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पुराना हैंडपम्प...

बहुत सालों बाद अपने गांव जाने का मौका मिला,जो कि मेरी जन्मभूमि है,सोचा था कि गांव की सैर करते हुए खेतों में भी टहल लेंगे,हरे चने,हरे मटर और बेरों का आनन्द उठाएंगे,यही सोचकर मैं गांव पहुंची, लेकिन वहां पहुंचकर गांव का माहौल एक दम बदला बदला नज़र आ रहा था, मैं तो वहां अपने बचपन की यादें समेटने गई थीं लेकिन शायद पुराने लोगों के साथ साथ पुरानी चीजों ने भी दम तोड़ दिया था।।
जगह जगह गलियों में पानी भरा था, मैंने चाचा से उस का कारण पूछा तो बोले,अब मनमानी सरकारी वाटर सप्लाई आती है तो लोग मोटर चलाकर छोड़ देते हैं, टंकियों का पानी ओवरफ्लो होकर गलियों में बहता रहता है,बिजली का बिल भी लोगों को नहीं देना पड़ता, खंभे से तार फंसाकर मनमानी बिजली का भी दोहन करते हैं इसलिए कोई चिंता नहीं रहती,पहले कुंओं और हैंडपंप से पानी भरना पड़ता था इसलिए इंसान कद़र करता था लेकिन अब तो लोंग ना इंसानों की कद़र करते हैं और ना किसी और चीज की इसलिए शायद ऐसा हाल है।।
मुझे उनकी बातें सुनकर थोड़ा कष्ट हुआ,थोड़ा कष्ट अपने गांव के हालात को देखकर हुआ लेकिन मैं लोगों की मानसिकता को एक दिन में नहीं बदल सकती थी, इसलिए सिवाय दुःख जताने के और कुछ ना कर सकीं।।
कच्चे खपरैलों ने अब कंक्रीट की छतों का रूप ले लिया था,जिन खपरैलों पर मोरों के झुण्ड दिखाई देते थे अब उन पर डिश की छतरियां दिखाईं दे रही थीं, मुझे अपने बचपन की कोई भी पुरानी चीज वहां नहीं दिखी सिवाय मेरे फेवरेट इमली और बरगद के पेड़ के सिवाय,जिनकी छांव में मैं अपने चचेरे भाई बहनों के संग गर्मियों की छुट्टियां बिताया करती थी, जहां पर एक कुआं हुआ करता था और उससे साथ में लगा हुआ एक हैंडपंप भी हुआ करता था,जब हम सब खेलकर थक जाते थे उस हैंडपंप का पानी पी लिया करते थे क्योंकि कुएं में पड़ी गंदगी देखकर मेरे नाक भौंह बन जाते थे और खासकर मैं कुएं का पानी ना पीकर उस हैंडपंप का पानी पीना पसंद करती थीं।।
तभी अचानक मुझे उन पेड़ों की और उस हैंडपंप की याद आ गई, मैंने चाचा से कहा कि आप घर जाओ, मैं थोड़ी देर में गांव घूमकर आती हूं ,चाचा चले गए और मैं अपनी फेवरेट जगह पहुंची जो गांव से थोड़ी बाहर है,जगह थोड़ी उजाड़ सी जरूर हो चुकी थी लेकिन वहां जाकर मुझे आत्मिक शांति का एहसास हुआ जो मेरे लिए अनमोल था, वहां इक्का-दुक्का मोर भी बैठे थे,उन मोरों को देखकर मेरा मन खिल उठा, मैंने बरगद के पेड़ का फेरा लगाया और उसे छूकर देखा,एक अजीब सा एहसास था वो फिर मैंने इमली के पेड़ को भी छुआ,मेरी आंखें भर आईं, मुझे वो सब याद आ गया कि कैसे मैं सबके साथ इस जगह पर खेला करती थी,तभी मेरी नज़र उस पुराने हैंडपंप पर भी पड़ी और भागकर मैं उसके पास गई।।
मैंने उसे चलाकर देखा तो अब भी उसमें पानी आ रहा था, मैंने जल्दी से अपनी अंजुली में पानी लेकर अपना मुंह धोया और पानी भी पिया,उस पानी की मिठास अब भी पहले जैसी ही थी।।
तभी एक एक छोटा बच्चा वहां आ पहुंचा,जिसकी उम्र कोई चार पांच साल होगी,उसने मुझसे पूछा___
तुम कौन हो?
मैंने कहा___
पहले तुम बताओ कि तुम कौन है?
मैं.... मैं..तो बैजू हूं,वो मेरे दादा है,उस बच्चे ने उत्तर दिया।।
मैंने कहा___
मैं... मैं...सरोज
जैसे ही मैंने अपना नाम बताया तो बच्चे के दादा मेरे पास आकर बोले__
सुरेज..तुम! कबें आईं बिटिया?
तब मुझे याद आया ये तो देवी कक्का हैं, जिन्होंने कभी भी आज तक मुझे मेरे असली नाम से नहीं पुकारा, हमेशा कहते कि तुम्हारा नाम कठिन है,हम कभऊ ना लें पा हैं।।
मेरे पापा के सहपाठी थे स्कूल में , बहुत अच्छा लगा उनसे मिलकर, मैंने कुछ देर उनसे बातें की फिर हैंडपंप का पानी पिया,इस बार हैंडपंप देवी कक्का ने चलाया और फिर चाचा के घर आ गई,रात भर सोचती रही कि चलो पुराने हैंडपंप की वजह से कक्का से मुलाकात हो गई।।

समाप्त....
सरोज वर्मा...


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