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पहला ब्रेकअप

बारहवीं के पश्चात नए कॉलेज में एडमिशन लेने का एक अलग ही उत्साह होता है।नया परिवेश, नए मित्र,नए रोमांच, घर के तमाम बन्धनों से आजाद युवाओं को ऐसा प्रतीत होता है कि पूरा आसमान उन्हें उड़ने के लिए प्राप्त हो गया है।जीवन के कई प्रमुख सबक भी सीखते हैं वे,कुछ कटु,कुछ अच्छे अनुभव प्राप्त करते हैं।ठोकरें भी खाते हैं, कभी औंधे मुंह गिरकर सम्हल भी जाते हैं।
रोहन का इंजीनियरिंग कॉलेज में आज प्रथम दिवस था।हॉस्टल में तो बड़े भाई ने दो दिन पूर्व ही समान सहित शिफ्ट करा दिया था।उसका रूममेट तरुण लखनऊ से था,जो इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग का छात्र था।रोहन कानपुर से आया था, उसने कम्प्यूटर इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया था।
एक सप्ताह तो विद्यार्थियों के आपसी परिचय में ही व्यतीत हो गया।क्लासेज प्रारंभ हो गईं।धीरे -धीरे परिचय क्षेत्र विस्तृत होने लगा।कुछ सहपाठियों से तो मात्र औपचारिकता रही,परन्तु कुछ लोगों से अच्छी मित्रता हो गई।
दो-तीन माह में दिनचर्या व्यवस्थित हो गई।अब घर पर तो कपड़े से लेकर खाने-पीने की सारी जिम्मेदारी मां सम्हालती थीं।कभी देर हो तो नाश्ता मुँह में भी रख देती थीं।हॉस्टल में किसी दिन थोड़ी देर हो जाय तो नाश्ता समाप्त हो जाता।पनीली दाल,बेस्वाद सब्जी गले से उतरती नहीं,तब घर बेहद याद आता।अगर कुछ पसंद नहीं आता तो माँ दूसरा ऑप्शन अवश्य उपलब्ध कर देती।ऊबकर उसने कैंटीन में खाना प्रारंभ कर दिया, थोड़ा खर्च तो ज्यादा हो जाता था लेकिन अपनी इच्छानुसार खा लेता था।हॉस्टल में लाउंड्री की व्यवस्था थी,लेकिन ध्यान से कपड़े देना और लेना भी पहाड़ लगता था।एकाध कपड़े गायब भी हो गए।
क्लास समाप्त करने के बाद सभी शाम को कैंटीन चले जाते।चाय-कॉफी-कोल्ड्रिंक यथा शौक सभी लेते,गप्पें मारते, खाना खाकर कुछ तो अपने कमरों में जाकर पढ़ने लगते,कुछ छतों पर जाकर सिगरेट के कश लगाते, कुछ दो-चार पैग शराब के लेते।रोहन एक सिंसियर,कॅरियर के प्रति गम्भीर विद्यार्थी था, उसका लक्ष्य था अच्छे ग्रेड से शिक्षा पूर्ण कर किसी उत्कृष्ट कम्पनी में कैम्पस सेलेक्शन लेना।अतः वह औऱ तरुण कमरे में जाकर देर रात तक पढ़ते रहते।दोनों ही किसी भी प्रकार की बुरी आदत से दूर थे।उनमें काफी अच्छा सामंजस्य स्थापित हो गया था।
आजकल युवा वर्ग में गर्लफ्रैंड, ब्वॉयफ्रेंड बनाने का फैशन एक संक्रमण की भांति व्याप्त हो गया है,खालिस मित्रता की परिभाषा आज अपना स्वरूप परिवर्तित कर चुकी है, इसे पुराने जमाने की बात करार दे दिया गया है।कॉलेज कैम्पस में,पार्कों में किशोर,युवा जोड़े निकट बैठे बातें करते, मुस्कराते,कभी झगड़ते जहां-तहां नजर आ जाते हैं।यदि कोई सिंगल है तो उसे अजीब दृष्टि से समवयस्क देखते हैं, परिणामस्वरूप ऐसे युवा हीनता के शिकार होने लगते हैं।अब इस उम्र में स्वभाव में मैच्योरिटी तो होती नहीं, अतः ये रिश्ते अक्सर दिनों,महीनों में ही बिखर जाते हैं, यदि उसमें से कोई गम्भीर होता है तो वह अवसाद में आ जाता है और कभी-कभी गलत कदम उठा लेता है।
तरुण की भी शीघ्र अपनी एक बैचमेट अनुशी से अच्छी मित्रता हो गई।रोहन के भी अधिकतर दोस्तों की गर्लफ्रैंड बन गई थीं, वे सभी खाली समय में अपनी-अपनी गर्लफ्रेंड्स के साथ व्यस्त हो जाते,जिससे रोहन को अब काफी अकेलापन महसूस होने लगा था।अक्सर वह इस बात से परेशान हो जाता कि वह अकेला क्यों है, जबकि वह अच्छी शक्ल-सूरत का व्यक्ति है,बात -व्यवहार में स्मार्ट एवं सुलझा हुआ है।
