रामनगर में एक किसान रहता था,जिसका नाम रामसजीवन था,उसकी मेहरारू बिंदिया और वो दिनभर खेतों में कड़ी मेहनत करते थे,तब जा के दो वक़्त के खाने का जुगाड़ हो पाता था, धीरे-धीरे वक़्त गुजरता गया , रामसजीवन और बिंदिया दो बच्चों के माता-पिता बन गए, उन्होंने बेटे का नाम पूरन रखा और बिटिया का आशा।।
वक़्त गुजरते कहां देर लगती है, दोनों बच्चे अब स्कूल जाने लगे, दोनों ही बच्चों ने अब दसवीं और बारहवीं की परिक्षाएं भी पास कर दीं, दोनों ही बच्चे पढ़ाई में होशियार थे, लेकिन गांव के आस पास कहीं भी बारहवीं के बाद पढ़ने की सुविधा नहीं थी,इसके बाद की पढ़ाई के लिए शहर ही जाना पड़ता था।।
इसलिए बेचारी आशा को लगने लगा था कि वो आगे ना पढ़ पाएंगी ,पूरन भइया को तो बाबा शहर भेज देंगे लेकिन मुझे तो शायद कोई भी भेजने को राज़ी ना हो,लेकिन पूरन ने कहा चाहे जो भी हो आशा भी आगे पढ़ेगी, मैं उसे अपने साथ शहर ले जाऊंगा,इस तरह दोनों बच्चों को आगे पढ़ने का मौका मिल गया।।
आशा पढ़ लिखकर मास्टरनी बन गई , पूरन की प्रतिभा देखकर और कालेज में अव्वल आने पर उसे विलायत जाने का मौका मिल गया।
एक साल के बाद पूरन विलायत से लौटा तो रामसजीवन और बिंदिया ने एक ही मण्डप में दोनों बच्चों का ब्याह करने का फ़ैसला किया,आशा को उसके जैसा ही एक मास्टर मिल गया और पूरन का ब्याह एक जज की बेटी से हो गया,ये रिश्ता जज ने खुद भेजा था।
फिर क्या था? पूरन अपनी पत्नी सुजाता के संग फिर विलायत चला गया लेकिन इस बार वो जल्दी ना लौट सका,पांच सालों के बाद लौटा, पूरन की राह राह देखते देखते तो जैसे रामसजीवन और बिंदिया की तो आंखें ही पथरा गईं थीं।।
लेकिन इस बार सुजाता और पूरन अकेले नहीं आएं थे चार साल के पोते को भी संग लाएं थे, तीनों को देखकर रामसजीवन और बिंदिया के कलेजे को ठंड पड़ गई।।
सबके आने पर दिन कैसे ब्यतीत हो गया कुछ पता ही नहीं चला , जब सुबह हुई तो....
चलो सोनू बेटा ! जागो और जल्दी से फ्रेश हो जाओ, सुजाता ने अपने बेटे को जगाते हुए कहा।।
सोनू जागा और बाहर बाड़े में आया,गाय बकरी और वहां का माहौल देखकर उसे कुछ अटपटा सा लगा___
वो बोला__
मम्मा! ये जगह पसंद नहीं आई।।
कोई बात नहीं ,अभी तुम यहां नए नए हो ना! कुछ दिनों में तुम्हें यहां अच्छा लगने लगेगा।।
चलो बाथरूम में चलो, मैं तुम्हें तैयार कर देती हूं, सुजाता बोली।।
अब तो रामसजीवन ने पक्का घर बनवा लिया था,नई तरह का बाथरूम भी तैयार करवा दिया था ताकि विलायती पोते और बहु को कोई असुविधा ना हो, लेकिन रहन सहन तो उसने अभी पहले की तरह ही बना रखा था,वो कहता था कि जिस मिट्टी से वो जिन्दगी भर सना रहा है,एकाएक पैसा आ जाने पर उस मिट्टी से कैसे बैर कर सकता है,वो मिट्टी ही तो उसकी मां है,वो ही तो उसे खाने को देती है।।
सोनू तैयार होकर आया और सुजाता से बोला___
लाओ मेरा नाश्ता, कहां है मेरा ब्रेड बटर?
अब तो सुजाता परेशान,आफत आन पड़ी,अब कहां से आवें ब्रेड बटर?गांव में कहां धरा है ब्रेड-बटर?
रामसजीवन और बिंदिया को तो पहले ये समझाया गया कि कमबख्त ये ब्रेड-बटर होता क्या है?
अच्छा तो विलायती रोटी और मक्खन को तुम लोग ब्रेड-बटर कहते हो, ससुरा ई होता है ब्रेड-बटर,रामसजीवन बोला।।
रामसजीवन भी परेशान, बिंदिया भी परेशान और पूरन भी परेशान।।
एकाएक बिंदिया को उपाय सूझा___
वो रसोई में गई और बोली___
हम सोनू बेटा को ताज़ा ताज़ा ब्रेड और बटर खिलाएंगे।।
वो कैसे दादी?सोनू ने पूछा।।
हमारे पास तो ये दोनों चीजें बनाने की मशीन है और हम सोनू को बनाकर दिखाएंगे, बिंदिया बोली।।
फिर बिंदिया दही जमाई हुई बटलोई लेकर आई और उसे मथानी से मथना शुरू किया, धीरे-धीरे दही में से मक्खन निकलने लगा,ये खेल देखकर सोनू को भी मज़ा आ रहा था,वो बड़े ध्यान से देख रहा था,कुछ ही देर में बिंदिया ने ढ़ेर सा ताज़ा मक्खन निकाल लिया जो सफेद रूई की तरह लग रहा था।।
तब पूरन बोला__
देखो सोनू बेटा! आपके बटर का इंतजाम हो गया।।
सोनू ने ताली बजाई और बहुत खुश हुआ।।
अब बिंदिया ने चूल्हा सुलगाया और बाजरे का आटा परात में डालकर गूथने लगी,कुछ ही देर में उसने गरमागरम बाजरे की रोटियां सेंक दी।।
तब पूरन बोला___
सोनू बेटा! ये रही तुम्हारी ब्रेड।।
देख बेटा! ये रहा तेरा देशी ब्रेड और बटर,इसे खाकर ही हम इतने बड़े और मजबूत बने हैं, इसलिए तो दिनभर खेतों में काम पाते हैं, रामसजीवन बोला।।
फिर बिंदिया ने छाछ में नमक डाला ,एक मिट्टी का दीपक अंगारों पर गर्म किया उसमें सरसों का तेल डाला और कुछ राई के दाने और हींग डालकर छाछ में बघार लगा दिया,फिर सबको ढ़ेर सारे मक्खन ,छाछ और आम के अचार के साथ बाजरे की रोटियां परोसी,सोनू ने जीभर के देशी ब्रेड-बटर का आनन्द उठाया।।
समाप्त.....
सरोज वर्मा....