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गरीब कौन

घर का जरूरी सामान लेने के लिए मार्केट गई तो याद आया कि बच्चों ने टी शर्ट व जुराबों के लिए कहा था।
उन्हें लेने के लिए जब मैं एक शॉप पर गई तो देखा दुकानदार कुछ परेशान सा था और दुकान में काम करने वाली उस दुबली पतली सी लड़की पर चिल्ला रहा था। 1-2 कस्टमर भी वहां खड़े थे। मैं भी माजरा समझने के लिए थोड़ा रुक गई।
पता चला दुकान के बाहर हैंगर पर जो टी शर्ट सेल के लिए लगी हुई थी। दो महिलाएं आई और आंख बचाकर उनमें से तीन चार टी शर्ट छुपा कर ले गई।
सीसीटीवी कैमरे में या घटना पूरी रिकॉर्ड थी और इसी बात पर दुकानदार उस लड़की पर नाराज था।

वह लड़की अपनी सफाई देते हुए बोली "सर, मैं तो यहां खड़ी थी लेकिन आपने ही मुझे अंदर सामान देने के लिए बुला लिया था। आज रवि भी नहीं आया। उसकी जगह अंदर बाहर मुझे ही काम करना पड़ रहा है।"

"तो एहसान कर रही हो ! क्या तनख़ाह नहीं लेती! अगर भागदौड़ बसकी नहीं तो छोड़ दो काम!"
"सर काम भी तो नहीं छोड़ सकती! आपको पता है मेरी मजबूरी । गलती हो गई । आगे से ध्यान रखूंगी।"
"गलती मानने से मेरे नुकसान की भरपाई नहीं होगी। यह हर्जाना तो तुम्हें भरना ही पड़ेगा!"
"सर इतने दिनों से आपके पास काम कर रही हूं । घर में मैं ही कमाने वाली हूं। कुछ तो लिहाज!!!!!!"
"मुझे इस बारे में अभी कोई बात नहीं करनी। काम पर ध्यान दो।"
दुकान पर बढ़ती भीड़ और ग्राहकों की नजरों में उस गरीब सी लड़की के लिए सहानुभूति देख दुकानदार ने बात खत्म कर दी।
लड़की समझ गयी उसके गिड़गिड़ाने का कोई फायदा नहीं इसलिए वह चुपचाप काउंटर पर चली गई।

मैंने भी जल्दी से दो टीशर्ट व 4 जोड़ी जुराबें खरीदी । दुकानदार ने मेरे सामने बिल बनाया। जैसे ही मैं पैसे देने लगे तभी मेरा फोन आ गया। मैंने इशारे से दुकानदार को अपना सामान बैग में डालने के लिए कहा।
फोन सुनते हुए मैं दुकान से बाहर आई और रिक्शा ले घर आ गई।
आते ही बच्चों ने मेरे हाथ से बैग लिया और अपनी टीशर्ट व जुराबें देखने लगे।
"मम्मी, हमने तो आपको अपने दो दो जोड़े जुराबें लाने के लिए कहा था लेकिन यह तो 3 जोड़े ही है।"
"अरे नहीं भई! चार है। ध्यान से देखो, मैंने चार जोड़ी जुराबों का बिल पे किया है।" मैं बिल पर नजर मारते हुए बोली।
"देख लिया मम्मी! देखो बैग भी खाली है!"
कहीं जल्दी में वही काउंटर पर तो नहीं छूट गई । यह सोच मैंने जल्दी से दुकानदार को फोन मिलाया और उन्हें सारी बात बताई।
"नहीं बहनजी, यहां कोई सामान नहीं छूटा आपका। आपके सामने ही तो मैंने चैक कर सामान बैग में डाला था। आपसे ही कभी गिर गई होंगी या छूट गई होंगी।"

"भैया आपकी दुकान पर खरीदारी करने के बाद तो मैं कहीं गई ही नहीं और आते ही मैंने सामान चैक किया।"

अब इसमें मैं क्या कह सकता हूं । कहकर उसने फोन रख दिया।
उसकी बदतमीजी पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था मुझे। मन किया जाकर दुकान पर उसे अच्छे से सबक सिखाऊं!

फिर यही सोचकर सब्र कर लिया कि जो इतनी बड़ी दुकान का मालिक होकर इतनी छोटी चीज के लिए अपना ईमान गिरा सकता है! जिसे सालों से अपनी दुकान पर काम करने वाली लड़की की भावनाओं का ही ख्याल नहीं! ऐसे गरीब आदमी से कुछ कहने सुनने का कोई लाभ नहीं।
बस एक ही बात मन को कचोट रही थी कि असली गरीब कौन!!! वह लड़की जो इमानदारी से घरवो का पेट पाल रही थी या वो बेईमान दुकानदार!
सरोज ✍️


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