Kanhar Pad mal- Pad- based on classic music - 20 books and stories free download online pdf in Hindi

कन्‍हर पद माल - शास्त्रीय रागों पर आधारित पद - 20

कन्‍हर पद माल- शास्त्रीय रागों पर आधारित पद 20

सन्‍त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्‍हर दास जी महाराज कृत

(शास्त्रीय रागों पर आधारित पद.)

हस्‍त‍लिखित पाण्‍डुलिपि सन् 1852 ई.

सर्वाधिकार सुरक्षित--

1 परमहंस मस्‍तराम गौरीशंकर सत्‍संग समिति

(डबरा) भवभूति नगर (म.प्र.)

2 श्री श्री 1008 श्री गुरू कन्‍हर दास जी सार्वजनिक

लोकन्‍यास विकास समिति तपोभूमि कालिन्‍द्री, पिछोर।

सम्‍पादक- रामगोपाल ‘भावुक’

सह सम्‍पादक- वेदराम प्रजापति ‘मनमस्‍त’ राधेश्‍याम पटसारिया राजू

परामर्श- राजनारायण बोहरे

संपर्कः -कमलेश्वर कॉलोनी, (डबरा) भवभूति नगर, जिला ग्वालियर (म0प्र0)

पिन- 475110 मो0 9425715707 tiwariramgopal5@gmail.com

प्रकाशन तिथि- 1 चैत्र शुक्‍ल, श्री रामनवमी सम्‍वत् 2045

श्री खेमराज जी रसाल द्वारा‘’कन्‍हर सागर’’ (डबरा) भवभूति नगर (म.प्र.)

2 चैत्र शुक्‍ल, श्री रामनवमी सम्‍वत् 2054

सम्‍पादकीय--

परमहंस मस्‍तराम गौरी शंकर बाबा के सानिध्‍य में बैठने का यह प्रतिफल हमें आनन्‍द विभोर कर रहा है।

पंचमहल की माटी को सुवासित करने जन-जन की बोली पंचमहली को हिन्‍दी साहित्‍य में स्‍थान दिलाने, संस्‍कृत के महाकवि भवभूति की कर्मभूमि पर सन्‍त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्‍हर दास जी महाराज सम्‍वत् 1831 में ग्‍वालियर जिले की भाण्‍डेर तहसील के सेंथरी ग्राम के मुदगल परिवार में जन्‍मे।

सन्‍त श्री कन्‍हरदास जी के जीवन चरित्र के संबंध में जन-जन से मुखरित तथ्‍यों के आधार पर श्री खेमराज जी रसाल द्वारा ‘’कन्‍हर सागर’’ में पर्याप्‍त स्‍थान दिया गया है। श्री वजेश कुदरिया से प्राप्‍त संत श्री कन्‍हर दास जी के जीवन चरित्र के बारे में उनके शिष्‍य संत श्री मनहर दास जी द्वारा लिखित प्रति सबसे अधिक प्रामाणिक दस्‍तावेज है उसे ही पदमाल से पहले प्रस्‍तुत कर रहे हैं।

कन्‍हर पदमाल के पदों की संख्‍या 1052 दी गई है लेकिन उनके कुल पदों की संख्‍या का प्रमाण--

सवा सहस रच दई पदमाला।

कृपा करी दशरथ के लाला।।

के आधार पर 1250 है। हमें कुल 1052 पद ही प्राप्‍त हो पाये हैं। स्‍व. श्री दयाराम कानूनगो से प्राप्‍त प्रति से 145 पद श्री रसाल जी द्वारा एवं मुक्‍त मनीषा साहित्यिक एवं सांस्‍कृतिक समिति द्वारा श्री नरेन्‍द्र उत्‍सुक के सम्‍पादन में पंच महल की माटी के बारह पदों सहित शास्‍त्रीय संगीत की धरोहर

तीस रागनी राग छ:, रवि पदमाला ग्रन्थ।

गुरू कन्‍हर पर निज कृपा, करी जानकी कन्‍थ।।

विज्ञजनों को समर्पित करने एवं मर्यादा पुरूषोत्‍तम श्री राम के जीवन की झांकी की लीला पुरूषोत्‍तम श्री कृष्‍ण का जीवन झांकी से साम्‍य उपस्यित करने में बाबा कन्‍हर दास जी पूरी तरह सफल रहे हैं।

