कन्‍हर पद माल - शास्त्रीय रागों पर आधारित पद - 10 ramgopal bhavuk द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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कन्‍हर पद माल - शास्त्रीय रागों पर आधारित पद - 10

कन्‍हर पद माल - शास्त्रीय रागों पर आधारित पद 10

सन्‍त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्‍हर दास जी महाराज कृत

( शास्त्रीय रागों पर आधारित पद .)

हस्‍त‍लिखित पाण्‍डुलिपि सन् 1852 ई.

सर्वाधिकार सुरक्षित--

1 परमहंस मस्‍तराम गौरीशंकर सत्‍संग समिति

(डबरा) भवभूति नगर (म.प्र.)

2 श्री श्री 1008 श्री गुरू कन्‍हर दास जी सार्वजनिक

लोकन्‍यास विकास समिति तपोभूमि कालिन्‍द्री, पिछोर।

सम्‍पादक- रामगोपाल ‘भावुक’

सह सम्‍पादक- वेदराम प्रजापति ‘मनमस्‍त’ राधेश्‍याम पटसारिया राजू

परामर्श- राजनारायण बोहरे

संपर्कः -कमलेश्वर कॉलोनी, (डबरा) भवभूति नगर, जिला ग्वालियर (म0प्र0)

पिन- 475110 मो0 9425715707 tiwariramgopal5@gmail.com

प्रकाशन तिथि- 1 चैत्र शुक्‍ल, श्री रामनवमी सम्‍वत् 2045

श्री खेमराज जी रसाल द्वारा‘’कन्‍हर सागर’’ (डबरा) भवभूति नगर (म.प्र.)

2 चैत्र शुक्‍ल, श्री रामनवमी सम्‍वत् 2054

सम्‍पादकीय--

परमहंस मस्‍तराम गौरी शंकर बाबा के सानिध्‍य में बैठने का यह प्रतिफल हमें आनन्‍द विभोर कर रहा है।

पंचमहल की माटी को सुवासित करने जन-जन की बोली पंचमहली को हिन्‍दी साहित्‍य में स्‍थान दिलाने, संस्‍कृत के महाकवि भवभूति की कर्मभूमि पर सन्‍त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्‍हर दास जी महाराज सम्‍वत् 1831 में ग्‍वालियर जिले की भाण्‍डेर तहसील के सेंथरी ग्राम के मुदगल परिवार में जन्‍मे।

सन्‍त श्री कन्‍हरदास जी के जीवन चरित्र के संबंध में जन-जन से मुखरित तथ्‍यों के आधार पर श्री खेमराज जी रसाल द्वारा ‘’कन्‍हर सागर’’ में पर्याप्‍त स्‍थान दिया गया है। श्री वजेश कुदरिया से प्राप्‍त संत श्री कन्‍हर दास जी के जीवन चरित्र के बारे में उनके शिष्‍य संत श्री मनहर दास जी द्वारा लिखित प्रति सबसे अधिक प्रामाणिक दस्‍तावेज है उसे ही पदमाल से पहले प्रस्‍तुत कर रहे हैं।

कन्‍हर पदमाल के पदों की संख्‍या 1052 दी गई है लेकिन उनके कुल पदों की संख्‍या का प्रमाण--

सवा सहस रच दई पदमाला।

कृपा करी दशरथ के लाला।।

के आधार पर 1250 है। हमें कुल 1052 पद ही प्राप्‍त हो पाये हैं। स्‍व. श्री दयाराम कानूनगो से प्राप्‍त प्रति से 145 पद श्री रसाल जी द्वारा एवं मुक्‍त मनीषा साहित्यिक एवं सांस्‍कृतिक समिति द्वारा श्री नरेन्‍द्र उत्‍सुक के सम्‍पादन में पंच महल की माटी के बारह पदों सहित शास्‍त्रीय संगीत की धरोहर

तीस रागनी राग छ:, रवि पदमाला ग्रन्थ।

गुरू कन्‍हर पर निज कृपा, करी जानकी कन्‍थ।।

विज्ञजनों को समर्पित करने एवं मर्यादा पुरूषोत्‍तम श्री राम के जीवन की झांकी की लीला पुरूषोत्‍तम श्री कृष्‍ण का जीवन झांकी से साम्‍य उपस्यित करने में बाबा कन्‍हर दास जी पूरी तरह सफल रहे हैं।

