मुझसे दोस्ती करोगे - भाग 7 Sarvesh Saxena द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मुझसे दोस्ती करोगे - भाग 7

रात को मल्होत्रा और अनिल उसी जगह पहुंचे तो मल्होत्रा ने झुग्गी की ओर इशारा करके कहा "चलो आज इस बला का काम ही खत्म कर देता हूं" l अनिल भी कहीं ना कहीं समझ गया था कि साहब क्या करने वाले हैं l दोनों झाड़ियों में बनी इस झुग्गी की ओर चले गए, चारों ओर अंधेरा और सन्नाटा था जो मल्होत्रा के इरादों को और मजबूत कर रहा था l

दोनों उस झुग्गी में पहुंचे तो मारे बदबू के उनसे खड़ा ना हुआ गया, दोनों ने अपना रुमाल निकालकर अपनी नाक पे लगा लिया l मल्होत्रा ने अपना मोबाइल निकाल कर टॉर्च जलाते हुए कहा "हाउ डिस्गस्टिंग…. कितने गंदे लोग हैं और ये इतनी बदबू.. जैसे कोई मरा सड़ रहा हो यहां पर"। वह दोनों बच्ची को ढूंढने लगे लेकिन वह कहीं नहीं देखी तभी मल्होत्रा का पैर किसी चीज से टकराया और उन्होंने टॉर्च लगा कर देखा तो दोनों हक्के बक्के रह गये, एक बुड्ढा जिस पर तमाम मक्खियां लग रही थी बेसुध लेटा था ।

मल्होत्रा ने चिल्लाते हुए कहा "यह किसकी लाश है? हो ना हो इस लड़की के बाप की लाश होगी, सारे के सारे ऐसे ही हैं" तभी अनिल ने पास आकर देखा और कहा "अरे सर यह मरा नहीं है इसकी तो सांसे चल रही है लेकिन इसका शरीर किसी बीमारी के चलते और इलाज के अभाव में धीरे धीरे सड़ रहा है"।

यह सब देख कर अनिल को अचानक से उल्टी होने लगी जिसे देखकर मल्होत्रा और ज्यादा गुस्से में हो गया, अनिल उल्टी करके हांफते हुए बोला "साहब क्योंकि यह तो वैसे भी मरने वाला है तो इसे छोड़कर उस लड़की को ढूंढते हैं" तभी उस बुड्ढे ने कराहते हुए कहा "नहीं.. ऐसा मत करना वह मेरी बच्ची है, वह अपनी मां के पास रोज रात में सोती है उसकी मां उसे अच्छी सी कहानी सुनाती हैं, मेरी नन्ही बच्ची से यह हक नहीं छीनना, वैसे भी भगवान ने उसकी मां को हमसे तो छीन ही लिया है"।

यह सुनकर वह दोनों एक दूसरे को देखने लगे और तभी अनिल ने कहा "लेकिन बाबा तुम्हारी पत्नी मेरी कैसे"? बाबा ने फिर कराहती हुई आवाज में कहा "अरे बेटा मरती नहीं तो क्या करती, वैसे भी अच्छा ही हुआ जो मर गई, रोज मरने से तो अच्छा ही हुआ, यह देख रहे हो मेरे शरीर पर घाव, मैं भी धीरे-धीरे सड़ जाऊंगा, उसे भी यही बीमारी थी, उसकी सेवा करते करते मुझे भी यह बीमारी लग गई, मेरी उस मासूम बच्ची ने कितने लोगों से मदद मांगी लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं करी और सच बात तो यह है यहां ज्यादा लोग रहते भी नहीं हैं, वो कड़ी धूप में हाईवे पर बैठकर मदद मांगती लेकिन हाईवे पर कोई अपनी गाड़ी नहीं रोकता और उसे देख कर मुंह घुमा लेता, धीरे धीरे मेरी पत्नी मौत के मुंह में गिरती रही और मैं कुछ नहीं कर सका, एक दिन वह हमेशा के लिए हमें छोड़ कर चले गई", मेरी बेटी को इस बात का सदमा ना लगे इसलिए मैंने उससे कहा "बेटी तुम्हारी मां को बहुत नींद आ रही थी, वह अब सोती रहेगी मैं यहां इसे गड्ढे में सुला देता हूं, तुम मां को परेशान नही करना" । इस पर वो जिद करने लगी मैं भी उनके साथ रहूंगी, मैं भी मां के साथ रहूंगी"।