उपन्यास भाग—१७
दैहिक चाहत –१७
आर. एन. सुनगरया,
’’हैल्लो मॉम !’’ तनूजा-तनया ने संयुक्त स्वर में मोबाइल पर बात की, ‘’मिला आपका सरप्राइज !’’
‘’हॉं तो बताओ कैसा लगा।‘’
‘’क्या बतायें, आपने तो विडियो भेजा है, मोबाइल पर। इसमें सरप्राइज जैसी कोई बात तो समझना मुश्किल है, देखकर !’’
मोबाइल चेहरे से हटाकर तनूजा ने संदेह जाहिर किया, ‘’शायद मॉम ने अनजाने में भूलवश यह विडियो फार्वड कर दिया हो, असल में कुछ और भेजना चाहती होगी...........।‘’
‘’हॉं ऐसा ही लगता है ।‘’ तनया ने समर्थन किया।
पुन: मोबाइल पर वार्ता प्रारम्भ हो गई।
‘’मॉम सस्पेन्स खत्म करो, बताओ कौन सा विडियो भेजा है।‘’
‘’विडियो में जो सख्स दिखाई दे रहा है, उसे आवजर्ब करके बताओ।‘’
‘’हॉं तो सुनो, यह विडियो निवास के अन्दर शूट किया गया लगता है। एक सज्जन स्ट्रॉंग कद-काठी के एवरेज हाइट, हंसमुख चेहरा, चेहरे पर चमकता नूर, रंग गेहूँआ, जासूसी फिल्मों के हीरो की तरह चहल कदमी करता फुर्तीला, लगभग यंग ऐज, शक्ल-सूरत नाक-नक्श सुन्दर, आत्मविशवास से भरपूर, चाल-ढाल में सज्जनता झलकती हुई गम्भीरता, पेन्ट-शर्ट करीने से पहने हुये, सुसभ्य सरीखा दिखता है। सुशिक्षित उच्च वर्ग का लुक, कलाई पर मंहगी वॉच में टाइम देखता हुआ प्रतीक्षारत जान पड़ता है। कुल मिलाकर पूरा खाका सकारात्मक, विचार-धारा वाला, सुलझा हुआ धीर-गम्भीर सम्वेदनशील, कहीं से कोई ऐब का अंदेशा नहीं लगता। हर स्तर पर सदगुण एवं विशेषताऍं जान पड़ती हैं। अन्ततोगत्वा ये हैं कौन महाशय ?’’ और हमें क्या बताना चाहती हैं, मॉम ! खूबीयॉं उगलवाकर...........।‘’
‘’नहीं समझीं.........।‘’ शीला ने प्रश्न उछाला।
‘’हॉं खोलो रहस्य........।‘’
‘’तुम दोनों बहुत चतुर, होशियार हो।‘’
‘’हमने हार मान ली।‘’
‘’तो सुनो..........।‘’ शीला के बताने से पूर्व ही दोनों का संयुक्त स्वर गूँज उठा, ‘’हमारे सम्भावित पिता.........!’’
‘’ठीक समझीं।‘’ शीला से आगे कुछ नहीं कहा गया। शर्म के कारण स्वर थम गया, शायद ।
‘’तुम तो बड़ी छुपी रूस्तम निकली मॉम।‘’
थोड़ी देर तो दौनों तरफ खामोशी का पहरा रहा, तत्पश्चात तनूजा-तनया का स्वर एक साथ घनघनाने लगा, ‘’कब बात-मुलाकात होगी, उनसे।‘’
‘’तुम्हारी सुविधानुसार।‘’
‘’बताते हैं, सोच-विचार करके।‘’ मोबाइल लाइन डिस्कनेक्ट हो गई।
तनया चीखती हुई उछलकर, तनूजा के कन्धे पकड़कर लटक गई, ‘’तो मारा मॉम ने धमाका...........।‘’
‘’क्या बोलती है।‘’ तनूजा ने तनया को नीचे उतारते हुये पूछा, ‘’कब मिलने का अवसर निकालें।‘’
‘’फिलहाल तो काफी तैयारी शेष है, कोर्स फाइनल स्टेज पर है। सारी कमीं-कोताहियों को रिकवर करना है।‘’
‘’ऐसा करते हैं, वर्चुअल बातें करते हैं।‘’
‘’हॉं यही ठीक विकल्प है......।‘’ तनूजा ने स्वीकृति दी, ‘’विडियो में जज करने की कोशिश करेंगे, अपने अनुकूल हो सकते हैं, अथवा कोई मीनमेख है।‘’
‘’मॉम की खोज है, सवा सौलह आना चोखी होगी, चौबीस कैरेट सोना।‘’
‘’क्यूरीसिटी मुलाकात की; मगर इधर स्टेडी भी अत्यावश्यक है। ब्रेक नाट एल्लाऊड। नदी के दो किनारे भी कभी नहीं मिलते........।‘’
‘’स्टेडी अपनी चलती रहे, बातें भी हो जायें विडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा।‘’
‘’वेरी गुड डिसीजन.......चला दिमाग।‘’
‘’ये निर्णय मॉम को कन्वेये कर देते हैं।‘’
तनूजा-तनया ने अपनी स्टेडी को ब्रेक किये बगैर, वर्चुअल वार्ता करने की सर्वोत्तम सुविधा के लिये देव को एग्री करने एवं सम्पूर्ण तकनीकी व्यवस्था की जिम्मेदारी शीला को सौंपी है।
शीला अस्मन्जस में है, कहीं कोई अप्रत्यासित स्थिति उत्पन्न ना हो जाये, जो अकारण ही तनाव का सबव बने। इस तरह की कोई सम्भावना तो है नहीं। सभी पक्षों को ऐसी ही समीकरण की तलाश व अपेक्षा थी। जो भी हो इस मिटिंग को एवाईड नहीं कर सकते। आज नहीं तो कल यह स्थिति को फेस करनी ही होगी।
खैर, सब कुछ इन्तजाम मुकर्र हो गये।
‘’हैल्लो...........।‘’ शीला ने देव एवं तनूजा-तनया का औपचारिक परिचय करा दिया। देव ने परिहास पूर्वक आश्चर्य व्यक्त किया, ‘’अरे दोनों जुड़वॉं हैं, क्या ?’’
