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काला जादू....

कस्बे से बाहर एक तालाब था, वहां आए दिन आत्महत्या की वारदातें होतीं रहतीं थीं, क्योंकि तालाब बहुत गहरा था,जो भी उसमें मरने के लिए कूदता वो फिर कभी भी उबर नहीं पाता था,सब कहते थे कि उस तालाब में सालों पहले एक औरत ने काला जादू कर दिया था,वो काला जादू ही उसमें कूदने वालों की जान ले लेता है।।
चूंकि जो भी हत्याएं अभी तक हुई थीं वो रात को ही हुईं थीं और इसलिए पुलिस चौकी के कर्मचारियों ने सोचा कि क्यों ना किसी हवलदार को वहां रात के वक़्त तैनात कर दिया जाए,तब शायद ये हत्याओं का सिलसिला बंद हो जाए।।
और इस काम के लिए हवलदार बनवारी लाल को चुना गया, चूंकि वो अभी नया नया हवलदार बना था, नौकरी ज्वाइन किए मुश्किल से दो ही महीने हुए थे,उसने कस्बे के भीतर ही एक छोटा सा कमरा किराए पर ले रखा था, जहां पर वो अपनी नई नवेली दुल्हन के साथ वहां रह रहा था।।
उसे दिन में पता चला कि अब से रात के वक़्त उसकी ड्यूटी तालाब पर लगेगी वो भी कस्बे के बाहर, उसने भी सुन रखा था कि उस तालाब पर काला जादू है,नई नई नौकरी थी इसलिए ड्यूटी करने से भी इन्कार नहीं कर सकता था, बेचारा मुसीबत में फंस गया था।।
रात को आठ बजे वो घर से ड्यूटी के लिए निकला,अपनी साइकिल में उसने अपना डण्डा खोसा,पानी के लिए थरमस लिया, क्योंकि वो रात में तालाब का पानी नहीं पीना चाहता था, कहीं किसी बुरी आत्मा ने पकड़ लिया तो,साथ में खैनी और चूने की डिबिया ली,एक बीड़ी का बण्डल, माचिस भी ले ली,एक बड़ी सरकारी टाॅर्च भी उसके पास थी,खाना वो पहले ही खा चुकि था,उसने पत्नी से कहा कि वो दरवाजा ठीक से बंद कर ले और रात को किसी के लिए भी ना खोलें,उसने अपने सामने ही घर का दरवाज़ा बंद करवाया और चल पड़ा तालाब की ओर....
कुछ देर में वो तालाब के किनारे था,कुछ देर तक तो उसने टहल टहल कर ड्यूटी की फिर वो तालाब की सीढ़ियों पर जाकर बैठ गया।।
उसने टार्च,डण्डा और थरमस अपने पास ही रखा था,उसने जेब से खैनी निकाली,चूने के साथ हथेली पर मसली और फांक ली।।
कुछ देर बाद उसे बीड़ी की तलब लगी लेकिन उसने बीड़ी को हाथ नहीं लगाया क्योंकि उसने सुन रखा था कि भूत बीड़ी मांगते हैं और ना देने पर जान ले लेते हैं।।
उस दिन चांदनी रात थी इसलिए तालाब पर उतना अंधेरा नहीं था, बनवारी लाल ने टार्च जलाकर अपनी कलाई पर बंधी घड़ी का समय देखा,जो ठीक सबा बारह बजा रही थी,बनवारी लाल को अब और भी डर लगने लगा था, लेकिन ड्यूटी छोड़कर वो घर भी नहीं जा सकता था।।
कुछ देर में उसको झपकी सी लगने ,उसकी आंखें मुदने लगी लेकिन उसने अपने आपको सम्भाला...
