DAIHIK CHAHAT - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

दैहिक चाहत - 8

उपन्‍यास भाग—८

दैहिक चाहत –८

आर. एन. सुनगरया,

देव की सहानुभूति, सम्‍वेदनशीलता, हितैसी होने का एहसास, चाहत प्रदर्शन के अवसर, आत्मिय सम्‍बन्‍धों के आधिकारिक दावे-प्रतिदावे, सम्‍मोहित करने वाला मृदुवाणीयुक्‍त, बात-व्‍यवहार, अव्‍यक्‍त रिश्‍तों की मिठास-मधुरता अपने प्‍यारे प्रभावों को शनै: - शनै: मन-मस्तिष्‍क एवं आत्‍मॉंगन में स्‍थाई स्‍थापना सुनिश्चित करते रहने का आभास कराते रहने का एहसास हो रहा है। किसी भी सुसभ्‍य सम्‍बन्‍ध के पनपने के लिये, ये पर्याप्‍त प्रतिमान हैं अथवा शुभलक्षण हैं। इन सम्‍पूर्ण स्‍वाभाविक कारणों को नजर अंदाज करना अथवा नकारना अत्‍यन्‍त कठिन ही नहीं बल्कि असम्‍भव जैसा है। अतएव इसे स्‍वीकारते हुये, खोजपरक सोच-विचार कर, सर्वमान्‍य स्‍वरूप देकर रिश्‍ते का सुस्‍पष्‍ट नामकरण करना ही श्रेष्‍ठकर होगा। ताकि सामाजिक विभिन्‍न फसाने, माहौल में तैरने से पहले ही दफ़न हो सकें। किसी तरह के चारित्रिक लॉंछन को पनपने से रोका जा सके। अपनी सुविधानुसार सामाजिक परम्‍पराओं एवं प्राकृतिक मान्‍यताओं को अपनाने में ही सुख-शॉंति कायम रहकर सुकल्‍याणकारी हो सकती है। शेष सारा सुचारू रूप से जीवन निर्वहन हो सके। बगैर किसी खील-खटके रहित।

देव सरल, सीधा, सुसभ्‍य, सुसंस्‍कारी, सुसम्‍मानित, सम्‍पन्‍न, बुद्धिजीवी, सुदृढ़ आर्थिक स्थिति, मान-सम्‍मान-मर्यादा, प्रतिष्‍ठा आदि-आदि से सुसज्जित।

अपना समग्र प्‍यार, प्रेम, दुलार, लाड़, निर्मल हृदय एवं स्‍वत: ही अर्पण करने वाला। पल-पल सर्वसुविधाओं का ध्‍यान रखने हेतु सदैव उदित। प्रत्‍येक्ष-अप्रत्‍येक्ष आने वाली सम्‍पूर्ण जिम्‍मेदारियों को अपना परम कर्त्तव्‍य की भॉंति निवाहने वाला, बगैर बाधा, ना-नुकर बिना खुशी-खुशी सम्‍पन्‍न करने की क्षमता एवं इच्‍छा रखने वाला। हर दृष्टि से सकारात्‍मक सोच-विचार करने के कुदरती गुण से परिपूर्ण। हर क्ष्‍ाण प्रफुल्‍लता पूर्वक भरपूर जीने का हौसला रखने वाला।

शीला को लगा कि समग्र विशेषाताओं को मन-मंथन में मथ कर ही विश्‍वासपूर्वक धारणा निर्धारित की है। इसमें कहीं भी धोखा खाने की गुन्‍जाईश, दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है। अब इस सम्‍बन्‍ध को कोई कानूनी एवं सामाजिक नाम देना ही शेष है।

निश्चित रूप से देव के सामने यह प्रस्‍ताव शीला को ही रखना उचित होगा। बेटियों को भी, वर्तमान-भविष्‍य की सम्‍भावित परिस्थ्‍िातियों से शीला ही विस्‍तार से उन्‍हें अवगत एवं समझाईश दे सकती है। उनकी रजामन्‍दी तथा मंशा की थाह, लेना आवश्‍यक होगा।

