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जिंदगी के पहलू - 3 - सत्य, मजबूत क्षमता का निर्माता

जीवन की खासियत, हमारी आंतरिक क्षमता होती है।एक मजबूत व्यक्तित्व के इंसान में ये क्षमता सिर्फ एक तत्व से आती है, और वो है सत्य के प्रति पूर्ण आस्था। निसंदेह, सच को ह्रदय से अपनाने वाले ही दुनिया में अमर होते है, इसका उदाहरण राजा हरिश्चंद्र भारत में ही पैदा हुए। जब कहीं और कभी सत्य का जिक्र होता, राजा हरिश्चंद्र का नाम स्वतः बिजली की तरह दिमाग मे आ जाता है।

दुनिया में अगर कोई सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है, वह है "दूसरों के द्वारा बोले जाने वाला सत्य", यह एक तथ्य है, इससे इंकार करना शायद ही आसान होगा। "सत्य" बोलने वाले लोगो की तादाद आजकल नगण्य के आसपास ही रहती, परन्तु किसी समय झूठ बोलने वालो की गिनती हुआ करती थी, इस बात को आज का आधुनिक युग शायद ही स्वीकार करेगा।

आज सत्य को, एक हारा हुआ खिलाड़ी या नेता भी स्वीकार करने से झिझकता है। शाश्वत चिंतन करे तो ये बात समझ में आ सकती है कि दुनिया का अस्तित्व पूर्ण सत्य में आज भी समाया है, हम चाहे या नहीं ये अलग बात है। प्रकृति अपने आप को सत्य से अलग नहीं कर सकती। हम कितना ही झूठ का, दैनिक जीवन में प्रयोग कर ले पर आत्मा उसे अंदर तक नहीं ले पाती, हमारे बोले हुए किसी भी झूठ पर उसका कराहना महसूस किया जा सकता है।

"हम जी रहे है यह सत्य हो सकता है" परन्तु हम 'सही' जी रहे ये संदेहपूर्ण है। सवाल किया जा सकता है, क्या सत्य पूर्ण जीवन जीया सकता है ? उत्तर आज के युग में आसान नहीं लग रहा, कारण जीवन की गतिविधिया आजकल झूठ के इर्द गिर्द ही ज्यादा समय बिता रही है। कभी सत्य को जीवन की धुरी समझा जाता था, आज उसकी जगह झूठ ले रहा है, इसे जीवन की विडम्बना ही कहे क्योंकि जीवन आज इसी कारण शायद टूट कर बिखर रहा है। जीवन को आज सब सांसारिक सुविधायें बहुत तेजी से प्राप्त हो रही है और बताना भी जायज नहीं होगा जीवन अपना सास्वत मूल्य खो चूका है, और स्वयं ही किसी त्रासदी का शिकार होकर दुनिया को अलविदा कह देता है। सही भी है, झूठ का भारीभरकम वजन कब तक ढोयेगा।

चाणक्य राजनीति के गुरु थे उन्होंने राजधर्म के लिए कई तरह की चालाकियों का सहारा लिया परन्तु झूठ को दूर रहकर। उनके इस कथन पर गौर करते है " सत्य मेरी माता है। आध्यात्मिक ज्ञान मेरा पिता है। धर्माचरण मेरा बंधु है। दया मेरा मित्र है। भीतर की शांति मेरी पत्नी है। क्षमा मेरा पुत्र है। मेरे परिवार में ये छह लोग है।" काश आज के राजनेताओं में इस तरह के विचार अपनाये हुए होते तो निश्चित ही भारत आंतरिक रुप से कमजोर और गरीब राष्ट्र की गिनती में न होता।

