सामाजिक अस्वीकृत का भय प्रेम का बड़ा शत्रु । विवेक वर्मा द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सामाजिक अस्वीकृत का भय प्रेम का बड़ा शत्रु ।



प्रेम एक ऐसा विषय है जिसपर बहुत कुछ कहा और लिखा जा चुका है।अगर आप देखें तो पाएंगे की हर वक्ता,समाजसुधारक आदि अगर नैतिकता शांति जैसे विषयों पर भाषण देता हो तो वह प्रेम पर बोलता ही है और यह भी काफी स्वाभाविक बात है की हम भी अक्सर दो विवाद में पड़े व्यक्तियों को समझाते समय उन्हें अनायास ही प्रेम से रहने की सलाह दे देते हैं।लेकिन इसके बाद भी यह बहुत ही दुखद और सोचनीय है की हमारा समाज उस एक युवा लड़के -लड़की के प्रेम को जो सृष्टि का आधार और शाश्वत सत्य है उसे स्वीकृति नहीं देता ।आये दिन हम समाचार पत्रों में ऐसे प्रेमियों की हत्याओं की खबरे पढ़ते रहते हैं जिसे आनर किलिंग की संज्ञा दी जाती है।आखिर हमारा समाज ये क्यों नहीं सोचता की ओ बच्चे जो प्रेम में हैं को प्रताड़ित करके वे अपने ही समाज के अंग या यूं कहें अपने वात्सल्य प्रेम को खत्म करते रहते हैं?आखिर समाज ये क्यों नहीं समझता कि जो प्रेम में होता है वह निश्चित है पहले से संकोची,जिम्मेदार,हिम्मती आदि गुणों का स्वामी बनता जाता है जो समाज के लिए हितकारी ही है।सामजिक अस्वीकृति का एक बड़ा कारण हमारी जाति व्यवस्था है ऐसे लोग जिनके प्यार अलग जाति के लोगो से होते है उनके अभिभावक या यूं कहें समाज ही अनेक प्रकार के ताने सुनाता है।उनके बच्चे भले ही एक दूसरे के प्रेम में तड़पते रहें लेकिन वे सामाजिक प्रतिष्ठा नीची गिरने के डर से अपने वात्सल्य प्रेम की बलि चढ़ाने से नहीं कतराते।संवैधानिक दृष्टि से भले ही अलग-अलग जातियों में विवाह की कोई रोक न हो लेकिन हमारे समाज का एक बड़ा हिस्सा आज भी इसे स्वीकार नहीं करता।इसके साथ ही ऐसे प्रेम विवाहों की अस्वीकृत का एक दूसरा बड़ा कारण दहेज प्रथा है। ये भी सामाजिक प्रतिष्ठा से जुड़ा विषय है।यद्द्पि कानूनी रूप से आज दहेज अवैध है लेकिन फिर भी उपहार के नाम पर चोरी छुपे लोग दहेज के लेन देन करते रहते हैं।भारतीय ग्रामीण सहित उच्च समाज में आज भी अधिक दहेज की प्राप्ति प्रतिष्ठा के आधार के रूप में देखा जाता है।अभिभावकों को प्रेम को स्वीकार करके प्रेमियों को शादी के जोड़े में बांधने की स्वीकृति देनें में इस बात का भी डर रहता है कि कहीं उन्हें दहेज कम न मिले।क्योंकि प्रेम विवाह में प्रेमी युगल की ही प्रधानता रहती है और वे प्रेमी अनेक झंझावतों को सहते हुए शादी की दहलीज तक पहुँचते हैं तो उनमें हिम्मत बढ़ी होती है।वे अपने प्रेम के खातिर इस बात को कहने से नहीं झिझकते की वे दहेज नहीं लेंगे।सोचिये कितना आश्चर्य का विषय है की ये समस्याएं मसलन जाति प्रथा,दहेज प्रथा आदि हमारे समाज के लिए कलंक हैं इनको रोकने के लिए सख्त कानून भी बने हैं ।इन्हें समाप्त करने के लिए आंदोलन भी हुए हैं।लेकिन चोरी छुपे अब भी ये अवैध प्रथाएं कहीं न कहीं चलती दिख जाती हैं फिर भी एक छोटा सा कार्य अर्थात अगर इस एक प्रेम विवाह को स्वीकृति मिल जाये तो निश्चित ही ये समस्याएं काफी हद तक खत्म हो जाएंगी।आखिर कौन सा प्रेमी युगल जाति के नाम पर अपने प्रेमी को खोना चाहेगा?आखिर कौन सा प्रेमी अपने प्रेमी को दहेज के के नाम पर परेशान करेगा?

हमें निश्चित ही इस चीज को बड़े सेलिब्रेटियों से सीखना होगा।उनकी शादियां अक्सर प्रेम विवाह की होती हैं।उनकी सफलता का कारण उनकी बड़ी प्रतिष्ठा का होना ही है क्योंकि उन्हें इस बात के डर नहीं रहता कि उनकी प्रतिष्ठा का ह्रास होगा क्योंकि उनकी प्रतिष्ठा उच्च स्तर की होती है जिसके शायद ही ख़त्म होने के आसार रहते हों।यद्द्पि बहुसंख्यक भारतीय समाज की प्रतिष्ठा उन सेलिब्रेटियों के स्तर की नहीं है फिर भी हमें उनसे थोड़ा अलग हटकर ये सीखना चाहिये की प्रेम विवाहों को सामाजिक प्रतिष्ठा का विषय ही नहीं बनाना चाहिये।हमे प्रेम को सकारात्मक दृष्टि से लेना होगा।आखिर हम माता-पिता,पिता-पुत्र,भाई-बहन आदि के प्रेम को जब अच्छा समझते है तो क्यों न भविष्य के पति-पत्नी बनने वाले इस प्रेम को हम अच्छी नजर से देखें।
आज के युवा जो प्रेम में हैं या कभी रहें हों उन्हें निश्चित ही इस स्थिति को बदलने के प्रयास करने होंगे।इन युवाओं को जो भविष्य में किसी युवा के अभिभावक बनेंगे और मिलकर एक समाज बनाएंगे उन्हें अपने बच्चों को ये छूट देनी होगी।उन्हें जरूर इस चीज का ध्यान रखना चाहिए युवावस्था में प्रेम के लिये जो समस्यायें उन्होंने झेली है वे उनके बच्चों को न झेलनी पड़े।धीरे-धीरे ही सही लेकिन समाज इससे जरूर बदलेगा और प्रेम को स्वीकृति मिलनी शुरू होगी।
ऐसी हजारों फिल्मे देखते,हजारों कहानियां सुनते हम पले बढ़े हैं।उन फिल्मों और कहानियों में हम प्रेमी ,प्रेमिका के पात्र के रूप में कल्पना करके खुद को रखते भी है और चाहते भी हैं कि प्रेमी -प्रेमिका एक दूसरे से मिल जाएं।जब हम कल्पना कर सकते हैं तो वास्तविक जीवन में थोड़ी कठिनाई से ही सही लेकिन लागू भी कर सकते हैं।जब एक बार प्रेम को स्वीकृति मिलनी शुरू हो जाएगी तो धीरे - धीरे ये समाज का एक अंग बन जायेगा।याद रखिये हर कार्य शुरू होने से पहले कठिन लगता है।सोचिये,कल्पना कीजिये वह कितना खूबसूरत समाज होगा जहां प्रेम एवं प्रेम विवाहों की स्वीकृति होगी.......