शीला अपने जीवन के अहम अथवा खास फैसले को क्रियाम्वित करने हेतु दिल-दिमाग एवं आत्‍मा को दृढ़ करने में लग गई। विचारों के सैलाव आने शुरू हो गये। निर्णायक स्‍तर पर ले जाना शीला की ही जिम्‍मेदारी है। अगर तनिक भी चूक या लापरवाही हुई तो रिटेक करने को अवसर भी नहीं मिलेगा। सिवाय भुगतने के अन्‍य कोई विकल्‍प नहीं बचेगा! सेफ्टी शुल्‍ड बी मस्‍ट ! अटल संकल्‍प करके, कमरकस ली शीला ने ! आगे बढ़ना है दृढ़तापूर्वक.........।

तत्तक्षण योजनाऍं बुनना प्रारम्‍भ कर दिया शीला ने; अवसरों, सही समय, अनुकूल परिस्थितियों की प्रतीक्षा करने लगी। अपना मिशन जिन्‍दगी को अमलीजामा पहनाने हेतु संकल्पित !

मोवाइल की वेल बज रही है। शीला लपककर, ऑन करती है।

‘’हॉं मॉम, तनया भी मेरे पास आई है। विडियो कॉल कॉन्‍फ्रेसिंग.........।‘’

‘’हॉं, समझी कैसी हो तुम दोनों।‘’

‘’मॉम देख तो रही हो विडियो में............।‘’

‘’हॉं हॉं, बहुत सुन्‍दर दिख रही हो दोनों, चेहरे पर अति प्रफुल्‍लता एवं आत्‍मविश्‍वास की चमक है। ताजा-ताजा खिली कलियों की नवोदित आभा महसूस हो रही है।

‘’आपके फेस पर भी भरपूर ग्‍लेमर रोशन हो रहा है।‘’

‘’आप हमारी मॉम ही नहीं, अंतरंग सहेली भी हो...........। बल्कि उससे भी दो कदम आगे राजदार, ऑंतरिक-बाहरी दोनों प्रकार के गोपनीय अतीत की चश्‍मदीद हो.........प्रत्‍येक कुदरती, शारीरिक-मानसिक परिवर्तनों की सलाहकार एवं मार्गदर्शक हो, अनेक जाने-अनजाने अन्‍दरूनी प्रक्रियाओं के बदलावों के कारणों एवं निवारणों को तुम्‍हीं ने व्‍याख्‍यायित किया है।‘’

‘’अच्‍छी संस्‍कृति-संस्‍कार ग्रहण कर चुकी हो, मुझसे भी अधिक जानकारी तुमने हासिल कर ली है।‘’

‘’आपने ही हमें ऊँगली पकड़कर चलना सिखाया है। दुनियादारी को समझने का सशक्‍त दृष्किोण दिया है। जो हमें उम्र भर तुम्‍हारी प्रतिछाया के रूप में हमारी विरासत बनी रहेगी।‘’

‘’बहुत बड़ी-बड़ी समझदारी-दुनियादारी की बातें करने लगी हो। पूर्ण परिपक्‍व हो गई हो।‘’

‘’आपकी हौसला अफजाई, जो आपने समय-समय पर की है। उसी समझाईश का नतीजा है, कि आज हम पूर्ण आत्‍मनिर्भर हैं। किसी भी प्रकार के तूफान के सम्‍मुख दृढ़ता से खड़े रह कर मुकाबला करने के लिये सक्षम हैं। पूर्ण सफलता का माद्दा रखती हैं।‘’

‘’यही तो चिन्‍ता है।‘’

‘’तुम्‍हारे पिताजी का सपना और संकल्‍प पूर्ण होने में अभी वक्‍त है.........’’

