हिन्दी या हिंग्लिश
भाषाएं रस बदलती है, विलुपत होती है और परिष्कृत होती हैं। भाषाओं के परिवर्तन का सिलसिला हमशा जारी रहता है। वर्तमान में विश्व में लगभग ७००० भाषाएं बोली जाती हैं, जिनमें से लगभग १५०० भाषाओं पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। जिन्हें विलुप्त होने से बचाने के लिए एण्टुरेन्स वाइस नाम का प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है। बहुभाषी, सरल और अभिजात्य समझी जाने वाली भाषाएं अन्य भाषाओं के लिए विलुप्त होने का कारण बनती हैं। शोध के अनुसार कुछ भाषाएँ भौगोलिक परिस्थितियों, व्याकरण, बोलने वालों की अरूचि, लिपिगत कठिनाई और समय के साथ विकास न कर पाने के कारण लुप्त होती है। वर्तमान में हिन्दी के स्वरूप पर चिंतन आवश्यक हो गया है क्योंकि भले ही हिन्दी विलुप्त होने की स्थिति में आज न भी हो, तो भी खतरे की ओर बढ़ती हुई दिखाई अवश्य दे रही हैं। हिन्दी के अंको का सर्वसम्मत तरीके से पठन पाठ्न से बाहर होना पहली कड़ी मे रूप में देख जा सकता है। साथ ही भारत में अभिजात्य समझी जाने वाली भाषा अंग्रेजी ने मोबाइल ओर कम्प्यूटर के माध्यम से हिन्दी को असामाजिक करने में कोई कसर नहीं छोड़ी हैं। एस एम एस और ईमेल आदि में हिन्दी भाषा के लिए रोमन लिपी में लिखा जाना आम परंपरा हैं। इसके पीछे अंग्रेजी भाषा में टाइप करने की सरलता ही प्रमुख कारण हैं और दूसरा कारण हमारा अंग्रेजी प्रेम भी हैं। हिन्दी और अंग्रेजी के सम्मिश्रित रूप को न हिन्दी न इंग्लिश इसे तो हिंग्लिस कहा जा सकता हैं। जाने-अनजाने हम अपनी भाषा का रूप बदलने में सहायक हो रहे हैं। ऐसा नहीं कि दूसरी भाषा का प्रभाव किसी भाषा को नष्ट ही करता हो। ऐसे में भाषाएं परिष्कृत होती हैं या रूप भी बदल लेती हैं। पंद्रहवीं सदी में इंग्लैण्ड में फ्रैंच विद्वानों की
भाषा और अंग्रेजी अनपढ़ गंवारों की भाषा थी। आज हिन्दी में अंग्रेजी की ही तरह वे अंग्रेजी में फ्रैंच शब्द बोलकर विद्वता का परिचय देते रहते थे। बाद में फ्रैंच शब्द अंग्रेजी भाषा में घुलमिल कर उसे समृद्ध करने लगे। ऐसा ही आज हिन्दी व अंग्रेजी के संदर्भ में देखा जा सकता है। अंग्रेजी के अनेक शब्द ,हिन्दी भाषी अनपढ़ व्यक्ति भी सही अर्थ के साथ समझ लेता है। ऐसी स्थिती में संस्कृत भाषा की प्रतिबद्धता को तोड़कर हिन्दी ,इंग्लिश के साथ मिल कर हिग्लिश होने लगी है। अब आम बोलचाल के साथ ही सभी ओर हिग्लिश प्रचलित है, इस नवीन विकसित होती भाषा का व्याकरण स्वयं विकसित हो रहा है । जिसमें हिन्दी और अंग्रेजी के कठिन शब्द समाप्त होकर अनेक स्लेग प्रचलित हो रहे है जो शायद इस नवीन भाषा के लिए नींव का पत्थर साबित हो। इस भाषा की लिपी रोमन है क्योंकि इससे की पैड या की बोर्ड जैसी समस्याओं से निजात जो मिलता है। शब्दों के भाषाई बंधन से मुक्त हिग्लिश में क्षेत्रीय भाषाओं से लेकर अंग्रेज़ी तक के सरल और कठिन शब्दों का प्रयोग हो रहा है । नये समानंतर सिनेमा में मुख्य रूप से इसी भाषा का प्रयोग हो रहा है। धरावाहिक , समाचार माध्यम और लेखन के क्षेत्र में भी शुद्ध हिन्दी अपना स्थान खोती जा रही हैं। शुद्ध हिन्दी का प्रयोग करने वाला व्यक्ति अब परग्रहीय प्राणी सा लगता है। देश में भाषा के नाम पर एक दिवस मनाने से कुछ भी होगा ये सोचना बेईमानी हैं । अब तो इस चिंतन का समय हैं कि हमारी मूल स्वरूप खोती भाषा हिन्दी का क्या होगा .....विकास, विनाश या रूपांतरण।
आलोक मिश्रा "मनमौजी "