लगभग सप्ताह भर से चुप हूं। मस्ती, मजाक, फालतू की बाते करना बिलकुल छोड़ दिया है। तय कार्य के अलावा दूसरा कोई काम नहीं अब पंसद नहीं। दफ्तर से रुम और किताब पढ़ने तक खुद को समेट कर रखा है। फिजूल चर्चाओं में खुद को शामिल करने से बचने लगा हूं। जिस दिन से चुप रहना शुरू किया, उसके पिछली रात शराब के उत्सव में खुद को जीवन के तनाव, दुख से उन्मुक्ति होता हुआ पाया था। स्वभाव में चंचलता थी, जो मुझे अप्रिय लगी थी। मुझे लगता है, चंचलता में वर्तमान को महसूस नहीं किया जा सकता। खुद को शराब पीते एक कोने से देखकर रहा था। उस वक्त मुझमें खुद में स्थिरता नजर नहीं आ रही थी। ऐसे में गंभीरता से रहना संभव नहीं था। इसलिए अगले दिन से मैंने चुप रहना शुरू किया। अब वर्तमान को करीब से महसूस करने लगा हूं। उथल-पुथल मन को शांत करने का सुख अपनी चुप होने से देखे पा रहा। अपनी चुप्पी से होने वाले अभाव और प्रभाव समझने लगा हूं । दूसरी ओर अचानक चुप हो जाने से मेरे करीब मेरे स्वभाव अप्रिय लगने लगा है। उन्हे शक है मैं फिर अतीत के गलतियों को दोहरा बैठा हूं,जिस कारण दुखी हूं। लेकिन अक्सर एक समय के बाद खुद को चुप शांत हुआ व्यक्ति के रूप में पाता हूं। हर बार चुप होने का कारण कोई दुख होता था। इसबार चुप्पी को मैने आंमत्रण दिया था। चुप्पी साधे कुछ दिन बीतने के बाद मुझे अचानक अपनी चुप्पी में किसी अज्ञात दु:ख का प्रवेश होना महसूस किया,जिसके आने से भीतर का सुख खोखला होने लगा था। चुप्पी के मायने बदलने लगे थे। वह दु:ख अतीत से आया हुआ था, मुझे उस चुप्पी का एहसास पुराना था। मेरे लिए चुप रहना चुप होने के रास्ते में चलना है। चुप ने अपना रास्ता कब बदल लिया और अतीत के दुख में पहुंच गया। यह मुझे पता ही नहीं चला। अतीत का दुख किसी चौराहे में मिला होगा, जिसके बाद वह जीवन में प्रवेश कर गया। अब मेरा चुप्पी सामान्य नहीं है, वह किसी दुख के कारण से है। चुप होने से ऐसा लग रहा मानो मेरे भीतर के लेखक का मुह ज्ञात दु:ख ने बंद कर दिया है। वह कुछ लिखकर मुझे बता सके वह दु:ख क्या है, जिसे मुझे खत्म करना है। ज्ञात दु:ख ने लेखक का हाथ भी बांध रखा है। वह लिखकर मुझे बताने में असमर्थ है। भीतर का लेखक चुप है, शायद इसलिए मैं भी चुप हूं। मेरा बोलना भीतर छिपे लेखक पर निर्भर करता है। मुझे विश्वास है, भीतर का लेखक जल्द ज्ञात दु:ख से बाहर लौट आएगा और मुझ तक पहुंचकर फिर जीवन जीना शुरु कर देगा। इस चुप्पी के पीछे जीवन में एक लेखक अधुरा है। चुप्प होना अब बंधक होने जैसा लगने लगा है। अब पहले के जीवन को जीने की लालसा से देख रहा है। चुप्पी में दुख के होने से ना जाने क्यो इसे अपनी समस्या कहूं या सच एक समय बाद मुझे अपने ही करीबी मतलबी लगते है। इस मतलबी शब्द में कई जगह खुद को भी देख पा रहा है।