उजाले की ओर ---संस्मरण Pranava Bharti द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर ---संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण

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सस्नेह नमस्कार मित्रों

जैसे-जैसे नई-नई चीज़ें ईज़ाद हो रही हैं हम बहुत कुछ नया जान रहे हैं लेकिन पशोपेश में भी पड़ते जा रहे हैं |

हम जैसी उम्र के लोग ताउम्र कलम हाथ में लिए रहे या यों कह लें कि माँ शारदा ने हमारे हाथों में कलम पकड़ाए रखी व आशीष दिया |

अब लिखा किस स्तर का ,वह तो जो पढ़ता है ,वही बता सकता है |यानि पाठक वर्ग ही न्याय कर सकता है |

हर माँ को अपना बच्चा प्यारा लगता है इसी प्रकार शब्दों की संवेदनाओं से हर लेखक या कवि जुड़ा होता है |

कभी-कभी अधिक संवेदनशील व्यक्ति को ऐसी घटनाएँ अत्यंत प्रभावित कर जाती हैं कि वह असहज हो जाता है|

वह अपने मन की चीत्कार को पन्नों पर उतारता है और चाहता है कि अन्य लोगों तक पहुँच सके |

इससे होगा यह कि वे लोग जो सरल ,सहज पाठक हैं उनके ज्ञान-चक्षु भी खुल जाएँगे और वह सोचने लगेगा अरे! ऐसा भी हो सकता है !

इस अनुभव से वह अपने भावी दिनों में चैतन्य रहने का प्रयास कर सकता है |

लेकिन फिर भी ऐसे अवसर आते रहते हैं जिन पर कुछ कहना या लिखना आवश्यक हो जाता है |

आज ,जैसे मैंने कहा कि पहले हम कागज़-कलम का प्रयोग करते थे ,आज हम इंटरनेट का प्रयोग करते हैं |

हमें बहुत कुछ सुविधाएँ हो गई हैं लेकिन लेखन की चोरी भी अधिक आसान हो गई है |

रातों-रात ख्याति प्राप्त करने के लिए फ़ेस बुक या कहीं और से कॉपी-पेस्ट करना आसान हो गया है |

काफ़ी दिनों तक तो वास्तविक लेखक अथवा कवि को पता ही नहीं चलता और जब किसीके माध्यम से उसे पता चलता है

तो उसे चोट तो लगती ही है |

इस आधुनिक युग में एक नहीं अनेक चीज़ें ऐसी सामने आई हैं जो कहीं न कहीं सोचने के लिए विवश करती हैं |

पहले यदि किसीको हमारे लेखन का अंश सौभाग्य से पसंद आता था,वह हमें फ़ोन करता अथवा पत्र लिखता था|

यदि उसे कहीं लेखन के किसी भाग का उपयोग करना होता था वह लिखित में आज्ञा लेकर उसको अपने अनुसार प्रयोग में ले लेता था |

उसके पास बाकायदा लेखक के हाथ की लिखी अनुमति होती थी लेकिन आजकल बिना पूछे विचारों का उपयोग कर लिया जाता है |

इससे वास्तविक लेखक को मानसिक कष्ट होता है ,स्वाभाविक है |लेखक के अपने विचार ही तो सबसे महत्वपूर्ण होते हैं |

मैं तो समझती हूँ कि यह गर्व का विषय है कि कोई लेखक की लिखी चीज़ का उपयोग करे |

वास्तव में उसमें कुछ तो होगा केवल यही नहीं कि लेखक उससे जुड़ा है इसीलिए वह लेखन बढ़िया है |

वह पाठकों को बाध्य करता है कि उसके अनुसार चलें अथवा उसका पुन: उपयोग करें ---लेकिन --इसके कुछ और भी पहलू विचारणीय हैं |

हाल ही की घटना से आपको अवगत कराना चाहूंगी |

मेरी एक कहानीकार मित्र हैं ,मधु सोसि | बड़ी सुंदर कहानियाँ लिखती हैं |

पहले दिल्ली-प्रेस की पत्रिकाओं में वे 'मधु' के नाम से बहुत लिखती थीं जहाँ से उन्हें मानदेय भी मिलता था |

इस प्रकार दिल्ली प्रेस का उस पर कॉपी राइट हो जाता |

उनकी एक कहानी अभी यू-ट्यूब पर मिली जिसमें केवल चरित्रों के नाम व शीर्षक बदलकर अजय गुप्ता नामक यू-ट्यूब चलाने वाले ने पढ़ा था |

नहीं पता चलता तो कोई बात न थी लेकिन हम सबको पता चल गया और हमने कमेंट डाले |

लेकिन वे महाशय यब बात मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं कि उन्होंने वह किसी और की कहानी अपने चैनल पर डाली है |

मेरे विचार में तो बहुत अच्छा है ,उस चैनल के सहारे कहानी खूब पाठकों तक पहुँचेगी लेकिन किसीकी चीज़ को अपना कहकर प्रयोग करने से

कभी न कभी तो उसका राज खुलेगा |और वह बंदा शर्मिंदा होगा |

लेखिका मधु के पास उसके सभी प्रमाण मौजूद है |

कहानी एक बार नहीं तीन बार दिल्ली -प्रेस की पत्रिकाओं में छपी है|

बात केवल इतनी सी थी कि अपने चैनल में डालने से पूर्व मूल लेखक की आज्ञा लेनी आवश्यक थी |

इस छोटे से प्रयत्न से चैनल का कद बड़ा हो जाता और उन भाई को शर्मिंदा न होना पड़ता |

मित्रों ! ध्यान रखें ,अपनी किसी वस्तु का गलत उपयोग न होने दें |

आप सबकी मित्र

डॉ . प्रणव भारती