डॉ0 नीलिमा शर्मा जी जीवाजी विश्व विद्यालय ग्वालियर से शास्‍त्रीय संगीत की धरोहर कन्‍हर पदमाल पर शोध कर चुकी हैं।

सन्‍त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्‍हर दास जी महाराज का निर्वाण एक सौ आठ वर्ष की वय में चैत्र शुक्‍ल, श्री रामनवमी रविवार सम्‍वत् 1939 को पिछोर में हुआ।

नगर निगम संग्रहालय ग्‍वालियर में श्री कन्‍हर दास पदमाल की पाण्‍डुलिपि सुरक्षित वसीयत स्‍वरूप रखी हुई है। श्री प्रवीण भारद्वाज, पंकज एडवोकेट ग्‍वालियर द्वारा पाण्‍डुलिपि की फोटो प्रति उपलबध कराने में तथा परम सन्‍तों के छाया चित्र उपलबध कराने में श्री महन्‍त चन्‍दन दास छोटी समाधि प्रेमपुरा पिछोर ने जो सहयोग दिया है इसके लिए हम उनका हृदय से आभार मानते हैं।।

पंचमहली बोली का मैं अपने आपको सबसे पहला कवि, कथाकार मानता था लेकिन कन्‍हर साहित्‍य ने मेरा यह मोह भंग कर दिया है।

इस सत् कार्य में मित्रों का भरपूर सहयोग मिला है उनका हम हृदय से आभार मानते हैं। प्रयास के बावजूद प्रकाशन में जो त्रुटियां रह गई हैं उसके लिए हम सुधी पाठकों से क्षमा चाहेंगे।

