अनोखी दुल्हन - ( अकेलापन_२) 30 Veena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अनोखी दुल्हन - ( अकेलापन_२) 30

एक वो थे, जो मिलकर भी मिल नहीं पाए और एक ये हैं जो साथ होकर भी रहना नहीं चाहते।

सनी भी कुछ गुमसुम सी रहने लगी थी। जब जूही ने उस से उदासी की वजह पूछी तो उसे जवाब में नया सवाल मिला।
" मैं क्यों उदास हूं ?" एक झूठी हसी के साथ सनी ने नजरे घुमा ली। " क्या कभी तुम किसी ऐसे शक्श से मिली हो, जो तुम्हे देख रो पड़ा ? बताओ मुझे। क्या मैं इतनी बुरी दिखती हूं के किसीको मुझे देख रोना आए?" जूही ने सिर्फ ना में गर्दन हिलाई।

" तो फिर क्यों ? उसने अब तक कॉल क्यो नही किया मुझे ?" सनी फिर उदास हो कर बैठ गई।

" शायद वो कही किसी काम में व्यस्त हो गा ?" जूही ने कहा।

" व्यस्त। २०० रूपयो में उसने मुझे मुझसे चुरा लिया। देखो मुझे। गुमसुम सी बैठी रहती हु ? हंसना तक भूल गई हु। पता नही ऐसा क्या जादू था उसकी नजरों में। क्या तुम्हारे साथ कभी ऐसा हुवा है?" सनी ने फिर जूही पर एक सवाल छोड़ दिया। ऐसा सवाल जो वो खुद से नजाने कितने दिनों से पूछ रही होगी।

" वो २०० रूपयो के बदले आपकी हसी ले गया। या यूं कह लीजिए की आपने खुद उसे खुशी खुशी अपनी हसी दी। जिसके साथ मैं हूं, वो तो अपनी उदासी के बदलें मेरी हसी ले गया।" जूही ने सनी से कहा।

" ये किस तरह की बाते कर रही हो?" सनी समझने की कोशिश कर रही थी।

" जानना चाहती हूं, क्या ज्यादा बुरा है ? उसका साथ ना होना या साथ होते हुए भी हम साथ नही है, ये जताना।" जूही ने कहा। दोनो ने एक उदासी भरी सांस छोड़ी, और फिर चुप चाप काम करने लगी।

जूही के दिल का सवाल उसकी मुश्किलें बढ़ा रहा था, और साथ ही साथ उसने सनी को भी झंझोड दिया। जो साथ ना हो कर इतनी तकलीफ दे रहा था। सोचो उसका प्यार कितना जानलेवा होगा।


दूसरी तरफ आखिरकार अपनी दर्दनाक सचाई भूल वीर प्रताप ने नया सूट पहना। तैयार हुवा और अपने कमरे से बाहर निकला।

" सुना है तुम इंटरनेशनली भी डील करते हो ?" उसने यमदूत से पूछा।

" तुमसे मतलब ?" यमदूत का उल्टा जवाब भी तैयार था।

" अंग्रेजी आती भी है, या बस यूं ही ?" वीर प्रताप ने उसका मज़ाक बनाते हुए कहा।

" Pardoned " यमदूत।

" इतना काफी होगा। तुम्हारी मदद चहिए।" वीर प्रताप ने कहा।

कुछ ही देर बाद वो कैनेडा में था।
कमरे का दरवाजा खुला और एक आदमी अंदर आया। वीर प्रताप को वहा देख उसके उदास चेहरे पर मुस्कान छा गई।

" मुझे पता था। आप कही ना कही जरूर है।" उस आदमी ने वीर प्रताप के सामने वाली कुर्सी पर बैठते हुए कहा। " ये कमाल की बात है ना, के आप अभी भी वैसे ही है। जवान और खूबसूरत।"

" शुक्रिया। जानते हो तुम आज वापस मुझसे क्यों मिल पा रहे हो ?" वीर प्रताप का सवाल सुन उस आदमी ने ना में गर्दन हिलाई। " आसान है। तुम उन कुछ खास इंसानों में से एक हो, जिन्होंने मेरे दिए हुए सैंडविच का कर्ज चुकाया। मैने कहा था ना उस सवाल का जवाब २ है, तुमने ४ क्यो लिखा ?"

" क्यों की मैने जितनी भी बार, जिस भी तरीके से उस सवाल को सुलझाया। मुझे जवाब ४ मिला। मुझ जैसे आम इंसान के जीवन में जब कोई फरिश्ता दस्तक देता है। तो हम लोग उसे चमत्कार कहते हैं। और फिर भूल जाते है, लेकिन मुझे पूरा यकीन था कि आप सच है।" उसने कहा।

" तुम्हारे इसी भरोसे को तुमने अपनी जिंदगी बना लिया। एक अच्छे वकील बने और लोगों की सेवा की। गरीबों की हमेशा मदद की और अपना जीवन अपने मूल्यों के साथ बिताया। तुम्हारे अच्छे कर्म यहां से तुम्हारे साथ जाएंगे।" वीर प्रताप ने उसे देखते हुए कहा।

