जुगाड़ (व्यंग्य) Alok Mishra द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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जुगाड़ (व्यंग्य)

जुगाड़


अरे.....आप शीर्षक पढ़कर क्या सोचने लगे? चलिए तो फिर आपकी और हमारी सोच को ही आगे बढ़ाते हैं । हमारा समाज कुछ खास नियमों से चलता है। इन नियमों से हट कर यदि आपको कुछ करना हो तो करना होता है.. " जुगाड़" . . । गरीब हमेशा ही अपनी रोजी-रोटी के तो अमीर और पैसे के जुगाड़ में लगा रहता है । नेता वोट के, अभिनेता प्रसिद्धि के और बाबा लोग भक्तों के जुगाड़ में लगे रहते हैं ‌। देखा जाए आप और मैं भी कोई कम तो नहीं । आप इसी क्षण समय काटने के और मैं आपके द्वारा प्रशंसा के जुगाड़ में हूं । इस प्रकार हर कोई किसी न किसी जुगाड़ में लगा हुआ है ।
इस शब्द के भाषाई विश्लेषण हेतु अनेकों भाषा शास्त्री एक दूसरे के बाल नोच कर और कपड़े फाड़ कर अपने वाद को भाषा के क्षेत्र में स्थापित करने और प्रसिद्धि पाने के जुगाड़ में हैं। यह भी अभी तक शोध का विषय ही है कि यह शब्द भाषा में पहले आया या प्रयोग में ।
अब भाषा के क्षेत्र में मेरे इस महान प्रयास के फलस्वरूप अनेकों लोग इस शब्द से जुड़े विषयों जैसे "शोध प्रबंधों में जुगाड़ की भूमिका"," हिंदी भाषा में जुगाड़ का महत्व" और "जुगाड़ू लेखन" आदि पर अपने गाईड के घर की सब्जियां लाकर और बच्चे खिला कर डॉक्टर अवश्य बन जाएंगे । हमने सोलह कलाएं पढ़ी थी । उन कलाओं में जुगाड़ का उल्लेख भी नहीं था परंतु आज ऐसा लगता है कि इसे सत्रहवीं कला के रूप में मान्य करना ही होगा । इसे कलाम मान लेने मात्र से ही महामानव, सोलह कलाओं में निपुण कृष्ण से आज का आम आदमी एक कला आगे निकलता हुआ दिखाई देता है । खैर ....साहब सोलह कलाओं की बारीकियां कम ही लोगों को मालूम होगी लेकिन इस सत्रहवीं कला में तो बच्चा - बच्चा पारंगत दिखाई देता है। बीवी को साड़ी चाहिए ;जुगाड़ के लिए रूठ जाती है। पति भी मनाते हुए फंस जाता है । अब उसे भी पैसे का जुगाड़ करना होगा । वो दफ्तर में ही तो पैसे का जुगाड़ कर सकता है । दफ्तरों में भी भटकते, धक्के खाते और चप्पल चटकाते के लोग भी तो आखिर अपने - अपने कामों के जुगाड़ में होते हैं। इन सबके बीच बेचारा पति पैसों का और वे लोग अपने कामों का जुगाड़ बैठा ही लेते हैं । इस प्रकार आप समझ ही गए होंगे की जुगाड़ एक दूसरे से जुड़े होते हैं और पूरे भी होते हैं ।
कुछ विघ्नसंतोषी लोग इस महति कला को भ्रष्टाचार आदि नामों से जोड़कर देखते हैं लेकिन वह भूल जाते हैं कि इस कला ने ही तो हमें सामाजिक प्राणी बनाए रखा है । देखिए ना होली ,दिवाली जैसे समय पर बड़े - बड़े अफसरों को मिठाई आदि नहीं खरीदनी पड़ती क्योंकि सारे जुगाड़ू महापुरुष अफसर के जुगाड़ को पूरा करने में अपना जुगाड़ पूरा होता देखते हैं । ऐसे अनेकों उदाहरण मिल जाएंगे जिन से जुगाड़ के कारण ही सामाजिकता का अनुभव होता है ।
पिछले कुछ दिनों से हम एक बड़े देश से आर्थिक मदद लेने के जुगाड़ में थे । उनके बड़े नेताओं की खातिरदारी से आखिर जुगाड़ हो ही गया । बस फिर क्या था.... योजनाओं पर योजनाएं बनाई । इन योजनाओं के बहाने सब अपने-अपने जुगाड़ में लग गए । नीचे बैठे गरीबों को लगा उसका भी जुगाड़ हो ही जाएगा । बस इस तरह जुगाड़ के चलते ही पराया माल पूरा ही बट गया । ऊपर से लेकर नीचे तक चलने वाले इस अर्थशास्त्र में जुगाड़ की भूमिका को नकार दें ऐसे निकम्मे को कोई भला अर्थशास्त्री कैसे कह सकता है ?
पिछले कुछ समय से देश की जनता कुछ अजीब मूड में है । वह किसी एक पार्टी को बहुमत देने से कतराती है । बस फिर क्या था सब नेता अपनी डफली अपना राग के तर्ज पर छोटी-छोटी पार्टियों में बंट गए लेकिन सरकार में बने रहने के जुगाड़ के साथ । इस प्रकार सरकारें भी जुगाड़ के भरोसे ही बनने लगी । अब नेता एक दूसरे के केवल और केवल जनता के सामने विरोधी दिखाई देते हैं । अब जुगाड़ूओं के दल मिलकर ही सरकारी चलाते हैं जो जुगाड़ नहीं कर पाते वे सार्थक विपक्ष की भूमिका निभाते हैं । संसद में लड़ने झगड़ने के साथ ही साथ सड़कों पर धरने और प्रदर्शन और आंदोलन करते रहते हैं । जब सरकारें ही जुगाड़ से चलने लगी हो तो राजनीति के क्षेत्र में इसके महत्व को नकारना नामुमकिन हो जाता है ।
विज्ञान के क्षेत्र में केवल और केवल जुगाड़ का ही एहसानमंद होना चाहिए । आज विज्ञान की सारी प्रगति इंसानी जुगाड़ का नतीजा है । हमें जब भी कोई कमी महसूस हुई ,उसके जुगाड़ के लिए हमने अपने ज्ञान का प्रयोग किया । जुगाड़ करते - करते अब हम मंगल पर जाने का जुगाड़ करने में लगे हुए हैं । इस महत्वपूर्ण शब्द को अभी तक उपेक्षा ही झेलनी पड़ी है इसलिए वैज्ञानिक सम्मान का और जुगाड़ू होना हिकारत का प्रतीक है । इस क्षेत्र में प्रयास करके आम जनता का इसमें कौशल विकास करना समाज के हित में ही होगा क्योंकि अब समाज पढ़े-लिखे प्रतिभा संपन्न लोगों से अधिक जुगाड़ वो की ओर देखता है । जुगाड़ू लोग ऊंचाइयां छूते हैं और प्रतिभाएं चप्पले चटका की घूमती हैं । आपको एक नेक सलाह दूं क्या ? यदि आप भी प्रतिभावान हैं जैसा कि आप अपने आप को समझते हैं तो प्रतिभा को जुगाड़ के क्षेत्र में लगा कर देखिए... और फिर देखिए आप कहां से कहां पहुंचते हैं । आप कहीं भी हो इस मित्र को मत भूलिएगा कभी हमारे जुगाड़ भी एक दूसरे से पूरे हो सकते हैं ।
आलोक मिश्रा "मनमौजी"