रीगम बाला - 7 Ibne Safi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रीगम बाला - 7

(7)

दुसरे ही क्षण जिन खां का रिवाल्वर होल्स्टर से निकाला और उसके साथी असलम खां की पस्ली से जा लगा, फिर उसने कहा ।

“मोसियो ! इसका कालर नीचे गिरा दीजिये और तुम अपने हाथ ऊपर उठाओ वर्ना शूट कर दूंगा ।”

लेफरास के चेहरे पर परेशानी के लक्षण नजर आये । जिन खां फिर बोला ।

“जल्दी कीजिये मोसियो लेफरास यह मेरा साथी असलम नहीं मालूम होता ।”

लेफरास ने हाथ बढ़ा कर उसके ओवर कोट का कालर नीचे गिरा दिया और चकित रह गया ।

“तुम कौन हो ?” जीन खां उसकी पसली पर रिवाल्वर की नाल गडाता हुआ गुर्राया ।

“मैं गूंगा हूँ ।” उस आदमी ने हँसकर कहा ।

“मेरा साथी कहाँ है ?”

“तुम दरो नहीं – तुम्हारे साथी को मैंने अपने कपड़े पहना दिये है, वह भी बहुत गर्म थे । तुम्हारा साथी ठंड से सुरक्षित रहेगा ।”

“ओहो – ठहरो ।” लेफरास बोल पड़ा “तुम इसे कवर किये रहो ! हम वीरान किले की ओर चलते है ।”

“नहीं मोसियो ।” जीन कठोर स्वर में बोला “पहले मेरे साथी का पता मालूम होना चाहिये ।”

“मूर्खता की बातें न करो....वही चल कर मालूम का लेंगे ।”

“नहीं मोसियो....मैं जान बूझ कर अपने साथी का जीवन खतरे में नहीं डाल सकता ।” जीन बोला ।

“अच्छी बात है, इसे नीचे उतारो....यही समझ लेते है ।”

“नीचे उतरो ।” जीन खां गुर्राया और साथी ही उसको रास्ता देने के लिये पोजीशन भी बदल ली ।

वह आदमी चुपचाप नीचे उतर गया, फिर वह भी उतरा ।

“तुम कौन हो ?” जीन ने स्थिति समझते हुये कोमल स्वर में पूछा ।

“अगर मैं तुम्हें अपना नाम भी बता दूं तो तुम्हें क्या लाभ होगा....तुम्हें तो बस अपने साथी की चिंता होनी चाहिये ।” उस आदमी ने कहा ।

“यह क्या कह रहा है ?” लेफरास ने जीन से पूछा । वह भी उतर के वहीँ आ खड़ा हुआ था ।

“तुम्हारी सरलता के लिये मैं तुम्हारी ही भाषा में बातें कर सकता हूँ ।” उस आदमी ने कहा ।

“तो बताओ....तुम कौन हो ?” लेफरास ने मुक्का तान कर पूछा ।

“अशिष्टता नहीं ।” वह आदमी गुर्राया “वर्ना तुम्हारे इसी साथी के रिवाल्वर की गोली तुम्हारे सीने के पार हो जायेगी ।”

“अधिक बातें न बनाओ.....मेरी बात का जवाब दो ?” जीन खां क्रोध दबा कर बोला ।

“मेरा नाम सुलतान खां है ।” उस आदमी ने कहा ।

“तुम ने मेरे साथी की जगह लेने की कोशिश क्यों की ?”

“अगर उसकी जेब से रक़म बरामद हो गई होती तो मैं अपनी राह लेता ।”

“इधर के डाकूओं को मैं जानता हूँ ।” जीन ने तेज लेह्जे में कहा “लेकिन उनमें से कोई भी तुम्हारी तरह इंग्लिश नहीं बोलता ।”

“मैंने कब कहा है कि मैं पेशावर डाकू हूँ....बस अचानक कुछ रक़म की जरुरत पड़ गई है मुझे ।”

“इसे नीचे ले चलो ।” लेफरास ने धीरे से कहा “इसकी ओर से संतुष्ट हो जाने के बाद ही अब मैं कही जा सकूंगा ।”

