मुझसे दोस्ती करोगे - भाग 1 Sarvesh Saxena द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मुझसे दोस्ती करोगे - भाग 1

"अरे मुन्नी… ऐसे मत दौड़ रोड पर, मुन्नी…... मुन्नी रुक जा, अरे कोई गाड़ी आ जाएगी मुन्नी…, मुन्नी रुक जा…" |

दस साल की मुन्नी रात के आठ बजे अपनी मां के साथ शहर के भीड़भाड़ वाली सड़कों से होकर अपनी छोटी सी चोल में जा रही थी, पर मुन्नी बार-बार उसका हाथ छुड़ाकर सड़क पर दौड़ती जाती और मुन्नी जिस तरह की हंसी हंस रही थी उससे तो ऐसा लग रहा था जैसे उसे सड़कों पर गिरने का कोई डर ही नहीं, माला ने फिर मुन्नी को पुकारा, "अरे मुन्नी रुक जा, घर चल तुझे बताती हूं… अरे रुक ना…" पर मुन्नी सड़क पे भागे जा रही थी |

माला तभी एक एकदम से चीख पड़ी, "नहीं… मुन्नी…" इसी के साथ सड़क पर भीड़ लग गई |

छह दिन पहले….

एक सुबह,

माला ने मुन्नी को जगाते हुए कहा "अरे मुन्नी, जल्दी उठ वरना देर हो जाएगी, मेम साहब बहुत गुस्सा करेगी"|

मुन्नी आंखें मलते हुए बोली -" मां आज मैं नहीं जाऊंगी, तुम चली जाओ" |

माला - "यहां अकेले क्या करेगी तू,चल उठ वरना पिटेगी.. समझी"|

मुन्नी -" क्या माँ, मै मोनू के साथ खेल लूंगी" |

माला ने गुस्से मे कहा - "उठती है या बताऊं" |

मुन्नी उबासी लेते हुए उठ गई और हाथ मुंह धोने चली गई |

कुछ देर बाद माला और मुन्नी उठकर तैयार हो गए | शहर के एक रईस मिस्टर मल्होत्रा के यहां माला पूरे दिन काम करने के लिए रहती और परिवार में और कोई सदस्य ना होने के कारण उसे मुन्नी को भी साथ ले जाना पड़ता, मुन्नी के पैदा होते ही माला का पति उसे छोड़कर चला गया था तब से आज तक वह दोनों यूं ही एक दूसरे के साथ ही रहती हैं | मुन्नी कई बार माला से पूछती कि पिताजी मेरे पापा कहां हैं तो माला हंसकर टाल देती वह बहुत दूर गए हैं लेकिन बड़ी होती हुई मालक हो धीरे-धीरे अब समझाना बहुत मुश्किल होने लगा था लेकिन जैसे तैसे करके माला उसको बता देती कोई छोटी सी बच्ची को क्या बताते हैं की उसका बाप सिर्फ इसलिए उन दोनों को छोड़कर चला गया क्योंकि उसे लड़की नहीं लड़का चाहिए था अपने पति को याद करके माला के मन में भावनाओं का बवंडर उमर ने लगा जिसे संभालते हुए उसने मुन्नी से कहा चल चल अब देर मत कर वरना मालकिन बहुत गुस्सा होगी वह दोनों को साथ लेकर मिसेज मल्होत्रा के यहां पहुंच गई |

मिसेज मल्होत्रा ने माला से कहा- "अरे क्या बात है माला, आज बड़ी देर हो गई" |

माला - "अरे मेम साहब, ये है ना मेरी जान की आफत, कह रही थी कि मैं अकेले ही घर पर रहूंगी अकेले छोड़ देती तो न जाने क्या-क्या कर डालती इसीलिए दीदी देर हो गई" |
मिसेज मल्होत्रा हंसते हुए - "अच्छा.. अच्छा.. कोई बात नहीं, जाओ फटाफट साहब के लिए नाश्ता बना दो वह बस निकलने ही वाले हैं बाकी काम बाद में कर लेना" |

माला जाकर नाश्ता बनाने लगती है और मिसेज मल्होत्रा का तभी फोन आ जाता है और वो फोन पर बात करने लगती हैं |