उपन्यास भाग—१८
दैहिक चाहत –१८
आर. एन. सुनगरया,
सुखद समय ने शीला के सामान्य जीवन में दस्तक दी है। जिससे उसकी बेरंग जिन्दगी रंगीन हो सकती है, वीरान जीवन के पतझड़ में बहार आ सकती है। उबाऊ दिनचर्या से छुटकारा मिल सकता है। समाज, जात-बिरादरी के निर्धारित नियम, कानून, वरिष्ठ ज्ञानियों, जानकारों के भी भरकम शब्दजाल से सुसज्जित उपदेश, धार्मिक मान्यताओं, मिथकों का निर्वहन, प्रत्येक्ष, अप्रत्येक्ष कड़ी नज़रों का पहरा इत्यादि-इत्यादि के अदृश्य बन्धनों में उलझकर नारी शयैयाद के भ्रमजाल में फंसे परिन्दे की भांति फड़फड़ा तो सकती है, उड़ने के लिये खुला आसमान देख तो सकती है, मगर बेवश है, अपनी नियति पर ऑंसू बहाने के अलाबा कोई विकल्प दिखाई नहीं देता है।
शरीर पर कुदरती असर का यथार्थ, सहन करने के सिवा कोई रास्ता नहीं। अकेलेपन का अज़गर अलग मुँह खोले लपकता रहता है। इसका कोई काट नहीं..........ये सब तो स्वाभाविक प्राकृतिक बाध्यतायें हैं। मर्यादाओं का पालन करके इन सब असुविधाओं से निजात पाई जा सकती है; धैर्यपूर्वक गम्भीरता से सम्पूर्ण परिस्थितियों, पर गौर करके एवं भविष्य की अनजानी समस्याओं का अन्दाज लगाया जा सकता है। उन्नीस-बीस के फर्क की सम्भावनाऍं होंगी सम्भवत:।
नीरस ढर्रे पर चली आ रही लाइफ की रफ्तार, चलती चली जायेगी, जब तक कहीं कोई खुशगंवार मौड़ नहीं आयेगा।
देव का प्रस्ताव खुशहाल उज्जवल भविष्य की और जिन्दगी का मौड़ मील का पत्थर साबित हो सकता है। समग्र हालात अनुकूल तो हैं, फिर भी एक बार और अवलोकन करने में हर्ज ही क्या है। शीला ने सिलसिले बार, अदृश्य पृष्ठ पलटने प्रारम्भ किये........।
शारीरिक डील-डौल, गेहूँआ रंग, गठीली कद काठी, भरी-पूरी स्ट्रॉंग, शैक्षणिक मास्टर डिग्री इन्जिनियरिंग में, आर्थिक आधार दृढ़, बोल-चाल, बात-व्यवहार, चाल-चलन, सामाजिक पूछ-परख, सब कुछ सम्मान जनक, दूर-दूर तक कोई दोष का तनिक भी, अनुमान लगाना असम्भव है। हर स्तर पर पूर्ण स्वीकार है।
मोबाइल की वेल घनघना उठी शीला ने चौंक कर मोवाइल ऑन किया, ‘’हैल्लो, तनूजा, बोल..........।‘’
दूसरी ओर तनूजा के स्वर में तनया का स्वर भी शामिल कर लिया। ‘’हॉं मॉम चूको मत तत्काल आगे बढ़कर स्वागत करो, ऐसे अनुकूल अवसर का........।‘’
‘’हॉं, कशमाकश में थी।‘’ शीला ने अपनी उलझन का जिक्र किया, ‘’कहीं तुम्हारे भविष्य पर कोई ऑंच ना आ जाये..........।‘’
‘’ऐसी कोई सम्भावना नहीं है मॉम।‘’ दोनों बेटियों का संयुक्त स्वर, ‘’चिन्ता ना करो हम भी सक्षम हैं।‘’
‘’कुछ ऊँच-नीच हुई तो हम अलग-थलग पड़ जायेंगे।‘’
‘’सारी शंकाऍं, कुशंकाऍं, त्याग कर आगे बढ़ो, देव सुसज्जन, सुसभ्य पुरूष हैं। बोल-बतराने में पारदर्शिता एवं दृढ़ता है, संकल्पित, समर्पित प्रतीत होता है। संगठित परिवार के लिये ललायित, सेवाभावी, चहेता है। स्वार्थपरता का लेसमात्र भी आभास नहीं होता है। प्यार, प्रीत, प्रेम के बदले अपनापन, सहानुभूति का प्यासा है। स्वसंग्रह ना करके सब कुछ, आपके ऊपर लुटाने में तत्पर है। सबके साथ घुल-मिलकर, मेल-जोल बढ़ाकर अमन-चैन से खुशहाल होना चाहता है। सपरिवार खुश्गंवार, हंसी-खुशी से रहना उनका मकसद है। हम सब के लिये कुछ ना कुछ कुर्बानी देकर अपना बनाना चाहता है। पारिवारिक भावनाओं का संयुक्त पक्षधर है........।‘’
