अनोखी दुल्हन - ( तलाश_२) 27 Veena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अनोखी दुल्हन - ( तलाश_२) 27

अब जूही को गुस्सा आ रहा था। " नहीं सुन सकता का क्या मतलब है? सफेद झूठ से तुम्हारा क्या मतलब है? तुम्हें पता है मैंने कितनी कोशिश कि तुम्हारे बारे में ना सोचने की। हमेशा उस पत्ते को देखकर सोचा करती थी, इसे पत्ती के बारे में सोचो। सिर्फ‌ कैनेडा के बारे में सोचो । जिस के साथ गई थी उसके बारे में बिल्कुल मत सोचो और अब तुम कह रहे हो कि यह सफेद झूठ ?"

" मैंने अपने आप को कितना समझाया पता है। अगर तुम मेरे मन की बात समझ नहीं सकते तो उस दिन मेरे पास कैसे पहुंचे? तुम्हें कैसे पता चला कि मुझे किडनैप किया गया है। और मदद की जरूरत है। बताओ पर इस बार सच बताना।" जूही ने गुस्से से उसकी तरफ देखते हुए कहा।

" वह..... वो तो मुझे बस एहसास हो गया था कि तुम्हें मेरी जरूरत है। और तुम किसी मुसीबत में हो। यह सब शायद तुम्हारे गले के पीछे जो निशान है उसकी वजह से हुआ।" वीर प्रताप ने अपनी जगह से पीछे होते हुए कहा।

" तुमने मुझे कितना सताया। समझ भी नहीं पाओगे तुम।" जूही चिढ़ी हुई थी।

" तुम्हें समझ में आ रहा है कि क्या बोल रही हो? तुम अभी अभी यहां पर यह सब कंफेस्ट कर रही हो। कि तुम्हें मेरी याद आई। तुमने मुझे मिस किया।" वीर प्रताप ने डरते हुए कहा।

" जो भी समझना है समझ लो । मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी। मुझे बस यह बता दो कि मुझे कहां रहना है।" जूहीने अपना मुंह फेरते हुए कहा।

" हां रुको बताता हूं ।"

कुछ ही देर बाद मिस्टर कपूर वहां पर आए और जूही को अपने साथ ले गए। जूही जाते-जाते भी सिर्फ वीर प्रताप को घूरे जा रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा कि, अब सब सच बता देने के बावजूद भी, उसे वीर प्रताप से दूर क्यों जाना पड़ रहा है? क्या वह उसे बिल्कुल पसंद नहीं करता ? क्या जूही इतनी बुरी है कि, उसे कभी अपनों का साथ नहीं मिलेगा? उस मासूम के दिल में अनगिनत सवाल थे। लेकिन वीर प्रताप अभी उन सवालों के जवाब देने लायक नहीं था। वह बस अपने आपको सवारना चाहता था। इस सच से की अब उसकी हजार साल की जिंदगी आखिरकार खत्म हो सकती है। उसने इसी दिन का तो इंतजार किया था। लेकिन अब उसे अपने आप को इस दिन के लिए तैयार करना पड़ेगा। जूही के पास रहते हुए ये काम और मुश्किल हो जाता। वो दोनो एक दुसरे से जितना दूर रहे इसी में सबकी भलाई है।

राज कमरे का दरवाजा खोलकर अंदर आया। " तुम? तुम यहां क्या कर रही हो?"

" हां तुम? तुम यहां क्या कर रहे हो?" जूही ने उसे देखते हुए कहा।

" पहले सवाल मैंने पूछा था। इसलिए मुझे जवाब दो।" राज जूही के पास आकर खड़ा हो गया। " दादा जी ये सब...." राज मिस्टर कपूर से कुछ कह पाए उससे पहले उन्होंने उसे टोका।

" आज से मिस जूही यहीं पर रहेंगी। हमारे साथ । तुम्हें इनका पूरा ध्यान रखना है।" फिर मिस्टर कपूर जूही की तरफ मुड़े ।" बेटा तुम्हें कुछ भी चाहिए हो बेझिझक होकर राज से कहना। आज से ये तुम्हारा सारा ध्यान रखेगा और अगर यह तुम्हारी बात ना माने तो सीधा मुझे फोन कर देना। तुम्हारे पास मेरा नंबर है ना ?" जूही ने हां में सर हिलाया।

उसे कमरे में अकेला छोड़ राज और मिस्टर कपूर अपने होटल से बाहर निकले।

" दादा जी यह कौन है ?" राज ने पूछा।

" तुम्हें यह जानने की कोई जरूरत नहीं है। इतना समझ लो कि यह महाराज के लिए खास है। और उनके लिए खास मतलब हमारे लिए बहुत खास। तुम्हें उसकी हर जरूरत पूरी करनी है। याद रखना उसे यहां कोई तकलीफ ना होने पाए। वरना तुम जानते हो।" इतना कह मिस्टर कपूर कार में बैठ गए।

" लेकिन दादा जी वो मेरा क्रेडिट कार्ड ......." राज कुछ आगे बोल पाए उससे पहले उनकी कार चली गई।

सही समझे आप। जूही का कमरा एक 5 स्टार होटल के टॉप फ्लोर पर था। जूही ने कमरे को ठीक से देखा। वह उसे देखकर खुश हो गई। कितना बड़ा कमरा और कमरे में भी एक कमरा था। वाउ.... वह बच्चों की तरह पूरे कमरे में दौड़ने लगी। उसने देखा इतना बड़ा बाथरूम। उसके मासी के घर जितना तो सिर्फ इस कमरे का बाथरूम है। वह बिस्तर पर बैठी। वहां बैठते बैठते कूदने लगी। इतना नर्म बिस्तर कितना अच्छा! खिड़की के बाहर का नजारा भी बेहद खूबसूरत था । इस कमरे से पूरा शहर दिख रहा था। रात के अंधेरे में तिल मिलाती हुई रोशनी।