" आप ही मुझे बताइए यहां से मुझे कहां जाना है ?" उस आदमी ने पूछा।

" रास्ता तुम जानते हो जिस रास्ते से तुम आए थे वहीं से जीवन का मार्ग वापस शुरू होता है।" वीर प्रताप।

" मुझे मेरे जीवन की सही राह दिखाने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। यह मेरे लिए खुशी की बात होगी अगर मेरा अगला जीवन भी आपके किसी काम आ सके।" उस आदमी ने सिर झुकाते हुए वीर प्रताप का शुक्रिया अदा किया और फिर जिस दरवाजे से आया था उसी दरवाजे वापस चला गया।

" तुम्हें यह खुद करने की जरूरत नहीं थी।" यमदूत ने वीर प्रताप से पूछा।

" पर मैं यह करना चाहता था। वह 12 साल का लड़का जिसने मेरे एक सैंडविच के भरोसे अपना पूरा जीवन एक अच्छे मार्ग पर बिताया। हर परेशानी में हर उलझन में उसने उस पल को याद किया जब मैं उससे मिला था। उसने कभी मुझे ढूंढने की कोशिश नहीं की नाही मेरे बारे में कुछ जानना चाहा। यह इंसान कितने अलग होते हैं ना कभी-कभी उनसे सच्चा लगाओ हो जाता है।" वीर प्रताप ने यमदूत की तरफ देखते हुए कहा।

" मेरे काम के हिसाब से हमारा इंसानों से लगाव करना गलत है। हम किसी भी भावना के आधार पर अपना काम रोक नहीं सकते। हमें यह बात हमेशा याद रखनी होगी।" यमदूत ने स्तब्ध भाव से कहा।

" सही कहा। तुम और तुम्हारे भगवान। दोनों ही मतलबी हो।" वीर प्रताप ने अपनी नाराजगी जताई।

" अच्छा तो अब तुम अपनी पर्सनल प्रॉब्लम्स को भी भगवान से जोड़ रहे हो।" यमदूत का सवाल सुन वीर प्रताप चौक गया।

" मतलब क्या है तुम्हारा? किस तरह के पर्सनल प्रॉब्लम के बारे में बात कर रहे हो ?" वीर प्रताप ने पूछा।

" वही तुम्हारी अनोखी दुल्हन वाली प्रॉब्लम।" यमदूत ने एक असूरी मुस्कान के साथ कहा।

" पता है। मैं तुम्हें अभी शुक्रिया कहने वाला था पर अब भूल जाओ।" वीर प्रताप अपनी जगह से उठा और बाहर जाने लगा।

यमदूत ने उसका पीछा किया। " बुरा मान गए क्या ? तुम्हें यह बात?... खैर जो भी हो ‌। सुनो तो ऐसे आगे जाकर कोई मतलब नहीं है।"


दूसरी तरफ,

शाम से जूही वीर प्रताप के घर का दरवाजा पीट रही थी।

" दरवाजा खोलो। मैंने कहा अभी के अभी दरवाजा खोलो। क्यों छुप रहे हो मुझसे? क्यों मुझे अवॉइड कर रहे हो? अगर गलती हुई है तो मुझे बताओ। दरवाजा खोलो।" उसने रोते हुए कहा लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं।

" देखो मैं तुम्हें आखिरी बार बता रही हूं। अगर तुम अभी बाहर नहीं आए। तो मैं कैंडल जला दूंगी। यह बहुत बड़ी वाली कैंडल है। मैं इसे बार-बार जलाऊंगी। जब तक तुम नहीं आओगे। मैं बिल्कुल तुम्हारी परेशानी नहीं समझूंगी कि तुम किस हालत में हो। मैं इस कैंडल को जलाने जा रही हूं। देख लेना, फिर तुम्हें मेरे सामने शर्मिंदा होना पड़ेगा। मैं कैंडल जलाने जा रही हूं।" जूही ने फिर से चिखते हुए कहा।
आखिरकार वो थक गई रोते-रोते वही वीर प्रताप के घर की सीढ़ियों पर बैठी, " क्यों? क्यों कर रहे हो ऐसा ? कभी-कभी आते हो ऐसे दिखाते हो जैसे मैं ही तुम्हारा सब कुछ हू और कभी कभी इस कदर छोड़ जाते हो जैसे मैं कुछ भी नहीं हूं। क्या चाहते हो ? इस तरह की अजीब बेचैनी मैंने आज तक कभी महसूस नहीं की।" कुछ सोचकर जूही वहां से उठी और होटल के अपने कमरे की तरफ आगे बढ़ी।


समय का तो कुछ पता नहीं। लेकिन जगह जूही के कमरे के बाहर का दरवाजा। वीर प्रताप न जाने कितनी देर से उस कमरे की दीवार पर सर रखे कुछ सोच रहा था। तभी अचानक उसे जूही का समन आया। उसके चेहरे पर मुस्कान खिल गई और बस 1 सेकेंड के भीतर वह जुही के कमरे के अंदर था।

" तुमने मुझे बुलाया ?" वीर प्रताप ने पूछा।

" हां। मुझे तुमसे कुछ जानना है ?" जूही।