‘’ये सब हवा-हवाई जुमले नहीं हैं, समग्र कार्यकलाप को बाकायदा कानूनी जामा पहनाना चाहता है।‘’
शीला के हुस्न पर दीवाना देव मर मिटना चाहता है। सदैव शीला को अपने पहलु में संजोय रखना चाहता है। दिल-दिमाग, हृदय-आत्मा में स्थाई रूप से स्थापित करना अथवा अंकित करना चाहता है।
देव का हृदय स्पर्शिय ग्रिप बहुत ही नाजुक, मुलायम, छुई-मुई होता है। वह जोश-खरोश में भी आक्रामक नहीं होता। स्पर्श सुख का महीन एहसास परमानन्द महसूस भर होता है।
शीला की मंशा, मर्जी, इच्छा के विपरीत देव उंगली से तक नहीं छूता.........भावावेश को नियंत्रित करके जब शीला की भाव भंगिमा, रंगीन मिजाजी, मस्ती में मस्त आलंगन की सांकेतिक मुस्कुराहट भरी अपील नहीं करती, अप्रत्येक्ष ही सही, तब तक देव अपनी मर्यादित सीमा का उल्लंघन नहीं करता। बहुत ही नाजुक अन्दाज में तन-बदन पर घर्षण महसूस होता है, जैसे पानी के रेले मचलते हुये, सारे शरीर पर फिसल रहे हों। इतनी दिव्य अनुभूति का आभास होता है कि तपते बदन पर शीतल पवन का झोंका चूम-चूमकर सिहरन पैदा कर रहा हो। क्षण-दर-क्षण........फूलों-कलियों से लदी डाली, टहनी झूल कर शीतल समीर के झौंकों को कोमलता से आमन्त्रित करके अपनी थरथराहट को संतुष्ठ कर रही हो।
देव की अतिसंतुलित उंगलियॉं जब शीला के अंग प्रत्येंग पर नृत्यात्मक क्रिड़ा करती हैं, तब शमा शास्त्रीय संगीत स्वर में सितार के तार झंकृत होकर पूरे वातावरण में मंद-मंद सुर लहरी समागम में तल्लीन हो जाती है। अद्भुत दिव्य आनन्द का दरिया देव-शीला को बहा ले जाता है, प्रणय की गहराइयों में! दो बदन एक जान, दो फूल, सुगन्ध एक ! तन दो- आत्मा एक, शरीर दो- परछाई एक.........।
‘’हैल्लो.......हैल्लो मॉम !’’
‘’हॉं बोल........।‘’ शीला जैसे खो गई थी, चीख पड़ी।
‘’आप इनकार का तो सोचो ही मत.........।‘’
‘’हॉं, स्वीकार तो है।‘’ शीला अटक गई, ‘’फिर भी, मंजूर करने का साहस नहीं जुटा पा रही हूँ।‘’ शीला आगे बोलती ही गई, ‘’ना जाने कहॉं, कौन सी फॉंस फंसी है !’’
‘’तुम्हारा दिल-दिमाग किसी बहम में उलझ गया है।‘’ दोनों बेटियों ने दृढ़ स्वर में कहा, ‘’झटक दो, जो भी है, सीना तान कर कह दो, पुनर्विवाह करना है, जल्दी ही।‘’ संयुक्त ध्वनी।
शीला चुप रही।
‘’सुना मॉम।‘’ दोनों की हंसी, सुनाई दी।
‘’हॉं ।‘’ शीला चुप हो गई मोबाइल कट कर दिया।
शीला बुझी-बुझी सी गम्भीर मसले पर गौर कर रही थी, तभी देव अत्यन्त प्रसन्न अन्दाज में लगभग चीखते हुये, ‘’शीला !’’ देव ने देखा।
‘’हूँ !’’ शीला की ध्वनी।
‘’तुम्हारी पसन्नदीदा वस्तु ढूँढ़ ही लिया पहली बार।‘’ देव चहक रहा है, जैसे समुन्द्र में गोता लगाकर मोती खोज लाया हो।
‘’ऐसी क्या है, मन पसन्नद !’’
‘’बेटियों से तुम्हारी चहेती रेसिपी मालूम हुई,……….हाजिर है, खिदमत में !’’