रामगोपाल भावुक

दिनांक 16-4-97 श्री राम नवमी सम्‍पादक

राग – कान्‍हरौ

जग हो गयो रैनि कौ सपनौं।।

भरमतु रहौ हाथ नहिं लागौ, करतु रहौ अपनौं अपनौं।।

प्रभु कौ नाम कबहु नहिं लीनौं, पर अपवाद वृथा जपनौं।।

कन्‍हर राम नाम चिंतामनि, विसर गयौ भव भ्रम तपनौं।।644।।

सुध लीजौ राम पियारे।।

सुन्‍दर स्‍याम कमल दल लोचन, नृप दसरथ के वारे।।

तुम बिन मोकौं कल न परति है, बिसरत नाहिं बिसारे।।

हौं हो विकल मीन जिमि जल बिन, सुरति न रहति सम्‍हारे।।

नैन चकोर चन्‍द्र मुख निरखत, पलक न होत निआरे।।

कन्‍हर के प्रभु कबहिं मिलौगे, सरनागत भय टारे।।645।।

राग – अड़ानौं

दीनदयाल विरद सुनि पायौ, सरन तुम्‍हारी आयौ।।

जन्‍म अनेक महा भ्रम भूलौ, काल विवस बौरायौ।।

है मति मंद मलीन हीन लखि, ताते तुव सरनायौ।।

कन्‍हर प्रभु दरबार नीति कौ, यह सुनि कै हरषायौ।।646।।

राग – देस, ताल – जत

रघुवर वर बरनौं गुन रासी।।

दीनदयाल सदा आरति हर, मेटत भय सरनागत आसी।।

सिव सनकादि अमर ब्रम्‍हादिक, नारदादि निसदिन गुन गासी।।

भक्‍त अनेक पार भव हो गये, जिनि प्रभु सुंदर नाम जपासी।।

बरनत वेद पार नहिं पावत, नेति – नेति कहि – कहि हरषासी।।

कन्‍हर मति लघु क्‍यों कहि आवत, चरन कमल मेरौ मन चासी।।647।।

राग – असावरी

संत सुभ राम नाम गुन गावै।।

राम अमल निस दिन जप राखै, नहिं प्रभु कौ बिसरावै।।

काम क्रोध मद लोभ मोह जड़, इनके फंद फंद नहिं ल्‍यावै।।

कन्‍हर मन सठ लागत नाहीं, हारि परौ मोहि नाच नचावै।।648।।

कैसी करौं म्‍हारे राम, नइया लागति नाई पार।।

डगमग होत बोझ है भारी, अगम वहति है धार।।

जिनि के संग रैनि दिन भूलौ, ते नहिं लगत पुकार।।

कन्‍हर मान सलाह जही है, नाम मलाह उचार।।649।।

तुम्‍हरौ विरद सुनौं है भारी, नाम लेत भय टारी।।

हिरनाकुस प्रहलाद सतायौ, कीनौं वचन उचारी।।

खंभ फारि प्रभु प्रगट भये हैं, पल में विपति निवारी।।

द्रुपद सुता कौ चीर बढ़ायौ, दुसासन बल हारी।।

खैंचत – खैंचत भुज बल थाके, तन नहिं नैक उघारी।।

गज अरू ग्राह लरे जल भीतर, चक्रपानि उर धारी।।

सुनि करि गिरा पियादे आये, खगपति नाथ बिसारी।।

भक्‍त अनेक पार सब हो गये, जिनि लै नाम पुकारी।।

कन्‍हर दीन सरन तुम हेरे, लीजै खबरि हमारी।।650।।

रघुवर तुम्‍हरी ओर लसयहौं।।

भौंर भरम में भूलि न जयहौं, संत समागम बीच कसयहौं।।

राम भजन बिन स्‍वांस वृथा, अब मैं उर तै न नसयहौं।।

कन्‍हर पर अपवाद छोड़ कर, मन प्रभु चरन बसयहौ।।651।।

भक्‍त गुन गावत है, तजि काम।।

ध्रुव प्रहलाद विभीषन सब मिलि, जपत रहत वसु जाम।।

गनिका अजामेल से कोटिनि, जिनि पायौ विसराम।।

कन्‍हर प्रभु को नाम तिमिरहर, ताय जपै उर धाम।।652।।

सियाराम भजन कर मनवा, उर नाहीं डरना।।

राम नाम जग सुंदर महिमा, कहि – कहि पार उतरना।।

नर तन पाय वृथा ही खोवत, जलपि- जलपि नहिं तन भरना।।

कन्‍हर जे प्रभु से समरथ कौ, छोड़ै जन्‍म – जन्‍म मरना।।653।।

सबके सीताराम ह‍री।।

अब तूं वृथा सोच क्‍यों मानतु, नाम लेत भव पार परी।।

