उपन्यास भाग—६
दैहिक चाहत –६
आर. एन. सुनगरया,
सहकर्मी समय के परिवर्तनीय प्रवाह के साथ-साथ कार्य करते-करते परस्पर एक दूसरे से सहानुभूति पूर्वक बात-व्यवहार के स्तर पर अपने-अपने दु:ख-दर्द में सहभागी बनना स्वाभाविक प्रक्रिया है।
देव जीवन के विपरीत हालातों के दुष्प्रभावों को गम्भीरता पूर्वक अंगीकार करके उदासीन होकर अपना मनोबल गिरा लिया है। ऊर्जावान मंथन में निष्क्रिय हो गया है। जीवन का उत्साह-उल्लास खो चुका है। जिजीविषा समाप्त हो गई है।
शीला को महसूस हुआ, देव अपने वर्तमान से विरक्त हो रहा है। अपने अस्तित्व को नकार रहा है। नीरसता के गर्त में धंसता जा रहा है। अपना आत्मविश्वास एवं आत्मसम्मान को विस्मृत कर बैठा है। निराशा ने अपना शिकन्जा कस लिया है। आस की एक किरण तक दिखाई नहीं दे रही है। तर्क-विवेक मंथन तथा बौद्धिक क्षमता शक्तिहीन जान पड़ती है। अपने आपको अन्धे कुँये से उबारने का यत्न ही नहीं कर पा रहा है।
शीला ने इन्सानियत के नाते सेवाभावी पद्धिति के द्वारा देव को आन्तरिक संकट से उबारने का प्रयास किया। अपने कुशल व्यवहार, मृदुवाणीयुक्त प्रभावशाली शब्दों से देव के मनोबल को ऊँचा किया, व्यक्तित्व में सोई हुई, अन्तर्निहित शक्तियों को जाग्रत किया। मनोवैज्ञानिक चिकित्सक की भॉंति देव को बौद्धिक स्तर पर अपने सद्गुणों की याद ताजा करने का प्रयास किया। जिन्दगी के दर्शन, मकसद और उद्देश की विवेक पूर्ण सार्थकता बताई। इन सब बात-विचारों का देव के दिल दिमाग पर अत्यन्त सकारात्मक असर हुआ तथा देव की आत्मा चीत्कार कर उठी और वह उठ खड़ा हुआ, उत्साह, उमंग एवं उल्लास से भरपूर अत्यन्त प्रफुल्ल, जिन्दादिल, सक्रिय, अपनी पूरी इन्द्रियों को समेटकर वर्तमान को समग्र रूप से जी लेना चाहता है। कोई पहलू छूट ना जाये, यही मकसद है, उसकी जिन्दगी का, फुल्ल इन्ज्वायमेन्ट।
विभिन्न शहर अथवा ग्रामीण क्षेत्रों से आये हुये लोग, अपनी शिक्षा अथवा कावलियत के अनुसार अन्य–अन्य पदों पर आसीन, एक ही संस्थान में अलग-अलग विभागों में छोटे-बड़े समूहों में कार्यरत रहते हैं। जो अनेक परिवेश के रहवासी, संस्कृतियों के सदस्य, जुदा-जुदा भाषा-भाषी, रहन-सहन, बोल-चाल, खान-पान, वेशभूषा इत्यादि-इत्यादि में विभिन्नता होने के बावजूद भी, सब-के-सब मानवीय मूल तत्वों एवं प्रवृतियों, भावनाओं, मनोकामनाओं, आवश्यकताओं के आधार पर, परस्पर आत्मीयता, सम्वेदनाऍं, दु:ख-सुख, अमन-चैन, प्रीत-प्रेम-प्यार-स्नेह जैसे सामान्य गुण-धर्म के तत्वों के कारण एक-दूसरे से घुले-मिले, भाई-चारे, सद्भाव जैसी सम्मिलित विशेषताओं के परिणाम स्वरूप सुगठित परिवार की तरह अपने-अपने कर्त्तव्यों का पालन करते हैं। मर्यादित तथा अनुशासित रहकर संस्था का काम सुचारू रूप से चलता रहता है। साधारणत: कोई किसी को बाधित नहीं करता, प्रत्येक सदस्य अपनी-अपनी सुविधानुसार अपना काम सम्पन्न करता है। ऑफिसियली प्रोटोकॉल एवं निर्धारित कोड-ऑफ-कन्डेक्ट, स्टेन्डिंग आर्डर के अनुसार।
