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अरेंज मैरिज भी आसान नहीं

मैं आजकल अपने बड़े बेटे के विवाह के लिए प्रयासरत हूँ।मेरा बड़ा बेटा सरकारी बैंक में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर अभी दो वर्ष पूर्व पोस्टेड हुआ है।अब मेरा बेटा है तो मुझे तो सर्वगुण सम्पन्न ही प्रतीत होगा,किंतु परिचितों का भी कहना है कि देखने में वह ठीक-ठाक है।सिगरेट,गुटका,शराब जैसे किसी नशे का आदी नहीं है।हमारा चार पोर्शन का मकान है, दो पोर्शन हमने किराए पर उठा रखा है।छोटा बेटा भी बेहद अच्छे पद पर सरकारी नौकरी में नियुक्त है।कुछ किस्मत की बात थी कि छोटा बेटा पहले ही सेलेक्ट हो गया था।

अभी डेढ़ साल पहले मैं बड़ी खुश थी,जब बेटे से पूछा था कि अब तुम्हारी शादी की उम्र हो गई है, सरकारी नौकरी भी लग गई है, अगर कोई लड़की पसंद हो तो बता दो।असल में पहले उसकी जिद थी कि सरकारी नौकरी लगने के बाद ही विवाह करूंगा।तो आज के युग को देखते हुए हम मानसिक रूप से लव कम अरेंज मैरिज के लिए पूर्णतया तैयार थे।लेकिन जब उसने कहा कि ठीक है,मैं विवाह के लिए तैयार हूँ, आप लोग लडक़ी देख लो।फिर तो मेरे मन में लड्डू फूटने लगे कि अब हम बड़े ठसक से लड़कियां देखने जाएंगे और अपनी पसंद से बहू खोजकर लाएंगे।

वो कहते हैं न जबतक ऊँट पहाड़ नहीं देखता….।अब समझ में आया कि आज के युग में बेटे का विवाह भी आसान नहीं है।हमारी कोई मांग भी नहीं है।वैसे,इतने भी दरियादिल नहीं हैं कि जो सामने से प्राप्त हो उसे अस्वीकार कर दें।वैसे अरेंज मैरिज में यह एक मजबूरी भी होती है, क्योंकि हर तरह से व्यवस्थित परिवार यदि आदर्श में दहेजरहित विवाह की बात कर दे तो लोग तुरन्त शंकाग्रस्त हो जाते हैं कि परिवार या लड़के में जरूर कोई कमी होगी।

आजकल अब शर्त सिर्फ़ वर पक्ष के लोग नहीं रखते,सिर्फ़ लड़कों के पास पसंद-नापसन्द का अधिकार नहीं होता, बल्कि कन्या एवं कन्या पक्ष के लोग भी अपनी शर्त पूरी मजबूती से रखते हैं।

परिचितों एवं रिश्तेदारों के द्वारा तमाम रिश्ते आते हैं, साथ ही आजकल मेट्रीमोनियल के द्वारा चयन का क्षेत्रफल काफी विस्तृत हो जाता है।खैर, बायोडाटा आने प्रारंभ हो गए,कुछ तो बड़े अजीबोगरीब होते।ऐसा प्रतीत होता कि ईश्वर ने सारे गुण इसी कन्या को प्रदान कर दिए।एक बायोडाटा में स्वयं कन्या ने अपनी डिमांड लिख दी थी कि मैं आज़ाद ख्याल की युवती हूँ, मेरे कहीं आने-जाने पर, पहनने पर,मायके वालों,सहेलियों से मिलने पर कोई रोक-टोक नहीं होगा।किसी भी रीति-रिवाज को मानने पर मजबूर न किया जाय।अब कोई उससे पूछे कि फिर विवाह करने की आवश्यकता ही क्या है?

अधिकांश बायोडाटा किसी न किसी कारण से नापसंद हो जाते।कहीं कन्या की शिक्षा कम होती,कहीं सौंदर्य में कमी होती,कहीं लम्बाई कम होती,कभी परिवार में समस्या नजर आती,कभी सब सही प्रतीत होता तो जन्मपत्री नहीं मिलती।इतनी बाधाओं को पार करने के पश्चात दो-तीन कन्याएं पसंद आईं तो उन्हें देखने तक बात पहुंची।

प्रथम कन्या ही हमें लगभग पसंद आ गई, अतः लड़के-लड़की को कुछ देर बात करने को कहकर सभी वहाँ से हट गए।कुछ देर में ही कन्या ने कह दिया कि मैं अभी विवाह नहीं करना चाहती हूँ अपितु जॉब करना चाहती हूँ,लेकिन घरवाले जिद कर रहे हैं, इसलिए आप मना कर दीजिए।क्रोध तो बेहद आया था कि फिर हमें परेशान करने की क्या आवश्यकता थी,फिर बुराई भी हम ही मोल लें।लेकिन फिर यह सोचकर शांत हो गए कि बाद में समस्या आए उससे बेहतर है कि पहले ही क्लियर हो गया।अब भगवान जाने वाकई जॉब का ही मामला था या कुछ और।

