उपन्यास भाग---१
दैहिक चाहत – १
--आर. एन. सुनगरया,
हॉटल की सीडि़यॉं उतरती शीला, फुरतीले अंदाज में लगभग दौड़ती हुई, मैन गेट पहुँची ही थी कि सामने से गुजरती टैक्सी के ड्राइवर ने सांकेतिक भाषा में पूछा, ‘’टैक्सी.....मैडम.....?’’
मुण्डी हिलाकर शीला ने स्वीकृति दी। टैक्सी रूकी, अपनी शीट पर बैठे-बैठे ही ड्राईवर ने गेट खोला। पिछली शीट पर बैठते ही, शीला ने आदेशात्मक स्वर में कहा, ‘’प्लान्ट प्रोजेक्ट ऑफिस चलो।‘’
स्पीडोमीटर डाऊन कर ड्राईवर ने ट्राफिक पर ध्यान लगाया, सामान्य गति से टैक्सी चलती रही।
शीला पूर्ण विश्राम की मुद्रा में बैठी, ट्राफिक दृष्टि अवलोकन करते-करते सोचने लगी.........
.............सभी महानगरों का आवागमन सामान्य तौर पर एक समान ही है, भीड़भरा, चहल-पहल युक्त, भागम-भाग से भरपूर।
पूर्व शहर, जिसे शीला अपने वेटर करियर के वास्ते छोड़कर, नये शहर में आई है। दोनों नगर लगभग एक जैसे ही कोलाहल के प्रतीक; फर्क सिर्फ शीला को अपनी मनोदशा में लग रहा है। यहॉं सारे चौक-चौराहे अनजाने हैं। वहॉं सब कई वर्षों से जाना पहचाना परिवेश था। खैर! यहॉं भी अपना-अपना सा लगने लगेगा। कुछ समय बाद।
..................ना जाने कब शीला का ख्याल वर्तमान से उचट कर अतीत में विचरण करने लगा.........
.........शीला की शादी अभिमन्यु से लव-मैरिज-कम-अरेंन्ज-मैरिज संयुक्त रूप में हुई थी; विदाई के पश्चात अभिमन्यु स्वयं ही कार ड्राइव करके अपने निवास पहुँचा था। शीला सामने वाली शीट पर बैठी थी; दुल्हन बनी, कार खूब सजी-धजी थी, जो लोगों के लिये तमाशा बनी हुई थी। सभी हल्का-फुल्का हास्य-परिहास्य का आनन्द ले रहे थे।
बारात लौटने पर बुजुर्गों एवं आदर्णियों की डॉंट-फटकार सुननी पड़ी, वह अलग।
बहुत ही जिन्दादिल था, अभिमन्यु इतना हंसमुख कि उसे उदास-गम्भीर मुद्रा में देखने को तरस जाती शीला। हंसी-खुशी अमन-चैन, प्रफुल्लता में समय गुजारने में महारथ हासिल थी उसे। चंचल, चपल चन्ट जैसे अनेक कुदरती नैसर्गिक विशेषताओं को अपने व्यक्तित्व में संजोय हुये था। कभी उसके चेहरे पर थकावट की परछाई या मलिनता नजर नहीं आई। सदैव चमकता तेजस्व ही देखा है, उसके मुखमंडल पर। बाल-सुलभ, लुभावनी, सुहानी, सुन्दर सूरत कैसे विस्मिृत की जा सकती है।
अभिमन्यु के साथ उत्सवी, उमंगी समय हर्षोल्लास में कब बीत गया पता ही नहीं चला, एहसास ही नहीं हुआ, इस दौरान शीला-अभिमन्यु दो प्यारी-प्यारी बेटियों के माता-पिता बन गये। अभिमन्यु के लड़कपन, घूमा-मश्ति में कोई फर्क नहीं पड़ा, बल्कि और मुखर होता चला गया। हाँ.........चला गया, तो लौटकर ही नहीं आया.......एक दुर्घटना में उसके जीवन का अंत हो गया। उदय के स्थान पर अस्त हो गया शीला का सूर्य!
शीला पूर्णत: अनाथ सी हो गई। दो छोटी-छोटी बेटियॉं, उनका जिम्मा, लालन-पालन एवं शिक्षा-दिक्षा.......कैसे होगा सब। कहीं से कोई.....हिम्मत, हौंसला, हमदम, हितैसी......कुछ नज़र नहीं आ रहा, अंधेरे के सिवा...........
.......अंतिम संस्कार के सम्पूर्ण कर्मकाण्ड के पश्चात शॉंती पूर्वक सोचना प्रारम्भ किया........अभिमन्यु की हौंसला भरी आवाज़ गूँजने लगती,……ये बेटियॉं नहीं, बेटे हैं। इन्हें बेटों से बढ़कर बनाना है। चाहे कुछ भी क्यों ना करना पड़े!
