अधूरी लेकिन मुकम्मल प्रेम कहानी। विवेक वर्मा द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अधूरी लेकिन मुकम्मल प्रेम कहानी।



शहर के एक सिटी माल में दोनों की नजरें एक दूसरे पर पड़ते ही न चाहते हुए भी आयुष ,मध्यमा कह कर बोल पड़ता है---मध्यमा भी कुछ कदम आगे बढ़ने के बाद अपने हाथ हिलाकर मानो इस बात की पुष्टि करती है उसने भी उसको देखा......
आखिर दस साल के लम्बे इंतजार के बाद दोनों एक दूसरे को इतने करीब से देख रहे थे ।इस चंद पलों की मुलाकात ने दोनों को बचपन में जाने के लिए मजबूर कर दिया था। बात उन दिनों से शुरू होती है जब दोनों स्कूल में में पढ़ा करते थे।मध्यमा उस स्कूल में पहले से ही अध्ययनरत थी जबकि आयुष का प्रवेश उसके कुछ साल देर से होता है।दोनों ही स्वभाव से बहुत ही सरल थे।एक दिन सामान्य दिनों की भांति पढ़ाई हो रही थी इसी बीच आयुष के बगल बैठा किशन ,मध्यमा की तरफ इशारा करते हुए आयुष से कहता है देखो कितनी अच्छी है?लेकिन शर्मीले और डरपोक आयुष ने उस समय देखने से मना कर दिया।लेकिन उसके मन में मध्यमा को देखने की कश्मकश चल रही थी और एक बार सबसे छुपके धीरे से उसकी नजर मध्यमा पर पड़ती है।पहली बार मध्यमा को देखने के बाद फिर दुबारा आयुष के मन में उसे देखने की इच्छा हुई इस बार मध्यमा की भी निगाहें उससे टकराई।धीरे -धीरे दोनों एक दूसरे को देखने लगे ।फिर प्रत्येक दिन की क्लास की शुरुआत से अंत तक दोनों एक दूसरे को चुपके -चुपके देखते रहते थे।दोनों को उस चौदह-पन्द्रह साल की कच्ची उम्र मे कुछ भी समझ मे नहीं आ रहा था कि वे एक दूसरे को देखने के लिए इतने लालायित क्यों रह रहे है......
दोनों एक दूसरे को देखने के लिए इतने व्याकुल रहने लगे कि छुट्टी के दिन उन दोनों के लिए पहाड़ सरीखे लगते थे।स्थिति ऐसी बन गयी कि उनके स्कूल जाने का उद्देश्य ही एक दूसरे को देखना हो गया था ।आयुष ,मध्यमा से बात करने के बहाने ढूढने लगा ।इसी बहाने के तहत एक दिन आयुष नें मध्यमा से पेन मांगा।मध्यमा भी इसी पल के इंतजार में थी कि आयुष उससे बोले उसने बिना देर किए उसे अपनी पेन दे दी।उस दिन आयुष बहुत खुश हुआ वह पूरी रात उस पेन को हाथ में लेकर मध्यमा के एहसास के साथ सो गया।फिर वे एक दूसरे की कापियां छूटे हुए कार्य को पूरा करने के बहाने से मांगने लगे।एक दिन उसी कॉपी में मध्यमा नें आयुष का नाम लिखकर अगले दिन वापस कर दिया।अपनी मध्यमा के हाथों अपना नाम लिखा देखकर आयुष का दिल एक अलग ही दुनिया मे गोते लगाने लगा।फिर बात करने के बहाने से एक दूसरे की कॉपियां मांगना उस पर नाम लिखना जैसी चीजें सालो चलती रहीं और दोनों एक दूसरे के करीब आते गए.........
आयुष को ये बिल्कुल नहीं पसंद था कि मध्यमा उसके अलावा किसी और लड़के से बोले।कभी -कभी जब मध्यमा किसी और लड़के से बोलती थी तो आयुष कुछ पल के लिए उसे देखता ही नहीं था शायद ओ मध्यमा को एहसास कराना चाहता था कि उसे ये पसन्द नहीं है......
