Mai fir aaungi - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

मैं फिर आऊंगी - 2 - अतीत की आहट

रात के करीब दो बजे सुभाष को कुछ आहट सी सुनाई दी जो मां के कमरे में हो रही थी | सुभाष दौड़कर मां के कमरे में आया तो देखा वो बिस्तर की बजाय जमीन पर पेट के बल लेटी थी और उनके हाथ में चाकू था, जिसे वह जमीन पर बार-बार मार रही थी, उस चाकू के जमीन पर टकराने से ऐसी तेज आवाज निकल रही थी जैसे कोई लोहे पर हथौड़े मार रहा हो, इस आवाज से सुभाष का सर फटने सा लगा, वह घबरा गया और बोला, "क्या हुआ माँ"? उसने डरते डरते मां को उठाया तो वो एकदम से बोल पड़ी, "बेटा मैं जा रही हूं…" |

यह कहकर माँ जी ने तुरंत ही अपनी गर्दन पर चाकू रखा और हंसते-हंसते अपनी गर्दन काट ली पर वो कटने के बाद भी हंसती रही, सुभाष डर कर सीधा अपने कमरे में आ गया, उसने जल्दी से दरवाजे बंद किए और बिस्तर पे लेट गया तो देखा उसके बिस्तर पर कोई और लेटा है, उसने कांपते हुए हाथों से चादर हटाई तो चीख पड़ा क्योंकि बिस्तर पर और कोई नहीं खुद सुभाष था, जिसकी दोनों आंखें गायब हो चुकी थीं और आंखों के गढ्ढों से खून बह रहा था, सुभाष कुछ और कहता तभी बिस्तर पर लेटा हुआ सुभाष चिल्लाने लगा, "रे डॉक्टर आजा ना, मेरा इलाज करना.. मेरी आंखें.. हाहा हाहा हाहा.. मेरी नहीं.. तेरी आंखें …"
सुभाष डर कर जोर जोर से चिल्लाने लगा.. तभी
"क्या हुआ बेटा.. क्या हुआ, कोई सपना देखा क्या ? मां बोली |
सुभाष माँ.. माँ तु. तुम ठीक हो मां.. ओ माँ", सुभाष बच्चों की तरह मां के गले लग कर रोने लगा और सारी बात बताई |

अगले दिन सुबह वो आई क्लीनिक गया और उस मरीज के बेड पर देखा तो वो नहीं था, निहाल से पता चला कि वह शाम को ही अस्पताल से चला गया | निहाल ने बहुत मना किया लेकिन वह नहीं माना, सुभाष को कुछ अजीब लगा, उसने मन ही मन कहा उस मरीज को तो अभी हॉस्पिटल में दो दिन और रुकना चाहिए था खैर छोड़ो |

शाम हो चली थी अमित भी जा चुका था पर सुभाष को आज घर जाने में भी डर लग रहा था, वह बीती रात की बातों को याद करते ही और घबरा गया |

वो उठा और केबिन बंद करके घर जाने लगा कि तभी केबिन से कुछ आवाजें सुनाई देती है, वो दुबारा केबिन में गया तो केबिन का दरवाजा अपने आप बंद हो गया और आवाज आई, "रे डॉक्टर. कैसा है रे.. इत्ती जल्दी भूल गया रे, तेरे से ऐसी उम्मीद नहीं थी, बोल ना.. अरे चुप क्यों है रे.. हा हा.. हा हा.. हा हा..बोल ..मेरा इलाज कर ना, अरे पैसे की चिंता क्यों करता है रे, मैं तेरे को बहुत दूंगी" ये सुनकर सुभाष का चेहरा पीला पड़ गया, उसकी धमनियों में खून की जगह आग बहने लगी तभी केबिन के दरवाजे धड़ाम से खुल गये और वो बाहर भागता चला गया, उसे देखकर निहाल भी बुरी तरह घबरा गया |

सुभाष सीधा घर आया और रोते हुए माँ को सारा हाल बताया, माँ ने जल्दी से उसकी नजर उतारी और बाहर चली गई |
वो बैठा इन सब बातों के बारे में सोच ही रहा था तभी माँ आईं और बोलीं, "मैं तेरे लिए हनुमान अष्टक मंदिर से भभूत लाई हूं, इसे अपने शरीर पे लगा ले और हां मैंने पुजारी जी से बात कर ली है, कल चलकर महाकाल बाबा से इस पापी चुड़ैल को तुम्हारे से दूर करना है |

सुभाष भभूत लगा कर लेट गया और न जाने कब उसकी आंख लग गई |


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