डॉ0 नीलिमा शर्मा जी जीवाजी विश्व विद्यालय ग्वालियर से शास्‍त्रीय संगीत की धरोहर कन्‍हर पदमाल पर शोध कर चुकी हैं।

सन्‍त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्‍हर दास जी महाराज का निर्वाण एक सौ आठ वर्ष की वय में चैत्र शुक्‍ल, श्री रामनवमी रविवार सम्‍वत् 1939 को पिछोर में हुआ।

नगर निगम संग्रहालय ग्‍वालियर में श्री कन्‍हर दास पदमाल की पाण्‍डुलिपि सुरक्षित वसीयत स्‍वरूप रखी हुई है। श्री प्रवीण भारद्वाज, पंकज एडवोकेट ग्‍वालियर द्वारा पाण्‍डुलिपि की फोटो प्रति उपलबध कराने में तथा परम सन्‍तों के छाया चित्र उपलबध कराने में श्री महन्‍त चन्‍दन दास छोटी समाधि प्रेमपुरा पिछोर ने जो सहयोग दिया है इसके लिए हम उनका हृदय से आभार मानते हैं।।

पंचमहली बोली का मैं अपने आपको सबसे पहला कवि, कथाकार मानता था लेकिन कन्‍हर साहित्‍य ने मेरा यह मोह भंग कर दिया है।

इस सत् कार्य में मित्रों का भरपूर सहयोग मिला है उनका हम हृदय से आभार मानते हैं। प्रयास के बावजूद प्रकाशन में जो त्रुटियां रह गई हैं उसके लिए हम सुधी पाठकों से क्षमा चाहेंगे।

