प्रमिला जी ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठकर गम्भीर मुद्रा में विचार मंथन में लगी हुई थीं।14 वर्षीय पोती अनु के कटु तीव्र वचनों ने उनके जख्मों को हरा कर दिया था,"दादी, आप यहां क्यों आती हो?मेरे कमरे में आपके रहने से मुझे परेशानी होती है, आपके कारण पापा मुझे डांटते हैं।"अवाक थीं उसकी बातों से।बहू सुन रही थी लेकिन एक बार भी उसकी अभद्रता पर उसे नहीं डांटा।कुछ कहती भी क्यों, परोक्ष, अपरोक्ष रूप से बहू भी आजतक उनका अपमान और अवहेलना ही तो करती आई थी,वही देखकर बेटी बड़ी हो रही थी, फिर उससे सम्मान, अपनेपन की उम्मीद व्यर्थ ही थी।वे इसीलिए बेटे के पास नहीं आना चाहती थीं लेकिन तबियत अधिक खराब हो जाने के कारण आना पड़ा।उन्होंने व्यथित होकर कहा कि तुम्हें पापा को मुझे लाने से मना कर देना चाहिए था।
बेटे के विवाह के बाद से अबतक की तमाम बातें मस्तिष्क में हलचल मचा रही थीं।तब बहू प्रथम बार गर्भवती थी,वैसे तो विवाह के 5-6 दिन बाद ही बेटे के कार्यस्थल पर भेज दिया था।लेकिन किसी कार्यवश मायके गई थी।उन दिनों प्रमिला जी की तबियत खराब चल रही थी, डॉक्टर को ब्लाकेज की सम्भावना प्रतीत हो रही थी, अतः एंजियोग्राफी के लिए लखनऊ रिफर किया था।चूंकि बेटा वहीं था अतः यही विचार बना कि एंजियोग्राफी कराकर सब साथ ही वापस आ जाएंगे, फिर कुछ दिनों बाद वह पत्नी सहित लौट जाएगा।थकी-मांदी,बीमार प्रमिला जी ने लौटकर स्वयं सबके लिए खाना बनाया, बहू ने सहयोग करना भी आवश्यक नहीं समझा।
जब आंख का मोतियाबिंद का ऑपरेशन हुआ था तब अनु 2 साल की थी।जब बेटा घर पर होता तो वह आंख की सिंकाई के लिए स्वयं पानी गर्म कर देता,लेकिन उसके पीछे बहू किसी भी बात का ध्यान नहीं रखती, उसपर वे स्वयं भी किचन में कुछ करना चाहतीं तो भी उसे बर्दाश्त नहीं था।पूरे दिन खामोशी से प्रमिला जी मौन पड़ी रहतीं।
जब पति की मृत्यु हुई थी बेटा 10-12 दिन पहले ही कम्पनी की ओर से 6 माह के लिए विदेश गया था,बहू ने मायके में वह समय बिताने का फैसला किया था।अचानक से पति की तबियत बिगड़ गई थी और वे एक सप्ताह में ही स्वर्ग सिधार गए थे, बेटा 3-4 दिन बाद आ पाया था, जिससे देवर ने अग्निदान किया था।गांव में बहू को परेशानी होगी,यह सोचकर उन्होंने उसे मायके वालों के साथ तेरहवीं के समय ही आने को कहा था, लोगों के बातों की परवाह किए बिना।शहर में मकान बनवाया था पति ने, संस्कारों के बाद वे अपने मकान में वापस आ गईं और बहू मायके लौट गई।बेटे को वापस जाना ही था विदेश।वापसी के बाद बेटा अपने साथ ले जाना चाहता था लेकिन वे अच्छी तरह जानती थीं कि बहू को उनकी उपस्थिति नागवार गुजरती है, अतः बहाना बना दिया कि अभी बरसी से पहले घर नहीं छोड़ सकती।
