मैं फिर आऊंगी - 3 - वो... आए हैं Sarvesh Saxena द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मैं फिर आऊंगी - 3 - वो... आए हैं

दो साल पहले….

"अरे जल्दी करो माँ, सब वहां आ गए हैं, हम ही लोग सबसे लेट पहुंचेंगे", सुभाष ने कार निकालते हुए कहा |
मां - "बेटा बस आई.. हनुमान अष्टक मंदिर का प्रसाद और फूल रख लूँ" |।
यह कहकर मां सुभाष के साथ जल्दी से गाड़ी में आकर बैठ गई और दोनों आई क्लीनिक पर पहुंच गये
आज सुभाष के आई क्लीनिक का उद्घाटन है, काफी सारे लोग आए हैं, पूजा होने के बाद सबको प्रसाद और मिठाई बांटी गई | वो आज बहुत खुश था क्योंकि आखिरकार उसका सपना पूरा हो गया, धीरे धीरे काफी लोग पूजा के बाद चले भी गए, तभी निहाल दौड़ता हुआ अंदर आया और बोला," सर जल्दी बाहर चलिए, वो आए हैं..." |

सुभाष ने हंसते हुए कहा "ऐसा कौन आ गया जो तू इतना हांफ रहा है, मुझे अभी बहुत काम है इसलिए तुम लोग देख लो या फिर उन्हें अंदर भेज दो "

निहाल ने फिर जोर देते हुए कहा "अरे सर उन्हें मैं क्या आप ही देख लो चल के इतना आसान नहीं होना हैंडल करना, वो ऐसे नही मानेंगे"
सुभाष बाहर आया तो उसके आते ही, "हाय हाय.. डॉक्टर साहब नमस्ते" |
किन्नरों के एक झुंड ने उसको घेर लिया |
किन्नर 1 - "हाय हाय डॉक्टर साहब, बड़ा अच्छा हुआ आपने यहां आंखों का अस्पताल खोला |
किन्नर - 2 "अरे बड़ी जरूरत थी यहां पहाड़ों पर, बड़ी दुआ मिलेगी आपको |
किन्नर - 3. "हम बधाई देने आए हैं, अरी सखियों... नाचो- गाओ, अरे अब्दुल खड़ा क्यों है रे, ढोलक क्यों नहीं बजाता, देख डॉक्टर साहब हमारा नाच देखेंगे "|
सारे किन्नर ताली बजा बजा के नाचने गाने लगे |
सुभाष ने सबको रोकते हुए कहा "अरे बस करो आप लोग, यह लो पांच सौ रुपये और जाओ यहां से |
किन्नर 1-" हाय हाय.. यह क्या डॉक्टर साहब पांच सौ रुपए तो हम भीख में भी नहीं लेते, क्या रे यह पांच सौ का नोट तू ही रख, हमें तो दस हजार एक चाहिए" |
किन्नर 2-" अरे डॉक्टर साहब कुछ तो सोचो इत्ता बड़ा क्लिनिक खोला है, अरे हमें दोगे तो दुआएं ही पाओगे" |
यह कहते ही सारे किन्नर एक साथ ताली बजाने लगे और सुभाष के चारों ओर घूमने लगे पर वो नहीं माना और बोला," तुम लोगों को एहसास भी है कितनी मेहनत लगती है पैसे इकट्ठा करने में लेकिन तुम लोग क्या जानो, बस यहां वहां नाच के लोगों को लूटते हो, मेहनत करना तुम क्या जानो" |
यह सुनकर किन्नर गुस्सा गए और बोले, "हाय हाय, इसके तेवर तो देखो, हम तो साहब साहब कर रहे हैं और ये…, हम तो बड़े आराम से मांग कर खाते हैं अपनी जिंदगी बड़े आराम से जी रहे हैं, तू भी क्यों नहीं बन जाता हमारे जैसा, आजा हमारी टोली में, वैसे भी तेरे जैसे बांके मर्द की जरूरत है हमारी टोली में, अरे नहीं देना तो मत दे रे, बेकार की बातें मत कर,

सखियों चलो यह तो हमारी ही तरह है बेचारा... इसके पास भी कुछ नहीं है", हा हा हा.." सारे किन्नर जोर जोर से ताली पीटने लगे और हंसते हुए जाने लगे, सुभाष का दिमाग गुस्से से फटा जा रहा था लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और वो लोग भी बड़बड़ाते हुए चले गए |

सुभाष का कुछ ही महीनों में बड़ा नाम हो गया और क्लीनिक बहुत अच्छा चलने लगा|