यह सब कितना खूबसूरत है। लेकिन इसका क्या मतलब ? जब उसके साथ इन चीजों को देखने वाला और कोई नहीं था। उसे इन चीजों की नहीं किसी के साथ की जरूरत थी। लेकिन शायद उस इंसान को भी उसका साथ गवारा नहीं था। इस खयाल से जुड़ी फिर से उदास हो गई और वहीं पर सो गई।

वह दूसरे दिन सुबह उठी और स्कूल जाने के लिए तैयार हो गई। होटल के बाहर ही राज उसे मिला।

" क्या तुम मुझे बता सकते हो। यहां से मेरे स्कूल जाने के लिए कौन सी बस अवेलेबल है?" जूही ने पूछा।

" बस! बस की क्या जरूरत है।‌जब तुम्हारे पास मैं हूं।" राज ने कहा।

" मतलब मैं समझ नहीं पा रही।" जूही कंफ्यूज थी।

" अरे तुम भी ना!" राज में एक बटन दबाया और अपनी गाड़ी के दरवाजे खोलें।‌ "चलो मैं तुम्हें तुम्हारे स्कूल छोडूंगा।" जूही ने एक नजर गाड़ी को देखा। खूबसूरत लेकिन इतनी महंगी गाड़ी में स्कूल जाना ठीक रहेगा। लेकिन उसके पास कोई और रास्ता भी तो नहीं है।

"अरे तुम पागल हो क्या? गाड़ी यहां क्यों रोक रहे हो। कहीं और स्कूल से दूर रोको।" जूही ने चिल्लाते हुए कहा। जब राज ने गाड़ी उसके स्कूल के दरवाजे के बराबर सामने रोकी और सिर्फ रोकी नहीं बड़ी ही स्टाइल से अपनी गाड़ी की छत भी हटाई। जिससे सब लोग उस गाड़ी की तरफ नजरें घुमा कर देखने लगे।

" इतनी महंगी गाड़ी लेने का मतलब ही क्या है ? जब आप लोगों की नजरों तक को अपनी तरफ घुमा ना सके।" राज ने कहा।

" देखो मुझे लोगों की नजरों में आने का कोई शौक नहीं है। गाड़ी यहां से दूर ले जाओ समझे।" जूही।

" यह क्या कर रही हो तुम। इतना सर क्यों झुका रही हो। चलो जल्दी निचे उतरो। मुझे और भी काम है। मैं दिनभर किसी बच्ची को संभाल नहीं सकता।" जूहीने गुस्से भरी नजर से उसे देखा और फिर गाड़ी से उतरकर अपने क्लास में चली गई।

"क्या वह जूही थी?"

" हां वह वही थी। लेकिन उस अमीर जादे के साथ कर क्या रही थी?"

" तुम्हें पता है वह लड़का राज कपूर है। कपूर खानदान का इकलौता वारिस।"

" मानना पड़ेगा इस लावारिस को। आखिरकार उस दिन वह खूबसूरत जवान और आज यह अमीर जादा।"

" ऐसा क्या कमाल करती होगी वह ?"

"कहीं उन्हें भी तो अपने झूठ के जाल में नहीं फंसा रही।"

" मासूम बनकर ऐसी हरकतें शर्म तक नहीं आती। देखा किस तरह से आगे जा रही है।"

जूही के स्कूल में उसके लिए ऐसी बाते कोई नई बात नही थी। माता पिता के ना होने की वजह से उसने हमेशा ऐसे लोगो का सामना अकेले ही किया था। ऊपर से उसे आत्माओका दिखने वाली बात की वजह से लोग पागल कहते थे। एक वीर प्रताप ही था, जिसने आज तक उसके साथ अपने पन से बर्ताव किया था।

दोपहर को जब स्कूल छुटा वो काफी उदास दिख रही थी। उसका ध्यान भी सड़क पर नही था।

" इस तरह से चलोगी तो कोई भी तुम्हें किडनैप कर लेगा।" वीर प्रताप ने उसका मज़ाक बनाते हुए कहा।

जूही ने एक नजर उसे देखा। एक लंबे हाथ का सफेद टी शर्ट और ब्लू जीन्स। आंखो पर काला चश्मा। बड़ी सी गाड़ी पर बैठ जुहिका उसकी तरह आने का इंतजार कर रहा था। उसे देख कौन कहेगा कि, ये आदमी इंसान नही है ? मतलब हा जिस तरह का उसका शरीर था, लंबा, तगड़ा साथ में गेहुवा रंग। किसी भगवान से कम नहीं था। पर क्या सारे ही पिशाच इतने खूबसूरत होते है। सुबह से बिगड़ा हुआ जूही का मूड वीर प्रताप की एक नजर से ठीक हो गया।

" तुम यहां क्या कर रहे हो?" जूही उसकी तरफ दौड़ते हुए गई और उससे पूछा।

" सोच रहा था कि, तुम कमरे तक कैसे जाओगी ? इसीलिए लेने चला आया।" वीर प्रताप ने उसकी तरफ देखते हुए कहा। " तो क्या अब हम चलें?" उसने गाड़ी का दरवाजा खोला।

"तुमने तो कहा था तुम्हें कहीं आने जाने के लिए गाड़ी की जरूरत नहीं है।" जूही ने गाड़ी में बैठते हुए पूछा।

गाड़ी में बैठते हुए वीर प्रताप ने कहा" बिल्कुल सही। मुझे नहीं है। लेकिन मैंने सोचा क्यों ना थोड़ा शो ऑफ कर लूं।"