.....शीला की आँखों में आँसू छलक आते। दिन जस्मन्जस्य, में दिन गुजर रहे थे कि अभिमन्यु के कार्यालय से, उसके कुछ सहकर्मी आये। सामान्य अभिवादन, शोक सम्वेदना के बाद उन्होंने जानकारी दी ---अभिमन्यु का आकस्मिक निधन कार्यस्थल पर ऑन डि्यूटी हुआ था। कम्पनी के नियमानुसार अनुकम्पा नियुक्ती दी जाती है। आप इस सुविधा का लाभ लेना चाहें, तो सम्बन्धित कागजात साईन करके दे दीजिये। कार्यवाही आगे बढ़ाने हेतु आवश्यक है।
..........शीला ने समग्र जिम्मेदारी अपने कन्धों पर ले ली.......
अभिमन्यु की संकल्पित योजनाओं के अनुरूप शीला बेटियों की पढ़ाई-लिखाई, पालन-पोषण, देख-रेख, शिक्ष-दिक्षा उनके मन-माफिक इत्यादी-इत्यादी कार्य कलापों में वह व्यस्त रहने लगी। सम्पूर्ण कार्य योजनाऍं सुचारू रूप से क्रियान्बित होते देख, उसे अपूर्व प्रसन्नता महसूस होती।
........समय अपनी स्वाभाविक गति शीला को वेतन नाकाफी लगने लगा। आर्थिक दबाव अधिक होने पर वह चिंतित रहने लगी, अभिमन्यु का सपना कैसे पूरा कर पायेगी। इसी उधेड़-बुन में, उसे प्लान्ट प्रोजेक्ट की वेकैन्सी का विज्ञापन देखा, जिसके लिये वह इलिजिवल थी। तत्काल एप्लाई कर दी, चयन भी हो गया; अन्धा क्या चाहे दो ऑंखें......ज्वाइन करने ही आई है, शीला इस शहर में...........
‘’ऑफिस आ गया मेडम।‘’ टैक्सी रूकी, तो शीला चौंक कर, माईलो मीटर देखने लगी, फाईल सम्हालती, टैक्सी का भाड़ा देते हुये, टैक्सी से बाहर आ गई। एक नज़र ऑफिस की इमारत को देखा, बुलन्द है।
गेट पर खड़ा दरवान, बन्दूक सम्हालता हुआ, अभिवादन करके पूछता है, ‘’येस मैडम...? ‘’जनरल मैनेजर से मिलना है।‘’ शीला ने बताया।
‘’जी, ये बीच वाला ऑफिस है, उनका।‘’ दरवान ने इंगित किया।
कार पोर्च में कुछ पल रूक कर शीला, नज़र निरीक्षण करने लगी, सामने रिसेप्शन विन्डो पर पहुँची। कुछ पेपर्स रिसेप्शनिस्ट की ओर बढ़ाकर, कहा, ‘’जी.एम. साहब से मिलना है।‘’
‘’येस ।‘’ रिसेप्शनिस्ट ने पेपर्स थामते हुये कहा, ‘’आप वेटिंग हाल में बैठिये, इन्फार्म करती हूँ।‘’
कुछ ही मिनटों में बुलावा आ गया, ‘’मिसेस शीला।‘’
‘’येस।‘’……….. शीला अपने आपको सम्हालते हुये, तत्काल जी. एम. ने बैठने का संकेत दिया।
‘’धन्यवाद, सर!’’……….. अनुशासन पूर्वक।
‘’येस।‘’ शीला अपने आपको सम्हालते हुये, तत्काल जी.एम. के ऑफिस द्वार तक आ गई। हल्का सा पुश करके दरवाजा खोला, ‘’मेय आई कम इन सर!’’
‘’येस...येस......प्लीज।‘’ जी.एम. ने बैठने का संकेत दिया।
‘’धन्यवाद, सर!’’ स्वर के साथ शीला चैयर पर बैठ गई पूर्ण अनुशासन पूर्वक।
‘’हॉं, बोलिये।‘’
‘’सर मैं।‘’ शीला ने मृदुस्वर में कहा, ‘’ज्वाईनिंग.......।‘’
‘’हॉं..हॉं.......।‘’ जी.एम. ने प्रसन्न मुद्रा में, हाथ बढ़ाया, पेपर्स लेकर उन पर मार्क करके बोले, ‘’ये पेपर्स के साथ, आप चीफ इन्जीनियर मिस्टर देव से मिल लें।‘’
‘’येस सर!’’ पेपर्स सम्हालते हुये, नमस्ते करके, कक्ष से बाहर आ गई।
शीला खड़ी-खड़ी सोच रही थी कि पास बैठे अटेन्डेंट जैसे व्यक्ति ने पूछा, ‘’चीफ इन्जीनियर ऑफिस जाना है?’’
