(भाग तेरह)
छोटा बेटा आयुष न तो खुद फोन करता है, न मेरे किसी मैसेज का जवाब देता है। बड़ा बेटा आदेश कहता है कि वह आपसे बात नहीं करना चाहता। पता नहीं आपके उसके बीच क्या बात है!वह दूसरी तरह का लड़का है। वह आपकी गलती को माफ नहीं कर पाया है। उसकी इन बातों से मन दुखता है। आखिर एक दिन मैंने बड़े बेटे को झल्ला कर बोल ही दिया कि क्या मैंने उसका खेत काटा है?
जबसे रिटायर हुई हूँ । आदेश कभी -कभी घर आने लगा है। कहता है -आकर मेरे घर रहिए। पर वह मुँह से कुछ कहता है और मेरे दिल तक कुछ दूसरी आवाज़ पहुंचती है। मुझे पता है कि उसकी पत्नी को मेरा उसके घर रहना अच्छा नहीं लगेगा क्योंकि उसके मायके वाले हमेशा उसके घर में डेरा डाले रहते हैं । वह मुझसे यह बात छुपाना चाहती है। मुझे देखते ही उसके चेहरे पर जो नागवार भाव उमड़ते हैं, उससे मैं पूर्व परिचित हूँ।
एक दिन आदेश मुझे भविष्य के लिए चिंतित देखकर कहने लगा कि चिंता क्यों कर रही हैं। खाने -पीने की कमी नहीँ होने पाएगी। एक महीने में पाँच किलो चावल, आटे के सिवा और क्या चाहिए!आप व्हाट्सऐप कर दीजिएगा, मैं भिजवा दूँगा।
साथ ही उसने यह भी जोड़ा कि वैसे सभी को हमसे ही चाहिए। कोई कुछ देना नहीं चाहता। पापा जी से बातचीत बंद है। मम्मी(सौतेली माँ)से भी कहा -सुनी हो गयी। वे हमेशा पैसे मांगती रहती हैं। कहती हैं -दोनों भाइयों को मैंने पाला । दोनों सरकारी नौकरी में हैं । इतना कमा रहे हैं, फिर भी रेगुलर पैसे नहीं भेजते।
हम दोनों भाई हर जरूरत, अवसर और तीज- त्योहार पर पूरे परिवार के लिए कपड़े से लेकर सारे खर्चे करते हैं। अभी उनकी कैसर की बीमारी में लाखों का खर्च किए, फिर भी वे संतुष्ट नहीं हैं। पापा ने पुश्तैनी जायजाद बेच दिया और हमें कुछ नहीं दिया । चारों भाइयों के नाम (दो सगे दो सौतेले)एक जमीन खरीदा गया था, उसे भी बेच रहे हैं। सिर्फ सौतेले भाइयों की चिंता में मरे जा रहे हैं । कहते हैं कि दोनों अभी नौकरी में नहीं हैं और उनकी शादी भी नहीं हुई है, इसलिए उनकी चिंता है।
पर हमलोगों के भी बीबी-बच्चे हैं। कहां तक उनकी बीबी -बच्चों के लिए खर्च करते रहें ? प्रिंसिपल के पद से रिटायर हुए। अच्छी -खासी पेंशन है। चार मंजिला मकान के तीन फ्लोर से अच्छा- खासा किराया आता है। ग्रैजुएटी में भी काफी रकम मिली थी। खेती है । तीसरे हीरो बेटे का भी अपना स्टूडियों है। कोई कमी नहीं फिर भी उन्हें हमलोगों से ही पैसा चाहिए। कहते हैं कि तुम लोगों को पालने के लिए दूसरी शादी की थी, चलिए शादी तक तो ठीक था, पर बच्चे क्यों पैदा किए ?क्या हमलोगों के भरोसे?
हम दोनों भाइयों ने फैसला कर लिया है कि वहां की जायजात से कोई हिस्सा नहीं लेंगे, न वहाँ रहेंगे। वैसे भी हम उत्तर- प्रदेश में रहना चाहते हैं, पिता के घर बिहार में नहीं। क्या आप यहां से आधार कार्ड बनवा देंगी?
बेटे का आधार -कार्ड बनवाना यानी अपने घर को उसका आवास साबित करना। यानी घर के कागजात उसके हवाले करना। क्या यह ठीक होगा?
पता नहीं बेटे की इस पूरी कहानी का पूरा रहस्य क्या है?
पूरे दो वर्ष बाद आया है। कब तक आता रहेगा, पता नहीं? और कब उल्टी -सीधी बातों से मन दुःखाकर गायब हो जाएगा, इसका तो बिल्कुल भी पता नहीं !मेरी आँखों के ऑपरेशन के समय--मुझे आपकी चिंता करने की जरूरत नहीं' कहकर जो गायब हुआ तो दो साल बाद आया है, वह भी पोते को माध्यम बनाकर।
जाने क्यों उसकी बातें मुझे बेचैन करती हैं । मुझे उसकी बात पर भरोसा नहीं होता। मुझे बीमार देखकर भी उसके चेहरे पर सहानुभूति के भाव नहीँ उभरते । मैं मन ही मन आहत हो जाती हूँ। मेरी माँ और बहन की मृत्यु के समय भी वह मुझे सांत्वना देने नहीं आया।
अब मुझ पर दया करके वह राशन देने की बात कर रहा है वह भी यह जता कर कि मैंने उसके लिए कुछ नहीं किया है। यानी अब तक अपने इस छोटे से घर को उसके हवाले नहीं किया है। क्या मुझे उसकी सहायता स्वीकार करनी चाहिए?क्या रिटायर हो जाने के बाद मेरी स्थिति इतनी दयनीय हो गयी है?रहने के लिए घर है। बचत से कुछ वर्ष खाने- पीने की कमी नहीं होगी। जल्द ही कोई न कोई काम तलाश कर लूंगी ताकि कुछ आय हो सके।
जाने क्यों मुझे लगता है कि वह अपने पिता से मिला हुआ है और उसके इशारे पर मुझे इमोशनल ब्लैकमेल कर रहा है। इधर दो साल से मैंने भी मन को कड़ा करके उससे रिश्ता तोड़ लिया था। उसके पिता के हाथ -पांव मारने को भी असफल कर दिया था, इसलिए अब मेरी देखभाल का दिखावा किया जा रहा है।
कैसी मनस्थिति है अपनी ही संतान पर अविश्वास हो रहा है?क्या मेरा मानसिक संतुलन गड़बड़ा रहा है या फिर मुझे किसी बुरी घटना का पूर्वाभास हो रहा है।