साल में एक बार वे कुछ दिनों के लिए बेटा, पोती से मिलने के लिए बेटे के पास चली जाती थीं।इस मध्य एक पोता भी हो गया था। बेटे की अनुपस्थिति में बहू बच्चों को उनके निकट नहीं आने देती थी।नीचे बिल्डिंग के पार्क में भी उनका जाना उसे गवारा नहीं था।फोन पर बात करते समय जरा आवाज तेज हो जाती थी तो पोती टोक देती थी कि आपको तमीज नहीं है, इतनी तेज नहीं बोलना चाहिए।जरा दरवाजा तेज से लग गया,तुरंत टोकती थी।खाना बनाने वाली सहायिका थी।अगर वे एक रोटी कम खा लेतीं किसी दिन तो शाम को वह बासी रोटी उन्हें ही खानी पड़ती या अगले दिन एक रोटी कम कर दी जाती।उन्होंने परिवार बड़ा होने के बावजूद हमेशा स्वयं भी अच्छा खाया था और बच्चों को खिलाया था। घी,दूध, फल, सब्जी,मेवा हर चीज की बहुतायत रही घर में।यहाँ तक की नौकर को भी कुछ भी खाने की स्वतंत्रता थी उनकी गृहस्थी में।बहू की गृहस्थी में हर चीज पर नियंत्रण था।अगर मिठाई आती थी तो उसके पीस गिनकर रखे जाते थे।एक बार उसके माता-पिता आए थे तो बहू ने मिठाई मंगवाई थी।अगले दिन उसने मुझसे पूछा कि दो पीस मिठाई कम है, क्रोध तो बहुत आया था कि अगर मैंने खा भी लिया तो हिसाब लेना सर्वथा अनुचित है लेकिन किसी तरह से स्वयं को संयत करते हुए उसकी मां के सामने ही जबाब दिया कि कल तुम्हारे मार्केट जाने पर तुम्हारा चचेरा भाई आया था तो उसे पानी पीने के लिए दिया था।अगर धन का अभाव होता तो फिर भी समझ में आता लेकिन यहाँ तो नीयत में खोट था।तमाम ऐसी छोटी-छोटी बातें थीं, जिन्हें किसी को बताने में भी वे शर्म महसूस करती थीं।वे शिकायत करके बेटे की जिंदगी में समस्याओं को औऱ नहीं बढ़ाना चाहती थीं।
वे अच्छा-खासा पारिवारिक पेंशन पा रही हैं, अभी शरीर भी क्रियाशील है,फिर ऐसे क्लेश भरे वातावरण में रहने को वे क्यों मजबूर रहें।अपना घर है, जहाँ वे स्वतंत्रता से रहती हैं, किसी भी बात का कोई बंधन नहीं है, फिर मोह में पड़कर कैदी की भांति जीवन व्यतीत करना उन्हें कतई मंजूर नहीं है।फिर जहाँ सम्मान न हो वहां तो बिल्कुल नहीं जाना चाहिए चाहे कोई कितना भी करीबी क्यों न हो।इसलिए उन्होंने फैसला लिया कि जबतक हाथ-पैर चलेंगे वे अपने घर में ही रहेंगी।जब बिल्कुल अशक्त हो जाएंगी तब की तब देखी जाएगी।हो सकता है पति की भांति वे भी बिना सेवा लिए संसार से प्रस्थान कर जाएं।जमाने को देखते हुए हर व्यक्ति को अपने वृद्धावस्था के लिए व्यवस्था अवश्य करनी चाहिए,जितनी कम अपेक्षाएं, उतना कम दुःख।मोह भी कम रखना चाहिए क्योंकि मोहबन्धन सबसे बड़ा कारण है कष्टप्रद बुढ़ापे का।यह जीवन सरिता सुख,दुःख, कठिनाइयों के प्रस्तरों को पार करती अनवरत प्रवाहित होती रहेगी,बस हमें सदा धैर्य बनाए रखना चाहिए।
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