बहुत दिन हो गए थे स्टोररूम की सफाई किए हुए तो सोचा चलो आज स्टोररूम की सफाई करती हूँ,स्टोररूम साफ करते वक्त एक तस्वीर मिली ,जो मैने हाँल में सजा दी,दोपहर के बाद जब मेरी बेटी सौम्या काँलेज से लौटी तो आते ही उसने पूछा....
मम्मा! ये किसकी तस्वीर है,कौन हैं ये?
मैने कहा ,ये मेरी दादी माँ हैं? बहुत संघर्ष किया है इन्होंने अपने जीवन में।।
तो मम्मा ! मुझे भी उनके बारें में कुछ बताइए,सौम्या बोली।।
सच,तू सुनना चाहती है उनकी कहानी,मैने पूछा।।
वो बोली,हाँ मम्मा! बताइए ना उनके बारें में,सौम्या ने कहा।।
ठीक है तो सुन,मैने सौम्या से इतना कहकर उनकी कहानी सुनानी शुरू की......
रामस्वरूप चौधरी के यहाँ बहुत धूमधाम थी क्योंकि उनके बड़े बेटे की शादी जो थी,रामस्वरूप तैयारियों में इतने ब्यस्त थे कि उन्हें अपनी सुध ही नहीं थी और उधर उनकी पत्नी पानकुँवर भी अपनी पड़ोसिनों और रिश्तेदार महिलाओं से कह रही थीं....
देखो जीजी! ये हँसुली ना मेरी सास ने मुझे दी थी ,मैने अब तक इसे अपनी बहु के लिए सम्भाल कर रखा था,ये कमरबन्द तो देखो पूरे आधा सेर का है,ये रहा माँग टीका,ये रही नथ,आप लोग सब देखकर बता दो कि बहु के श्रृंगार की चींजों में किसी चींज की कमी तो नहीं है,पानकुँवर ये कह कहकर फूली ना समाती थी,औरतें भी अचरज से उसे देखकर कहतीं कि ऐसी सास पहली बार देखी जो बहु के आने पर इतनी खुश है,
ब्याह का दिन भी आ गया,बड़े गाजे बाजे के साथ शिवानंद चौधरी की बारात पहुँची,बारात का स्वागत हुआ , वर-वधु के फेरे हुए और बारात अपने संग राजाबेटी को विदा कराकर ले आई.....
राजाओं की बेटी की तरह सुन्दर थी राजाबेटी,इसलिए माँ बाप ने दुलार मे उसका नाम राजाबेटी रख दिया,राजाबेटी गुणों की खान थी,सभ्य,सुशील और सुन्दर,पानकुँवर ने जैसे ही अपनी सोलह साल की बहु का घूँघट उठाकर चेहरा देखा तो बोली.....
देखो तो बहु का घूँघट उठाते ही उजियारा हो गया घर मेँ,नजर ना लगे मेरी बहु को ,तभी पाँच साल का किशोर माँ के पास आकर बोला.....
माँ! ये मेरी भाभी है।।
हाँ! रे, यही मोम सी गुड़िया जैसी दिखने वाली तेरी भाभी ही तो है,पानकुँवर बोली।।
और राजाबेटी ने प्यार से किशोर को गोदी में उठा लिया,उस दिन से किशोर राजाबेटी को भाभी माँ कहने लगा.....