इंसान का व्यक्तित्व प्रकृति ने बड़ी सूझबूझ वाला बनाया है, सर्वगुण और अवगुण वाले संसार में उसको अपना व्यक्तित्व स्वयं निर्धारण करने का अधिकार भी दिया। सक्षम व्यक्तित्व वाले व्यक्ति के जीवन दर्शन पर सरसरी नजर डालने से इस बात से इंकार नहीं करना पड़ेगा कि बिना असत्य का सहारा लिए वो अपनी मंजिल तक पंहुचे है।

असहाय सी स्थिति है आज जीवन की, भाग्य से प्राप्त खुशहाली अति अर्थ के दीमक से हर दिन जीवन को छीजत प्रदान कर रही है। पल की मोहताज जिंदगी अर्थ के कारण कटुता भरे वातावरण में कई तरह की शारीरिक और मानसिक बीमारियों के विषालु कीटाणुओं से ग्रस्त हो रही है। इस का प्रमुख कारण हम सब समझकर भी नहीं समझते वो है "अति दौलत की भूख"।

हर रोज हमारे आसपास ही क्या ?, हमारे स्वयं के जीवन मे उसकी कमी या अति, जीवन को संकुचित होने का अनुभव कराती है। जब की जानते है, जब तक जीवन है, तब तक मालिक होने का दावा कर सकते है पर उसके बाद उसका मालिक कोई और स्वतः ही हो जाता। अतः इस सत्य को स्वीकार कर लेना ही सही होता है अर्थ के कारण किसी भी सम्बन्ध को कटुता का अनुभव न दिया जाय। कठिन समय मे आपसी प्रेम काफी फलदायक होता है।

कहते है जीवन की शुरुआत प्रेम से हुई और प्रेम सदा सत्य से संपन्न रहना पसन्द करता है, झूठ से वो सदा नफरत करता है। किसी शारीरिक बंधन के चलते वो झूठ को मजबूरी से सहन करता है। इस तथ्य को रिश्तों की दुनिया में सदृश्य समझा जा सकता है।

रिश्तों के बनते बिगड़ते तेवर जीवन को कई तरह से प्रभावित करते है। रिश्तों की मधुरता जीवन को सकारात्मक चिंतन प्रदान कर उसे मजबूत कर सकती है। गलत भावनाओं के बस में होकर रिश्तों में कटुता का संकेत देना मात्र जीवन के पथ को कठोरता प्रदान कर सकता है, अतः रिश्तों के प्रति हमारी संवेदनशीलता में सत्य का अंश सही मात्रा में रखना उचित लगता है। जीव विज्ञानी डेविड जार्ज हस्कल का यह कथन आज के युग अनुसार अक्षरस सत्य लगता है कि " The forest is not a collection of entities (but) a place entirely made from strands of relationship".

आलोचना से पीड़ित प्रेम कभी भी जीवन को सुख नहीं देता परन्तु समझने की बात है बिना आलोचना का प्रेम चापलूसी की या गुलामी की श्रेणी में आता है, प्रेम का निम्नतम पतन भी यहीं होता है, इस सत्य को कितना ही कड़वा कह लीजिए पर ह्रदय इसे स्वीकार कर सन्तुलित रहता है। आधुनिक अर्थतन्त्र की इस दुनिया की विडंबना ही कहिये इंसान के पास हजारों साधनों का भरपूर भंडार हर दिन तैयार हो रहा है, शरीर नाच रहा सब कुछ भोग रहा पर मन तो खालीपन का शिकार हो रहा। सबके रहते इंसान जब उम्र या किसी कारण से लाचार होता है तो टूट कर बिखर जाता है और दिल के अरमान दिल मे ही रह जाते, कोई सुनने वाला, कोई मन से सेवा करने वाला नहीं रहता उसके आस पास। इसका एकमात्र सत्य उतर यही हो सकता:
"जो दिया नहीं वो मिला नही
झूठ से सत्य कभी दबा नहीं
प्रेम को साधन नहीं संवेदना चाहिए
जीने के लिये इस सत्य की समझ चाहिए"
लेखक: कमल भंसाली ।

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