‘’नहीं !’’ शीला ने बताया, ‘’दोनों बेटियॉं एक समान दिखती हैं, डील-डौल के समरूप होने के कारण ये दोनों जुड़वॉं बहनों की भॉंति लगती है।‘’
‘’ऐसा इत्तेफाक लगता है।‘’ तनूजा ने अपने सीने पर हाथ रखकर बताया, ‘’मैं हूँ तनूजा बड़ी।‘’
इसी लहजे में तनया बोली, ‘’मैं हूँ तनया छोटी।‘’
‘’अच्छा !’’ देव ने हेरत से देखकर हंसी-ठिठौली के अन्दाज में कहा, ‘’एक है, तनूजा बड़ी, दूसरी है तनया छोटी।‘’
‘’नहीं, नाम के साथ छोटी-बड़ी शब्द जोड़ने की आवश्यकता नहीं है, सरनेम की तरह।‘’
‘’मेरा नाम तनूजा है, मैं तनया की बड़ी बहन हूँ।‘’ पुन: दोहराया नाम। दोनों का।
तनया ने भी इसी स्टाइल में अपना नाम बताया, ‘’मैं हूँ तनया, तनूजा की छोटी बहन।‘’
‘’ये तो हो गई हल्की-फुल्की दिल्लगी।‘’ देव ने दोनों बहनों के बाल-सुलभ भोलेपन की प्रसन्नसा की। आगे कहा, ‘’वैसे मुझे तुम दोनों के नाम मालूम थे।‘’ कुछ क्षणों के लिये सब मुस्कुराते-मुस्कुराते हंसने लगे.......।
देव ने वार्ता का क्रम प्रारम्भ किया, ‘’मेरा नाम देव है, मैं तुम्हारी मम्मी के ऑफिस में चीफ इन्जीनियर हूँ। हम सौहार्द एवं सहानुभूति पूर्वक साथ-साथ निवास करते हैं। एक-दूसरे की परिस्थितिओं, आवश्यकताओं, आदर-सम्मान, सामाजिक रस्मों-रिवाजों के माध्यम से जीवन पर्यन्त साथ रहने की मंशा है। तुम दोनों बहनों की राय-शुमारी, सलाह-मश्वरा, पसन्नद के उपरान्त.......स्वीकृति की आवश्यकता है !’’ देव कुछ क्षण रूक कर पुन: बोलने लगा, ‘’तुम्हारी कोई शंका प्रश्न, अघिक जानने की जिज्ञासा, कुछ एसोरेन्स, वादा, कसम, संकल्प, डिमांड, या कुछ और खुलासा करना अथवा करवाना हो तो बताओ, निसंकोच !’’
