कातिल कौन? Sushma Tiwari द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कातिल कौन?


" रवि ! आप जाओ आराम से, हम ठीक है,आखिर शादी में कोई तो होना चाहिए, मामाजी क्या कहेंगे? मुझे तो रहना होगा बच्चों के साथ एग्जाम की तैयारी करानी है।"
कहकर मीरा ने रवि को भेज दिया मामाजी के यहां, उनकी बेटी पूर्वी की शादी थी। ये शादियाँ भी ना बच्चों के परीक्षा वाले समय से टकरा जा रही थी।
हाँ, मीरा ने भेज तो दिया रवि को अब वो और दोनों बच्चे, तीन अकेले रह गए थे घर पर। ऐसा नहीं की पहली बार रहे हों, इससे पहले भी रहे थे। वो सभ्य और कुलीन लोगों के सोसाइटी मे रहते थे तो डरने का सवाल नहीं था। पर पिछले कुछ हफ्तों से जैसे डर घर कर गया है सबके दिलों में। 6 मौतें! अजीब था? कहने को सब अचानक और प्राकृतिक था पर मीरा के मन का 007 मानने को तैयार नहीं था, क्या हो अगर की अगली बारी उनकी हो? रवि से कहा था तो उसने कहा की बेकार के सिरियल ना देखा करो , बस इतना समझो सावधानी मे ही सुरक्षा है।
मीरा ने सोच लिया था अब जो मौका मिला है उड़ी हुई रातों की नींद का इलाज किया जाए। क्यों ना खुद ही थोड़ी छानबीन कर मन को आश्वास्त कर लिया जाए। मीरा ने वॉचमैन से पूछताछ की,
"क्या लगता है काका , कुछ अजीब हुआ है बीते महीनों में यहां जो नहीं होना चाहिए?"

"अब इतनी मौतों से ज्यादा अजीब का होगा बिटिया?"

" नहीं मेरे कहने का मतलब इससे पहले?"

"बिटिया यहां सब मिल जुल कर रहते है, प्यार से रहते हैं और आज तक किसी ने हमे कभी चिल्ला कर बात नहीं की दूसरों से क्या दुश्मनी होगी, हाँ बस उस दिन सुन्दर बाबू, 404 वाले उनको परेशानी हुई हम ही ध्यान नहीं दिए। कौन जानता था वो नहीं रहेंगे कुछ दिन बाद।"

" क्या हुआ था काका ?"

" सुन्दर बाबू के घर से कोई लड़की रोती हुई भागी थी, फिर उन्होंने हमे भी डाँटा था की यूँ सामान बेचने के बहाने छोटे लोग घुस के लूटपाट करते है आइंदा ख्याल रखने को। सुन्दर बाबू की तो पुलिस महकमे मे अच्छी-खासी पहचान भी है ये सोच हम माफी मांगे और वो तो हमेशा सही बाते करते थे। अब उस दिन भी भाभी और बच्चे बाहर गए थे। कौन जानता था करंट उनकी जान ले लेगा।"

मीरा के दिमाग में भी करंट दौड़ा। ये सब मौतें उस घटना के बाद ही हो रही है। हो ना हो कुछ कनेक्शन हो सकता है, पुलिस ये जरूरी कड़ी कैसे मिस कर गई। मीरा ने काका से रजिस्टर की एंट्री से उस लड़की का नंबर लिया। डायल करने पर किसी बुढ़ी औरत ने उठाया। मीरा उनसे एड्रेस लेकर वहाँ पहुंची। उसने बताया वो लड़की साँवरी थी। सांवरी उनकी पोती थी इकलौती कमाने वाली, बेटे बहू का देहांत हो चुका था और पोता पढ़ाई कर रहा था, पर अब वो भी काम पर जाता है,सांवरी के बाद।

" बाद! मतलब कहाँ गई?"

