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बड़े धोखे हैं...

संसार में हर कदम पर धोखे हैं, देने वालों और खाने वालों की कमी नहीं है।कुछ खुशकिस्मत बाल-बाल बच जाते हैं।
विविधा के बाल्यकाल में ही माँ की मृत्यु हो गई थी, पिता ने अपने से आधी उम्र की गरीब युवती से दूसरा विवाह कर लिया था।हमारा समाज अजीब है।पत्नी की मृत्यु होते ही उसे तथा उसके परिजनों को यदि बच्चे हैं तो उनकी परवरिश की चिंता सताने लगती है और यदि सन्तान विहीन हैं तो अकेलेपन का भय।वहीं स्त्री के विधवा होने पर उससे अनन्त उदासी एवं बेरंग जीवन की अपेक्षा की जाती है।दो बच्चे हों तो भी विधवा या तलाकशुदा नहीं चाहिए, कुमारी स्त्री की ही लालसा रहती है।
विविधा की दूसरी मां उससे मात्र दो साल बड़ी थी,अतः उसे मां का सम्बोधन नहीं कर सकी।उसके परिवार में कई समस्याएं थी,कुछ भी तो सामान्य नहीं था।सबसे बड़ी बूआ का वैवाहिक जीवन नहीं चल सका,परिणति काफी सालों में तलाक के रूप में हुई।तब वह काफी छोटी थी,लेकिन बड़ी होने के बाद समझ सकी कि दोषी बूआ ही अधिक थीं,तुनकमिजाज बुआ ससुराल में सामंजस्य स्थापित नहीं कर सकीं।छोटी बूआ का विवाह समय से न हो पाने के कारण वे भी उम्रदराज हो गईं।अंततः 42 वर्ष की उम्र में किसी तरह उनका विवाह संपन्न हो गया, वे लगभग ठीक ही अपनी गृहस्थी का संचालन कर रही थीं।एक चाचा थे,अपना छोटा सा काम था लेकिन न जाने क्यों वे भी अविवाहित ही रहे।
दूसरी मां भी दो पुत्रियों की मां बन गई।पिता शीघ्र ही रिटायर हो गए।पेंशन तो थोड़ा सा मिलता था जिससे खाना-पीना तो हो जाता था लेकिन तीन बेटियों की शिक्षा, विवाह अन्य जिम्मेदारियां तो पूर्ण होनी मुश्किल थीं।छोटी बुआ का लगाव विविधा से अधिक था, इसलिए वे विविधा की शिक्षा का खर्च वहन कर रही थीं।उधर, पिता एवं नई मां के मध्य मतभेद बढ़ने लगे थे।एक दिन दोनों बच्चियों को छोड़कर वे कहीं चली गईं।बुआ बड़बड़ाती थीं कि बुड्ढे पति को छोड़कर भाग गई किसी के साथ।खैर, पिता या मां दोनों से उसे लगाव नहीं था, अतः उसे कोई फर्क नहीं पड़ा था, हां, सौतेली ही सही,बहनें थीं, वो भी छोटी,फिर मातृविहीना होने की तकलीफ को उसने शिद्दत से महसूस किया था, हालांकि उसे बुआ का पूरा स्नेह सदैव प्राप्त था, आज भी है।
खैर, उसने बूआ की मदद से अपनी शिक्षा पूर्ण कर ली।MBA करने के पश्चात दिल्ली में एक कम्पनी में कार्य करने लगी।पिता का होना न होने के बराबर था,उन्हें किसी जिम्मेदारी से कुछ भी लेना देना नहीं था,बस शराब पीना औऱ इधर- उधर भटकना।विविधा 30 पार कर चुकी थी, बुआ उसका विवाह कर देना चाहती थीं लेकिन इतने विसंगतियों एवं धन विहीन परिवार की कन्या का विवाह अत्यंत दुरूह कार्य होता है।