‘’आखिर है क्या दिखाओ........।‘’ शीला की जिज्ञासा बढ़ने लगी।
‘’ये लो नान वेजिटेरियन ब्रियानी’’ देव बहुत खुश है। जैसे दुर्लभ सामग्री जुटा लिया है।
‘’वेरी गुड !’’ शीला ने देव से पैकेट लेकर खोलना शुरू किया।
‘’आओ डायनिंग टेबल पर बैठते हैं।‘’ देव-शीला का बाजू पकड़कर टेबल की ओर बढ़ा।
‘’खुशबू तो अच्छी है।‘’ शीला ने टेबल पर रखकर पैक पूरा खोल लिया। फुल्लो को पुकारा, ‘’दो प्लेट-चम्मच भी साथ में लाना’’ देव की तरफ देखकर, ‘’लोगे ना ?’’
देव टेबल पर वॉंय हाथ की कोहनी टिकाकर, अपने गाल पर हथेली टिकाकर दार्शनिक बना मंद-मंद मुस्कुराहट लिये औंठों पर, कन्खियों से शीला को निहारे जा रहा है, ‘’कितनी खिली-खिली, मुखमंडल पर ललचाई लाली छाई हुई है; देव मन-ही-मन ठान रहा है, शीला की प्रसन्नता के लिये, उसे हर समय, सदैव, मन-मुताबिक साजो-सामान का संग्रह करना होगा उसके दृष्टिकोण के अनुसार।
‘’मुद्दतों बाद.......आज ब्रियानी खाने का शौक जीवित हो उठा है, इच्छा हरिभरी हो गई।‘’ शीला का बाल-सुलभ चेहरा जैसे बालक अपनी चाव से खाने वाली स्वादिष्ट मिठाई पा गया हो।
औपचारिकता को भूलकर, एक निवाला मुँह में डालकर, तारीफों के पुल बॉंधने लगी। देव की ओर देखकर, ‘’तुम्हें यह सूझा कैसे बहुत स्वादिष्ट है। वेरी गुड टेस्ट.........।‘’ दूसरी प्लेट में रखकर देव की तरफ बढ़ाकर, ‘’खाओ ना, खाकर देखो, चखो तो.........।‘’ अभी प्लेट शीला के ही हाथ में है।
‘’तुम्हें खुशी-खुशी टेस्ट ले-लेकर चबा-चबा कर चाव से खाते हुये देखकर ज्यादा अच्छा लग रहा है। एक टक देखते रहना चाहता हूँ। तुम्हारे गब्बदूरे गालों, एवं औंठों का कसरती मूवमेन्ट जैसा आनन्द फिर कहॉं, विभिन्न डिम्पल बनना, मिटना कितना आकर्षक लग रहा है। जैसे बहती धारा में ताजा-ताजा गुलाब हिचकोले ले-लेकर बह रहा हो, उसकी पंखुडि़यॉं कपकपा रही हों, होले-होले, सचमुच बहुत सुन्दर लग रहा है। खूब भा रहा है, तुम्हारा चेहरा।‘’
‘’लो ना !’’ शीला ने इठिलाते, मुस्कुराते प्लेट बढ़ाई, ‘’खाते-खाते देखो, जो देखना हो.....।‘’
देव ने प्लेट अपने हाथ में लेकर टेबल पर रख दी, मगर नज़रें नहीं हटाईं।
देव-शीला खुश मिजाज मुद्रा में सोफे पर, आमने-सामने बैठे-बैठे सामान्य शॉंत भाव से एक-दूसरे को देखकर कुछ बातें करने के लिये उदित लग रहे हैं। दोनों के चेहरों पर संतोष स्पष्ट उभर आया है।
फेमिलियर प्रोजेक्ट का टेस्ट एण्ड ट्रायल हो चुका है, कॉमीशनिंग की डेट भी फिक्स हो गई है........। तत्पश्चात एक दूसरे को हेण्डऑवर की फार्मिलिटी शेष रहेगी फाइनली........।‘’
शीला-देव दोनों इन्जिनीयर हैं, तो टेक्नीकल भाषा में अपने-अपने ऑवजरवेशन व्यक्त करेंगे ही.............।
न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्
क्रमश:---१९
संक्षिप्त परिचय
1-नाम:- रामनारयण सुनगरया
2- जन्म:– 01/ 08/ 1956.
3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्नातक
4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से
साहित्यालंकार की उपाधि।
2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्बाला छावनी से
5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्यादि समय- समय
पर प्रकाशित एवं चर्चित।
2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल
सम्पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्तर पर सराहना मिली
6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्न विषयक कृति ।
7- सम्प्रति--- स्वनिवृत्त्िा के पश्चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं स्वतंत्र
लेखन।
8- सम्पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)
मो./ व्हाट्सएप्प नं.- 91318-94197
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