" तो क्यों ना में गुमशुदा आत्मा को अपने साथ ले जावू ? तुम भी छूट जाओगे और में भी।" यमदूत की बात पर आगे वीर प्रताप कुछ कह पाए तभी वापस दरवाजे की घंटी बजी।
विर प्रताप घर के बाहर गया। " क्या हुआ ?"
" तुम बताओ मुझे। क्या मैं अनोखी दुल्हन हूं या नहीं?" जूही ने पूछा।
" हा । तुम हो।" वीर प्रताप ने गंभीर भाव लाते हुए कहा।
" तो क्या अब मैं तुम्हारी नजरों में कीमती हूं ?" जूही एक आशा के साथ उसे देख रही थी।
" हां तुम हो।" वीर प्रताप।
" इसका मतलब अब तुम यहां से नहीं जाओगे ना ?" जूही ने एक मुस्कान लाते हुए पूछा।
" फिलहाल तो नहीं । पर मुझे जाना पड़ेगा।" वीर प्रताप।
" तो! अनोखी दुल्हन होने की वजह से मेरा पहला काम क्या है ? " जूही ने उत्साह से पूछा।
" तुम्हें मुझ में तलवार कब दिखी ?" वीर प्रताप ने गंभीरता से पूछा।
" पहली मुलाकात में ही दिख गई थी। जब मैंने तुम्हें स्कूल के बाहर भीड़ में देखा।" जूही ने नजरे झुकाते हुए कहा।
" इतनी बार पूछने के बाद भी तुमने मुझे बताया क्यों नहीं ?" वीर प्रताप के दिमाग में अनगिनत सवाल चल रहे थे।
जूही जानती थी कि उसे इन सब सवालों के जवाब देने ही पड़ेंगे। " कैसा लगता है किसी को पहली मुलाकात में पूछना कि तुम्हारे सीने में तलवार क्यों है ? अगर तुम्हें बुरा लग जाता तो ?" उस ने कहा।
"उसके बाद भी मैंने तुम्हें अनगिनत मौके दिए थे। मुझे सच बताने के ?" वीर प्रताप।
" तब मैं डर गई थी। मुझे लगा मैं अनोखी दुल्हन हूं यह पता चलने के बाद अगर तुमने शादी की बात की तो ? क्या मुझे 17 साल की उम्र में ही शादी करनी पड़ेगी ? और उसके बाद क्या ? क्या मैं भी पिशाच बन जाऊंगी ? क्या मुझे तुम्हारे साथ भूतों के शहर जाना होगा ? " जूही ने मासूम नजरों से उसे देखते हुए पूछा।
"भूतों के शहर नाम की कोई जगह नहीं है।" वीर प्रताप ने अपनी हंसी रोक ते हुए कहा।
"क्या मैं पास हो गई?" जूही।
" ह....? मतलब ?" वीर प्रताप।
"क्या मैं सच में तुम्हारे सारे सवालों के जवाब दे पाई ?" जूही ने अपना सवाल ठीक से पूछा।
" हां । तुम दे पाई।" वीर प्रताप ने हंसी रोकते हुए कहा।
" तो बताओ अनोखी दुल्हन होने के बाद मेरा सबसे पहला काम क्या होगा ?" जूही अभी भी उसे घूरे जा रही थी।
" अब जब कि तुम आ गई हो, तुम्हारा पहला काम ही आखरी होगा।" वीर प्रताप ने गहराई से उसकी आंखों में देखते हुए कहा।
" मतलब ? मुझे सच में काम करना पड़ेगा क्या ? मैं समझ नहीं पा रही हूं तुम क्या कहना चाहते हो ? " जूही।
"कुछ नहीं। अब बस यही रुको मैं आता हूं।" वीर प्रताप फिर से उसके सामने गायब हो गया। जूही वही उसकी सीढ़ियों पर बैठी थी।
"तो हम कहां थे ? क्या कह रहे थे तुम ?" वीर प्रताप ने यमदूत के कमरे में एंट्री लेते हुए पूछा।
" तुम्हारी अनोखी दुल्हन आ गई है तो क्या तुम्हें खुश नहीं होना चाहिए ?" यमदूत ने वीर प्रताप से पूछा।
" मैं जानता हूं मुझे होना चाहिए। मैं भी इस लंबी बोरिंग जिंदगी से छुटकारा चाहता था। जब सोचता हूं तो ऐसा लगता है। इतनी जल्दी ? जिंदगी इतनी भी बोरिंग नहीं थी।" वीर प्रताप ने अपनी निराशा यमदूत के पास जाहिर की।
" ठीक है। फिर तो एक ही रास्ता है, क्यों ना मैं उसे अपने साथ ले जाऊं ? मुझे बस एक रात का पेपर वर्क करना पड़ेगा। हमारी दोस्ती के लिए मैं इतना तो कर ही सकता हूं।" यमदूत ने कहा।
" क्या सच में ऐसा हो सकता है ?" वीर प्रताप।
" अगर तुम चाहो तो ?" यमदूत ने उसे देखते हुए कहा।
" तुम मेरे सच्चे दोस्त हो । क्यों ना..." वीर प्रताप आगे कुछ कहता है उससे पहले दरवाजे की घंटी फिर से बजी। " मेरी मौत मुझे बुला रही है।"
" अगर वह दरवाजे की घंटी बजा कर बुला रही है। तो सच में काफी रहम दिल मौत है।" यमदूत। " वैसे तुमने आज तक कभी उसे बुरा लगे ऐसा कुछ तो नहीं कहा ना ?"
यमदूत के इस सवाल पर वीर प्रताप चौक गया। उसे उसकी पुरानी सारी बातें याद आई, जो उसने गुस्से में जूही से कही थी।
" तुम्हें तो तभी मर जाना चाहिए था।"
" तुम बस एक गलती हो जो मुझसे नशे में हुई।"
" तुम्हारी जिंदगी उधार की है खुशी खुशी जिओ।"
तभी फिर से दरवाजे की घंटी बजी।
" मुझे लगता है मुझे जाकर मर ही जाना चाहिए।" वीर प्रताप फिर से घर के बाहर चला गया।
" कहा था ना कुछ देर इंतजार करो। जरा भी सब्र नहीं है तुम में ?" वीर प्रताप ने जुही को डांटने की कोशिश की।
थोड़ा और बेरहमी से डाटो, उसे दिखाओ कि वह बस एक मामूली इंसान है। यमदूत ने अपना दिमाग वीर प्रताप के दिमाग से जोड़ते हुए कहा।
" अब बोलो भी, इतनी क्यों जल्दी थी तुम्हें ?" वीर प्रताप ने फिर से नकली गुस्सा दिखाते हुए पूछा।
" कब से मुझे बाहर अकेला छोड़ गायब हो तुम । मुझे बस यह पूछना था क्या अब अनोखी दुल्हन होने की वजह से मैं तुम्हारे साथ रह सकती हूं ? मतलब पता नहीं मेरी मासी कहां चली गई है उन्होंने अपना घर तक बेच दिया। मेरा सारा डिपॉजिट भी ले गई। अब मेरे पास रहने लायक कोई जगह नहीं है। तो क्या मैं तुम्हारे साथ रह सकती हूं ?" जूही के सवाल को सुन यमदूत और वीर प्रताप दोनों फिर से चौक गए।