" नहीं रही, ख़ुदकुशी कर ली। बहुत गलत हुआ था उसके साथ पुलिस ने भी मदद नहीं की। मीरा ने उनके फॅमिली फोटो में देखा दोनों भाई बहन को। फ़िर मीरा पुलिस स्टेशन गई। पुलिस स्टेशन में वर्मा अंकल सीनियर थे और उसके पहचान वाले भी। उन्होंने कहा कि
" ये जगह तुम्हारे लिए नहीं है, रवि जानेगा तो गुस्सा करेगा, तुम चले जाओ घर बेटा, वो फ़र्जी केस था। लड़की के भाई को दो दिन अंदर भी रखा था तब दिमाग ठिकाने आया।"

वर्मा अंकल न जो भी बताया सुनकर मीरा का दिमाग ठनका था। उसे अब कहानी क्लीयर थी बस अब सांवरी के भाई सोनू से मिल कर बात करनी थी। घर पहुंचते पहुंचते लेट हो गया था, पिज्जा ही ऑर्डर कर लिया वैसे भी बच्चे बहुत दिनों से मांग रहे थे।दरवाजे की घंटी बजी, पिज्जा आ गया था। मीरा ने पिज्जा वाले को हॉल में बिठाया क्यूंकि उसने बोला की उसकी तबीयत ठीक नहीं पानी चाहिए। मीरा पहचान चुकी थी, वो सोनू था। चेहरे पर गुस्सा आँखे लाल, मीरा ने इशारे से दोनों बच्चों को अंदर भेजा। उसकी उंगलियाँ स्पीड डायल 100 पर थी।
फिर मीरा ने बोला
"अब हमें भी मार दोगे? और ये करके क्या सांवरी वापस आ जाएगी?"
वो उछल पड़ा,
"नहीं तु.. तुम ऐसा क्यूँ.. कैसे.. ।"
" मैं सब जानती हूं सोनू! इतने निर्दोष लोगों को मार दिया? हैवान बन गए तुम! कम से कम दादी का सोचा होता, तुमने उन्हें और अकेले कर दिया। उनका तो दूना नुकसान हो गया। मिलेगा क्या तुम्हें बदले की आग बुझा कर? बुझी हुई राख में तुम्हारा आशियाना भी होगा सोनू! "

फिर वो फूट फूट कर रोया और बोला
" हाँ! तुम लोगों का सभ्य समाज इस का जिम्मेदार है, मेरी बहन की गलती क्या थी की किसी कुलीन आदमी की हवस का शिकार हुई? और ये सिस्टम? इन्साफ की बात छोड़ो उल्टा हमें ही चोरों का ग्रुप बताया। और आप जिन्हें निर्दोष कह रही है, एक बार झाँकना उनके अतीत में, मैंने बस उनके कर्मों की सजा दी है। हाँ सबके घर से उनके प्रिय जनों को छीन लूंगा, दर्द का एहसास कराऊंगा बिना सबूत छोड़े, जैसे मेरे पास नहीं सुन्दर बाबू के खिलाफ।"

"अच्छा कभी सोचा है की एक की गलती की सज़ा सबको? क्या फर्क़ है सुन्दर और तुम्हारे बीच? तुम अगर ये रास्ता ना अपनाते तो शायद मैं मदद कर पाती, सबूत भी मिलते बस इतना ही कहना है अब जाओ, जीओ और जीने दो।तुमने कई बहनो से भाई और भाई से बहन छिन लिया है। सुन्दर को कर्मों की सजा देने के चक्कर में जिन निर्दोषों का तुमने कत्ल किया उनके घर वालों की आह तुम्हें चैन से जीने नहीं देगी, जाओ प्रायश्चित कर सको तो। तुम्हारी दादी का ख्याल मैं रखूंगी, मैंने उसका इंतजाम किया है।"
पता नहीं क्यूँ वो चुप चाप चला गया मीरा ने सोचा कल पुलिस मे सारी बात बता देगी। सुकून की नींद आई उस रात। सुबह पता चला उसने खुद गुनाह कबूल कर लिया था। उसके बाद पुलिस ने भी मीरा के जुटाए सबूतों को फिर से आधार बना कर पिछले केस हटा लिए। मीरा ने सांवरी की दादी को एक एनजीओ के मदद से जीवन निर्वहन के लिए जगह दिला दी और समय समय पर मिलते रहने का भरोसा भी दिया। सच सभ्य समाज के चेहरे के पीछे छुपे वहशी दरिन्दे! भोगना तो सब को पड़ता है।