कर्म फल Ravi maharshi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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कर्म फल

यह कहानी है दो दोस्तों अजय सिंह और विजय शर्मा की जो दोनों आपस में दोस्त तो थे लेकिन उनमें एक भी बात कोमन नहीं थी उनकी पसंद -नापसंद , इच्छा - अनिच्छा एक दूसरे के विपरीत थे। अजय सिंह जहां मस्ती में रहता तो वही विजय पूजा-पाठ और भगवान में ध्यान करता था उनकी जिंदगी में कुछ ऐसी घटनाएं घटी जिसके लिए वह किसे जिम्मेदार माने समझ में नहीं आ रहा था इसलिए किसी की सलाह पर पहुंच गए एक बाबा जी के पास बाबा जी ने जो बताया वह यह था कि यह .....

सब पुनर्जन्म के फल हैं तो क्या थी कहानी और क्या हुआ था उनकी जिंदगी में तो आइए चलिए शुरुआत करते हैं अपनी कहानी की :

विजय शर्मा जो एक सामान्य परिवार से था वह पढ़ाई लिखाई में ध्यान देता था और कोई भी गलत हरकत नहीं करता था उसी की क्लास में था अजय सिंह जोकि एक रियासती पुत्र था मतलब उनके पुरखे इस रियासत के प्रमुख हुआ करते थे आज भले ही उनके पास रियासत ना हो लेकिन फिर भी उसके पास रुपए पैसे धन जमीन जायदाद की कोई कमी नहीं थी।

अजय के पापा उसे बाहर शहर में पढ़ाना चाहते थे लेकिन अजय की मां का कहना था कि अजय हमारा एकलौता बेटा है इसलिए मैं नहीं चाहती कि वह मेरी आंखों से दूर हो और बार-बार समझाने के बाद भी अजय की मां नहीं मानी इसलिए अजय को यही गांव के ही स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा गया जबकि इसी स्कूल में विजय शर्मा भी पढ़ता था।

अजय कभी क्लास में या पढ़ाई में रुचि नहीं लेता था वह सिर्फ आवारागर्दी ही करते रहना चाहता था जबकि विजय हमेशा पढ़ाई लिखाई में बहुत ध्यान देता था और साथ ही धर्म कर्म में भी उसकी रूचि थी वह बचपन से ही मंदिर में जाता और भगवान के भजन गाया करता था साथ ही सभी से मिलजुल कर रहना विजय की आदत थी जबकि अजय कभी किसी से ढंग से बात तक नहीं करता था कई बार तो वह अपने स्कूल में अपने टीचर्स के सामने हो जाता
उनकी बात नहीं मानता या उनका विरोध करने लगता और कई बार तो उसने धमकी भी दी थी।

दसवीं क्लास की बोर्ड परीक्षा में विजय ने काफी मेहनत की जबकि अजय ने कभी ढंग से पढ़ाई नहीं की लेकिन परीक्षा सेंटर में प्रिंसिपल सर अजय के पिता के दोस्त थे इसलिए अजय को इतनी सहायता मिल गई कि वह आसानी से दसवीं बोर्ड परीक्षा पास कर सकें। इसी प्रकार से अजय ने 12वीं क्लास भी पास कर ली और अब कॉलेज में जाने लगे कॉलेज में भी अजय का वही तरीका था जो स्कूल में था वहीं छात्रों से लड़ना झगड़ना रुपए पैसे खर्च करना और अब तो अजय को नशे की लत लग चुकी थी वह नशे की गिरफ्त में था और साथ ही वह बुरी संगतौ में पडकर कोठे पर भी जाने लगा था जबकि विजय अभी भी मेहनत से पढ़ाई करता और उसने घर खर्चे निकालने के लिए बच्चों को ट्यूशन करवाता था।

कॉलेज में अजय बुरे लड़के के रूप में प्रसिद्ध हुआ और विजय अच्छे और भले लड़के के रूप में लेकिन फिर भी कॉलेज में सबसे ज्यादा चर्चा अजय की ही होती थी विजय के बहुत ही कम दोस्त बने जबकि अजय पर लगभग पूरी कॉलेज जान छिड़कति थी क्योंकि वह बहुत पैसे लूटाता था।

कॉलेज पूरी होने के बाद विजय शर्मा एक कंपनी में 10 / 15 हजार की नौकरी करता था जबकि अजय एक बड़ी कंपनी का मालिक बन बैठा ।

एक बार अजय ने एक पुरानी हवेली खरीदी ताकि उसे तोड़कर वह अपना आलीशान घर बना सके जबकि विजय उसी हवेली की ईंट और पत्थरों को अपने घर बनाने में काम में लेना चाहता था क्योंकि यह बाजार से थोड़ा सस्ते थे हालांकि यह एक पुरानी हवेली के थे लेकिन फिर भी वह बाजार से सस्ता था जबकि विजय की बाजार से खरीदने की हिम्मत नहीं होती थी क्योंकि उसके खर्चे तो नॉर्मल थी लेकिन उसकी कमाई बहुत ही कम होती थी।