जे नर सदा अचेत जक्‍त मैं, भूले फिरत कर्म पकरी।।

कन्‍हर प्रभु सब के रखवारे, सुमिरै ते जम फंद टरी।।654।।

सबकी नाम लेत सुधरी।।

सीताराम नाम प्रिय कहि – कहि, भव भय विपत टरी।।

नाम प्रताप अटल पद ध्रुव कौ, धरि उर ध्‍यान नहिं बिसरी।।

कन्‍हर जे जन सरन तकेह, रामसिय भव पथ पार करी।।655।।

हरि बिन कोटनि लस तनिहौं।।

राम भजन कबहू नहिं व्‍यापै, निस – दिन लोभ मोह मद सनिहौं।।

भई मति मंद मलीन ग्रसी अघ, पर अपवाद वृथा ही भनिहौ।।

किंकर जानि कृपा करि हेरौ, कन्‍हर औगुन कहा लगि गनिहौं।।656।।

भव से प्रभु पार करीजै।।

बहौ जाति हौं नाव जाजरी, करिअ कृपा गहीजै।।

मो कौ और नहीं कोऊ सूझत, तुम्‍हरौ विरद सुनीजै।।

सरनागत की लाजि निबाहौ, कन्‍हर ओर तकीजै।।657।।

राग – झंझौटी

रामै सुमरि लै दिन बीत गयौ है।।

बहुत फिरौ कछु हाथ्‍ न लागौ, सबहिं मनोरथ झूठ भयौ है।।

कबहूं न संग करौ भक्‍तनि कौ, अब तूं वृथा जन्‍म बितयौ है।।

कन्‍हर विनय करतु है तोसौं, मानि लेउ हरि शरन तरयौ है।।658।।

राग – गौड़

चोला जात वृथानौं, जपौ हरि नामै।।

इक दिन काम राम सौं परिहैं, मति भूलौ भ्रमि तामै।।

तन इक बार खाक मिलि जैहैं, नहिं आवैगो कामै।।

कन्‍हर जिनिनै चरन तके, ते नहिं बीधे फंदा मैं।।659।।

राग – देस

भजन करौ दिन रैनि, रामै जिनि बिसरौ रे।।

सब सतसंगी चारि दिननि के तात मात अरू कुटम भरौ रे।।

जेतौ संग सहाइ न करिहैं, नाहक भटकि वृथा ही मरौ रे।।

कन्‍हर अब तूं प्रभुहि सम्‍हारौ, मानि लेउ बहु विनय करौ रे।।

मै तोसौं ऐड़ौ तूं मानि लै कही रे।।

जग तूं वृथा काल जिनि खोवै, राम नाम जपि सत्‍य जही रे।।

भरमत जन्‍म व्‍यतीति गयौ है, कबहूं नहिं हरिओम जपी रे।।

कन्‍हर तोसौं विनय करत है, ताते तूं अब प्रभुहि गही रे।।660।।

मति मति भूलै चलना वाही देस।।

सुंदर लाद लदैया जग में, अघ कौ तजि लवलेस।।

राम नाम कौ सुमिरन करि लै, जम नहिं पकरै केस।।

कन्‍हर आन उपाय नहीं है, मानौ सिख यह बेस।।661।।

राग – देस, ताल – इकतारो

जग में देखौ यह व्‍याल।।

इक आवै इक चले जात है, फिरै यंत्र की माल।।

बंधन कठिन बंधौ या जग में, सुरझत नाहीं हाल।।

कन्‍हर तातै जपौ सियावर, परौ काल के गाल।।662।।

राग – सोरठा

तन मन सीताराम बसइया ।।

ते नर रूप मुक्ति या जग में, चरन कमल उर लइया।।

निस दिन रहत मगन याते, नयन प्रभु की छइया।।

कन्‍हर जे जन धन्‍य जातु, जिनि प्रभु की सरन तकइया।।663।।

हरि बिन विपति कौन सौं कहियै।।

और न हरै दसह दुख मेरौ, समुझि हृदै मैं रहियै।।

तुम बिन नाथ और नहिं कोई, ताके सरनै जइयै।।

कन्‍हर मन अब धीर न आवै, बिना राम रति पइयै।।664।।

राग – झंझौटी

सियावर हरौ मोह भ्रम भारी।।

पतित अनेक पार तुम कीनै, जिनि तुझ नाम उचारी।।

आरतिहर प्रभु नाम तुम्‍हारौ, भक्‍तनि के भय हारी।।

कन्‍हर दीन सरन भयौ आइ, भव भ्रम ते लेउ उबारी।।

सियाराम चरननि की महिमा, जिन्‍हें लगी जिनि जानी।।

कहत न बनै कौन सौं कहिये, गुप्‍त मतौ उर आन रहानी।।

ध्रुव प्रहलाद विभीषन सब मिलि, गाव‍तहि गुन आनी।।

