एक झोंका हवा का Rama Sharma Manavi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

एक झोंका हवा का

उम्र के सातवें दशक का प्रारंभ, एकसार उबाऊ दिनचर्या, न उत्साह,न उमंग,बस जीवन गुजारा जाता है।जीना किसे कहते हैं काफ़ी पहले ही भूल जाते हैं हम जिंदगी की जद्दोजहद में।कुछ ऐसी ही हमारी जिंदगी गुजर रही थी।बेटा शानदार कॅरियर की ख्वाहिश में मेट्रो सिटी में सपरिवार जा बसा था अभी 2-3 वर्ष पहले औऱ ये हम भी अच्छी तरह जानते हैं कि न हम उनके साथ एडजस्ट कर सकते हैं न वे हमारे साथ,बस साल में एकाध बार मिलना हो जाता है।

मैं तो स्वीकार करती हूँ कि अगर आज की पीढ़ी सिर्फ वर्तमान में जीना चाहती है तो हमारी पीढ़ी के लोग बस भविष्य की ही सोचते रह जाते थे, कुल मिलाकर परिणाम यह कि संतुलन का अभाव हमेशा रहता है।अब हम जिम्मेदारियों से मुक्त हैं तो पति को बाहर जाने की इच्छा ही नहीं होती।पहले समय निकालना नहीं चाहते थे या निकल नहीं पाता था कभी मैं जान नहीं सकी।

सुबह उठकर मैं चाय बनाती थी, जिसे मनुज पेपर पढ़ते हुए पीते थे और मैं अपनी सोचों में भटकते हुए।मनुज उस पेपर को दो घण्टे में समाप्त करते थे, जिसे मैं 10 मिनट में खत्म कर देती थी वह भी बाद में क्योंकि मुझे पेपर में कुछ भी पढ़ने योग्य नजर नहीं आता था एक-दो बातों को छोड़कर, बस वही दुर्घटना, हत्या, राजनीति… इन सबसे मुझे बेहद वितृष्णा होती थी।फिर कामवाली साफ-सफाई एवं बर्तन कर के जब चली जाती थी तो मैं अपना स्नान-पूजा निबटाकर नाश्ते-खाने की तैयारी में लग जाती थी, बीच-बीच में मनुज को टोकती रहती थी कि नहा लो,नाश्ते के लिए देर हो रहा है।फिर नाश्ता करने के बाद मनुज मोबाइल में व्यस्त हो जाते थे और मैं भी एक-दो रिश्तेदारों एवं सखियों से थोड़ी बातें कर लेती हूँ, फिर दोपहर का खाना, थोड़ी देर आराम, फिर शाम की चाय,थोड़ी देर निकट के पार्क में टहलना,मनुज का सोने तक न्यूज चलना,मेरा मोबाइल पर एकाध सीरियल देखना,फिर रात का खाना….औऱ एक दिन का गुजर जाना।घर में पसरे सन्नाटे की आवाज को बस या तो मोबाइल की रिंग तोड़ती है या टीवी की आवाज़।

मैंने मनुज से कई बार कहा कि ऊपर के दो कमरे के पोर्शन को किराए पर उठा दो,लेकिन उन्होंने मेरी कभी कोई बात मानी है जो इसे मानते,कह दिया किराएदारों को झेलना मेरे बस की बात नहीं है।अभी दो महीने पहले बेटे ने बताया कि उसका एक मित्र उत्साह उसी शहर में स्थानांतरित हुआ है,आप उसे ऊपरवाला हिस्सा रहने के लिए दे दीजिए।मनुज ने ना-नुकुर किया था किंतु बेटे ने इजाजत नहीं माँगी थी,बताया था।अभी एक माह पूर्व ही उत्साह शिफ्ट हुआ है, अभी वह अविवाहित है।सामान्य लोगों की भांति हमें भी यह जानने की उत्सुकता थी 36 वर्ष की उम्र तक अविवाहित रहने के कारण को जानने की,बेटे से पूछा तो उसने कह दिया कि उसी से पूछ लीजिए, वह काफी फ्रैंक है।