हवेली टूटने पर विजय उनकी ईंटो और पत्थरों को निकालने में जुट गया तभी एक भयानक सर्प आया और उसने विजय को डस लिया इससे विजय को हॉस्पिटल में एडमिट होना पड़ा और उसके पैसे अलग से लगे यानी विजय जहां बचत करना चाहता था अब उसके काफी पैसे लग गए। और कई दिनों तक हॉस्पिटल में भर्ती होने के कारण वह अपनी नौकरी पर भी नहीं जा पाया वह नुकसान और अलग से हुआ।

उसी हवेली की एक दीवार में एक लोटा सोने से भरा हुआ निकला उसमें सोने की 5 /7 बड़ी-बड़ी मोहरे थी इस तरह से एक अच्छे और सच्चे भले आदमी को तो सांप ने डसा जबकि एक बुरे आदमी जो कि सभी प्रकार का नशा करता था जो कि अपहरण लूट बलात्कार जैसे कई कामों में लिप्त था फिर भी उसे सोने से भरी मोहरे मिली।

कुछ दिनों बाद उस गांव में एक बड़े बाबा जी पधारे जो कि काफी दिव्य पुरुष लग रहे थे विजय के मन में कुछ सवाल थे वह उन्हें पूछने के लिए उस बाबा जी के पास चला गया और बाबा से जी से पूछा कहा कि

बाबा जी मैंने अपनी जिंदगी में कभी कोई गलत काम नहीं किया कभी किसी को अपशब्द नहीं कहा कभी किसी को गाली नहीं निकाली कभी चोरी डकैती लूटपाट जैसा कुछ नहीं किया पराई स्त्री को कभी गलत नजर से नहीं देखा ना कभी गलत सोचा मैंने अपनी जिंदगी में कोई भी ऐसा काम नहीं किया जिसे लोग गलत कहते हो या हमारा समाज गलत मानता हो लेकिन फिर भी मैं एक सामान्य गरीब परिवार में हूं और मुझे सांप ने डसा ।

जबकि मेरा दोस्त उसने वह सब बुरे और गलत कार्य किए हैं जिससे समाज में बुरा और गलत माना जाता है लेकिन फिर भी उसे सोने से भरी मोहरे मिली इसका क्या मतलब है महात्मा जी क्या कर्म का कोई महत्व नहीं होता।

महात्मा जी ने अपने दिव्य दृष्टि से ध्यान लगाया और उन्हें कुछ बातों का पता चला उसके बाद उन्होंने अपनी आंखें खोली और विजय को बताना शुरू किया कि बेटा सबसे बड़ा महत्व कर्म का ही होता है और तुम जो कर्म करते हो उसका फल तुम्हें अवश्य मिलता है।

विजय ने कहा लेकिन बाबा जी मैंने तो अपने जन्म लेने के बाद से कभी कोई गलत काम किया ही नहीं फिर क्यों मैं अभी तक गरीब हूं और मुझे ही सांप ने डसा जबकि मेरा दोस्त हमेशा बुरे गलत कर्म करता है फिर भी उसे सोने की मोहरे मिलती है।

बाबा जी ने बताया कि भले ही तुमने इस जन्म में कोई गलत कार्य नहीं किया हो लेकिन पिछले जन्म में जो तुमने कर्म किए थे उनका कर्म फल भोगना बाकी रह गया इसलिए तुम्हें यह जन्म मिला अब ध्यान से सुनो पिछले जन्म में भी तुम और तुम्हारा दोस्त दोनों थे तुम एक बहुत बुरे व्यक्ति थे जो कि तुम्हारा दोस्त बहुत ही भला आदमी था तुम बहुत बड़े सूदखोर थे जो जनता से सूद के बदले उनका घर , परिवार , खेत , मकान , जमीन जायदाद तक ले लिया करते थे कई बार तुमने उनके परिवार के लड़कों को दासो की तरह इस्तेमाल किया।

तुम बचपन में बहुत शरारती थी इसलिए जो भी कीट, पतंगे, मक्खी , कीड़ा ,मकोड़ा होते थे उनको तुम बीच से काट दिया करते थे और यह देखते थे कि जिस भाग में जीवन नहीं है वह कैसे चलता है कुछ समय तक वह दोनों ही चलते रहते थे और फिर तड़प तड़प कर मर जाते थे तुम्हें यह सब देखने पर बहुत आनंद मिलता था ।

जबकि तुम्हारा दोस्त जो था वह सभी की भलाई किया करता था और गरीबों को दान दक्षिणा दिया करता था एक भयानक बाढ़ में तुम दोनों की अकाल मृत्यु हो गई जिसके लिए तुम्हें कर्म फल भोगने के लिए इस धरती पर दोबारा जन्म लेना पड़ा ।

तुम्हारे कर्म ऐसे थे कि इस जन्म में तुम्हारे दोनों पैर कटने थे लेकिन जन्म से तुमने बहुत अच्छे कर्म किए और उस प्रभाव के कारण आज तुम्हें केवल एक सर्प ने डसा है और कुछ दिनों के बाद तुम बिल्कुल स्वस्थ हो गए हो गये तुम्हारे दोस्त के कर्म इतने अच्छे थे कि उसे कई लाख स्वर्ण मुद्राएं मिलने थी लेकिन उसके बुरे कर्मों के कारण वह घटकर आज बहुत कम रह गई ।

इसलिए मेरे बेटे कर्म का हमेशा महत्व होता है कर्म फल हमेशा भोगना पड़ता है इसलिए हमेशा अच्छे कर्म करो।
धन्यवाद ।।