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मे और महाराज - ( जलन_१) 28


एक पल के लिए समायरा चुप सी हो गई। सिराज एक काफी खूबसूरत नौजवान है। अच्छी सूरत और अच्छी सीरत। कोई भी लड़की उसे अपना बनाकर खुश रहेगी पर उसे तो सिर्फ समायरा मे दिलचस्पी है। जो अब दिन ब दिन बढ़ती जा रही है।

सिराज से बढ़ती नजदीकियां समायरा को मुश्किल मे डाल रही थी। कल की पूरी रात भी दोनो ने पति पत्नी की तरह साथ बिताई। दुसरे दिन सुबह जब मौली कमरे मे आई, समायरा पहले से जगी हुई थी। मौली को शक हुआ। उसने उसके बाल संवारते संवारते पूछा।

" सैम, मैने सुना कल रात राजकुमार फिर कमरे मे आए थे।" मौली।

" हा। आए थे। और मुझे उदास देख कमरे मे रुक गए। यहीं आराम किया।" जो की बिल्कुल गलत नही था। हा दोनो ने साथ आराम किया पर पूरी बात उसे मौली को बतानी जरूरी नही लगी। मौली आगे कुछ पूछ पाए उस से पहले सिराज के हेड बटलर संदेश ले कर वहा पोहचे।

" राजकुमारी। आपके पिता के घर से त्योहार का न्यौता आया है। राजकुमार सिराज ने तैयार रहने की आज्ञा दी है।" बटलर।

" कौन पिता ??? वो मेरे कोई नही है। जाकर बता दीजिए राजकुमार को, राजकुमारी शायरा का वजीर साहब के घर या घर के किसी भी इंसान से कोई रिश्ता नहीं है। हमे कही नही जाना। हम यही रहेंगे।" समायरा।

" पर.... मेरी राजकुमारी मेरे महाराज पहले ही न्योते को स्वीकार कर चुके है।" बटलर ने सर झुकाते हुए कहा।

" उन्हे कह दीजिएगा, राजकुमारी बीमार है। नही आ पाएंगी।" समायरा।

" पर राजकुमारी...." बटलर कुछ देर सर झुकाएं वही खड़ा रहा।

जैसे ही वो जाने के लिए मुड़ा, समायरा ने आवाज लगाई। " सुनिए, क्या त्योहारों पे सब भाई बहन अपने परिवार के साथ माता पिता के घर जाते है?"

" जी। ये न्योता महल मे आपकी बड़ी बहन और बड़े राजकुमार को भी गया है।" बटलर।

" ठीक है। राजकुमार से कहिए हम तैयार है।" समायरा ने कुछ सोचते हुए बटलर के पास संदेश भेज दिया।

" सैम, तुम्हे क्यो जाना है वजीर साहब के घर ? तुमने इस न्योते को क्यों अपनाया ?" मौली ने कहा।

" इसे एक एहसान समझ लो। पर अब ये भी तुम्हारी राजकुमारी की तकदीर पर है। अगर वो वक्त पर वापस आ गई इस शरीर मे तो शायद बड़े राजकुमार से मिल पाए। ये न्यौता मैने उन दोनो के लिए स्वीकार किया है।" समायरा ने अपने आप को आयने मे देखते हुए कहा, " साथ ही मे हमे ये भी ढूढना है, आखिर एक शरीर मे हम दोनो कैसे आ जा सकते है।"

दूसरी तरफ,

" आप कौन है ? अगर आप बड़े राजकुमार की जासूस है, तो हमे ये महसूस क्यो नही होता ? क्यो ये दिल आप पर भरोसा करना चाहता है ? लेकिन हर बार आपकी छोटी छोटी बाते भी हमे ठेस पोहचाती है। में आपको अपना बनाकर रहूंगा। मुझे शरीर से कोई मतलब नहीं। मुझे आपकी रूह चाहिए। आपकी सांस तक हमारे लिए चलनी चाहिए।" सिराज का पागलपन समायरा की तरफ बढ़ता जा रहा था।

कुछ ही देर बाद दोनो तैयार हो वजीर साहब के महल पोहचे।

बड़े राजकुमार अमन और शायरा की बहन पहले ही वहा मौजूद थे।

" आइए राजकुमार सिराज। बेटा शायरा। " वजीर साहब ने आवाज लगाई पर शायरा ने जवाब देना जरूरी नही समझा।

सिराज ने मुस्कुराते हुए सिर्फ सर हिलाया।

राजकुमार अमन ने समायरा से बात करने की कोशिश की, लेकिन वो तो समायरा है। उसने उन्हे पहचान दिखाना भी जरूरी नहीं समझा। वैसे भी वो उन्हे पहचानती नही है।

दोनो जोड़े एक दूसरे के सामने खाना खाने बैठे।

" ये वो कौन है ? कब से घुरे जा रहे है।" समायरा ने सिराज से पूछा।

सिराज ने अपना हाथ उसकी कमर पर रख उसे अपने पास खींचा। अपना सर उसके कानो के पास यूं झुकाया मानो वो उसे गले पर चूम रहा हो।" अब देखिए। शायद आप उन्हे पहचान ले ।" उसने उसके कानो मे कहा।

समायरा ने उसके सामने बैठे इंसान का चेहरा देखा, जो की सिराज की इस हरकत से गुस्से मे सुलग रहा था। उसकी बड़ी बहन जाकर राजकुमार अमन के पास बैठ गई। अब समायरा को पता चल गया था की वो कौन है। उसने तुरंत सिराज को अपने से दूर किया।

" आ..... अब शायद आपको याद आ गया।" सिराज ने मुस्कुराते हुए कहा। " हमे खीर चाहिए , खिलाएं।" उसने समायरा को देखा।

" देखो, अपनी नौटंकी मे मुझे शामिल मत करो। तुम्हारे इतने तंदुरुस्त हाथ है। इनका इस्तेमाल करो और खाओ।" समायरा ने मुस्कुराते हुए कहा।

" नहीं। हमे खिलाएं। आपको वो तीन नियम तो याद होंगे ना। जो हमने सिखाए थे।" सिराज अब बिल्कुल मज़ाक नहीं कर रहा था।

" क्या ये धमकी है ?" समायरा ने उसकी आंखो मे देखते हुए कहा।

" हा।" सिराज।

समायरा ने खीर को कटोरी उठाई और सिराज के मुंह को लगा दी। सिराज ने प्यारी सी मुस्कान देते हुए खीर खाई। ये सब देख राजकुमार अमन को तकलीफ हो रही थी। पर अब समायरा के हाथो मे कुछ नही था।

जैसे ही सिराज ने खीर की कटोरी अपने हाथो से समायरा के मुंह लगाई, उस की बहन ने ताना देते हुए कहा, " राजकुमार, वो पहले ही बोहोत बिगड़ी हुई है। आप उसे और मत बिगड़ाए।"

" हमे कोई फर्क नही पड़ता कि शायरा पहले क्या थी। लेकिन अब ये सिर्फ और सिर्फ हमारी है। इन्हे जो चाहिए ये करे बिगड़ना है बिगड़े। शरारते करनी है, करें। पर सिर्फ हमारे पास रहे उम्र भर।" सिराज ने प्यार से समायरा की तरफ देखते हुए कहा।

उसे उसकी मीठी बातें सुन उलटी आ रही थी। लेकिन उसने सिराज के हाथ पर चुटी काटते हुए शरमाने का नाटक बखूबी किया।


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