हेलीकाप्टर किसी इमारत की छत पर उतरा था ।

“तुम मेरे साथ किसी प्रकार का बुरा व्यवहार नहीं कर सकते ।” उस आदमी ने कहा ।

“मोसियो – मुझे फौरन अपने साथी के बारे में मालूम होना चाहिये ।”

“जीन खां – मुझे उसी का कोई कोई आदमी यह मालूम होता है ।” लेफरास ने कहा और उसने भी रिवाल्वर निकाल लिया ।

“ओह तो तुमने भी रिवाल्वर निकाल लिया ।” उस आदमी ने हंस कर कहा “हाँ दोस्तों ! मैं उसी का आदमी हूँ ।”

“किसका ?” जीन ने व्याकुलता के साथ पूछा ।

“अपने मोसियो लेफरास से पूछो ।”

“मैं गलत नहीं कह रहा हूँ जीन खां – इसे नीचे ले चलो ।”

“मिस्टर लेफरास – मैं वास्तव में यह मालूम करना चाहता था कि तुम्हारी दूसरी पोज़ीशन क्या है ।” उस आदमी ने गंभीरता के साथ कहा “यह मैं जानता हूँ कि यह इमारत जिया लोजिकल सर्वे के संबंध में हेड क्वार्टर के तौर पर काम देती है – हेली काप्टर भी सरकारी है – मेरा चीफ तुम्हारे विरुध्ध प्रमाण एकत्रित करने में दोड धूप कर रहा है ।”

“देखा तुमने – यह कर्नल विनोद की बात कर रहा है ।” लेफरास बोला ।

“मेरा साथी ।” जीन खां दांत पीस कर बोला ।

“तुम्हारा साथी अब उसी रूप में तुम्हें वापस मिल सकता है जब कि मुझे किसी प्रकार का कष्ट न पहुँचाया जाये ।”

“उससे पहले तुम मुझे यह बताओगे कि विनोद कहाँ है ?” लेफरास पैर पटक कर बोला ।

“मुझे नहीं मालूम – और अगर मालूम भी होता तब भी तुम मुझसे कुछ न उगलवा सकते ।”

“जीन खां – इसे नीचे ले चलो ।” लेफरास दहाड़ा ।

“जितनी देर करोगे तुम्हारा साथी उतने ही अधिक कष्ट और पीड़ा में ग्रस्त होता जायेगा ।”

“मैं कह रहा हूँ जीन खां कि इसे नीचे ले चलो ।” लेफरास बोला ।

“नीचे चलो ।” जीन खां गरजा ।

“क्यों बेकार गला फाड़ रहे हो ।” वह आदमी हंस पड़ा “मुझे नीचे उतारने के लिये तुम्हें क्रेन का प्रबंध करना पड़ेगा – तुम जैसे तो शायद मुझे एक इंच भी न हटा सकें ।”

“मोसियो – आप इसे कवर किये रहिये .....मैं देखता हूँ ।” जीन ने अपना रिवाल्वर होल्स्टर में रखते हुये कठोर स्वर में कहा – फिर वह उस आदमी को आगे ढकेलने के लिये बढ़ा ही था कि उस आदमी ने बड़ी फुर्ती से नीचे झुक कर उसे ऊपर उठाया और लेफरास पर फेंक दिया ।

दोनों साथ ही गिरे – फिर उस आदमी ने फौरन ही अपनी जेब से कोई वस्तु निकाल कर उनके निकट फेंकी – मंद सा धमाका हुआ और धुयें के बादल उठने लगे ।

धुँआ – गहरा धुँआ – दोनों खांसते रहे और बेबसी से वह आवाज सुनते रहे जो हेली काप्टर का इन्जिन वायु मंडल में प्रसारित कर रहा था ।

लेफरास ने खांसते हुये अपने रिवाल्वर के सारे चेम्बर खली कर दिये – मगर हेली केप्टर वायु मंडल में ऊपर उठता ही चला गया और फिर अनंत अंधकार में गम हो गया ।

