दुल्हन.... Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

दुल्हन....

रिमझिम के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे,वो बस में बैठी यही सोच रही थी कि काश आज उसके पास पंख होते तो वो उड़कर अपने ननिहाल पहुंच जाती,सूजी हुई आंखें और बोझिल मन से वो इन्तज़ार कर रही थी कि कब बस शांति नगर के बस स्टैंड तक पहुंचें.....
उसे अंदर से लग तो रहा था कि ऐसा कुछ होने वाला है लेकिन कल रात को ही हो जाएगा,ये उसने नहीं सोचा था,कल रात ही तो सतेश्वर मामा का फोन आया था कि वो नहीं रहीं, धनी व्यक्तित्व और सहनशीलता में परांगत मेरी नानी शीतला देवी नहीं रहीं,बीमार तो नहीं थीं लेकिन बुढ़ापे ने उनके शरीर को जर्जर कर दिया था,जितना संघर्ष शायद उन्होंने अपने जमाने में किया उतना आज की पीढ़ी कभी नहीं कर सकती,वो बिल्कुल अपने नाम के अनुरूप थीं, गुस्सा क्या होता है? ये उन्हें पता ही नहीं था।।
मैं उनकी सबसे बड़ी नातिन थी इसलिए वो मुझे अपने जमाने की सारी बातें बताया करतीं थीं कि जब वो चौदह वर्ष की थीं तब वो उस घर में दुल्हन बनकर आई थीं,सोलह की होते होते तेरी मां की मैं मां बन गई थी, वो कहतीं थीं कि तुझे क्या मालूम कि हमने उस जमाने में कैसी जिन्दगी जिई है? हमारे लिए तो मायका भी क़ैदखाना था और ससुराल भी कैदखाना था, आज़ादी क्या होती है ये तो जैसे हमने कभी जाना ही नहीं,बस हमें तो ये समझा दिया जाता था कि तुम्हें भगवान ने हाथ पैर लिए है तो बस इन्हीं का उपयोग करो बाकि तो तुम अंधी, गूंगी और बहरी हो, आंख,मुंह और कान जैसे अंगों का उपयोग तुम्हें कभी करना ही नहीं है लेकिन मेरी बच्ची जब तुम्हें देखती हूं ऐसे कंधे पर पर्स टांगे हुए और आंखों में ऐनक लगाए हुए तो लगता है कि जैसे मैं आजाद हो गई,ऐसा लगता है कि खुली हवा में सांस ले रही हूं, तसल्ली होती है कि आज की नारी इतना तो बढ़ गई है कि सिर उठा के और आत्मसम्मान के साथ जी सकती है।।
वरना हम तो अपनी बेड़ियों को कभी तोड़ ही नहीं पाएं,सच ही तो है कि ये गहने हमारी बेड़ियां ही तो है, मंगलसूत्र के नाम पर फांसी का फंदा गले में डाल दिया जाता है, चूड़ियों के नाम पर हाथों में हथकड़ियां पहना दी जाती हैं और पहना दी जातीं हैं पायलों के नाम पर पैरों में बेड़ियां और हम बेवकूफ औरतें उन गहनों को देख देखकर कितना खुश होते हैं कि हम कितने सुन्दर लग रहे हैं,सच तो ये है कि गहनें देकर छीन ली जाती है हमारी स्वतंत्रता और महिला उस दायरे को तोड़कर हम कहीं जा ना पाएं तो घर की बुजुर्ग महिलाएं चाहें वो रिश्ते में कोई भी लगती हो,वे चाहने लगतीं हैं कि फौरन गोद भर जाए ताकि स्त्री घर गृहस्थी और बच्चों के अलावा कुछ और सोच ही ना पाएं,सच तो ये है कि दुल्हन का जब सुहाग चढ़ता है तभी उसकी कनपटी पर गन (gun) रख जाती है इसलिए तो उसे सुहाग gun=(सुहागन) कहते हैं।।
नानी की ये बात सुनकर मुझे हंसी आ गई और मैंने पूछा कि नानी तुमने अंग्रेजी कब सीखी ?
वो बोली,ये तो मैंने बहुत बार सबके मुंह से सुना है, इसलिए पता है।।
फिर वें कहतीं तुझे पता है रिमझिम जब शादी होती है तो दूल्हा लाता है कई तरह के उपकरण जैसे कि छोटी सी डिब्बी में लाल रंग,कांच की चूड़ियां,थोड़ा सोना और चांदी,कुछ कपास के बुने हुए कपड़े और सबसे अंत में लाता है वो अपने नाम का एक हिस्सा और स्त्री के संग गांठ जोड़कर उसे दे देता है अपना नाम.....
और इतना उससे लेने के बाद स्त्री देती रहती है जीवन भर ,उसका देना कभी चुकता ही नहीं और जो स्त्री हमेशा कर्त्तव्यपरायणता से अपना धर्म निभाती रहती है उसे ही शायद समाज सच्ची दुल्हन कहता है, क्योंकि स्त्री का नाम ही तो सिर्फ त्याग करना है,पाना नहीं,ये थे नानी के विचार।।
रिमझिम ये सोच ही रही थी कि नानी ने हमेशा अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया और आज वो सुहागन ही इस दुनिया से अलविदा हुई हैं और तभी बस रूकी, रिमझिम बस से उतरी , रिक्शा किया और फौरन नानी के अन्तिम दर्शन को जा पहुंची,उसने देखा कि उसकी नानी पूरे श्रृंगार के साथ दुल्हन के रूप में मृत्यु शैय्या पर लेटी हुईं हैं,उसने उनके अन्तिम दर्शन किए और रो पड़ी।।

समाप्त___
सरोज वर्मा.....