‘’हॉं।‘’ शीला ने पूछा, ‘’आपको कैसे मालूम.........?’’
‘’मैडम! बीस बरष का अनुभव है।‘’ तुरन्त कहा, ‘’चलिए!’’
शीला उसके पीछे-पीछे चल देती है, ऑफिस कुछ कदम पर ही था। ‘’ये रहा!’’ बोल कर वह लौट गया।
ऑफिस के द्वार पर बैठा शख्स एक चुटका जैसा कागज शीला को बढ़ा देता है। वह समझ गई, नाम-काम लिख कर देना है।
वह पर्ची लेकर अन्दर गया, तुरन्त ही लौट आया, ‘’जाईए मिल लीजिए।‘’ शीला ने जैसे ही दरवाजा खोलने के लिये ढकेला, आवाज आई, ‘’आईए.....आयिए......’’
शीला कुछ क्षण, खड़े-खड़े ही ऑफिस का आन्तरिक डेकोरेशन देखकर दंग रह गई। व्यवस्थित भव्य, अत्याधुनिक तथा सुविधायुक्त........
‘’बैठिये........।‘’
‘’जी, थेन्क्यू।‘’ शीला बैठ गई करीने से। हाथ में पकड़े पेपर्स आगे बढ़ाये।
‘’ज्वाईनिंग है?’’ चीफ इन्जीनियर ने शीला का चेहरा ताकते हुये पूछा।
‘’जी हॉं।‘’
‘’जी....जी, संबोधन के अलावा, मुझे नाम लेकर भी.......।‘’
‘’जी, देव साहब’’
‘’फिर जी!’’
दोनों मुस्कुराते-मुस्कुराते हंसने लगे।
‘’रहना कहाँ है?’’ देव ने, ठिकाना जानना चाहा।
‘’हॉटल में.....।‘’ शीला ने बताया।
‘’कम्पनी के हॉस्टल में शिफ्ट होना चाहेंगी?’’ देव ने बहुत ही आत्मीयता एवं अपनेपन के अन्दाज में सलाह दी, अच्छा रहेगा, कुछ और लोग भी ठहरे हैं, अपनी कम्पनी के।‘’ आगे जानकारी दी, ‘’नास्ता–भोजन सहित सारी सुविधाऍं उपलब्ध हैं।‘’
‘’धन्यवाद, देव साहब।‘’ शीला ने अपनी मंशा बताई, ‘’ऐसा ही एक्केमेडेशन की तलाश में थी।‘’ देव ने टेबल काल वैल बजाई, प्यून हाजिर, देव ने आर्डर दिया, ‘’श्याम को बुलाओ, एडमिस्ट्रेशन ऑफिस से।‘’ प्यून चल दिया।
देव एवं शीला कुछ औपचारिक सामान्य बातों में व्यस्थ हो गये। तब तक श्याम आते ही, ‘’येस सर, कहिए!’’
‘’’’हॉं श्याम!’’ देव अव्यक्त साहबगिरी की मुद्रा में, रिवाल्विंग चैयर पर, पसरते हुये, इत्मिनान से, आदेशात्मक लहजे में बोलने लगा, ‘’ये मिसेस शीला, सीनियर इन्जीनियर।‘’ श्याम-शीला ने एक-दूसरे को औपचारिक नज़रों से देखा एवं सांकेतिक अभिवादन का आदान-प्रदान किया।
‘’इनके साथ जाओ।‘’ देव ने विस्तार से बताया, इन्हें आज ही हॉस्टल में रूम एलॉट करके, इनको हॉटल से हॉस्टल में शिफ्ट करने में हेल्प करो।‘’ देव एकदम कैजुयली वे में बोला, ‘’मेरी गाड़ी से जाओ, ये काम सम्पन्न करके, मुझे इन्फार्म करो। ठीक है।‘’
श्याम ने स्वीकृति में मुण्डी हिलाई तथा मैडम शीला की ओर मुखातिव होकर, ‘’चलिये मैडम!’’
‘’थेन्क्यू सर!’’ देव का आभार जताया।
‘’कोई बात नहीं।‘’ मुस्कुराते हुये देव के चेहरे पर गौरव के भाव उभर आये।
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---क्रमश:----२
संक्षिप्त परिचय
1-नाम:- रामनारयण सुनगरया
2- जन्म:– 01/ 08/ 1956.
3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्नातक
4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से
साहित्यालंकार की उपाधि।
2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्बाला छावनी से
5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्यादि समय- समय
पर प्रकाशित एवं चर्चित।
2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल
सम्पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्तर पर सराहना मिली
6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्न विषयक कृति ।
7- सम्प्रति--- स्वनिवृत्त्िा के पश्चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं स्वतंत्र
लेखन।
8- सम्पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)
मो./ व्हाट्सएप्प नं.- 91318-94197
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