राजाबेटी को लग रहा था कि ये उसकी खुशियों का संसार है जिसे वो प्यार से सजाऐगी,लेकिन उसका ये सपना शादी की पहली रात को ही टूट गया जब उसका पति शिवानन्द शादी की ही पहली रात को किसी नौटंकी वाली के साथ गाँव छोड़कर कहीं भाग गया।।
ये खबर सुनकर राजाबेटी के मायके वाले भड़क गए और उन्होंने रामस्वरूप जी से कहा कि आपलोगों ने हमें धोखे में रखा,हमारी बेटी की जिन्द़गी बरबाद कर दी,हम उसे ले जाएंगे और उसका दूसरी जगह ब्याह कर देंगें।।
लेकिन ये बात राजाबेटी को मन्जूर ना हुई,उसने अपने मायके वालों से कहा कि हिन्दू धर्म में केवल एक बार ही ब्याह होता है और अबसे यही मेरा घर है इसे छोड़कर मैं कहीं नहीं जाऊँगी,फिर उस दिन के बाद राजाबेटी कभी मायके ना गई,समाज के ताने भी सुने लेकिन उसने हिम्मत ना हारी।
उसने घर की सारी जिम्मेदारियाँ अपने सिर पर ले लीं,खेतों में जाकर मजदूरों को देखना,घर पर सास ससुर और देवर का ख्याल रखना,गौशाला और रसोई की जिम्मेदारी भी उसने सब अपने सिर ही ले ली थी,वो दिनभर काम में इसलिए डूबी रहना चाहती थी कि वो अपने साथ हुए अन्याय को भुला सके और शिवानन्द को माफ कर सकें।।
इसी तरह दिन,महीने ,साल बीते अब किशोर भी बड़ा हो गया था और वो अपनी भाभी माँ का हाथ बँटाने लगा था लेकिन रामस्वरूप जी अब काफी वृद्ध हो चले थे,वो बीमार पड़े और लम्बी बिमारी के बाद चल बसे,अब पानकुँवर देवी पति के जाने से कुछ अकेली पड़ गई थीं,
कुछ दिनों में किशोर के लिए भी एक अच्छे घर से रिश्ता आया और पानकुँवर देवी ने हाँ कर दी,बड़ी धूमधाम से किशोर का ब्याह हुआ....
सुजाता बहुत ही अच्छी बहु साबित हुई,वो अपनी सास और जेठानी का भी खूब मान करती थी,कुछ दिनों मे सुजाता की गोद हरी हुई और उसने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया,अब राजाबेटी दिनभर गुड़िया को लिए रहती,वो ही उसे सम्भालती,इसी तरह राजाबेटी की परवरिश से गुड़िया दो साल की ही हुई थी कि सुजाता ने फिर से खुशखबरी सुना दी,अभी सुजाता के गर्भ को पाँच महीने ही बीते थे कि ....
सावन का महिना था,एक दिन किशोर खेतों में काम कर रहा था ना जाने कहाँ से एक काला नाग आया और उसने किशोर को डस लिया,जब तक सबको खबर मिली तब तक किशोर इस दुनिया को छोड़कर जा चुका था।।
पति की मौत की खबर से सुजाता उबर नहीं पा रही थी,वो दिनबदिन कमजोर होती जा रही थी,राजाबेटी उसका बहुत ख्याल रख रही थी क्योंकि वो माँ बनने वाली थी लेकिन सुजाता के दिल पर जो घाव लगा था वो ठीक होने का नाम ही नहीं लेता था और एक दिन सुजाता अपने बेटे को जन्म देते हुए इस दुनिया को अलविदा कर गई।
अब राजाबेटी पर दो दो बच्चों की जिम्मेदारी आ पड़ी थी,लेकिन इतना सब होने के बाद भी उसने हार ना मानी और बच्चों की परवरिश में जुट गई,लेकिन जवान बेटा और बहु की मौत पानकुँवर को अखर गई और वो भी धीरे धीरे अन्दर ही अन्दर घुटने लगी और एक दिन सुबह राजाबेटी उन्हें जगाने पहुँची लेकिन पानकुँवर फिर कभी ना जागी।।
दिन बीते बच्चे बड़े होने लगे,दोनों ने स्कूल पास कर लिया था और अब काँलेज में थे,तभी एक दिन जर्जर अवस्था में शिवानन्द घर लौटा,देह पर केवल पसलियां ही दिख रहीं थीं,उसने अपने किए की राजाबेटी से माफी माँगी और बोला उसे तपैदिक है,अपनी जिन्द़गी का आखिरी वक्त वो गाँव मे ही बिताना चाहता है,
बच्चों ने तो नहीं लेकिन राजाबेटी ने उसे माफ कर दिया,उसकी सेवा भी की लेकिन उसके मरने पर उसकी आँख से एक भी आँसू ना गिरा....
उसने बच्चों को पालपोसकर बड़ा किया,दोनों बच्चों को सरकारी नौकरी भी मिल गई,दोनों की शादी होने पर वो नानी भी बनी और दादी भी....
ये कहते कहते मेरी आँखों में आँसू आ गए कि उनके बच्चे भी नहीं थे फिर भी उन्हें नानी माँ और दादी माँ बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ....
सच में मम्मा! आपकी दादी माँ ने बहुत संघर्ष किया है और ये कहते कहते सौम्या मेरे गले लग गई।।
समाप्त....
सरोज वर्मा...