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एक सपना सुहाना

आज रीमा की आँख जरा देर से खुली,क्योंकि आजकल रात में नींद भी बड़ी देर से आती है।उसने चौंककर इधर- उधर देखा,नितेश दिखाई नहीं दे रहे थे,घड़ी नौ बजा रही थी।सुबह शरीर अत्यधिक भारी रहता है, उठकर काम करना दूभर प्रतीत होता है लेकिन खाना बनाना आवश्यक होता है क्योंकि नितेश को आठ बजे तक कार्यस्थल के लिए निकलना रहता है।वह सोचती हुई कि नितेश ने उठाया क्यों नहीं,आलस को दरकिनार कर बिस्तर पर से उठ खड़ी हुई,नितेश घर में कहीं नहीं थे।"अरे!आज बिना खाए-पिए चले गए क्या?लेकिन बैग तो घर में ही रखा है?कहाँ चले गए सुबह ही बिना बताए।"चिंतित सी रीमा सोच रही थी।मोबाईल पर रिंग किया तो किसी से मिलने आया हूँ, बाद में बात करता हूँ, कहकर फोन काट दिया।खैर, आवाज सुनकर उसने राहत की सांस ली और अपने लिए एक कप चाय बनाकर बरामदे में बैठकर पीने लगी।अब खाना बनाने की जल्दी नहीं थी क्योंकि यह तो निश्चित था कि आज नितेश काम पर नहीं जा रहे हैं।

नहा धोकर रीमा नाश्ते-खाने की तैयारी में जुट गई कि अगर नितेश टाइमली आ गए तो नाश्ता बना लूँगी, नहीं तो शाम को यूज कर लूँगी।तभी बाहर शिक्षारत हॉस्टल में रहते बेटे का फोन आ गया, कुछ देर उससे बातें करने के बाद रीमा नितेश की प्रतीक्षा करते हुए मोबाईल में कोई सीरियल देखने लगी।दोपहर में नितेश का फोन आया कि तैयार हो जाओ,मैं आधे घंटे में आ रहा हूँ, कहीं चलना है।जब वह युवा थी तब भी उसे तैयार होने में समय नहीं लगता था, अब 51 वर्ष की उम्र में उसे तैयार होना ही क्या है, बस सूट बदल,बाल झाड़ हल्की सी लिपिस्टिक लगा 15 मिनट में तैयार हो गई, तभी नितेश आ गए।रीमा ने चाय-नाश्ते के लिए कहा,लेकिन बाहर ही कर लेंगे,कहकर वे रीमा को ले तुरंत ही निकल लिए।बाहर एक आश्चर्य उसके सामने था,जब नितेश को उसने गाड़ी ड्राइव करते देखा,आश्चर्य भरी प्रश्नवाचक उसकी दृष्टि का जबाब मुस्कराते हुए नितेश ने दिया कि दोस्त से ड्राइव करना सीखा है, फिलहाल उसी की गाड़ी है।

शीघ्र ही 20-25 मिनट पश्चात वे एक कॉलोनी में एक घर के सामने खड़े थे, नई बनी गेटबन्द कॉलोनी थी,लाइन से डुप्लेक्स घर बने हुए थे, कुछ घर अभी बन रहे थे, कुछ में लोग रह भी रहे थे,बीच में एक हरा- भरा पार्क था,कुल मिलाकर एक खुशनुमा वातावरण था।नितेश ने गेट का ताला खोला और रीमा को घर दिखाने लगे।गेट के अंदर एक छोटा सा लॉन था,उसके बगल में ही गाड़ी के लिए छोटा सा पोर्च था।घर के अंदर प्रवेश करते ही ड्राइंग रूम औऱ छोटी लॉबी, उससे लगा हुआ ओपन बड़ा सा किचन,उससे पीछे एक बेडरूम,जिससे अटैच्ड लैट- बाथरूम था।प्रथम मंजिल पर दो अटैच्ड बेडरूम,सामने बड़ी सी बाल्कनी, एक स्टोर।घर देखकर मन प्रसन्न हो गया था रीमा का।उसने नितेश से कहा कि घर तो बेहद खूबसूरत है।नितेश ने कहा कि फिर इसे फाइनल कर लेते हैं, कल रजिस्ट्री कराने के बाद यह हमारा घर हो जाएगा।नितेश के इतना कहते ही मन में ढेरों प्लानिंग बनने लगी कि नीचे का बेडरूम अपना बनाऊंगी क्योंकि किचन नीचे है, घुटनों में दर्द के कारण बार-बार ऊपर-नीचे आने-जाने में परेशानी होती है।बाल्कनी में झूला रखूँगी,जहाँ बारिश की फुहारों में बैठकर चाय का आनंद ले सकूँ, जाड़ों की गुनगुनी धूप में बैठकर कहानियां पढूंगी,ड्राइंग रूम में इस कोने में मंदिर सेट करूंगी…..इत्यादि।

घर से बाहर निकलते ही रीमा ने अपनी बचपन की सहेली को एक घर से निकलते देखा,दौड़कर उससे गले मिलते हुए जब ज्ञात हुआ कि वह उसका घर है तो रीमा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

तभी मकान मालकिन के किचन में बजने वाली कुकर की सीटी रीमा को हकीकत की दुनिया में ले आई।देखा,नितेश बेख़बर बगल में सोए हुए हैं।रीमा एक सुहाना सा ख्वाब देख रही थी।शायद मन की अधूरी ख्वाहिशें सपने में जीवंत हो जाती हैं।शायद यह स्वप्न कभी पूर्ण हो जाय ,सोचते हुए एक गहरी सांस लेकर वह अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त हो गई, तभी बेटे का फोन आ गया।रीमा सोचकर मुस्करा उठी कि सपने में भी बेटे से बात कर रही थी और अब हकीकत में।जीवन सपनों एवं हकीकत का एक मजेदार एवं अजीबोगरीब मिश्रण है।

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