रामगोपाल भावुक

दिनांक 16-4-97 श्री राम नवमी सम्‍पादक

राग – झंझौटी

सुमिरन कर कैलास प‍ती कौ।।

पारवती अरधंग विराजति, भाल चन्‍द्र मनी कौ।।

बाघंबर आसन पर राजत, भेष लसै जोगी कौ।।

भस्‍म अंग सिर गंग विराजत, नील कंठ मनिही कौ।।

वाहन वृषभ त्रिसूल सुहायौ, ध्‍यान धरत सिय पिय कौ।।

कन्‍हर दीन सरन भयौ आई, मेटि देउ भ्रम जी कौ।।312।।

राग – भैरव

नाम विदित सुन्‍दर गन राई।।

संकर सुवन भुवन भयहारी, सोभित गज आनन को पाई।।

सकल सिद्धि बुद्धि वर दायक, देत सबै सबके मन भाई।।

दीन जानि जन कृपा करत हौ, सेवक पर तुम रहत सहाई।।

विघ्‍न विनाशन नाम तुम्‍हारौ, प्रथम सुमिर तुम्‍हारौ जस गाई।।

कन्‍हर की अब अरज लगी है, बसहि राम सीता उर आई।।313।।

मोइ राग दूत कौ भरोसौ भारी।।

हरि उर सालिक हरि जन पालिक, दीनन कौ हितकारी।।

जस भरि पूरि रहौ त्रिभुअन मैं, रावन भुजा उखारी।।

जाकी ओर कृपा करि हेरत, ताकी टरति न टारी।।

छवि सिन्‍दूर सीस पर झलकत, दौनागिरि कर धारी।।

कन्‍हर सुमिरै नाम पवन सुत, संकट मोचन हारी।।314।।

हनुमत रामदूत अलबेला।।

रहत असंक संक नहिं मानत, लंका गयऊ अकेला।।

कौतिक करिकै दहौ कनकि गढ़, भट मारे करि हेला।।

कन्‍हर वीरबली नहिं दूजौ, निसिचर पति पद पेला।।315।।

राग – पूर्वी , ताल –त्रिताल

महावीर रघुवीर पियारे।।

निसि – दिन रहत ध्‍यान चरननि में, पलिकनि होत नियारे।।

सदा दयाल रहत दीननि पर, देत प्रेम पदराम सिया रे।।

कन्‍हर सरन भये ये तुम्‍हरे, तिनकौ निज पद राम दिया रे।।316।।

हनुमंत वीर धीर वलि बंका।।

उदधि उलघि सिया सुधि ल्‍याए, जारि छारि करि लंका।।

तेजपुंज रघुवीर पियारे, निसि‍चर दलि करि हंका।।

कन्‍हर जय – जय भनति तिहूं पुर, मारूति लाल असंका।।317।।

राग – विभास

सुमिरन कर हनुमान जती कौ।।

अभय करत जग भय नहिं राखत, ऐसी करन मती कौ।।

सिय पिय दूत सपूत पवन सुत, निरभय दानि गती कौ।।

राम भक्ति वर देत हरषि कर, पाप न रहत रती कौ।।

मंगल करन अमंगल हारी, दुख मेटन जगती कौ।।

कन्‍हर वीर बली नहिं दूजौ, सुत हत लंकपती कौ।।318।।

राग – अलइया

सुअन समीर के सुधि लीजौ।।

तुम्‍ह बल बुद्धि निधान राम प्रिय, औगुन माफ करीजौ।।

मैं तो बार – बार विनयौ प्रभु, राम चरन रति दीजौ।।

कन्‍हर ओर कृपा करि हेरहु, भव के भरम हरीजौ।।319।।

राग – सारंग

कोऊ कपि सौ नहिं हितकारी।।

जन के सकल मनोरथ मन के,करत लगत नहिं बारी।।

मारूत पूत अकूत तेज बल, सुमिरत करत सुखारी।।

अभय करत अरू भय नहिं राखत, ताकी ओर निहारी।।

कन्‍हर राम भक्ति वर मांगत,पुजवहु आस हमारी।।320।।

राग – भैरवी

गरगज के हनुमान अनेरे।।

गोपाचल ढिग लसत मनोहर, कस बरनौं गुन तेरे।।

तेजे पुंज रघुवीर पियारे, बसौ सदा मन मेरे।।

सिद्धि होति जन नाम लिये ते, लागत नाहिं फिरि देरे।।

पुजवत सकल मनोरथ मन के, कीनै पार घनेरे।।

कन्‍हर चरन सरन तकि आयौ, ताइ कृपा करि हेरे।।321।।

राग – काफी

चरन चिन्‍ह बरनौं रघुवर के।।

अंकुस जब के कुलिस मनोहर, कमल धुजा अंबर के।।

ऋंजुब फल वर स्‍वस्ति धेनु पद, सोभित संख कलस के।।

ससुधा हद लखि अर्ध चन्‍द्र दुति, विदित सदा शुभ जस के।।