‘’आपके परिवार में और कौन-कौन हैं।‘’ दोनों नें एक स्वर में पूछा।
‘’कोई नहीं है, मैं अकेला हूँ। सभी से नाते-रिश्ते तोड़ चुका हूँ। अथवा हालातों के कारण टूट गये हैं। सदा-सदैव के लिये।‘’
‘’बहुत कठिन डगर से गुजर कर आये हैं, अन्त में जिस कश्ती में नदी पार करना चाह रहे हैं, उससे भरोसा ना टूट जाये, किनारे आकर डूब ना जाये.............।‘’
‘’विश्वास-आत्मविश्वास बहुत बड़ा साहस-हौसला देते हैं। उनके सहारे भविष्य की और उगता सूरज देखना चाहिए। अन्यथा जन्मजात सगे सम्बन्धि, खून के अटूट रिश्ते भी मझधार में चटचटाकर चकनाचूर हो जाते हैं, अटल बन्धन भी धोखा दे जाते हैं।‘’
‘’देव अंकल.........।‘’ बेटियों के संयुक्त स्वर को बीच में ही रोककर शीला ने टोका, ‘’देव अंकल,………..नहीं पापा बोलो।‘’
तनूजा-तनया बोले, उससे पहले देव ने कहा, ‘’फिलहाल बेटियों को ‘अंकल’ ही कहने दो, जब मैं पापा जैसी कोई जिम्मेदारी, दायित्व निवाहूँ, कोई ऐसा कारनामा करिश्मा, परिणाम स्वरूप बेटियों को महसूस हो कि वास्तव में यह कुर्बानी केवल पिता ही कर सकता है। तब स्वत: ही उनके औंठों पर पापा शब्द निकल पड़ेगा। मुझे भी उनके साथ-साथ गर्व महसूस होगा, जैसे बेटियॉं पा गया हूँ! बेटियों को भी आभास होगा, जैसे उन्हें पापा के आशीर्वाद की आध्यात्मिक छत्रछाया मिल गई। उन्हें एहसास होगा, जैसे कोई है, जिसे हमारी बेहतरी की चिन्ता है, खुशहाल, उज्जवल भविष्य के लिये दिन-रात एक-कर रहा है, परिश्रम, तब रिश्ता सच्चा और अटूट होगा।‘’ देव ने आगे याचना की, ‘’मुझे सामाजिक सरोकार निवाहने हेतु आप सब का सहयोग-समर्थन की आवश्यकता है।‘’
वर्चुअल कालखण्ड समाप्त होते ही, तीव्रतम उमंग में तनया-तनूजा एक दूसरे पर उछलकर चीख के साथ झपट्टा मारकर परस्पर चपेट, चिपकाकर पलंग पर छलांग लगा दी, पलंग भी चरमरा कर चा....चूं....चर....जैसे स्वर उत्पन्न करने लगा, जो मिश्रित ध्वनियों में शामिल होकर, अलग ही शमा बॉंध रहा है।
कुछ समय बाद दोनों का भावावेश मंद पड़ा तो तनया, प्रफुल्लता पूर्वक बोली, ‘’अपना रास्ता साफ, चिन्ता दूर, नियंत्रण मुक्त........।‘’
‘’इसका यह आसय नहीं कि हम जो चाहें असावधानी, सुरक्षा रहित, लीक से हटकर मर्यादा से परे कुछ ऐसा काण्ड-कारनामा ना कर बैठें कि भविष्य बर्बादी का सबव बने।‘’ तनूजा ने समझाया।
तनया बहुत उदण्ड व उतावली हो गई, बोली, ‘’हम आपस में नये-नये अन्दाज में प्रेक्टीकल कर-कर के इतनी हेबुचुअली हो गईं हैं कि कामाग्नि किस मुद्रा में प्रज्वलित होगी, कहॉं-कहॉं घर्षण करने से उत्तेजना भड़कती है। कोन-कौन से बिन्दु अतिसम्वेदनशील अथवा मध्यम सम्वेदनशील होते हैं। भरपूर काम पिपासा किस-किस आसन्न में मोल्ड होकर परम क्लाईमैक्स पर उत्तरोत्तर पहुँचकर पूर्ण तृप्ति-संतुष्टि एवं परम सुख का रसास्वादन प्राप्त होगा।
‘’अनेक कामक्रिड़ाओं के अनुभव हमने अपनी दिनचर्या में शामिल कर लिया है।‘’
‘’हम जान गये हैं कि काम वासना शॉंत करने का ज्यों–ज्यों प्रयास करेंगे, त्यों–त्यों ज्वाला और-और भड़कती जायेगी.......।‘’
‘’तुम्हारा कहना ठीक है।‘’ पहली बहन ने दूसरी बहन का समर्थन किया।
हम वैवाहिक, दाम्पत्य एवं औरत मर्द के कुदरती जलबों के सहारे किस जरिए समागम के चरम विन्दु तक ले जाकर समग्र एैच्छिक आनन्द हासिल करने में पारन्गत हो चुकी हैं।‘’
तनूजा भी कम नहीं, वह भी उत्साहित है, ‘’सेक्स समुन्द्र में गोते-दर-गोते लगा-लगा कर, सेक्स सम्पदा समेट-समेट कर समृद्ध होने की तकनीक सीख चुके हैं, आजमा चुके हैं, अनुभव कर चुके हैं।‘’
दोनों अत्यन्त उत्साहित, उमंगित एवं पूर्व अनुभवों को ही अपना जमा पूँजी समझ रही हैं। जिन्दगी किस मोड़ पर किस करवट बैठेगी कौन जानता है। अनगिनत आयाम होते हैं। समय के साथ-साथ........................
न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्
क्रमश:---१८
संक्षिप्त परिचय
1-नाम:- रामनारयण सुनगरया
2- जन्म:– 01/ 08/ 1956.
3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्नातक
4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से
साहित्यालंकार की उपाधि।
2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्बाला छावनी से
5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्यादि समय- समय
पर प्रकाशित एवं चर्चित।
2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल
सम्पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्तर पर सराहना मिली
6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्न विषयक कृति ।
7- सम्प्रति--- स्वनिवृत्त्िा के पश्चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं स्वतंत्र
लेखन।
8- सम्पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)
मो./ व्हाट्सएप्प नं.- 91318-94197
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