खां को खजाने का प्रकाश दिखाई दिया और फिर वह बाहर निकाला। लेकरास निकट पहुंच कर बोला।

“वह बहुत जल्दी में यहाँ से भागा है ।”

“दराड़ नेब तुम्हें क्या मिला ?” लेकरास ने कहा।

जिन खां ने एक हाथ की मुट्ठी खोल कर उस पर टार्च का प्रकाश डाला । ताज़ी जली हुई दिया सलाई की कुछ तीलियाँ और सिगार के कुछ टुकडे दिखाई दिये ।

“ओ हो सिगार” लेकरास ने एक टुकडे को चुटकी से पकड़ कर उठाया। उसे ध्यान पूर्वक देखा, फिर बोला “यह विनोद के अतिरिक्त और कोई नहीं हो सकता था बस चुपचाप निकल चलो।”

मोसियो लेकरास –प्लीज़ !”

“यह बहस का समय नहीं है जिन खां –अंधेरा किसीको नहीं छोड़ता –हमें फौरन यहाँ से निकल जाना चाहिये, वर्ना बात बिगाड़ जायेगी—” लेकरास कहता हुआ आगे बढ़ा।

कुछ देर बाद उनका हेली काप्टर वायु मंडल में उड़ रहा था। जिन खां और असलम मौन थे । यात्रा लम्बी नहीं हुई। पाँच या छह मिनिट के बाद हेली काप्टर नीचे उतरने लगा। जब वह धरती पर उतरा तो लेकरास ने कहा।

“तुम दोनों नीचे उतर जाओ ।”

मगर न दोनों नीचे उतरे और न कुछ बोले ।

लेफरास ने इन्जिन बंद करके अंदर की रोशनी जलाई और उनकी ओर मुड़ कर कठोर स्वर में बोला ।

“मैंने कहा था कि तुम दोनों नीचे उतर जाओ ।”