हर साल जन्मदिन, मैरिज एनिवर्सरी आता है और चला जाता है।घर में शाम को कुछ स्पेशल यथा छोले- भटूरे,चीले, डोसे या इसी तरह कोई एक चीज बना लेती हूँ और पति कोई मिठाई ले आते हैं।वैसे काफी सालों से मैं भी नया कपड़ा जरूर पहनती हूँ और पति को भी पहनाती हूँ उनके जन्मदिन औऱ मैरिज एनिवर्सरी पर,बस हमारा स्पेशल डे हो गया सेलिब्रेट।अब बाहर का खाना झिलता भी नहीं है, उम्र के साथ चिकनाई, स्पाइसी खाना हाजमा बिगाड़ देता है।फिर डायबिटीज, ब्लड प्रेशर इत्यादि इस उम्र की सामान्य बीमारियां होती हैं, जिनसे अधिकतर लोग ग्रस्त रहते हैं।फिर पति को कभी भी विशेष शौक रहा भी नहीं था बाहर जाकर खाने-पीने का।अब तो यह सब फिजूलखर्ची भी लगने लगी है।लेकिन कभी-कभी जिंदगी में रोजाना के दिनचर्या से कुछ अलग करना सुखदायक होता है।
अब मैं यह तो अच्छी तरह जानती थी कि मेरे पति तो मेरा साथ देने से रहे।बेटा भी बाहर रहता है, वैसे भी इस मामले में वह भी अपने पिता पर गया है,किशोरावस्था के बाद से दोस्तों के साथ भी अपना जन्मदिन सेलिब्रेट नहीं करता था,बस घर में मैं ही कुछ खाने-पीने का बना देती थी, यहाँ तक कि केक काटने से भी मना कर देता था, नया कपड़ा पहनना तो बड़े दूर की बात थी।जब उसकी इक्कीसवीं बर्थडे थी तो मैं उसके पास जाना चाहती थी लेकिन उसने एक्ज़ाम निकट होने के कारण मुझे आने से मना कर दिया।
इस बार मेरा पचासवाँ जन्मदिन था,इसलिए मैंने हर बार से कुछ अलग करने का निश्चय किया। किसी का साथ ढूढ़ने के बजाय मैं अकेले निकल पड़ी अपना जन्मदिन मनाने के लिए,वैसे भी बाजार से लेकर अन्य कार्य अकेले करने की आदत पड़ी हुई है।खैर, नया सूट तो मैंने पहले ही सिलवा रखा था।पति के ऑफिस जाने के पश्चात तैयार होकर सबसे पहले मंदिर में दर्शन करने गई,ततपश्चात मैं फ़िल्म देखने गई।इत्तेफाक से एक थ्री डी हॉलिवुड फ़िल्म हिंदी डबिंग वाली लगी हुई थी, जिसे मैं देखना चाहती थी।फ़िल्म देखने के बाद एक रेस्टोरेंट में गई,वहाँ पहली बार राज कचौड़ी खाया,बड़ी तारीफ़ सुनी थी लेकिन मुझे पसंद नहीं आया,बिना टेस्ट किए किसी भी चीज का स्वाद तो पता नहीं चलता,फिर पसंद अपनी-अपनी।अब मैं कभी भी इस डिश को नहीं खाने वाली,इस दिन को याद रखने के लिए दो-तीन सेल्फी भी ली।
वहाँ से निकलकर कुल्फी सेंटर पर एक कुल्फ़ी खाई औऱ घर के लिए दो कुल्फ़ी पैक कराकर ले गई।हमारे छोटे से शहर में इससे अधिक औऱ कुछ नहीं किया जा सकता था।शाम को एक सरप्राइज मेरी सबसे छोटी बहन ने केक भेजकर दिया।आजकल ऑन लाइन कहीं से भी कुछ ऑर्डर करने की सुविधा उपलब्ध है।रात को घर पर हमेशा की तरह स्पेशल में सूजी के चीले बनाए,पतिदेव मेरी पसंद के सफेद रसगुल्ले ले आए।भले ही "एकला चलो रे" के तर्ज पर मैंने पूरा दिन अकेले ही अपना बर्थडे सेलिब्रेट किया लेकिन मन प्रसन्न था।वह मेरी जिंदगी का सबसे बेहतरीन एवं यादगार जन्मदिन था।मेरा मानना है कि जो भी है उसपर कुढ़ने की बजाय उसी में खुशी ढूंढ़ लेना ही समझदारी है।सबकी पसन्द-नापसंद, ख्वाहिशें, प्राथमिकता भिन्न -भिन्न होती है।वैसे तो थोड़े-थोड़े एडजस्टमेंट सभी करें तो कोई मुश्किल नहीं है लेकिन अक्सर लोग कर नहीं पाते हैं।इसलिए छोटी-छोटी खुशियां खुद ही खोज लेनी चाहिए।
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