अनुशी की रूममेट आशिमा थी,जो बायोकेमिस्ट्री की स्टूडेंट थी।वह खूबसूरत थी,अभी सिंगल थी,अतः अनुशी ने उसका परिचय रोहन से करा दिया।एक महीने में ही रोहन-आशिमा की मित्रता अपग्रेड होकर आकर्षण में परिवर्तित हो गई।आज के युवाओं के शब्दों में उन्हें प्यार हो गया।जहाँ रोहन चीजों को अच्छी तरह समझकर रिएक्ट करता था, वहीं आशिमा शॉर्ट टेम्पर्ड थी,उसे जरा-जरा सी बात पर क्रोध आ जाता था।
वह रोहन को अधिकतर समय अपने साथ देखना चाहती थी।उसके अत्यधिक एकाधिकार एवं बात-बात पर नाराजगी से रोहन कभी-कभी इरिटेट हो जाता, लेकिन तुरंत बात को सम्हाल लेता।
आशिमा का स्कूल टाइम में भी अफेयर रह चुका था, तीन साल चलकर अब उनका सेपरेशन हो चुका था, क्योंकि वह कहीं और अटैच हो गया था।ऐसा आशिमा ने रोहन को बताया था, पहले ब्वॉयफ्रेंड की तसवीर भी दिखाई थी,जिससे अभी भी वाट्सप पर कभी-कभी मैसेजिंग हो जाती थी।रोहन ने उसे पास्ट मानकर इग्नोर कर दिया था।आजकल युवा अत्यधिक आधुनिक एवं बिंदास हैं,अतः गले मिलना,किस करना उनके लिए एक सामान्य सी बात है।रोहन-आशिमा के बीच भी यह मामूली बात थी,लेकिन रोहन ने कभी भी इतने आगे की कोशिश नहीं की कि यदि अलग होने की नौबत आए तो किसी तरह का आरोप उसपर लगाया जाय।
6-7 माह तो उनके मध्य सब ठीक रहा।रोहन पढ़ाई में व्यस्तता के कारण थोड़ा कम समय दे पाता था आशिमा को।आशिमा इसे इग्नोरेंस मानने लगी थी।रोहन समझाने का प्रयास करता कि हमें अपनी पढ़ाई पर भी तो ध्यान देना है, लेकिन आशिमा समझने को तैयार ही नहीं थी।प्रथम वर्ष के इक्जाम के बाद दो माह की छुट्टियों में सभी घर चले गए।मोबाइल पर उनकी बातें होती रहतीं।
छुट्टियां समाप्त होने के पश्चात रोहन कॉलेज पहुंचकर आशिमा से मिलने के लिए व्याकुल था,बड़े शौक से उसके लिए गिफ्ट्स लेकर गया था।लेकिन इस बार आशिमा के व्यवहार में बदलाव रोहन ने साफ महसूस किया।कारण पूछने पर कोई विशेष स्पष्टीकरण वह नहीं दे रही थी।अंततः कुछ दिनों बाद आशिमा ने ब्रेकअप का प्रपोजल रख दिया।उसका कहना था कि हमारा पेयर सूट नहीं करता।
रोहन हैरान रह गया,"यह क्या मजाक है?जब हमारी दोस्ती आगे बढ़ रही थी, तब यह तुम्हें नजर नहीं आया।अब यह अजीब सा रीजन बताकर रिश्ते को समाप्त करने को कह रही हो।"बेहद दुःखी होकर खामोश हो वह चला गया।वह पहली बार के इस रिजेक्शन से अत्यंत आहत था,वह मन से जुड़ा था आशिमा से।रोहन आगे तक ले जाना चाहता था इस रिश्ते को।वह आशिमा की मनोवृत्ति समझ ही नहीं पा रहा था।दिल टूटने की तकलीफ को शिद्दत से महसूस कर रहा था।चीखना चाहता था लेकिन पुरुष था न,भला लड़के कहीं रोते हैं।पढ़ाई से मन उचाट हो रहा था,अवसाद में घिरने लगा था।आशिमा के फोन फिर भी आ रहे थे कि तुम ठीक हो।जी जल जाता था उसका नम्बर देखकर कि आखिर अब फोन करने का क्या औचित्य है।एक बार तो ब्लॉक कर दिया था लेकिन आशिमा तरुण को फोन कर परेशान कर रही थी।रोहन ने झुंझलाकर कहा था कि चिंता मत करो, मुझे अपने माता-पिता की परवाह है, मैं उनकी इकलौती औलाद हूँ, सुसाइड नहीं करूंगा।
खैर, धीरे -धीरे रोहन ने खुद को सम्हाल लिया।उसने स्वयं को अपनी पढ़ाई में डूबा दिया।कुछ समय पश्चात ही उसने देखा कि अब आशिमा दूसरे लड़के के साथ घूमने लगी थी।लेकिन रोहन ने आशिमा की तरफ से पूर्णतया ध्यान हटा लिया।जब ब्रेकअप हो गया तो वह अपनी लाइफ में क्या करती है उसे कोई लेना-देना नहीं।शुरुआत में थोड़ा बुरा लगा था कि वह शायद आशिमा के लिए केवल टाइमपास था,लेकिन यह एक गहरा सबक था उसके लिए कि किसी के लिए भी अपनी जिंदगी को दांव पर नहीं लगाना है और कभी भी किसी को वह अपने इमोशन से खेलने नहीं देगा।
समझदारी भी इसी में है कि क्रोधावेश में कोई खतरनाक निर्णय नहीं लेना चाहिए।स्वयं को भावनात्मक एवं शारीरिक रूप से इतना मजबूत बनाना चाहिए कि कोई असफलता आपको अवसादग्रस्त न कर सके।विचलित होना स्वाभाविक है किंतु समय रहते सम्हल जाना ही बुद्धिमानी है।
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