सालो तक ये होता रहा फिर एक दिन दीपावली के कुछ दिन पहले मध्यमा नें आयुष का नाम एक पन्ने पर खूबसूरत ढंग से सजा कर लिखा।उस पन्ने पर अपना नाम इस तरह सजा देखकर आयुष का प्यार उसके अंदर हिलोरे मारने लगा।अब उसे लगने लगा कि इतने साल के बाद अब उसे मध्यमा को बताना चाहिए कि ओ उससे प्यार करता है।लेकिन उसके अंदर डर भी था कहीं मध्यमा उसके प्रेम को अस्वीकार न कर दे।लेकिन उसने अपने प्यार के लिए हिम्मत पैदा की ।फिर एक दिन उसने मध्यमा से कॉपी मांगी और उसी पन्ने पर जिस पर खूबसूरत नाम लिखा था उसने एक कोने पर आई लव यू राइटर लिखकर उसी कॉपी के साथ वापस कर दिया।अगले दिन आयुष की धड़कनें बढ़ी हुई थी।वह रोज की तरह मध्यमा से नजरें भी नहीं मिला पा रहा था।अगला दिन पूरा बीतने ही वाला था कि मध्यमा ने आयुष से कॉपी मांगी।उस रात आयुष इस कश्मकश में नही सो पाया कि अगले दिन मध्यमा इस कॉपी में क्या जबाब देगी।अगले दिन फिर रोज की तरह क्लास शुरू हुई सब घण्टे बीत चुके थे आयुष को ये बात मारे जा रही थी कि मध्यमा कब कॉपी देगी ।अंततः मध्यमा ने उसे कॉपी देने के लिए आवाज दी ।कॉपी लेते हुए आयुष के हाथ कॉप रहे थे।अब उसका एक -एक पल बहुत मुश्किल से बीत रहा था।वह कॉपी में मध्यमा के उत्तर को देखने के लिए उत्सुक था।आखिरकार छुट्टी होती है।आयुष सीधे घर आने के बाद बिना कुछ खाये पिये उस कॉपी के पन्ने को पलटने लगता है।हर पलटते पन्ने के साथ उसके मन में तरह -तरह के विचार आ रहे थे ।अंततः मध्यमा ने जिस पन्ने पर जबाब लिखा था वह वहाँ पहुंच गया।मध्यमा के जबाब को देखकर वह कुछ पल के लिए घुटनों के बल बैठकर अपने आपको मध्यमा में घुला देना चाहता था।आखिर मध्यमा नें सालों से चले आ रहे प्रेम को स्वीकार कर लिया था.......इसके बाद दोनों एक दूसरे की कॉपियों में पीछे के पन्ने में लिखकर उसे स्टेपल करके देते थे।ये पन्ने ही उनके बीच संवाद का एक मात्र माध्यम होता था।प्यार की वजह से सामने आने पर आयुष कापने लगता था ऐसे में प्रत्यक्ष संवाद स्थापित ही नही हो पाते थे।दोनों एक दूसरे को अथाह प्रेम करते थे लेकिन दोनों नें एक दूसरे को स्पर्श तक नहीं किया था।अब परीक्षाओ के दिन आने वाले थे लेकिन इस परीक्षा के नजदीक आते दिन के साथ आयुष निराश रहने लगा।क्योंकि उसे पता था कि अब उसका और मध्यमा का साथ शायद परीक्षा के बाद छूट जाए।इसी बीच एक दिन आयुष ,मध्यमा से मिलने को कहता है ।मध्यमा उससे मिलने का वादा करती है।मध्यमा उस दिन जल्दी ही स्कूल आ गयी थी लेकिन उसी दिन आयुष की मां की तबियत खराब हो जाने के कारण वह स्कूल नहीं जा सका।फिर उसके बाद परीक्षाओ की तैयारी के लिए स्कूल बंद हो जाता है।शायद अब दोनों एक दूसरे मिल भी न पाए ।बस अब प्रवेश पत्र मिलने के दिन ही दोनों की मुलाकात सम्भव हो पाती।ओ दिन भी आ गया सब प्रवेश पत्र के लिए पहुंच चुके थे।मध्यमा को देखकर आयुष नें उसे बुलाया लेकिन मध्यमा नें बात करना तो दूर उसने उसे देखा तक नहीं।आयुष दिल ही दिल में टूट रहा था ओ जान रहा था इसके बाद शायद ही मध्यमा उससे मिले....... हुआ भी यही । दो- तीन साल तक आयुष नए वर्ष आदि अवसरों पर मध्यमा के फोन के आने की कल्पना करता था लेकिन सब व्यर्थ था।आयुष दो तीन सालों तक टूटता रहा उसे ये बात खाये जा रही थी कि आखिर क्यों मध्यमा नें उससे बात करना छोड़ा।इन दो तीन सालों में दुःख भरे बिछोह के गाने ही उसका सहारा हुआ करते थे।उसकी मोबाइल में सारे गाने ऐसे ही थे ।धीरे -धीरे उसकी मध्यमा से मिलने की उम्मीदे खत्म हो रही थी ।लेकिन उसके दिल में मध्यमा के प्रति प्यार किसी कोने में जिंदा रहा....