इसी बीच एक रिश्तेदार ने अपने मौसेरे साले का रिश्ता प्रस्तावित किया, जिसका अभी कुछ माह पूर्व ही तलाक हुआ था।रिश्तेदार ने बताया था कि लड़की तेज थी,निभाना नहीं चाहती थी, सास अर्थात मौसी से दुर्व्यवहार करती थी, इसलिए तलाक हुआ जो स्वयं लड़की की तरफ से दिया गया था।खैर, इन प्रकरणों में दोनों पक्ष एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते ही हैं, वास्तविकता तो अंदर की बात होती है जो वे ही जानते हैं।चूंकि वर सन्तान विहीन था और वह रिश्तेदार थोड़े निकटवर्ती ही थे,अतः उनपर विश्वास कर विविधा का विवाह तय हो गया,तिथि भी निर्धारित हो गई, बैंक्वेट हॉल,एवं हलवाई का बयाना भी दे दिया गया।इसी मध्य वर की मां का आदेश जारी हुआ कि लड़की को जेवर अवश्य देना होगा, जबकि प्रारंभ में ही दहेज रहित विवाह की बात निर्धारित हो गई थी, अकस्मात के इस मांग से विविधा एवं उसकी बुआ थोड़ी सशंकित हो गईं।फिर किसी हितैषी ने सलाह दिया कि ऐसे मामलों में केवल विश्वास काफी नहीं होता है, समय अत्यंत खराब है और अक्सर विश्वास के तले ही धोखे होते हैं, लड़की की जिंदगी का सवाल है, अविवाहित रह जाय कोई बात नहीं, लेकिन गलत हाथों में पड़कर तो सिवा बर्बादी के कुछ भी हासिल नहीं होगा।
अतः,रिश्तेदार से तलाक के पेपर की मांग की,जो उन्हें थोड़ा नागवार तो गुजरा, किंतु फोटोस्टेट भेज दिया।तलाक तो कानूनन हो चुका था लेकिन सिग्नेचर के साथ पूर्व पत्नी का फोन नम्बर भी था।विविधा ने उस युवती से बात किया तो ज्ञात हुआ कि लड़का किसी विजातीय युवती से विवाह करना चाहता था लेकिन मां ने मरने की धमकी देकर अपनी मर्जी से पर्याप्त दहेज लेकर विवाह मेरे साथ किया।लेकिन चार माह पश्चात भी मुझे स्वीकार नहीं किया, बल्कि साफ कह दिया कि मैं सिर्फ उसे प्यार करता हूँ अतः तुम मेरे लिए सिर्फ मां की बहू हो।अतः मैंने अपनी जिंदगी बर्बाद करने से बेहतर अलग हो जाना ठीक समझा।
फिर विविधा ने बिना अपना परिचय दिए पूछा कि यदि ऐसी बात थी तो वह पुनः क्यों विवाह कर रहा है?उसने एक पता देकर कहा कि वह युवती वहाँ रहती है, आप उससे कन्फर्म कर सकती हैं।एक्चुअली,पूर्व पति की माँ के आगे एक नहीं चलती, और माँ फिर किसी लड़की की जिंदगी बर्बाद कर दे,कोई ठिकाना नहीं है,बड़े अजीब लोग हैं, सबसे नपुंसक तो वह है जो अपनी मां की गलत बातों का विरोध नहीं कर पाता है।विविधा ने किसी परिचित के द्वारा पता करवाया तो बात सोलहो आने सच निकली।जब अपने मध्यस्थ रिश्तेदार से सारी बात बताई तो वह बेशर्मी से मुकर गया कि मैंने तो रिश्ता बता दिया था, जांच-पड़ताल तो तुम लोगों की जिम्मेदारी थी।खैर, विविधा तो इस बड़े धोखे से बच गई,लेकिन जगत में इतने धोखे हैं पग-पग पर,कि हर समय पूरी सावधानी से आंख-कान-मस्तिष्क को खुले रखने की आवश्यकता है, तभी हम जीवन पथ पर बिना ठोकर खाए चल सकते हैं।
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