ऑफिसियली कार्यकलाप के साथ-साथ ही कुछ आत्मिक, भावात्मिक एवं आपसी आकर्षण भी पनपने लगता है, जो अनुकूल जलवायु, वातावरण अथवा परिस्थितियों के प्रेरक प्रभाव के कारण विकसित होने लगता है। जो निरन्तर खुराक-खाद्य-हवा-पानी पाकर एक-दूसरे को आकर्षित करने में उत्प्रेरक का कार्य करता है। इस आन्तरिक ऊर्जा से नैसर्गिक तृष्णा, अतृप्ति, अव्यक्त प्यास प्रस्फुटित होती है। जिसके कारण शरीर की समग्र सुशुप्त इन्द्रियॉं जाग्रत होकर एक बिन्दु पर केन्द्रित हो जाती हैं। जो सामाजिक मर्यादाओं तथा शारीरिक बन्दिशें तोड़ने की शक्ति अर्जित करने लगती हैं। प्रतीक्षा की अज्ञात सीमा तक........।
कैबिन के सामने खड़ा देव एक टक शीला को घूरे जा रहा है, ड्राईंग पर नज़रें गढ़ाये शीला कुछ गम्भीर गुत्थी को समझने की चेष्टा कर रही है। टेबल पर बिछी ड्राईंग पर झुकी इतनी सटी हुई है कि उरोजों का भार ड्राईंग शीट पर अवलम्बित है। जुल्फों की एक लट लहरिया खाती, गाल से चिपकी, गले के नीचे तक झूल रही है। पंखे की हवा के द्वारा बल खा-खाकर शरीर का स्पन्दन करती हुई दृश्य को सजीव सुन्दर बना रही है।
देव सकपका गया। शीला ने फुर्ती से चेहरा ऊपर किया और चेयर पर व्यवस्थित होकर बोली, ‘’येस देव !’’
‘’डिस्टर्व तो नहीं किया।‘’ देव ने लगभग मुस्कुराते हुये कहा, ‘’तन्मयता से ड्राईंग पढ़ने की प्रेरणा ले रहा था, शॉंत खड़े हो कर।‘’
‘’चलना नहीं है !’’
‘’हो गया टाइम।‘’ शीला ने ऑफिस की घड़ी देखी।
‘’एक जीप मैन्टेनेन्स में है।‘’ देव ने बताया, ‘’दूसरी जीप में चलते हैं।‘’
दोनों खामोश, कोई अवसर नहीं ढूँढ़ पा रहे हैं, चर्चा का। जब्कि एक-दूसरे से कुछ तो सुनना-कहना चाहते हैं।
‘’कॉफी हॉऊस की ओर से चलते हैं।‘’ देव ने प्रस्ताव किया।
‘’हॉं चलिये।‘’ शीला ने अनुमोदन किया।
पुन: खामोशी !
कुछ ही मिनटों के पश्चात् जीप कॉफी हॉऊस के सामने रूक गई।
‘’चलिए।‘’ दोनों का संयुक्त स्वर गूँजा। गेटकीपर ने झुककर सलाम किया साथ ही गेट खोल दिया।
टूशीटर टेबल पर इत्मिनान से दोनों बैठ गये। तत्काल एक वैरा पानी से भरे दो ग्लास रख गया। शीला-देव ने सलाह-मशवरा करके तय किया, क्यों ना डिनर पैक करा लिया जाय।
वैरा हेन्ड पेड लेकर खड़ा हो गया, ‘’आर्डर प्लीज !’’
देव ने ही आर्डर लिखवाया, ‘’फिलहाल दो कॉफी, दो प्लेट कटलेट के साथ।‘’ आगे बताया, ‘’दो डिनर पैक पार्सल।‘’
‘’येस सर !’’ बोलते हुये वैरा चला गया।
‘’हॉस्टल में तो सन्नाटा रहता होगा।‘’ देवने वार्ता का सिलसिला चालू किया।
‘’हॉं, टाइम वीईंग रहते हैं, लोग।‘’ शीला ने संक्षेप्त उत्तर दिया।
‘’ क्वार्टर एलॉट होने में तो कुछ माह लग सकते हैं।‘’ देव ने शंका की।
‘’शायद !’’