ऊर्द्ध रेख षटकोण मीन वर, लखि भाजै अघ जन के।।

अष्‍ट कोण त्रैकोण इन्‍द्र धनु, हृदै बसै मुनि जन के।।

करि ध्‍यान धरत जे उर में, दूरि होत भ्रम भव के।।

कन्‍हर बार – बार जपि निस – दिन चरन चिन्‍ह सियवर के।।322।।

मन मेरे रघुवीर कहौ रे।।

मीन बराह कमठ नर हरि बल, वामन रूप लहौ रे।।

परसराम वर बोध ब्रम्‍ह पृथु, कीरति उदय भयौ रे।।

कलकी अरू हरि दंस मनवन्‍तर, हयग्री वधू अरू पठयौ रे।।

जग्‍य रिखव वर धेनु धनवंतर, बद्रीपति तप पुंज करौ रे।।

कपिलदेव सनकादिक सोभित, व्‍यास रूप सुन्‍दर प्रगटौ रे।।

दत्‍तात्रे प्रगट हो करि कै, बार – बार प्रभु नाम जपौ रे।।

कन्‍हर हरिगुन रूप मनोहर, उर धरि भव ते पार परौ रे।।323।।

राग – पर्ज

हरि के कच्‍छप रूप धरौ।।

रतन हेत दधि मन्‍थन कीनौ, है सबकौं हर्ष भरौ।।

फन तन असुर पूंछ तन देवा, येसौ मत उचरौ।।

श्रीमनि विधु अमृत विष है, गज रम्‍भा रूप करौ।।

शंख धनुष मद कल्‍प धेनु वर, वैद्य अंस उतरौ।।

सुन्‍दर मोहनि रूप धरौ प्रभु, सबकौ मनै हर्ष भरौ।।

कन्‍हर सुनहित करि करूनानिधि, दैत्‍यनि गर्भ हरौ।।324।।

प्रगटे रूप बराह हरी।।

ब्रम्‍ह अंग ते निकसि मनोहर, सोभित मनहु करी।।

बैठि पताल खोजि करि वसुधा, दंतहि अग्र धरी।।

गरजि- तरजि हिरनाछिक ठोरा, प्रभु सन रारि परी।।

छल बल करि कै बहु जुध कीनौ, मारौ दुष्‍ट अरी।।

लैकरि धरा सेस सिर धारी, देवन सुमन झरी।।

भयो अनंद लोक त्रिभुअन में, देवनि जस उचरी।।

कन्‍हर जय-जय शब्‍द भयौ है, लखि करि सुभग घरी।।325।।

भक्‍त हित नरहरि रूप धरी।।

शुक्‍ल पक्ष बैसाख मास शुभ, चतुर्दशी दिन अस्‍त घरी।।

हिरनाकुस कौ उदर विदारौ, राखौ प्रन प्रहलाद हरी।।

वरषत पुष्‍प देव मुनि हर्षत, लोक- लोक जय शब्‍द करी।।।

सिव सनकादि अमर ब्रम्‍हादिक, अस्‍तुति करि मन हर्ष भरी।।

कन्‍हर प्रभु सेवक करूणा सुनि, पल में विपति मैटी सबरी।।326।।

आदिती के गृह में, प्रगट भये हरि आई।।

भादौ सुदी द्वादसी श्रवन जुत, मध्‍य भानु विलमाई।।

बामन रूप बहुत प्रिय सोभित, देवन के मन भाई।।

कन्‍हर जय – जय शब्‍द भयौ है, रह त्रिभुअन मैं छाई।।327।।

राग – भैरों

बोध रूप जगदीश ईश हरि, नीलांचल पर राजै।।

जगन्‍नाथ वलभद्र सुभद्रा, नाम लेत अघ भाजै।।

संखाकृत शुभपुरी लसति है, निकट महोदधि गाजै।।

कन्‍हर प्रभु कौं नाम लेत ही, सुफल होत सब काजै।।328।।

राजत सुन्‍दर रूप सुहाई, बामन बलि गृह आई।।

कहि नृप मांगि देउ द्विज सोई, मैं बहु सुख कौं पाई।।

दीजै तीनि पैड़ महि हमकौ, निकट कुटीर है छाई।।

सनि कै वचन राउ हरषानौ, देउ राज मन भाई।।

कहत सुक्र जाचकि मति जानौ, आए देव सहाई।।

भूपति कहे धनि भाग हमारौ, दयौ दान हरषाई।।

बाढ़ौउ वपु सोभित त्रिभुवन में, देव पुष्‍प झर ल्‍याई।।

ढाई पैर करी सब वसुधा, दै दई पीठि प्रन राई।।

कन्‍हर जय – जय सब्‍द भयौ है, पूरौ त्रिभुवन जाई।।329।।

भये मौन काये बोलत नाई।।

जगन्‍नाथ वलभद्र सुभद्रा, राजत जन सुखदाई।।

पश्चिम दिसि हनुमान विराजत, ध्‍यान मगन मन ल्‍याई।।

दरसन करत मुक्ति फल पावत, वेद कहत सुभगाई।।