खैर,अपने नाम को सार्थक करता उत्साह वाकई एक सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर बिंदास युवा है।एक माह में ही उसने कई मित्र बना लिए हैं,कुछ कलीग्स, कुछ अन्य।सप्ताहांत में कभी वे हमारे घर में गेदरिंग करते हैं, बाहर से खाने का ऑर्डर करते हैं, गप्पें मारते हैं, डांस करते हैं औऱ कभी बाहर एंज्वॉय करते हैं।मनुज तो झुंझलाते हैं लेकिन मुझे घर की एकरसता टूटने से बेहद खुशी महसूस होती है।ऐसा प्रतीत होता है जैसे एक ताजे हवा का झोंका मन में ऊर्जा का संचार कर रहा है।कभी उत्साह ऑफिस से आकर हमारे पास भी देर तक बैठता है, उस दिन मनुज से उसकी राजनीति, खेल एवं अन्य विषयों पर घण्टों बातें होती हैं, उस दिन मनुज उसे साग्रह डिनर करवातें हैं।मैं मन ही मन मुस्कराती हूँ कि ये वही मनुज हैं, उत्साह के आने से पहले ही मुझे वार्निंग दे दी थी कि उससे बहुत घुलने-मिलने की जरूरत नहीं है।

एक दिन उत्साह ने मनुज से कहा कि अंकल साल में कम से कम दो बार कहीं बाहर घूमने जाना चाहिए आप लोगों को।मनुज ने कहा कि अब इस उम्र में बाहर निकलने का मन ही नहीं करता।

उत्साह ने समझाया कि आप जा कर देखिए, जिंदगी को आप जितना बोझिल समझेंगे, वह उतना ही आपको बोझ तले दबा देगी।फिजूलखर्ची नहीं है यह।हर चीज की अपनी अहमियत होती है, बस थोड़ी प्लानिंग एवं मैनेजमेंट की जरूरत होती है।

मनुज ने अविलंब अपने दिमाग में घुमड़ते प्रश्न को दाग दिया कि फिर तुम विवाह क्यों नहीं कर रहे हो,वह भी तो समय से आवश्यक है।

उत्साह ने मुस्कराते हुए रिद्धि की फ़ोटो मोबाइल में दिखाते हुए बताया,"हम 4 साल से रिलेशनशिप में हैं और अब शीघ्र ही विवाह करने वाले हैं।हम पहले एक-दूसरे को अच्छी तरह समझना चाहते थे, अब हम गृहस्थी की जिम्मेदारी उठाने को तैयार हैं।घर एवं बच्चे के फ्यूचर के लिए सिक्योरिटी मनी एकत्रित कर लिया है, जिससे अब हमें अपनी ख्वाहिशों को पोस्टपोंड नहीं करना होगा।

मैं उनकी समझदारी की कायल हो रही थी।उस दिन उत्साह के जाने के पश्चात मनुज कुछ अनमने से लग रहे थे, मैंने पूछा भी तो "कुछ नहीं'"कहकर टाल दिया।एक सप्ताह पश्चात मुझे आश्चर्यचकित करते हुए कहा कि पैकिंग कर लो,घूमने चलते हैं।मैंने नहीं पूछा कि कहाँ जाना है, क्योंकि मेरे लिए मनुज के साथ कहीं बाहर जाना ही अत्यधिक प्रसन्नता का कारण था।एक सप्ताह ऋषिकेश, मसूरी घूमकर आने के बाद मन इतना प्रफुल्लित है कि शरीर की थकान का अहसास ही नहीं हो रहा है।

अब हर पन्द्रह-बीस दिन में हम बाजार जाने लगे हैं।एक दिन मेरी तबियत थोड़ी भारी थी तो मेरे मना करने के बावजूद मनुज ने स्विगी से खाना ऑर्डर किया।हर सप्ताह किसी मित्र या रिश्तेदार के यहाँ या तो मिलने जाते हैं या अपने घर बुलाते हैं, कुछ खाना बाहर से मंगाते हैं,कुछ घर पर बना लेते हैं।अब जिंदगी उत्साह से भरी हुई प्रतीत होती है।उत्साह के आने के बाद इन दो सालों में जैसे जिंदगी मुस्कराने लगी है, मैं तहे दिल से उसकी शुक्रगुज़ार हूँ कि उसने हमें जिंदगी का वह फ़लसफ़ा समझा दिया जो हम अधिकतर उम्र निकालने के बाद भी नहीं समझ सके थे।अब मुझे अपने चारों तरफ खुशबू से भरा हुआ ताजा हवा का झोंका चलता हुआ महसूस होता है, जिसे मैं गहरी साँसों के साथ अपने फेफड़ों में भर लेती हूँ और ऊर्जावान महसूस करती हूँ।

*******