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वह किसी प्रकार की शारीरिक पीड़ा ही थी जिससे हमीद को जगाया था – विचित्र प्रकार का शोर उसके कानों में गूंज रहा था और आंखों के सामने आग की ऊँची ऊँची लपटें थी ।

धीरे धीरे जब पूर्ण रूप से उसका जागरण हुआ तो उसने देखा कि उसका शरीर रस्सियों से जकड़ा हुआ है – पास ही में अलाव जाल रहा है और जोर से ढोल पीटे जा रहे है – फिर उसे रीमा दिखाई पड़ी जो ढोल की आवाजों पर उछल कूद रही थी और उसके पास ही एक कवायली चमड़े का चाबुक लिये खड़ा था । जब भी रीमा के क़दम सुस्त पड़ने लगते – कबायली चाबुक फटकारता ।

लेकिन यह हुआ कैसे....वह तो रीमा के साथ हेली काप्टर ही में सोया था और हेली काप्टर उसी गढ़े में था जहां तक नजर नहीं पहुंच सकती थी । दोनों ने डिब्बो में सुरक्षित की हुई खाध्य पदार्थों से पेट भरे थे । कुछ देर तक इधर उधर की बातें की थी – फिर हेली काप्टर ही में सो गये थे – फिर यह हुआ कैसे – क्या रीमा भी उसी के समान बेखबर सो गई थी ।

रीमा ढोलकों की आवाजों पर नाचे जा रही थी । उसके चेहरे पर ऐसे भाव अंकित थे जैसे होश हो न हो । बस वह ढोलकों की “धमा धम” पर नाचे जा रही थी । वातावरण से बेखबर उसके होश में न रहने वाली बात इस प्रकार भी साबित हो गई कि अचानक एक कबायली ने उठ कर उसकी ओर रिवाल्वर से फायरिंग आरंभ कर दी – सारी गोलियां रीमा के निकट से निकली चली गई – मगर उसके चेहरे पर न तो फायरिंग की प्रति क्रिया आई और न ऐक्शन ही में किसी प्रकार का परिवर्तन हुआ !

फिर उस भीड़ से एक आदमी निकला। लिबास तो कबायलियों ही जैसा था,मगर ख़ुद कबायली नहीं था बल्कि गोर रंग का कोई विदेशी था—उसने अपना एक हाथ ऊपर उठाया और चारों ओर खामोशी छा दी। ढोलकों की धमाधम सन्नाटे में दफ़न हो गई। अलाव की लड़कियों के चीटीखने की आवाज के अतिरिक्त और किसी प्रकार की आवाज़ नहीं सुनाई देती थी।

रीमा के पैर भी थक गये थे और अब वह एक ही जगह खाड़ी झूमे जा रही थी।आंखें खुली हुई अवश्य थी, लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे उसे कुछ दिखाई न दे रहा हो! हमीद आश्चर्य से आंखें फाडे उसे देख रहा था।

यह एक इतनी बड़ी गुफा थी किसैंकड़ो आदमी विश्राम कर सकते थे।

हमीद के शरीर पर रस्सी का बंधन सख्त था। उसे बांध कर जमीन पर डाल डिया गया था। वह अपने शरीर का कोई अंग हिला नहीं सकता था—मगर पूरे शरीर से जिधर चाहता लुढ़क सकता था।

अचानक विदेशी ने उसकी ओर देख कर कहा।

“कैप्टन हमीद ! मरने के लिये तैयार हो जाओ ।”

हमीद कुछ नहीं बोला। वह अब भी रीमा को घूरे जा रहा था।

“कैप्टन हमीद !” विदेशी ने फिर उसे संम्बोधित किया “यह लड़की ट्रान्स में है ! ईससे जो कुछ कहा जायेगा करेगी! इसी के हाथों तुम्हें क़त्ल होना है –वैसे यह तुम्हारे लिये मान भी सकती थी, मगर इस समय अपने हाथों से तुम्हें क़त्ल कर देगी—इसलिये कि इस समय पूरी तरह से मेरे अधीन है।”

वह मौन हो कर रीमा की ओर मुडा और बोला।

“लड़की! यद्यपि तुम्हारी आंखें खुली हुई है –मगर तुम सो रही हो –फिर भी मैं तुम्हें जो दिखाना चाहूंगा वह तुम देखोगी ! जो सुनाना चाहूंगा वह सुनोगी –तुम मुझसे सच बोलोगी—बोलोगी न सच—उत्तर दो ?”