नील चक्र पर ध्‍वजा मनोहर, निकट गरूड़ मन भाई।।

अरसठ तीरथ विमला वानी, लोकनाथ छवि छाई।।

मंडप सभा अछैवट सोभित, निकट महोदधि पाई।।

कन्‍हर सिंध पौरि दुति राजति, बरनति मति सकुचाई।।330।।

राग – सारंग

जय – जय जगन्‍नाथ सुखरासी।।

जिनके नाम निरन्‍तर मुनिगन, बरनै गुन हरषासी।।

छूटत आवागमन दरसि करि, भव के भ्रम नहिं सासी।।

अंग विभूषन जटित मनोहर, हीरा मस्‍तक जासी।।

ओडीसा निज पुरी लसति है, निकट महोदधि पासी।।

षट पंचासत भोग लगत है, नाना विधि के आसी।।

नारदादि सनकादिक सुंदर, ध्‍यान धरत कैलासी।।

कन्‍हर देव मगन मन हरषत, मंगल आरति गासी।।331।।

राग – भैरों

नारायण बद्रीनाथ सुहायै।।

निकट हिमालय सोभित सुंदर, मुक्ति द्वार वेदनि जस गायै।।

प्रगटी गंग चरन कमलनि ते, नाम अलखनंदा शुभ पायै।।

तपत कुंड तप तेज विराजत, भूमि पवित्र सदा मन भायै।।

जोग ध्‍यान जुगजुगनि उग्र करि, मुनि मन बहु सुख पायै।।

प्रासन पदम जोर उर धारै, मुनि मन मगन देखि हरषायै।।

पूजन करत देव मुनि नारद, चरन सरन लै ल्‍यायै।।

कन्‍हर जे कोऊ सरन तकत है, तिनिकौ भव ते पार करायै।।332।।

राग – भैरों

वासुदेव वसुदेव भवन में, जन्‍म लियौ है आई।।

भादौ वदी बुधवार अष्‍टमी, लगन जोग समुदाई।।

आधी रैनि मेघ बहु छाये, चपना चमकि सुहाई।।

लै वसुदेव चले गोकुल कौं, लखि जमुना हरषाई।।

धरौ प्रवाह चरन छूवे कौ, तात देखि अकुलाई।।

पितु भयजुक्‍त जानि त्रिभुअन पति, चरन परसि सुख पाई।।

माया रचित मोहि करि सबकौ, प्रगटे गोकुल जाई।।

कन्‍हर जय – जय सब्‍द भयौ है, आनंद उर न समाई।।

गोकुल आनंद आजु छाइ रहौ माई।।

मंगल भरि थार नारि, सजि – सजि सब ल्‍याई।।

करै गान हरषवान, सुंदर मन भाई।।333।।

बाजै बहु बजत ताल, सोभित नंद के दुआर,

पूरि रहौ बहु आनंद, त्रिभुअन मैं छाई।।

संकर सनकादि आदि, नर तन धरि आये,

कन्‍हर सब भूलि रहै, लखि आनंदताई।।334।।

राग – भैरवी

बधाई बाजत नन्‍द दुआर।।

आनंद पूरि रहौ त्रिभुवन में, हरि लीनौ औतार।।

वरषत पुष्‍प देव मुनि हर्षत, जय – जय करत उचार।।

कन्‍हर भुव कौ भार उतारन, प्रगटे जीवन सार।।335।।

राग – भैरों

बृज मंडल में सुख भरि पूरि रहौ।।

जन्‍मै कुंअर नृपति गृह सुंदर, सब मन मोद लहौ।।

आनंद छाइ रहौ त्रिभुअन में, सुर गन गान ठयौ।।

कन्‍हर धन्‍य घरी हरि प्रगटे, सुख पितु मातु दयौ।।336।।

राग – रामकली

पलना झूलत श्री नद नंद।।

किलकि – किलकि मन मोद बढ़ावत, बृज जीवन सुख कंद।।

अंग नीलमनि लसत मनोहर, मुख सरोज छवि चंद।।

कन्‍हर बलि – बलि जाति जसोदा, पुर जन मन मकरंद।।337।।

सरजू लोक – लोक कवि ध्‍याता।।

राम जन्‍म शुभ तीर भयौ है, निर्भय पद की दाता।।

चारिहु वेद पुरान अठारह, बरनत छवि सकुच्‍याता।।

कन्‍हर आस लगी चरननि की, ढरहु जानि जन माता।।338।।

राग – अलइया, ताल – त्रिताल

श्री सरजू छवि छटा सुहाई।।

रूमि झूमि झुकि भूमि लता रह, मोर कूक रव लयाई।।

विगसे सुमन विविध विधि सोभित, लोभित भंमर भरमाई।।

कोकिल कीर तीर रव सब मिलि, सीतापति गुन गाई।।

यह सुख लहत रहत नित पुरजन, तन मन आनंदताई।।

कन्‍हर सरजू नाम कहत तन, आतप जात पराई।।339।।