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मे और महाराज - ( तीन नियम _३) 9

" अच्छा। अगर मैने इन मे से एक भी नियम तोड़ा तो आप मुझे तलाक दे देंगे ना ? सही कहा ना मैने , कहिए।" समायरा ने पूछा।

" नहीं । में इसके बदले तुम्हारी जान ले लूंगा।" सिराज ने उसके पास आते हुए कहा।

समायरा ने धक्का दे उसे अपने से दूर किया।
" अगर आप को अपनी जान प्यारी है तो वही कीजिएगा जो हम आपसे करने के लिए कहे। फिलहाल अपना हुलिया ठीक कीजिए और हम जहा जा रहे है, वहा तमीज से पेश आना।" सिराज ने अपना कुर्ता ठीक करते हुए कहा।

" हम कहा जा रहे है ? " उसने मासूमियत से पूछा।

उसे इस तरह शांत देख सिराज पल मे पिघल जाता था। लेकिन ये वक्त पिघलने का नही था। उसे जानना जो था की आखिर वजीर करना क्या चाहते है। शायरा से उसकी शादी ये वजीर का रचाया सब से खतरनाक जाल था। एक बार उसने अपनी ढाल फेंकी तो एक शायरा ही थी जो उसे पल मे चीर कर रख देगी। ऊपर से वो अंधेरों के गुलाम, वो वजीर के लोग नहीं थे। पर वो राजकुमारी को मारना क्यो चाहते है ?

" हम विलास महल पोहोच चुके है राजकुमार।" रिहान की आवाज से सिराज खयालों की दुनिया से बाहर आ गया।

" चलिए" वो उसे देखे बिना चुपचाप आगे चलने लगा।
समायरा मौली के साथ उसके पीछे चल रही थी।

" वाउ। ये कितना खूबसूरत है। हमारे पास ऐसा बगीचा क्यों नहीं है मौली ? गुलाब । मुझे गुलाब बोहोत पसंद है।" वो भागते भागते उन पौधों के पास पोहोच गई।

" संभाल के सैम उसमे काटे होते है। " मौली ने उसे उन्हे छूने से रोका।

" कहते है ना हर किसी को अपने जैसी चीजें पसंद होती है। सच है। आपकी पसंद भी आपके अंदाज जैसी है। खूबसूरत पर काटो से भरी।" उसने कहा।

समायरा अपनी जगह से उसके सामने चली गई। उसने अपने हाथों से उसके चेहरे को छुआ। उसकी आंखो मे आंखे डालते हुए कहा, " जो भी कहना है, मेरी तरफ देख के कहो ताकि मुझे समझ आए तुम मुझसे बात कर रहे हो। समझे। अब मुझे उस मे से कुछ फूल तोड़कर दो।" उसने फूलो के बगीचे को दिखाते हुए कहा।

" आप सपने देखना बंद कर दीजिए। हम आपके लिए कोई फूल नहीं तोड़ने वाले। समझी।" सिराज ने भी उसी तरह से एक उंगली से उसका चेहरा उठाया जैसे समायरा ने किया था।

" तुम मेरे पति हो, अगर पति पत्नी को फूल नहीं देगा तो में किसके पास लेने जाऊ???? अगर मैने किसी और से मांगा तो क्या ये धोका होगा। सोचने दो शायद....." समायरा सिराज के आस पास चक्कर लगाए जा रही थी।

" आपको नहीं लगता आज आप बोहोत ज्यादा बाते कर रही है। हमे देर हो रही है। चलिए यहां से। वो उसका हाथ पकड़ उसे पास पास खींचते हुए एक चबूतरे तक लेकर गया। पास मे ही मेज लगाए हुए एक ६० के उम्र की औरत अपनी दासियोके साथ बैठी थी। सिराज को देखते ही उसके चेहरे पर प्यारभरी मुस्कान उतरी लेकिन जब उसने समायरा को उसके साथ देखा, वो मुस्कान मानो कही खो सी गई।

" क्या हम अंदर आ सकते है? " राजकुमार ने पूछा।

" आपको हम तक पोहोचने के लिए कभी इजाजत की जरूरत नहीं है। आयए।" उसने बाहें फैलाए अपने पसंदीदा पोते का स्वागत किया।

" प्रणाम राजमाता। " उसने अपनी दादी को गले लग कहा।

" राज आप हमे राजमाता क्यों पुकार रहे है। दादी कहिए हमे अच्छा लगता है।"

" आज हम अपनी पत्नी के साथ आपके पास रस्म पूरी करने आए है। हमने महाराज की आज्ञा का पूरा पालन किया है।" उसने समायरा की तरफ इशारा करते हुए कहा।

" वजीर साहब ने तमीज सिखाई नही, या बचपन से घमंडी हो जो बडो को प्रणाम तक करना नही आता।" राजमाता ने समायरा को घूरते हुए कहा।

" प्रणाम दादिमा।" समायरा ने झुकते हुए कहा।

" राजमाता। हम तुम्हारे लिए हमेशा राजमाता रहेंगे। राज तुम्हे इस घमंडी लड़की के साथ रहने की कोई जरूरत नही है। आर्या अभी भी तुम्हारे इंतेजार मे है। हम महाराज से बात कर लेंगे, आप बस हा कह दीजिए।" उसने सिराज का हाथ पकड़ते हुए कहा।

अपना हाथ छुड़ाते हुए वो अपनी दादी के पास से उठा, समायरा का हाथ अपने हाथो मे ले उसने कहा, " हमे माफ कर दीजिए राजमाता। पर हमारे पास पहले ही बीवी है। हम दोनो एक दूसरे से प्यार करते है। इसलिए हम आपका ये हुक्म नही मान सकते।"

" ठीक है। जैसे आपकी मर्जी। पर अगर वापस इस लड़की और आपके बड़े भाई के बारे मे अफवाए फैली तो उसके बाद हम चुप नहीं बैठेंगे।" इतना कह वो अपने जगह से उठ जाने लगी " जाने से पहले एक बार आर्या से मिल लिजयेगा। वो हमेशा आपके पास आने की जिद्द करती रहती है।"

राजमाता के वहा से जाते ही समायरा राजकुमार से दूर हो गई, और उसने मौली से सवाल किया "ये आर्या कौन है। मौली"

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