‘’पिताजी की मंशा अनुसार ही हमने अपना उत्‍कृष्‍ठ कैरियर बनाया है। वे जहॉं भी होंगे गर्व महसूस कर रहे होंगे............स्‍वर्ग में........।‘’

‘’वास्‍तविक बड़ी, बल्कि सबसे बड़ी चुनौती तो अभी शेष है।‘’

‘’तुम दोनों का किसी अच्‍छी कम्‍पनी में सिलेक्‍शन एवं सर्व सम्‍पन्‍न जीवन साथी का चयन.....!’’

‘’मोबाइल के निकट आकर दोनों एक स्‍वर में बोल पड़ीं, ’’आपकी दोनों चिन्‍ताओं से अपने-आपको पूर्ण मुक्‍त समझो, अब ये चिन्‍ताएँ हम अपने कन्‍धों पर धारण करेंगी। आप तो अपने अनुभवों से परख भर लेना, आपका निर्णय सिरोधार्य एवं अन्तिम........बस।‘’

‘’वाह-वाह मेरी हीरे-मोती जैसी बेटियों,….बेटों समान। जितना भी गर्व करूँ, कम है।‘’

‘’हम अति प्रसन्‍न हुईं, आपका एटीट्यूट सुनकर, आपने हमें एप्‍रूव्‍ड लाईसेन्‍स थमा दिया, भविष्‍य सम्‍भारने हेतु..........हमें फुल रेस्‍पॉन्सिविलिटी देकर हमारी, सोच-समझ पर पूर्णत: विश्‍वास जताया है। हमारी कोशिश होगी कि तुम्‍हें निराश ना होना पड़े।‘’

‘’हॉं तुम दोनों का आशीर्वाद मेरे ऊपर कर्ज रहा........। जिसे चुकाने में मुझे जिन्‍दगी की सबसे बड़ी खुशी मिलेगी, मानो मैं गंगा नहा ली..........।‘’

तीनों भावुक हो गईं.....। तनूजा ने विदा ली, ‘’रखते हैं मॉम वाय.......वाय।‘’

‘’वाय......।‘’

शीला अपने निजी कार्य में लीन थी कि उसने कन्खियों से देखा, देव गुमसुम खड़ा है। नजरें मिलीं, तो सांकेतिक भाषा में, भोजन करने के लिये आमन्त्रित‍ किया। शीला भी एक पल गंवाये बगैर डायनिंग टैबल के समीप आ गई, साथ में देव भी था, बोला, ‘’आज बल्‍लू-फुल्‍लो को हॉस्‍पीटिल जाना था, इ‍सलिये, भोजन बनाकर, टैबल पर करीने से लगा दिया है। हमको ही परोसना होगा।‘’

‘’कोई प्राबलम नहीं.........।‘’ शीला बर्तनों के ढक्‍कन उठा-उठाकर सामान्‍य जायजा ले रही है, ‘’बहुत ही समझदार हैं, बल्‍लू-फुल्‍लो, हम दोनों के लिये, अलग-अलग बर्तनों में रखा है, भोजन, ताकि टेबल पर बैठते ही, हाथों के एप्रोच में ही सब खाना सिलसिलेवार रखा है, कुर्सी पर बैठे-बैठे ही विभिन्‍न बर्तनों में रखी भॉंति-भॉंति की पसन्‍दीदा रेसिपिज़ को बगैर किसी अतिरिक्‍त प्रयास के अपनी सुविधा अनुसार उठाई व खाई जा सके। किसी को बुलाने-पुकारने-कहने-मॉंगने की आवश्‍यकता नहीं। बहुत ही अच्‍छे व्‍यवस्थित तरीके से भोजन टेबल पर लगाया गया है। तारीफ के हकदार हैं।‘’ शीला और देव ने संयुक्‍त स्‍वर में प्रसन्‍सा की।