दूसरी जगह अभी देखने की तिथि निर्धारित भी नहीं हो पाई थी कि कन्या के बड़े भाई ने अपनी शर्तें रख दीं कि आपलोगों को बारात लेकर हमारे शहर आना होगा,दहेज हम नहीं देंगे,लेकिन कन्या को जेवर आपको पूरा देना होगा… इत्यादि...।अब इतनी बातें सुनकर हम घबरा गए क्योंकि क्या पता कल को दहेज के आरोप में हमें नाकों चने चबवा दें,क्योंकि कन्या का भी पुलिस में था।

कई घटनाएं वैसे ही डराती रहती हैं।एक परिचित की बहू ने शादी के 4-5 माह के अंदर ही इतना क्लेश मचा दिया कि सास-ससुर उसे अलग करने को तैयार हो गए, लेकिन वह स्वयं घर छोड़ने की बजाय अपने ही बनाए मकान से उन्हें ही निकालने की जिद पर अड़ी थी,वरना दहेज प्रताड़ना के लिए जेल पहुंचवाने की धमकी दे रही थी।थक-हारकर वे ही अपनी बेटी-पत्नी के साथ किराए के मकान में चले गए और अतिशीघ्र बेटी का विवाह इस भय से कर दिया कि कहीं बहू की किसी खतरनाक चाल से बेटी की जिंदगी न खराब हो जाय।

एक घटना में नवविवाहिता वधू 10-15 दिन बाद अचानक अपने सारे ज़ेवर लेकर चंपत हो गई।घबराए ससुरालियों ने जब मायके वालों से बात किया तो उल्टे उनपर ही दहेज एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराकर बेटी को गायब करने का आरोप लगा दिया।वो तो पुलिस में उनकी अच्छी जान-पहचान थी अतः एक माह के भीतर ही बहू को बरामद कर लिया,तब ज्ञात हुआ कि वह जिससे प्यार करती थी, उससे कोर्ट मैरिज कर चुकी थी लेकिन मायके वाले उस अंतरजातीय विवाह को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे।उसके पति को जान से मारने की धमकी देकर उसका विवाह जबरन करा दिया था।छीछालेदर तो वैसे ही काफी हो चुकी थी, परिचित के बेटे ने मामले को वहीं समाप्त कर दिया था, क्योंकि विवाह तो वैसे ही निरस्त हो गया था।लेकिन इस घटना के सदमें से उसने दुबारा विवाह न करने की कसम खा ली।तमाम डराने वाली घटनाएं सुनने में आती रहती हैं।हालांकि अच्छी बहुओं की जानकारी भी कम नहीं है,जो उम्मीद की किरण दिखाती रहती है।एक ऐसी ही परिचित बहू की बहन को मैं बहू बनाना चाहती थी लेकिन जन्मपत्री न मिलने के कारण मन मसोसकर रह गई।भले ही मैं अंधविश्वासी नहीं हूँ, किंतु बात जब अपने परिवार की आती है तो हम महिलाएं थोड़ी पुरातनपंथी हो ही जाती हैं।अब लव मैरिज हो तो कुछ सोच-विचार की गुंजाइश ही नहीं होती है।

एक सरकारी बैंक में कार्यरत कन्या ने अपने भाई से कहलवाया कि वह चूंकि जॉब करती है इसलिए वह घर के काम बिल्कुल नहीं करेगी।अब भला कौन लड़केवाला पहले से इस शर्त को स्वीकार करेगा,जबकि कामवाली तो सभी वैसे ही रखते हैं, फिर सभी जानते हैं कि आजकल की युवती को घर के कामों में अधिक इंटरेस्ट नहीं होता है।

आए दिन लड़की वाले आते रहते हैं, अपने स्टेटस के अनुसार ख़ातिरदारी भी अच्छी करनी पड़ती है।कुछ विद्वेषी पीछे हमारी बुराई करते हैं कि हमारे नखड़े बड़े हैं, इसीलिए लड़की पसंद नहीं आ रही है लेकिन जो अच्छे से हमें जानते हैं,उन्हें पता है हमारी परेशानी।खैर, दुनिया की तो छिद्रान्वेषण की आदत है,बेटे की पूरी जिंदगी का सवाल है, इसलिए हमें कोई जल्दबाजी नहीं है।जिंदगी ही जुआ है तो उसका एक संस्कार विवाह भी अपवाद कैसे हो सकता है।एक अच्छा, समझदार जीवनसाथी का मिलना लॉटरी लगने जैसा होता है, हालांकि बिना सामंजस्य के जिंदगी नहीं गुजारी जा सकती।क्योंकि दो भिन्न परिवेश के व्यक्तियों की सोच,जीवनशैली,इच्छाओं में समानता कम ही होती है, बस यदि समझदारी हो तो "थोड़ा तुम्हारा थोड़ा हमारा" की सोच को क्रियान्वित कर जीवन को सुखद बनाया जा सकता है।खैर, खोज जारी है, जब समय एवं भाग्य अनुकूल होगा तो हमें सफलता प्राप्त हो ही जाएगी।कुल मिलाकर दारोमदार यह है कि अरेंज मैरिज कतई आसान नहीं होती।

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