कन्‍हर मानदास स्‍वामी लखि, ढुरिहै सारंगपानी।।665।।

राग – रागश्री

जन्‍म अनेक बहुत भरमायौ।।

चरन सरोज बिसारि तुम्‍हारे, निसदिन भरम पगायौ।।

जन्‍मौ मरौ बहुत दुख पायौ, भयौ न थिर भटकायौ।।

कन्‍हर सुनि प्रभु अधम उधारन, चरन सरन तकि आयौ।।666।।

राग – खम्‍हाच, ताल – जतकौ

अधम उधारन तुम रघुराई।।

द्वार खड़ौ मैं बहुत पुकारौ, हमरी कोऊ न कहाई।।

कोऊ न दीनता कहत दीन की, हमकौं जान न पाई।।

कन्‍हर सुनि करि विरद तुम्‍हारौ, तातै सरन तकाई।।667।।

सुधाकर सब आताप निवारे।।

जन सुखकारी रहत सदाई, सबके उरहि पियारे।।

राम सरूप रहत उर माही, बिसरत नाहिं बिसारे।।

सुन्‍दर ध्‍यान करत जे तुम्‍हरौ, जिनिकौ करत सुखारे।।

निसा नाथ तुम हौ सब लायक, हेरहु दीन निहारे।।

कन्‍हर त्रास त्रसित भव की भय, राम सुधा रस देउ पिवारे।।668।।

प्रभु की कैसे ओरहि ऐये।।

मन मतंग यह मानत नाहीं, क्‍यों करि कै समुझैये।।

हरि चरननि की अंकुस रेखा, ताकौ उर में लहिये।।

कन्‍हर पाप पुंज परवत सम, वज्र रेख जपि दहिये।।669।।

विधि नारद संकर सनकादिक, बार – बार गुनगासी।।

नरहरि दास जनक भीषम बलि, सुखदेव गुन रासी।।

कपिल देव मन भूप भये हैं, धरम सरूप जपासी।।

कन्‍हर जिनि के नाम लेत ही, भव के भरम न सासी।।670।।

बन्‍दौ हरि वल्‍लभ सुखदाई।।

कमला गरूड़ सुनंद आदि सब, जे चरननि उर ल्‍याई।।

अंजनि सुत सु्ग्रीव विभीषन, जामवंत मन भाई।।

ध्रुव उद्धव गज ग्राह सुदामा, अंबरीष सरनाई।।

है अक्रूर विदुर खग सौंरी, चंद्रहास सुभ आई।।

चित्रकेत पांडव कौरव जप, कुन्‍ती नाम सुहाई।।

द्रुपद सुता कौ चीर बढ़ायौ, खैंचत पारू न पाई।।

कन्‍हर जिनि कौ नाम जपत ही, भव बाधा मिट जाई।।671।।

रघुकुल कमल दिनेस सुंदर सोभित है रघुवीर।।

जिनिकौ नाम लेत जम डरपत, भाजति है भय भीर।।

दुष्‍टनि मार अभय जन कीनै, मैटि दई भव पीर।।

कन्‍हर के प्रभु भव सुखदाइ्र, त्रिभुवन पति रन धीर।।672।।

राग – सारंग

क्षीर निधि श्री वल्‍लभ राजै।।

सेसासन पर सोभित सयने, छवि लखि उपमा बहु लाजै।।

कमला चरन पलोटते सुंदर, निगम नेति नेति कहि गावै।।

ब्रम्‍हा नाभि कमल तै प्रगटे, भूले फिरत पार नहिं पावै।।

लीला हित महि रचित करी, है माया गुन करि जग विस्‍तारै।।

कन्‍हर लखि आनंद भये सुर, बार – बार जय सब्‍द उचारै।।673।।

सिव प्रिय राम नाम उर धारी।।

मंगल करन अमंगल हारी, राम नाम दृढ़कारी।।

तारक मंत्र उपदेस करत है, सरनागत भय टारी।।

कन्‍हर सिव की महिमा बरनत, नेति – नेति श्रुति चारी।।674।।

वंदौ हरि जन जन सुखदाई।।

जोगेश्‍वर श्रुति वेद मनोहर, सेस सदा मन भाई।।

पारीछत हरिचंदर वैन्‍य वलि, कहेउ प्रियावृत राई।।

सतिरूपा त्रेसुता सुनीता, वृज वनिता पद पाई।।

सौनक सतिव्रत सगर भगीरथ, बालमिक सरनाई।।

भरथ दधीच भये रूक्‍मांगद, जनक ध्‍यान उर ल्‍याई।।

सुरथ सुधन्‍वा सिवि सुमति, अतिबलि दारा हरषाई।।

कन्‍हर मंगल रूप राम प्रिय, श्रवन सुनै दुख जाई।।675।।

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