आज दस साल बाद वही दबा प्यार उस सिटी माल में हिलोरे मारकर उमड़ रहा था लेकिन कुछ दूरी से चंद मिनट की मुलाकात सिर्फ हाथ हिलाने और नाम पुकारने तक में ही खत्म हो चुकी थी।मध्यमा जा चुकी थी।आयुष भी घर पहुँच चुका था।मध्यमा घर पहुंचने के बाद बार -बार सोच रही थी कि उसने आयुष का फोन नम्बर क्यों नहीं लिया।दोनों ही उस खत वाले प्यार को जीकर इस सोशल मीडिया युग में पहुँचे थे।उस रात दोनों ने एक दूसरे का नम्बर प्राप्त करने की कोशिश की लेकिन सब व्यर्थ था।तीन -चार दिन बीत चुके थे।अब दोनों की उम्मीदें खत्म हो रही थी।तभी मध्यमा को याद आया कि उसकी दोस्त शालिनी जो आयुष से एक बार बात की थी नें उसे बताया था कि आयुष का नम्बर उसे सोशल साइट्स पर मिला था।फिर मध्यमा के अंदर एक नई उत्सुकता जगी।लेकिन ओ अब भी सोशल साइट्स पर अपना आई डी बनाना नहीं जानती थी।लेकिन अपने प्यार की खातिर उसने कोशिश की और अनजाने में ही सही लेकिन उसकी आई डी बन गयी।अब वह आयुष के नाम से उसको खोजने लगी।बहुत सारी आई डी के बीच उसकी निगाह एक जगह रुकती है।उसकी दिल की धड़कने बढ़ी हुई थी।हाँ ये उसी का आयुष था उसने अपनी उंगली से आयुष के चेहरे को स्पर्श करते हुए उसकी प्रोफाइल को खोल दिया।उसे आयुष का नम्बर मिल चुका था।अब उसने बढ़ी हुई धड़कनों के साथ बिना देर किए आयुष के नम्बर पर फोन किया।
आयुष फोन उठाता है और बोलता है हलो.....
मध्यमा आंखे बन्द कर लेती है ...उधर से दुबारा हलो की आवाज आती है।इस बार मध्यमा भी हलो बोलती है..... आयुष के कौन कहकर पूछने पर कहती है उसे अपने दोस्त से बात करनी है....यह जानते हुए भी कि वह आयुष बोल रहा है से बार -बार पूछती है कौन बोल रहे हो।आयुष के न बताने पर खुद कहती है कि वो उसे पहचान रही है...आयुष बोल रहे हो...
अब आयुष भी उत्सुकतावश पूछता है आप कौन......मध्यमा ....उधर से आवाज आयी।
आयुष की धड़कने बढ़ी हुई थी कुछ देर रुकने के बाद उसने मध्यमा से पूछा कि 'तुम दस साल पहले बोलना क्यों छोड़ दी थी?'इधर आयुष का सवाल खत्म होता उधर मध्यमा बोल पड़ती है' तुमने अपने प्यार के बारे में सरला को क्यों बताया था?'
दोनों के सवाल ही एक दूसरे के उत्तर थे ।आयुष कहता है कि उसने सरला को कुछ नही बताया था।बाद में पता चला सरला सिर्फ अंदाजे से एक दूसरे के बारे में जानना चाहती थी।लेकिन सरला ने ये बात घर पर कह दी थी।
दोनों मौन थे ,शायद एक दूसरे को बाहों में लेने को उतावले....
मध्यमा आगे कहती है सरला की इस गलती की वजह से उसकी शादी जल्दी हो गयी।एक गलतफहमी दोनों की जिंदगी और नजरिये को बदल चुकी थी।वे एक दूसरे को बताते हैं की इन दस सालों में उन्होंने एक दूसरे को खोजने की बहुत कोशिशें की थी।मध्यमा की शादी हो चुकी थी वह बार -बार सोच रही थी ओ आयुष से बात करके गलत तो नहीं कर रही है,यही बात आयुष को भी कचोट रही थी कहीं मध्यमा की शादीशुदा जिंदगी पर असर न पड़े।इतने सालो तक दूर रहने के बाद भी दोनों दिल से किसी और के नहीं हो पाए।अब दोनों दस साल के अलगाव की कमी को पूरा करना चाहते थे।वे एक दूसरे को अब नहीं खोना चाहते थे।दोनों ने तय किया की ओ इस चीज को नही सोचेंगे की वे गलत कर रहें हैं की सही यह काम भगवान का है वही तय करेगा क्योंकि प्रेम, ईश्वर का पर्याय है।दोनों ने वादा किया कि वे इस दिल के रिश्ते को जिसे सामजिक स्वीकृति भले न मिले वे निभाएंगे.................

-विवेक वर्मा (कुमार विवेक)