‘’तो तब तक...........।‘’ देव ने झटके में बोल दिया, ‘’मेरे क्वार्टर के गेस्ट रूम में शिफ्ट कर लो।‘’
शीला घूरने लगी तिरछी नज़रों से, देव ने अपनी पलकें झुका लीं; तनिक भी अनुमान नहीं था, कि देव कोई ऐसा प्रस्ताव देगा। मगर बोल ही दिया है, तो टैकल कर लेते हैं।
‘’सॉरी, रिफ्यूज करना हो, तो.......।‘’ देव ने असहज अन्दाज में कहा।
‘’कदाचित मेरी सुविधा के लिये ही आपने यह प्रस्ताव रखा है।‘’ शीला की बात-विचार सुनकर कुछ राहत मिली, देव को।
‘’अवश्य !’’ देव ने शीला के एहसानों को दोहराया, ‘’तुमने ही तो मुझे जीवन को जीते रहने का दर्शन पढ़ाया, अन्यथा मैं तो अपनी लाइफ को समाप्त प्राय: समझ रहा था, विद आऊट चार्मिंग.........।‘’
‘’ये सब तो मैंने इन्सानियत के नाते किया था।‘’ शीला ने विनम्रता दिखाई।
‘’ये तुम्हारा बड़प्पन है।‘’ देव बोला।
‘’एहसानों की गिनती मत करो। मुझे बदले में कुछ नहीं चाहिए।‘’ शीला ने कहा ।
‘’ना सही, मगर मुझे भी तो इन्सानियत निवाहने का अवसर दो।‘’ देव ने अपनत्व के साथ जोर देकर कहा, ‘’आत्मियता, मित्रता अथवा मानवीय रिश्ते के अन्तर्गत, स्वीकार कर लो। मुझे भी तसल्ली होगी।‘’
‘’तुम्हारा प्रस्ताव......।‘’ शीला ने मुस्कुराते हुये, आगे कहा, ‘’……है, एज लाइक रिलेशनशिप।‘’ दोनों को हंसी आ गई।
कॉफी-कटलेट रखकर, वैरा लौट गया।
क्वार्टर का पिछला द्वार खोलकर देव ने पुकारा, ‘’बल्लू.....फुल्लो.......।‘’
‘’हॉं साबजी, आया।‘’ प्रतिउत्तर मिला ।
देव एवं शीला अपने-अपने छुट-पुट कामों में लगे थे तभी बल्लू-फुल्लो ने प्रवेश किया, देव ने दोनों पति-पत्नी को इंगित करके बताया, ‘’ये शीला मैडम हैं, अपनी खासम-खास मेहमान।‘’ जोर देकर कहा देव ने, ‘’कोई असुविधा नहीं होनी चाहिए, इन्हें।‘’
‘’जी।‘’ हाथ जोड़कर बल्लू ने पत्नी फुल्लो के साथ संयुक्त स्वर में, ‘’नमस्ते।‘’ किया, आदर एवं विनम्रता पूर्वक।
शीला ने उन दोनों पर कृपा दृष्टि डाली एवं अभिवादन का सांकेतिक जबाव दिया।
शीला के निकट आकर देव ने जानकारी दी, ‘’ये दोनों पति-पत्नी ही घर के सारे काम सम्हालते हैं। यहीं सर्वेन्ट रूम में रहते हैं। परिश्रमी हैं। कभी कोई जरूरत हो तो तुरन्त आ जायेंगे, एक पुकार पर।‘’ देव ने आगे मुस्कुराते हुये कहा, ‘’एक तरह से यह मेरे केयर टेकर हैं।‘’
सब अपने-अपने काम के मोर्चों पर कार्यरत हो गये।
देव-शीला अपने-आप को रिफ्रेस करने लॉन में पड़ीं आराम कुर्सियों पर बैठे संध्याकाल का प्राकृतिक शुकून महसूस कर रहे थे, देव ने पूछा, ‘’कैसा फील होता है, यहॉं.....।‘’
शीला तुरन्त बोली, ‘’बहुत बैटर व खुशगवार लग रहा है। खुला-खुला, आवागवन चहल-पहल, बिलकुल गतिशील एटमास्फर!’’
‘’आपकी प्रजेन्स में क्वार्टर का कौना-कौना सजीव सा आभास करा रहा है।‘’ देव ने अपने शब्दों में शीला के महत्व को व्यक्त किया।
‘’यहॉं शहरी कॉलोनी।‘’ शीला ने कहा, ‘’अथवा प्लान्ट का टाऊनशिप जैसा माहौल है।‘’
‘’टाऊनशिप ही है, शीला मैडम।‘’ दोनों खिलखिलाने लगते हैं।
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क्रमश:---७
संक्षिप्त परिचय
1-नाम:- रामनारयण सुनगरया
2- जन्म:– 01/ 08/ 1956.
3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्नातक
4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से
साहित्यालंकार की उपाधि।
2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्बाला छावनी से
5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्यादि समय- समय
पर प्रकाशित एवं चर्चित।
2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल
सम्पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्तर पर सराहना मिली
6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्न विषयक कृति ।
7- सम्प्रति--- स्वनिवृत्त्िा के पश्चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं स्वतंत्र
लेखन।
8- सम्पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)
मो./ व्हाट्सएप्प नं.- 91318-94197
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