शीला का लम्‍बा वक्‍तव्‍य सुनकर देव ने कहा, ‘’यह व्‍यवस्‍था देखकर मुझे अपनी पत्‍नी की याद आ गई। वह भी मुझे कुछ मॉंगने या आर्डर करने का मौका नहीं देती थी। वह मेरी दिनचर्या अच्‍छी तरह समझकर यथासमय एवं यथास्थिति सारी व्‍यवस्‍थाएँ पहले ही कर देती थी। कब कौन से कपड़े पहनूँगा। कब क्‍या आवश्‍यकता होगी, पहले ही तैयार रहती थी। ताज्‍जुब तो तब होता था, जब खाने में भी, मुझसे पूछे बगैर मेरे पसन्‍नद का भोजन तैयार रहता था। ना जाने क्‍या टेलिपैथी क्रियाशील रहती थी कि कभी मुझे इन्‍तजाम के बारे में, तैयारियों के बारे में, बोलने, कहने, चिल्‍लाने या पुकारने की जरूरत ही नहीं हुई। सब कुछ एकदम स्‍मूथली चलता रहता था। कभी कोई वाद-विवाद नहीं, कभी भी पसन्‍नद ना पसन्‍नद का मसला ही खड़ा नहीं हुआ।

कभी उसने कोई डिमांड नहीं की, जिद्द नहीं की कि ये चाहिए, ये नहीं करूँगी। गुस्‍से में तो क्‍या, उसे झुंझलाते भी कभी नहीं देखा।

शीला ने, देव के विस्‍तृत विवेचना पर कहा, ‘’किसी-किसी में जन्‍मजात विलक्षण विशेषताऍं होती हैं। औरत अनेक‍ खूबियॉं कुदरती लेकर पैदा होती है। उसमें सेवाभाव, दूसरों को खुश-सुखी देखकर स्‍वयं को प्रसन्‍नता मिलती है। मातृत्‍व, ममता, ममत्‍व उसके स्‍थाई भाव होते हैं। मर्द में ये भाव नहीं पाये जाते हैं। प्रकृति की उत्‍कृष्‍ठ अनुकृति है, औरत।

औरत की सहनशीलता बेमिसल होती है। रिश्‍तों के लिये वह अपना स्‍वार्थ भूल जाती है। परमार्थ ही उसे सन्‍तुष्‍ट करता है। दया, सम्‍वेदनशीलता, सहायता, सहृदयता जैसे अनेक मानवोचित सुगुणों के प्राकृतिक स्‍वभाव में रचे-बसे रहते हैं। आत्‍मीयता पूर्वक उपकार करने में कभी पीछे नहीं हटती बड़-चड़ कर अपना योगदान श्रमदान एवं सक्रियता को सर्वोपरि मानती है। अपने घर-परिवार पर सदैव कुर्बान रहती है। बगैर कुछ स्‍वार्थ के रात-दिन क्रियाकलाप में संलग्‍न रहती है औरत के बगैर पुरूष अधूरा है। परिवार को परिपूर्णता औरत ही प्रदान करती है। औरत के अथक प्रयासों से घर-परिवार का जर्रा-जर्रा गुलजार रहता है।

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍

क्रमश:---९

संक्षिप्‍त परिचय

1-नाम:- रामनारयण सुनगरया

2- जन्‍म:– 01/ 08/ 1956.

3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्‍नातक

4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से

साहित्‍यालंकार की उपाधि।

2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्‍बाला छावनी से

5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्‍यादि समय- समय

पर प्रकाशित एवं चर्चित।

2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल

सम्‍पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्‍तर पर सराहना मिली

6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्‍न विषयक कृति ।

7- सम्‍प्रति--- स्‍वनिवृत्त्‍िा के पश्‍चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं स्‍वतंत्र

लेखन।

8- सम्‍पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)

मो./ व्‍हाट्सएप्‍प नं.- 91318-94197

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍

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