तभी वो क्या देखता है कि एक सफेद परछाईं तालाब से निकल रही है,उसकी डर के मारे घिग्घी बंध गई, उसने सोचा शायद ये वही काला जादू करने वाली औरत है,वो परछाईं धीरे धीरे बनवारी लाल की ओर बढ़ने लगी और उससे दूर दूसरी सिढ़ियो पर जा बैठी...
उसे देखकर बनवारी लाल भागने लगा,तभी वो परछाईं बोली___
ठहरो! कहां भागते हों, जहां खड़े हो वहीं रूक जाओ, नहीं तो अंजाम अच्छा नहीं होगा।।
बनवारी लाल जहां खड़ा था, वहीं रूक गया और बोला___
तुम मुझे मार दोगी!!
नहीं! मैं किसी को भी नहीं मारती,इस तालाब में तो मरने वालों ने आत्महत्या की थी,मारा तो मुझे था किसी ने और इस तालाब में फेंक दिया था,तुम पुलिस वाले हो तुम ही उन लोगों को सजा दिलवा सकते हो,वो परछाईं बोली।।
लेकिन कैसे? अगर तुम गवाही दोगी तो तुम्हें जरूर न्याय मिलेगा, बनवारी लाल बोला।।
जहां मेरा घर है, वहां तुलसी चौरे के नीचे एक गड्ढे में लकड़ी के बक्से के भीतर मेरी लिखी डायरी है उसमें सारे सुबूत हैं,तुम वो पुलिस को दे दोगे तो मुझे न्याय मिल जाएगा फिर मेरी आत्मा कभी नहीं भटकेगी,वो परछाईं बोली।।
मैं कुछ समझा नहीं, पूरी बात बताओ, बनवारी लाल बोला।।
ठीक है सब बताती हूं और उस परछाईं ने बोलना शुरु किया___
मेरा नाम माया था,सोलह साल की उम्र में मेरा ब्याह हो गया था, विधवा मां दहेज में जितना दे सकती थी तो दिया, लेकिन मेरे ससुराल वालों को संतुष्टि नहीं हुई वो आए दिन मुझे मारते पीटते और दहेज की मांग करते फिर कुछ महीनों बाद मैं ने सबको खुशखबरी दी कि मैं मां बनने वाली हूं, फिर मैंने एक बेटी को जन्म दिया,सबको बहुत बुरा लगा, दूसरी बार भी मैंने बेटी को जन्म दिया लेकिन इस बार वो लोग बर्दाश्त नहीं कर पाएं,एक रात मुझे और मेरी बेटियों को बेहोशी की दवा खिलाकर तालाब किनारे ले आएं मुझे तब तक होश आ चुका था लेकिन उन लोगों ने मेरे हाथ पैर बांध रखें थे और मुंह पर पट्टी भी बांध रखी थी, उन्होंने हम तीनों को इसी तालाब में फेंक दिया,भला मौत से कितना लड़ती मैं,आखिर में दम तोड़ ही दिया, फिर मुझे काला जादू करने वाली औरत के नाम से उन्होंने बदनाम कर दिया, मैं तुम्हें अपने ससुराल के घर का पता बताकर जाती हूं और उस परछाई ने अपना पता भी बता दिया, फिर बोली,
एक तुम ही हो जो वो डायरी ढ़ूढ़ कर मेरी मदद कर सकते हो,
और इतना कहकर वो परछाईं गायब हो गई,कुछ देर के लिए बनवारी लाल का दिमाग शून्य हो गया लेकिन बनवारी लाल ने ठान लिया था कि वो माया को न्याय दिलवाएगा और उसने वैसा ही किया,बड़े साहब से कहकर उस घर की छान बीन करवाई और वो डायरी वहीं मिली, जहां माया ने बताई थी,माया के गुनाहगारों को जल्द ही सजा मिल गई।।
एक रोज बनवारी लाल तालाब के पास पहुंचकर बोला___
लो माया! अब तुम्हें कोई भी आज के बाद काला जादू करने वाली औरत नहीं कहेगा।।

समाप्त...
सरोज वर्मा....



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