“सच ही बोलूंगी --” रीमा के होंठ हिले मगर हमीद को ऐसा लगा जैसे वह किसी और की आवाज़ हो। रीमा की आवाज़ तो नहीं थी।

“कैप्टन हमीद से तुम्हारा क्या संबंध है?” विदेशी ने पूछा।

“अभी कोई कानूनी संबंध नहीं है--” रीमा ने उत्तर दियाज़

“उसके लिये किस प्रकार की भावनाएं रखती हो?”

“मैं उसे दिल से चाहती हूं—उसके बिना एक दिन भी जीवित नहीं रह सकती।”

“वह देखो...सामने एक कुत्ता बंधा पडा है --” विदेशी ने कहा।

वह बराबर रीमा की आंखों एन देखे जा रहा था! उसने पूछा”वैसे तुम क्या देख रही हो !”

“देख रही हूं की एक कुत्ता बंधा पड़ा है--” रीमा बोली।

“तुम्हें उस कुत्ते पर वाए करना है--”

हमीद को झुरझुरी सी आ गई, क्योंकि वह विदेशी को रीमा के हाथों में एक कटार थमाते हुए देख रहा था।

“उस कुत्ते को इस कटार से मार डालो--” विदेशी ने कहा।

रीमा आगे बढ़ी और झुक कर हमीद पर वार किया । हमीद ने बड़ी फुर्ती से करवट बदली और लुढ़कता हुआ उससे दूर निकल गया।

“लड़की ! ठहर जाओ --” विदेशी ने गरजदार आवाज में कहा।

रीमा सीधी खडी हो गई—फिर विदेशी ने हमीद से कहा।

“तुम अधिक देर तक अपने को न बचा सकोगे। उसकी कटार तुम्हारे सीने के पार हो ही जायेगी।”

“क्या तुम ख़ुद मुझे गोली नहीं मार सकते?” हमीद किसी ज़ख्मी हिंसक पशु के समान गुर्राया।

“कर्नल विनोद का पता बता कर तुम अपना जीवन पुरस्कार स्वरुप प्राप्त कर सकते हो ।” विदेशी ने मुस्कुराते हुए कोमल स्वर में कहा।

“बड़ी विचित्र बात है ।” हमीद ने जहरीले अवर में कहा।

“तुम कहना क्या चाहते हो?”

“तुम मुझे भी ट्रान्स में लाकर कर्नल विनोद का पता मुझसे पूछ सकते थे। आखिर इस षटराग फैलाने की क्यों आवश्यकता पड़ी?”

“तुम ट्रान्स में नहीं आओगे –लेकिन तुम्हारी संकल्प शक्ति बहुत तेज है।”

“ओह!”

“विश्वास करो कैप्टन –अगर तुम ने कर्नल विनोद का पता नहीं बताया तो इस लड़की की कटार से न बच सकोगे।”

हमीद ने सोचा कि अगर इस बार उसने रीमा के साथ ही साथ कुछ और आदमियों को भी इस काम पर लगा दिया तो वह सचमुच दुसरे दिन का सूरज न देख सकेगा – फिर क्या करना चाहिये – इस समय तो झूठ बोल कर जान बचा ही लेना चाहिये । जब तक वह उसकी बात की तस्दीक न कर लेंगे तब तक तो निश्चय ही उसे जिन्दा रखेंगे....हो सकता है इस मध्य छुटकारे की कोई सूरत निकल आये ।

“बोलो....क्या कहते हो ?” विदेशी ने पूछा ।

“अगर मैं उसका पता भी दूं तो तुम उस पर हाथ न डाल सकोगे ।” हमीद ने कहा ।

“तुम इसकी चिंता न करो ।”

“लेकिन इसकी क्या जमानत है कि पता मालूम कर लेने के बाद तुम मुझे क़त्ल नहीं करोगे ?”

“मेरी बात पर विश्वास करो ।”